किसानों से युद्धविराम मोदी तोड़ चुके हैं

January 9, 2022 3 By Yatharth

असली तैयारी भावी किसान आंदोलन से निपटने की रणनीति तलाशने से ही जुड़ी है

पंजाब के पिछले चंद दिनों के घटनाक्रम पर ‘यथार्थ’ की त्वरित टिप्पणी

5 जनवरी की मोदी की फिरोजपुर सभा क्‍या असफल हुई और मोदी को बीच रास्‍ते से क्‍या लौटना पड़ा, देश का गोदी मीडिया तब से मोदी की जान को खतरा है बोल-बोल कर आसमान सर पर उठा रखा है। उसे किसी और ने नहीं प्रधानमंत्री मोदी ने सोच-समझ कर इसके माकूल मुद्दा दिया है। जो लोग मोदी की राजनीतिक पैंतरेबाजी और स्‍टाइल को गहराई से समझते हैं वे जानते हैं कि फिरोजपुर सभा में जाने की पूरी प्लानिंग के जरिये किसान आंदोलन से हलकान और परेशान मोदी ने बहुत ही चालाकी से पासा पलटने की कोशिश की है। इसी के साथ मीडिया को देश के लोगों तक यह संदेश पहुंचाने की जिम्मेवारी दे दी गई है कि मोदी को मारने की साजिश हो रही है और उनका जीवन खतरे में है। इससे कई निशाने साधे जाने हैं लेकिन असली तैयारी आगामी किसान आंदोलन से निपटने हेतु दूरगामी रणनीतिक तैयारी से जुड़ी है इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए। यह 2024 तक चलने वाले चुनावी प्रचार का केंद्रीय मुद्दा भी हो सकता है। समाचार एजेंसी एएनआई ने बिना सिर पैर वाली इस बात को यूं ही नहीं फैलाया है कि बठिंडा एयरपोर्ट पर मोदी ने किसी अधिकारी को कहा कि जाकर मुख्यमंत्री से यह कहना कि वे किसी तरह जिंदा लौट आये हैं। अभी तक उस अधिकारी का पता नहीं चला है जिससे मोदी ने ये बात कही। प्रधानमंत्री मोदी स्वयं प्रेस कांफ्रेस कर के यह बता सकते थे कि उनके कहने का अर्थ क्या है। लेकिन मंशा धुंध हटाना नहीं इसे और गहरा बनाना है तो फिर मोदी ऐसा क्यों करेंगे? देश में चारों तरफ शंका, भय और अविश्वास का माहौल हो, फासीवादी एजेंडे को बढ़ाने के लिए यही तो सबसे जरूरी चीज होती है।   

