क्यूबा में प्रदर्शन – संसाधनों का अभाव

क्यूबा में प्रदर्शन – संसाधनों का अभाव

September 11, 2021 0 By Yatharth

  शैलेन्द्र चौहान

एक संप्रभु देश के आंतरिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप हर तरह से अस्वीकार्य है।

रविवार 11 जुलाई को क्यूबा की राजधानी हवाना में बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर सरकार का विरोध करने के लिए उतरे, जो दशकों में कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा संचालित द्वीप पर सबसे बड़ा सरकार विरोधी प्रदर्शन था। सुरक्षाबलों की भारी मौजूदगी के बीच लोगों ने शहर के कई हिस्सों में प्रदर्शन किए। इस दौरान पुलिस से उनकी झड़पें भी हुईं और कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया गया। स्वतंत्रता का नारा लगाते हुए और राष्ट्रपति मिगुएल डियाज़-कैनेल को पद छोड़ने का आह्वान करते हुए, हजारों क्यूबाई नागरिक हवाना से सैंटियागो तक सड़क पर विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए। क्यूबा पिछले 30 सालों के सबसे गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। ध्यातव्य है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने क्यूबा पर 200 से अधिक आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे। वैसे भी विगत छह दशकों से अमेरिका ने क्यूबा पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा ही रखे थे। यही कारण है कि अब वहां अर्थव्यवस्था की स्थिति अत्यधिक खराब है और नागरिकों के बीच असंतोष है। वर्तमान राष्ट्रपति बाइडेन के शासनकाल में भी इन प्रतिबंधों को नहीं हटाया गया है। अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों और कोविड-19 महामारी ने मिलकर इस देश के पर्यटन क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित किया है, जो यहां की आय (फॉरेन रेवेन्यू) का सबसे प्रमुख स्रोत है। इसी की सहायता से यहां की सरकार भोजन, ईंधन और कृषि तथा मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए उपयोगी इनपुट का आयात करती है। क्यूबा की जीडीपी 2020-21 में 10.9% से संकुचित हो गई जबकि 2021 में जून तक 2% का संकुचन देखने को मिला है।

क्‍यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख और देश के राष्ट्रपति मिगेल डियाज-कैनल ने टीवी पर एक भाषण में इन विरोध प्रदर्शनों के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया है। हाल ही में सैन ऐंटोनियो डे लोस बानोस का दौरा करके लौटे डियाज कैनल ने कहा कि बहुत से प्रदर्शनकारी नेकनीयत थे लेकिन अमेरिका द्वारा रचे गए सोशल मीडिया अभियानों और धरातल पर मौजूद कातिलों के बहकावे में आ गए। उन्होंने चेतावनी दी कि भविष्य में ऐसे उकसावों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। जैसा कि विदित है, वामपंथी शासन वाला क्यूबा पिछले दो साल से भारी आर्थिक संकट से गुजर रहा है। स्थानीय स्तर पर लगाई गईं पाबंदियों, चीजों के अभाव और महामारी ने पर्यटन को ठप्प कर दिया है। विदेशी आय लाने वाली दूसरी कई गतिविधियों भी धीमी पड़ गई हैं। और इन गतिविधियों पर निर्भर देश को खाना, ईंधन, कृषि व निर्माण के लिए साजोसामान की दिक्कत हो रही है। स्पेन के सोशल मीडिया विश्लेषक जुलियन मासियास तोवार ने दावा किया है कि क्यूबा में अशांति भड़काने के लिए पिछले कुछ दिनों से विदेशों से सोशल मीडिया पर संगठित और जोरदार अभियान चलाया जा रहा था। उन्होंने आरोप लगाया है कि इसके पीछे अर्जेंटीना के दक्षिणपंथी राजनीतिक कार्यकर्ता अगुस एंतोनेली का हाथ है। तोवार के मुताबिक उनके विश्लेषण से पहले भी ये जाहिर हो चुका है कि एंतोनेली ने लैटिन अमेरिका के वामपंथी संगठनों को अस्थिर करने की कोशिश की है। लैटिन अमेरिका के टीवी चैनल टेलीसुर की वेबसाइट पर छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक तोवार ने दावा किया है कि क्यूबा सरकार के खिलाफ अभियान में रोबोट्स, एल्गोरिद्म और हाल ही में बनाए गए सोशल मीडिया एकाउंट्स का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया। इनके जरिए क्यूबा सरकार के खिलाफ लोगों को भड़काने की कोशिश की गई। दरअसल वामपंथी सरकार को अस्थिर करने की ऐसी कोशिशें वहां सालों से चल रही हैं। एसोशिएटेड प्रेस, वॉशिंगटन की एक पुरानी रिपोर्ट (2014) के अनुसार अपने कड़े प्रतिद्वंदी क्यूबा में अशांति फैलाने के लिए अमेरिका नई-नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक क्यूबा में अशांति फैलाने और लोगों को उकसाने के लिए ओबामा प्रशासन ने एक सोशल नेटवर्क को पैसा पहुंचाया है ताकि वहां की कम्युनिस्ट सरकार को हटाया जा सके। रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका ने क्यूबा के इंटरनेट प्रतिबंध की नजरों से बचते हुए एक ऐसा मैसेजिंग प्रोग्राम बनाया है जिससे लोगों को सरकार विरोधी प्रदर्शन करने के लिए उकसाया जा सकता है। इसके जरिए लाखों लोगों को मैसेज भेजे जा रहे हैं और वह नहीं जानते कि इसके पीछे अमेरिकी सरकार है। डाक्युमेंट्स और इंटरव्यू के जरिए पता चला है कि यूएस एजेंसी फॉर इंटरनैशनल डिवेलपमेंट का इस ‘क्यूबन ट्विटर’ में बड़ा हाथ है। रिपोर्ट्स के मुताबिक अपनी बनाई हुए एक कंपनी की आड़ में वह केमन द्वीप से पैसा भेजते हैं ताकि किसी को पता ना चले। गौरतलब है कि अमेरिकी कॉन्ट्रैक्टर एलन ग्रौस को क्यूबा में छिप कर इंटरनेट फैलाने के लिए अरेस्ट किया गया था। जिसके बाद यह प्रोजेक्ट शुरू किया गया।

