कोल ब्लॉक के खिलाफ संताल परगना के आदिवासियों का कड़ा विरोध

September 11, 2021 0 By Yatharth

  अमिता कुमारी

पिछले एक महीने से झारखंड के संताल परगना क्षेत्र में आदिवासियों द्वारा प्रस्तावित कोल ब्लॉक के खिलाफ कड़ा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। जुलाई 2021 में इस क्षेत्र के शिकारीपाड़ा व काठीकुंड में तीन कोल ब्लॉक के संचालन के लिए सरकारी प्रयास तेज़ हुए। शिकारीपाड़ा के अंचलाधिकारी ने ग्राम प्रधानों की एक बैठक बुलाई तथा उन्हें अपने-अपने गाँव के लोगों को कंपनियों को आवंटित क्षेत्र देने के लिए सहमत कराने को कहा गया। 15 जुलाई को अगली बैठक ग्राम प्रधानों व कंपनियों के अधिकारियों के बीच होनी थी। परंतु इस बैठक के ठीक एक दिन पहले प्रभावित ग्रामों के आदिवासियों ने सभाएं आयोजित कर अपना कड़ा विरोध दर्ज़ किया तथा यह विरोध प्रदर्शन लगातार जारी है। विरोध प्रदर्शनों में ग्राम प्रधानों के अलावा गाँव के स्त्री पुरुष बड़ी संख्या में शिरकत करते देखे जा सकते हैं। इस बार आदिवासी समुदाय किसी भी समझौते के लिए तैयार नहीं नज़र आ रहे। 21 गांवों के ग्राम प्रधानों ने कड़ा निर्णय लेते हुए, कोल ब्लॉक संबंधी टेस्टिंग के गड्ढों को स्थानीय अधिकारियों को बंद करने की हिदायत दी है। साथ, 28 जुलाई के महाग्रामसभा, जिसमें दो दर्जन गाँव के लोग शामिल थे, में यह ऐलान कर दिया गया कि बाहरी लोगों व पदाधिकारियों को गाँव आने नहीं दिया जाएगा। इन बैठकों व प्रदर्शनों में आदिवासी अपने पारंपरिक हथियारों से लैस दिखाई देते हैं। आक्रोशित ग्रामीणों के बागी तेवर थमने का नाम नहीं ले रहे। उनका कहना है कि वे इस बार अपनी अंतिम सांस तक कोल ब्लॉक का विरोध करेंगे।

शिकारिपाड़ा का क्षेत्र जहां यह विरोध प्रदर्शन जारी है, पिछले कई दशकों से पत्थर उत्खनन का दंश झेल रहा है। पत्थर माफियाओं द्वारा खनन प्रक्रियाओं ने इस क्षेत्र में पहाड़ों, जंगलों, हवा और जल स्रोतों पर गंभीर संकट उत्पन्न किया है। कई ग्रामीण पिछले दशकों में खनन क्रियाकलापों के कारण विस्थापित हुए हैं, कृषि से दिहाड़ी मजदूरी करने को विवश हुए हैं तथा वायु प्रदूषण के कारण गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रसित हुए हैं। इन सब संकटों के साथ अगर कोयला खनन का कार्य भी ज़ोर पकड़ता है तो यह क्षेत्र और यहाँ के आदिवासी तबाही के दलदल से कभी उबर नहीं पाएंगे।

झारखंड व भारत के अन्य राज्यों में कोयला खनन व उससे जुड़े तथाकथित “विकास” को केंद्र द्वारा कॉर्पोरेट लूट को बढ़ावा देने के लिए लगातार इस्तेमाल किया जाता रहा है। पूँजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए 2015 में ही बीजेपी की सरकार ने कोल माइंस (स्पेशल प्रोविशन) एक्ट पारित किया जिसके तहत नीलामी के तहत लीज़ लेने वाली कंपनियों को उत्खनन के अधिकार के साथ ज़मीन और खनन संरचना (mine infrastructure) के भी अधिकारी होंगे। जनवरी 2020 में भी मोदी ने संसद में एक नया बिल पेश किया था जिसके तहत लीज़ लेने वाली कंपनियाँ उत्खनन जारी रखते हुए दो वर्षों के भीतर पर्यावरण तथा वन संबंधी क्लियरेंस करवा सकते हैं। इस तरह उन्हें दो वर्षों की खुली छूट इस बिल द्वारा देने का प्रयास किया गया है।

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मोदी को खुली चुनौती देते हुए जून 2020 में झारखंड के 22 कोल ब्लॉकों की केंद्र द्वारा पूँजीपतियों को नीलामी किए जाने के प्रयास के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पेटिशन दायर किया है। हेमंत सोरेन का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा कोल ब्लॉक का एकतरफा वितरण करवाना संविधान में निहित “सहकारी संघवाद” (cooperative federalism) की अनदेखी है। हेमंत सोरेन और बीजेपी की आपसी राजनीतिक खींचतान तो सत्ता की प्रतिस्पर्धा का हिस्सा हैं, पर इन सब के बीच आदिवासियों को अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी होगी, इसका एहसास उन्हें हर बितते दिन ज्यादा से ज्यादा हो रहा है। इसलिए इस बार संताल परगना के आदिवासियों ने यह ठान रखा है कि वे पूंजीवादी मंसूबों को जीतने नहीं देंगे।