जिस सभा में लोग नहीं जुटे, उस सभा में, यह कहा जा रहा है कि मोदी खराब मौसम के कारण आकाश मार्ग छोड़ सड़क के रास्ते जा रहे थे। शुरू में यह कहा गया कि रास्ते में किसान आ गये जिससे मोदी की सुरक्षा खतरे में पड़ गई। स्वयं मोदी ने बठिंडा हवाई अड्डे पर किसी अधिकारी को तंज लहजे में कहा कि ”मुख्यमंत्री को जाकर कह देना कि मैं जिंदा लौट आया हूं।” प्रधानमंत्री को यह भी कहना चाहिए था कि वे किससे जान बचाकर लौटे, लेकिन इसे वे ज्ञात कारणों से मीडिया के लिए छोड़ गये, ताकि वह इसे लेकर पूरे देश में सनसनी फैला सके। दरअसल, वे ”अपने लोगों” को यह मुद्दा देना चाहते थे कि ”मेरा जीवन खतरे में है” यानी देश के रखवाले का जीवन खतरे में है। उसके बाद का काम मीडिया का था और उसने बखूबी किया भी। लेकिन इसका वास्तविक रंग तब दिखेगा जब प्रधानमंत्री दुबारा चुनाव प्रचार में उतरेंगे। प्रधानमंत्री और पूरा आरएसएस-भाजपा समूह यह समझता है कि कुछ लोग यह समझ जायेंगे कि मीडिया और मोदी के इस पूरे खेल के पीछे का सच क्या है, लेकिन जनता की विशाल आबादी तक मीडिया यह बात पहुंचा देगा कि मोदी देश के लिए काम कर रहे हैं और गद्दार उन्हें मारने की साजिश कर रहे हैं। और यही बात मुख्य है जिस पर मोदी का जोर है। मोदी का जोर इस पर है कि जनता के दिल में यह बैठ जाये कि प्रधानमंत्री का जीवन खतरे में है और उसकी रक्षा करना, यानी मुख्य रूप से चुनावों में उन्हें समर्थन देकर उनके हाथ को मजबूत करना जनता का आज का मुख्य  काम है। पूरा नैरेटिव तैयार है। मोदी का जीवन खतरे में है यानी देश की सुरक्षा खतरे में है और जब देश ही खतरे में है तो जनता भला कैसे रोजी-रोटी और हक अधिकार की बात उठा कर देश से गद्दारी कर सकती है। देश बचेगा तभी तो रोजी-रोटी की बात वे करेंगे। इसी तरह का प्रचार जमीन पर उतारा जायेगा। दरअसल यही प्रचार उतरना शुरू हो चुका है। बाकी हिंदू-मुस्लिम की राजनीति का गहरा और दिल में बसा असर तो है ही। मोदी और उनके लोग इसी तरह के आकलन पर काम कर रहे हैं। अब यह देखना बाकी है कि जनता इस बार क्या करती है। लेकिन भाजपा और मोदी के प्रचार का निशाना और मुद्दा साफ हो चुका है – हिंदू-मुस्लिम घृणा, पाकिस्तान, हिंदू-राष्ट्र बनाने का अभियान, धर्म-संसद की मुस्लिम सफाये की राजनीति, आदि के साथ अब प्रधानमंत्री मोदी खतरे में हैं का राजनीतिक अभियान भी आ जुड़ा है। यह विशुद्ध रूप से एक ऐसा कॉकटेल है जिसकी सफलता पर प्रधानमंत्री मोदी को पूरा भरोसा है और वे इसे हर हाल में लागू करना चाहते हैं, क्योंकि अगर यह कॉकटेल बेकार चला जाएगा, तो फिर मोदी के पास कुछ नहीं है जिससे वे जनता को अपने वश में कर सकते हैं।     

        

पिछले एक साल में सात सौ किसानों की शहादत का दर्द झेल रहे किसान ज्ञात कारणों से तबसे मोदी के पंजाब आने और सभा करने का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे, जब से उन्हें मोदी की फिरोजपुर सभा की जानकारी मिली। किसानों की मंशा जाहिर है सभा में लोगों को आने से रोकने और कार्यक्रम को असफल बनाने की होगी, लेकिन मोदी के काफिले को रोकने का उनका कोई घोषित या अघोषित कार्यक्रम नहीं था। संयुक्त किसान मोर्चे ने इस संबंध में अपनी बात प्रेस विज्ञप्ति जारी करके कह दी है। तो फिर किसान रास्ते पर कैसे आ गये? दरअसल दो से तीन दिन बीतते-बीतते पूरे प्रकरण पर से पर्दा उठने लगा। यह साफ होने लगा कि किसानों को तो दरअसल पता ही नहीं था कि इसी रास्ते से प्रधानमंत्री आने वाले हैं। ज्यादा से ज्यादा यह कहा जा सकता है कि वे फिरोजपुर रैली में जाने वाले लोगों को रोकने के मकसद से सड़क पर आये थे। जाहिर है, गोदी मीडिया इसे गलत साबित करने में लगा है। उसका कहना है कि किसानों को मोदी के फिरोजपुर जाने के रास्ते की बात साजिश के तहत बतायी गई और कुछ सौ किसान साजिश के तहत किसान मोदी के रास्ते में आ गये। यहां भी स्पष्ट है कि किसानों को ही विलेन बनाने की कोशिश मीडिया और भाजपा मिलकर कर रहे हैं।     