लैटिन अमेरिका की वामपंथी सरकारों ने अधिक कड़े शब्दों में प्रतिक्रिया जताई। बोलिविया के राष्ट्रपति लुई आर्चे ने कहा कि क्बूया के अंदर की समस्या का हल बिना किसी हस्तक्षेप के क्यूबा के लोगों को निकालना चाहिए। उन लोगों को तो दखल का कोई अधिकार नहीं है, जिन्होंने 60 साल से क्यूबा पर प्रतिबंध लगा रखे हैं। साफ है, आर्चे का निशाना अमेरिका पर था। बोलिविया के पूर्व राष्ट्रपति और सत्ताधारी पार्टी के नेता इवो मोरालेस ने ध्यान दिलाया कि 2019 में उनकी सरकार का तख्ता पलटने में अर्जेंटीना के तत्कालीन राष्ट्रपति मॉरिशियो मैक्री और इक्वाडोर के पूर्व राष्ट्रपति लेनिन मोरेनो ने सक्रिय भूमिका निभाई थी, जिसके सबूत अब सामने आ चुके हैं। उन्होंने कहा कि लैटिन अमेरिका के धुर दक्षिणपंथी नेताओं ने बोलिविया में तख्ता पलटने वाले नेताओं को हथियारों की सप्लाई की थी। बोलिविया में इस मामले में बकायादा मुकदमा चलाया जा रहा है। मोरालेस ने संदेह जताया कि वैसा ही फॉर्मूला अब क्यूबा में आजमाया जा रहा है। कैरिबियाई देश निकरागुआ के राष्ट्रपति डैनियल ओर्तेगा ने क्यूबा के लोगों के साथ अपनी एकजुटता जताई है। उन्होंने कहा कि क्यूबा से आई तस्वीरों को देखने से साफ है कि वहां अस्थिरता लाने का जाना-पहचाना साम्राज्यवादी तरीका अपनाया जा रहा है। उन्होंने कहा- अमेरिका दुनिया में अस्थिरता फैलाने वाला मुख्य देश है। उसे क्यूबा के बारे में कुछ भी बोलने का हक नहीं है।

क्यूबा के कम्युनिस्ट शासन के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण समर्थन मेक्सिको के राष्ट्रपति आंद्रेस मैनुएल लोपेज ओब्रादोर की तरफ से आया है। मेक्सिको एक बड़ा देश है और ओब्रादोर के राष्ट्रपति बनने से पहले वहां लगातार अमेरिका समर्थक दक्षिणपंथी सरकारें ही सत्ता में रही थीं। ओब्रादोर ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की वे संप्रभु देशों के अंदर हस्तक्षेप ना करने के सिद्धांत का पालन करें। उन्होंने कहा- मैं क्यूबा के लोगों के साथ अपनी एकजुटता जताना चाहता हूं। मेरी राय है कि समाधान बिना हिंसा और टकराव का सहारा लिए बातचीत से निकाला जाना चाहिए। इसे क्यूबा के लोगों को ही निकालना चाहिए, क्योंकि क्यूबा एक स्वंतत्र और संप्रभु देश है। रूस के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने सोमवार को कहा कि रूस क्यूबा के राष्ट्रपति मिगुएल दियाज-कानेल की सरकार को अस्थिर करने की कोशिशों को अस्वीकार करता है। उन्होंने कहा कि एक संप्रभु देश के आंतरिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप हर तरह से अस्वीकार्य है।