पहले दिन गोदी मीडिया एक अस्पष्ट वीडियो चलाकर यह बता कर सनसनी फैलाता रहा कि यह देखिये किसान मोदी की गाड़ी के बिल्कुल नजदीक पहुंच गये थे, जिससे प्रधानमंत्री की जान को खतरा हो सकता था, यानी टेलीविजन मीडिया समाचार एजेंसी एएनआई के हवाले से दिये मोदी के बयान को सच साबित करने में जुटा रहा। यह प्रथम दृष्ट्या असंभव प्रतीत होता है, क्योंकि प्रधानमंत्री के काफिले में प्रधानमंत्री की गाड़ी के आगे दर्जनों गाडियों का काफिला रहता है और किसान सबको धता बताते हुए मोदी की गाड़ी तक पहुंच गये और ऐसे मामलों से निपटने में महारत हासिल किये एसपीजी का पूरा अमला व जत्था चुपचाप देखता रहा यह अविश्वसनीय है। बल्कि वीडियो में जिस तरह एसपीजी कमांडो गाडी के सामने का हिस्सा कवर किये बगैर खडे हैं और आराम से गाडी के अंदर बाहर हो रहे थे उससे प्रतीक होता है कि उनकी नजर में कोई खतरा था ही नहीं। तब तो देश को यह सोचना पड़ेगा कि किसान और कांग्रेस ही नहीं, प्रधानमंत्री की सुरक्षा में लगा पूरा अमला ही किसी षडयंत्र में शामिल था। यह बात सच में एक बड़ी बात होती, अगर गोदी मीडिया का प्रचार वास्तव में सच होता।   

लेकिन अगले दो दिनों में गोदी मीडिया द्वारा फैलाये गये झूठ के गुब्बारे की हवा निकल गयी। अभी तक जो वीडियो द्वारा प्रमाणित तथ्य सामने आये हैं उसके अनुसार रास्ते में आये किसान मोदी के काफिले के एक किलोमीटर आगे सड़क को जाम किये खड़े थे। यानी, किसानों और मोदी का आमना-सामना ही नहीं हुआ। तो सवाल उठता है कि मोदी की गाड़ी तक पहुंच चुके लोग कौन थे जो पहले दिन मीडिया द्वारा चलाये गये अस्पष्ट वीडियो में दिख रहे थे? दरअसल बाद में इसका खुलासा करते जो स्पष्ट वीडियो सामने आये उससे यह साफ हुआ कि दरअसल जो लोग मोदी के नजदीक पहुंच गये थे वे भाजपा के झंडे फहराते और श्री नरेंद्र मोदी जिंदाबाद के नारे लगाते प्रधानमंत्री के अपने लोग थे, और वे भी मोदी जिस फ्लाईओवर पर थे उस पर नहीं उसके ठीक सटे बगल वाले फ्लाईओवर पर थे। इनमें भी खास तौर पर एक वह व्यक्ति पहचाना गया है जो पूर्व में अजय मिश्रा टेनी के साथ देखा गया है।

शुरू में गोदी मीडिया ने जिन्हें यह कहकर खूब प्रचारित किया कि ये मोदी विरोधी प्रदर्शनकारी किसान थे जो मोदी के ठीक सामने आ गये, बाद में नजदीक से लिये गये एक वीडियो के सामने आते ही यह स्पष्ट हो गया कि झंडा लिये और नारा लगाते लोग मोदी के पंजाब आने का विरोध करने वाले किसान नहीं भाजपा और मोदी के अपने लोग थे। वीडियो इतना साफ है कि उनके चेहरे पहचाने जा सकते हैं। वे साफ-साफ श्री नरेंद्र मोदी जिंदाबाद के नारे लगाते देखे व सुने जा सकते हैं।

इस तरह जब गोदी मीडिया का यह प्लॉट फुस्स हो गया तो उसने यह कहना शुरू किया इन भाजपा समर्थकों को भी कैसे आने दिया गया? अगर यह सही सवाल है तो इसका सही और आसान जवाब तो यही है कि अगर पुलि‍स वीडियो में स्पष्ट दिख रहे लोगों को हिरासत में ले कर कड़ाई से पूछताछ करे तो पता चल जायेगा कि उनको कैसे आने दिया गया! लेकिन भला गोदी मीडिया यह क्यों पूछने या करने लगा! उसे तो सनसनी फैलाना है, खासकर जब प्रधानमंत्री ने ही कह दिया है कि वे किसी तरह बच कर लौट आये हैं।

इसलिये हम पाते हैं कि बाद में यह कोण (एंगल) लाया गया कि प्रधानमंत्री को जो यू-टर्न लेना पड़ा और इसमें जो 20 मिनट लगे उस दौरान पाकिस्तान की तरफ से हमला हो सकता था, इसलिये उनके रूट में आयी रुकावट एक बहुत बड़ी साजिश थी जिसको टालने में तो कांग्रेस सरकार विफल रही ही, वह इस साजिश में शामिल भी थी। कहा गया कि पाकिस्तान की सीमा 10 किलोमीटर ही दूर है और प्रधानमंत्री पाक सेना के फायरिंग रेंज में थे। जाहिर है कि यह मानकर चला जा रहा है कि प्रधानमंत्री की मूवमेंट की जानकारी पाक सेना को भी पहले से हो चुकी थी। बात को कितना बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया और पेश किया जा रहा है हम यहां देख सकते हैं। यानी, किसान और कांग्रेस और अन्य सभी जो मोदी के विरोधी हैं पाकिस्तान से मिले हो सकते हैं। यह विशुद्ध रूप से फासीवादी राजनीति का तौर-तरीका है। लेकिन मजेदार बात यह है कि यह बात कांग्रेस के ही आलाकमान से असंतुष्ट चल रहे मनीष तिवारी के द्वारा पहली बार कहा गया जिसका अर्थ यह है कि जो कुछ हो रहा है उसमें मोदी और मीडिया के तरफ से कई तरह के लोग शामिल है । वैसे किसानों को लेकर पहले दिन जिस तरह की साजिश का नैरेटिव खड़ा करने की कोशिश की गई उसमें भी कांग्रेस शामिल थी। दूसरे नैरेटिव में वजह के रूप में किसान ही बताये जा रहे हैं। वैसे देखा जाये तो सुदूर क्षेत्रों तक मार करने वाले अत्याधुनिक एटामिक मिसाइलों के वर्तमान युग में सभी नहीं तो अधिकांश देशों के सभी महत्वपूर्ण ठिकाने एक दूसरे के निशाने पर हैं और युद्ध छिड़ते ही पलक झपकते कुछ भी हो सकता है।

अब अगर प्रधानमंत्री के रास्ते में एक किलोमीटर दूर खड़े किसान सुरक्षा में चूक की वजह हैं, तो प्रधानमंत्री की गाड़ी के पास पहुंच चुके भाजपा के लोग चूक की वजह कैसे नहीं है? लेकिन एक की मीडिया चर्चा कर रहा है और दूसरे को छुपाने में लगा है। उसी तरह, अगर यह चूक है तो इस चूक के लिए प्रथम दृष्ट्या गृह मंत्रालय जिम्मेवार है। एसपीजी और केंद्रीय आईबी से ताकतवर और सक्षम राज्य पुलिस तो नहीं हो सकती है। ये क्यों यह देखने में फेल कर गयीं कि आगे किसान जमे हैं और ठीक बगल के फ्लाईओवर पर उनके अपने लोग जमे हैं। आम लोग तो गूगल मैप और इसी तरह के अन्य आम मोबाइल एप्स से ही यह जान जाते हैं कि आगे कौन सा रास्ता जाम में फंसा है या नहीं है। फिर ये कैसे संभव हुआ कि आधुनिक डिजिटल एवं इलेक्ट्रोनिक संयंत्रों से लैस एसपीजी और आईबी जैसी संस्था को इसकी पूर्व जानकारी नहीं हो पायी और समय रहते ही बिना देरी किये यू-टर्न नहीं लिया गया या रास्ता नहीं बदला गया?

दरअसल, ऐसी बहसों व बातों का कोई अंत नहीं है। मुख्य बात यह समझना जरूरी है कि मोदी सरकार की मुख्य लड़ाई किसान आंदोलन से ही है। यूपी चुनाव में ही नहीं, आगामी 2024 के चुनाव में किसान ही मोदी के मुख्य  शत्रु रहने वाले हैं। कृषि कानूनों की वापसी का घाव भी भरना है, यानी कृषि कानूनों को किसी न किसी तरह वापस लाना है। दूसरा सबसे बड़ा मसला एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग से जुड़ा है जिस पर किसान अड़े हैं और फिर से मोर्चों पर आ डटने की बात कर रहे हैं। अगर किसान मोर्चे पर फिर से आ डटते हैं तो मजदूर विरोधी कानूनों खासकर लेबर कोड के लागू होने से उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों के भी अपने खतरे हैं। देश में बेरोजगारी और महंगाई से हलकान विशाल आबादी का सवाल और उनका आंदोलन भी किसान आंदोलन के फिर से उठ जाने से जीवंत हो उठेगा। कुल मिलाकर, किसान आंदोलन फिर से अन्य सभी आंदोलनों की धुरी बन जायेगा। यानी, मोदी के लिए किसान फिलहाल नासूर बने हुए हैं और आगे भी बने रहने वाले हैं। मोदी को पता है कि वे किसानों को बेवकूफ नहीं बना पा रहे हैं और किसान आंदोलन पर सीधे दमन करके उससे निपटना मुश्किल ही नहीं आज की तारीख में असंभव है। यह मोदी के लिए बहुत मुश्किल स्थिति पैदा कर रहा है। जाहिर है, ”मोदी के जीवन पर खतरा है” की राजनीति का इस तरह से अचानक प्रकट होने के पीछे ये ही मुख्य कारण हैं, जिसका अर्थ यह है कि फासीवादियों के पास मौजूद तरकश में शामिल सबसे अहम और मारक तीरों में से एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण तीर का प्रयोग ये आज कर चुके हैं। इसका परिणाम ही बतायेगा कि और तीरों का प्रयोग ये कब करेंगे। लेकिन यह स्पष्ट है कि जैसे-जैसे तीर खत्म होते जायेंगे वैसे-वैसे हम धीरे-धीरे एक क्रांतिकारी संकट की ओर बढ़ते जायेंगे। आइये, इस पर चंद और बातें करें।                  

देश का मेहनतक़श अवाम, कमेरा वर्ग बेइंतहा मंहगाई के बोझ तले कराह रहा है। बेरोज़गारी की स्थिति और भी भयावह है, अभूतपूर्व है। हर साल दो करोड़ लोगों को रोज़गार देने के वादे से सत्ता में पहुंची भाजपा सरकार हर साल करोड़ों रोज़गारयाफ़्ता लोगों का काम छीनती जा रही है। कोरोना महामारी में देश के पचास लाख से भी अधिक लोगों ने ऑक्सीजन, वेंटीलेटर, आईसीयू बेड की कमी से तड़पकर अपनी जानें दी हैं। इलाज की व्यवस्था तो छोडिये लोगों को अपने सगों का अन्तिम संस्कार करने को जगह नसीब नहीं हुई। लोग कैसे भूल सकते हैं कि जिस गंगा तट पर मोदी आज दिन में चार-चार बार पोशाक बदल-बदल कर और 55 कैमरों के सामने डुबकी लगा रहे हैं उसी गंगा में उनके अपनों की लाशें बही चली जा रही थीं। दूसरी ओर सरकार देश के सारे संसाधन चंद कॉर्पोरेट के हवाले करने के काम को ही अपनी एकमात्र ज़िम्मेदारी समझते हुए और इस प्रक्रिया को तेज़ करती जा रही है। ये काम पहले की सरकारें भी करती रही हैं क्योंकि पूंजीवादी जनतंत्र में सरकारों का काम देश के सरमाएदारों के पास जमा होते जा रहे पूंजी के पहाड़ को निवेश कर मुनाफ़ा कूटने के साधन उपलब्ध कराना और उनके माल को बिकने के लिए बाज़ार तलाशना ही होता है। लेकिन एकाधिकारी वित्तीय पूंजी के इस युग में ये काम इतनी नंगई और बेशर्मी से हो रहा है कि हर किसी की समझ में आता जा रहा है।

यही कारण हैं कि देश भर के लोग मोदी के फासिस्ट शासन के विरुद्ध इतने गुस्से में हैं कि यदि उन्हें सही रास्ता नज़र आ जाए तो कुछ भी हो जाए। पांच राज्यों में होने वाले आगामी विधान सभा के चुनाव प्रचार में लोगों का आक्रोश भाजपाईयों, संघियों को झेलना पड़ रहा है। लोगों को राज्य परिवहन निगम की बसों में भर भरकर सभाओं में लाया जा रहा है लेकिन ज्यादातर लोग आने को तैयार नहीं। अधिकांश किसी लालच में नहीं आ रहे। इन संघी उन्मादियों की हताशा इस वज़ह से अत्यधिक बढ़ती जा रही है कि लाख कोशिशें करने के बाद भी लोग हिन्दू-मुस्लिम में बंटने को अब तैयार नहीं। वहीं अल्पसंख्यक समुदाय अद्भुत धीरज और धैर्य का परिचय दे रहा है और हर रोज़ होने वाले भड़काऊ पैंतरों का शिकार होने से दृढ़ता से इंकार कर रहा है। बल्कि यह देखा जा रहा है कि लोग सत्ता के मंसूबे समझते हुए फूट से ज्यादा अपनी एकता को महत्व देने लगे हैं, उसे फौलादी और अभेद्य बनाते जाने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपाईयों के सामने उनकी चुनावी हार का खतरा तो है ही उन्हें अन्य खतरे भी साफ-साफ दिखाई दे रहे हैं। वैसे भी इतिहास हमें सिखाता है फासिस्ट चुनाव के रास्ते से भले सत्ता में पहुँच जाएं वे चुनावी रास्ते से सत्ता छोड़ते कभी नहीं। संघ और उसकी राजनीतिक जत्थेबंदी भाजपा, हर चुनाव की तरह अब ऐसे मुद्दे की तलाश में है जिससे लोग अपने जीवन मरण के प्रश्न भूल जाएं और भावनाओं के आवेश में भाव विभोर हो मोदी आरती में लीन हो जाएं।

इन परिस्थितियों के अलावा पंजाब के किसानों के केंद्र की फासिस्ट मोदी सरकार के विरुद्ध गुस्से का एक और अहम कारण भी मौजूद है। वह है उनकी मांगों के साथ अवहेलना। देश में  एक अभूतपूर्व और शानदार किसान आन्दोलन की ऊर्जा अभी भी बनी हुई है। देश के विशाल और जीवनावश्यक कृषि क्षेत्र को कॉर्पोरेट को भंभोड़ने के लिए अर्पित करने के उद्देश्य से लाए गए कृषि कानूनों से विद्रोह में उठे किसान आन्दोलन का नेतृत्व पंजाब ने किया है, इसमें कोई दो मत नहीं हो सकता। मोदी सरकार के हर हथकंडे को नाकाम करते हुए किसान आन्दोलन एक बहुत ही नाज़ुक मोड़ पर पहुंच चुका था। खास तौर पर, आन्दोलनकारी किसानों पर लखीमपुर खीरी में जलियांवाले बाग की तरह का हमला भी जब उल्टा पड़ गया और मोदी सरकार के अपने ‘गवर्नर’ भी जब खरी- खरी सुनाने लगे तब तो मोदी सरकार के हाथ-पांव ही फूलने लगे और कभी पीछे ना हटाने का दंभ भरने वाली सरकार के मुखिया को विनम्र और निरीह सूरत बनाकर टीवी पर अवतरित होकर तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करनी पड़ी। बेशर्म टुकड़खोर मीडिया अचानक किसानों का हमदर्द नज़र आने लगा और किसान आन्दोलन नेतृत्व का एक हिस्सा उसके प्रभाव में आ गया और आन्दोलन को तत्काल स्थगित कर सीमाओं को खाली करने का फैसला ले लिया गया और जैसा कि ‘यथार्थ’ ने अपनी तवरित टिप्पणी में लिखा, मोदी सरकार के गले में पड़ा फंदा ढीला हो गया और उसकी उखड़ती सांसों को आराम मिल गया। किसान वापस चले गए। उसके बाद वही हुआ जिसके लिए मोदी सरकार कुख्यात है। ना किसी को मुआवजा मिला, ना केस वापस हुए बल्कि कृषि मंत्री नागपुर सभा में ये कहता पाया गया कि ‘हम एक कदम पीछे हटे हैं कुछ दिन बाद फिर आगे बढ़ेंगे’! किसानों के लिए सबसे अपमानजनक, लखीमपुर खीरी किसान हत्याकांड के प्रमुख सूत्रधार अजय मिश्र टेनी को एसआईटी की रिपोर्ट द्वारा संलिप्त पाए जाने के बाद भी नहीं हटाया जाना है, उसे गिरफ्तार करना तो दूर ही रहा। हत्यारे अजय मिश्र टेनी को बचाना, फासिस्ट मोदी सरकार ने अपने लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है और इस हिमाक़त का परिणाम आगे और भी कड़वे संघर्षों में होना तय लग रहा है। 5 जनवरी को मोदी सरकार फिरोज़पुर की रैली से जताना चाहती थी कि पंजाब के किसान भी अब उसके साथ हैं। इस ग़लतफ़हमी को पंजाब के लोग दूर कर देना चाहते थे और इसी का परिणाम था कि रैली में लाखों कुर्सियों की व्यवस्था की गई थी और वहाँ कुछ सौ भाजपाईयों के अलावा कोई नहीं पहुंचा।

इस बैकग्राउंड के बाद 5 जनवरी को जो हुआ, उसे, अब उसके कई विडियो वायरल होने के बाद समझना आसान है जैसा कि ऊपर हमने दिखाने की कोशिश की है। रैली सुपर फ्लॉप होने वाली है ये धक्कादायक सूचना मोदी को दिल्ली में हवाई जहाज में चढ़ने के वक़्त ही मालूम पड़ चुकी थी। उस रैली में जाकर जो फ़जीहत और अपमान होने वाला था वैसी परिस्थिति का सामना करना मोदी की फ़ितरत नहीं रही। इसलिए उस निश्चित फ्लॉप रैली को एक दूसरे तरीक़े से क़ामयाब बनाने की स्क्रिप्ट ताबड़तोड़ तैयार हुई। बठिंडा तक जाए बगैर ये कहानी अपने पैरों पर खड़ी होने वाली नहीं थी इसीलिए इसे दिल्ली से निरस्त नहीं किया गया। प्रधानमंत्री देश के सबसे सुरक्षित व्यक्ति हैं। उनकी सुरक्षा एक विशाल, सशक्त और अत्याधुनिक साधन संपन्न विभाग है जिसे ‘स्पेशल प्रोटेक्शन फोर्स (SPG)’ कहा जाता है। उसकी ब्लू बुक के अनुसार जहाँ भी प्रधान मंत्री को जाना होता है वहाँ 15 दिन पहले से ही सारी सुरक्षा एजेंसियां उनके मातहत काम करने लगाती हैं। बठिंडा से फिरोज़पुर हेलीकाप्टर से जाना ख़राब मौसम की वज़ह से जोखिम भरा था लेकिन ठीक वैसे ही भौगोलिक मौसम और सुर्ख तपे हुए राजनीतिक मौसम में 115 किमी की यात्रा सड़क मार्ग से करना और वो भी पाकिस्तानी सीमा के इतना नज़दीक, उससे भी कहीं ज्यादा जोखिम भरा था। ऐसा जोखिम लेते हुए प्रधानमंत्री एक ऐसी रैली में जाएंगे जहाँ विशाल पंडाल खाली कुर्सियों से भरा पड़ा हो और देश-विदेश का मीडिया मौजूद हो, ऐसा सोचना ही मूर्खता है। इसीलिए सड़क मार्ग से हुसैनीवाला और फिर फिरोज़पुर जाना ही नहीं था, बस वहीं तक जाना था जहाँ भाजपाईयों का वो झंडे लहराता, नारे लगाता समूह मौजूद था। किसानों को उनके सड़क मार्ग से जाने की कोई सूचना नहीं थी और आन्दोलनकारी किसान उस फ्लाईओवर के नज़दीक भी नहीं थे लेकिन भाजपाईयों को उनके सड़क मार्ग से जाने और उस चौराहे से वापस मुड़ने की सूचना ज़रूर मौजूद थी। ये मुद्दा सुरक्षा चूक का है ही नहीं। ये मुद्दा ये है कि इस पूरे खेल को लोग समझ गए, सरकारी स्क्रिप्ट को कौड़ी का महत्व कोई भी नहीं दे रहा, ये है असल मुद्दा। हालाँकि इस सम्बन्ध में एसपीजी और पंजाब पुलिस के व्यवहार की पूरी जाँच होनी ज़रूरी है क्योंकि उनकी भी इस घृणित तमाशे में संलिप्तता ज़ाहिर हो रही है, आईएएस-आईपीएस जैसी सेवाओं के कैडर पर केंद्रीय नियंत्रण व बीजेपी के करीबी अफसरों को जिस तरह से तरजीह दी जा रही है उससे यह पूरी तरह संभव है। मौसम ख़राब होने और उससे भी अधिक रैली में लोगों के ना जाने के कारण ये यात्रा दिल्ली से ही शुरू नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन उस निर्णय को लेने का साहस मोदी सरकार में नहीं है। कम से कम मौसम ख़राब होने के कारण से ही ऐसा किया गया होता तो ये पहली बार ना हुआ होता। ख़राब मौसम से प्रधानमंत्री रैली में नहीं पहुँच पाए और रैली-सभा फोन से संबोधित की गई ये पहले कई बार हो चुका है। अगर चुनाव ना होते तो इस बार भी यही होता लेकिन ‘आपदा में अवसर’ ढूंढने की लत के चलते सभा को इस तरह निरस्त करने का टेढ़ा, कुटिल और ग़ैरजिम्मेदाराना तरीका ढूंढा गया। अति आत्ममुग्धता, कैमरे के प्रति दीवानापन और जनभावनाओं के प्रति पत्थर जैसी संवेदनहीनता और बैर का परिणाम यही होता है। ये ‘सुरक्षा चूक’ स्वाभाविक नहीं सोच समझकर विघटनकारी मंसूबों के तहत उत्पादित किया गया है। इसके लिए किसान तो क़तई ज़िम्मेदार नहीं हैं। बल्कि पंजाब के आन्दोलनकारी किसानों और बहादुर लोगों को तो समाज को खण्ड-खण्ड करने, आपस में लड़ाने वाले इस दांव को फेल करने और असलियत देश के सामने लाने का श्रेय दिया जाना चाहिए।

हरिद्वार की ‘धर्म संसद’ से सरकारी मंसूबों पर पड़ा पर्दा तार तार हो चुका है। शोषित पीड़ित लोगों को अपनी फौलादी एकता क़ायम रखते हुए अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध घुटने ना टेकने और एकजुट होकर सडकों पर लड़ते जाने का रास्ता किसी हालत में नहीं छोड़ना है। आज इस एकता और संघर्ष करने के ज़ज्बे की पहले से कहीं ज्यादा ज़रूरत है। इसमें हुई कोई भी चूक ज़िन्दगी की बेइंतहा  मुश्किलात से कराह रही जनता के जीवन की एक गंभीर सुरक्षा चूक होगी क्योंकि लोगों को आपस में लड़ाने का ये आखरी घिनौना हथकंडा नहीं है, आगे 2024 तक ऐसी परिस्थितियों से जाने कितनी बार दो-चार होना पड़ेगा। ये भी तय है कि इस शानदार किसान आन्दोलन के पहले चरण के बाद लिया गया विश्राम ज्यादा लम्बा नहीं रहने रहने वाला है। देश भर के किसान फिर से हाथों में झंडे लिए, मुट्ठियाँ ताने सडकों पर नज़र आने वाले हैं और इस बार वे अकेले नहीं होंगे। हमें पूरी उम्मीद है कि अगली बार का नजारा कुछ और होगा। सर्वहारा की विशाल आबादी और समाज का शोषित-पीड़ित तबका एक सेना के माफिक उनके साथ कंधे से कन्धा मिलाए नज़र आएगा, आगे-आगे चलेगा और वो हर फासिस्ट हथकंडे को अपने पावों तले कुचलते हुए अपनी जंग को मंजिल तक पहुंचायेगा।