बहुत चिंताजनक है भारत में बाल कुपोषण का स्तर

January 19, 2022 0 By Yatharth

शैलेन्द्र चौहान

कुपोषण भारत की गम्भीरतम समस्याओं में एक है फिर भी इस समस्या पर सबसे कम ध्यान दिया गया है। आज भारत में दुनिया के सबसे अधिक अविकसित (4.66 करोड़) और कमजोर (2.55 करोड़) बच्चे मौजूद हैं। ध्यातव्य है कि इसकी वजह से देश पर बीमारियों का बोझ बहुत ज्यादा है। हालांकि राष्ट्रीय परिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आंकड़े बताते है कि देश में कुपोषण की दर घटी है लेकिन न्यूनतम आमदनी वर्ग वाले परिवारों में आज भी आधे से ज्यादा बच्चे (51%) अविकसित, और सामान्य से कम वजन (49%) के हैं।

कुपोषण पर ताजा सरकारी आंकड़े दिखा रहे हैं कि भारत में कुपोषण का संकट और गहरा गया है। इन आंकड़ों के मुताबिक भारत में इस समय 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। इनमें से आधे से ज्यादा यानी कि 17.7 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे सबसे ज्यादा महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात में हैं। इस बात की जानकारी महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने एक आरटीआई के जवाब में दी है। मंत्रालय ने समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा एक आरटीआई के जवाब में कहा कि यह 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के आंकड़ों का संकलन है। देश में कुल 33,23,322 बच्चे कुपोषित हैं। मंत्रालय का अनुमान है कि कोरोना महामारी से गरीब से गरीब व्यक्ति में स्वास्थ्य और पोषण संकट और बढ़ सकता है। इस पर चिंता जताते हुए मंत्रालय ने कहा कि 14 अक्तूबर 2021 तक भारत में 17.76 लाख बच्चे अत्यंत कुपोषित (एसएएम) और 15.46 लाख बच्चे अल्प कुपोषित (एसएएम) थे। हालांकि ये आंकड़े अपने आप में खतरनाक हैं, लेकिन पिछले नवंबर के आंकड़ों से तुलना करने पर ये और भी ज्यादा खतरनाक हो जाते हैं। हालांकि दोनों सालों के आंकड़ों में एक बड़ा फर्क यह है कि पिछले साल छह महीनों से छह साल की उम्र तक के गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या केंद्र ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से लेकर सार्वजनिक की थी। इस साल ये आंकड़े सीधे पोषण ट्रैकर से लिए गए हैं, जहां आंगनवाड़ियों ने खुद ही इनकी जानकारी दी थी।

एक फर्क और है इस साल के आंकड़ों में बच्चों की उम्र के बारे में नहीं बताया गया है। हालांकि कुपोषण को लेकर परिभाषाएं वैश्विक हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक गंभीर रूप से कुपोषित (एसएएम) बच्चे वो होते हैं जिनका वजन और लंबाई का अनुपात बहुत कम होता है, या जिनकी बांह की परिधि 115 मिलीमीटर से कम होती है।

इससे एक श्रेणी नीचे यानी अत्याधिक रूप से कुपोषित (एमएएम) बच्चे वो होते हैं जिनकी बांह की परिधि 115 से 125 मिलीमीटर के बीच होती है. दोनों ही अवस्थाओं का बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर होता है। एसएएम अवस्था में बच्चों की लंबाई के हिसाब से उनका वजन बहुत कम होता है। ऐसे बच्चों का इम्यून सिस्टम भी बहुत कमजोर होता है और किसी गंभीर बीमारी होने पर उनके मृत्यु की संभावना नौ गुना ज्यादा होती है। एमएएम अवस्था वाले बच्चों में भी बीमार होने की और मृत्यु की संभावना ज्यादा रहती है। महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात के अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, असम और तेलंगाना में भी कुपोषित बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है। भारत के लिए सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि दुनिया के सबसे जाने माने शहरों में गिनी जाने वाली राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी एक लाख से भी ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं।

नवंबर 2020 और 14 अक्तूबर 2021 के बीच एसएएम बच्चों की संख्या में 91 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है, जो अब 9,27,606 (9.27 लाख) से बढ़कर 17.76 लाख हो गई है। पोषण ट्रैकर के हवाले से आरटीआई के जवाब के मुताबिक, महाराष्ट्र में कुपोषित बच्चों की संख्या सबसे अधिक 6.16 लाख दर्ज की गई, जिसमें 1,57,984 बच्चे अल्प कुपोषित और 4,58,788 बच्चे अत्यंत कुपोषित थे। इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर बिहार है, जहां 4,75,824 लाख कुपोषित बच्चे हैं। वहीं, तीसरे नंबर पर गुजरात है, जहां कुपोषित बच्चों की कुल संख्या गुजरात में कुल 3.20 लाख है। इनमें 1,55,101 (1.55 लाख) एमएएम बच्चे और 1,65,364 (1.65 लाख) एसएएम बच्चे शामिल हैं। 

मध्यप्रदेश में कुपोषण के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं, जो कि सरकार समेत आम नागरिकों के लिए चिंता का विषय है। महिला एवं बाल कल्याण विभाग (डब्ल्यूसीडी) के एक सर्वेक्षण के अनुसार राज्य में 70 हजार से अधिक बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हो गए हैं। इन बच्चों में नवजात से लेकर छह वर्ष तक के बच्चे शामिल हैं। अध्ययन के अनुसार, एक तिहाई से अधिक बच्चे त्वचा और हड्डी रोग से पीड़ित हैं। लगभग दस लाख बच्चों पर की गई यह सर्वे बताती है कि चार लाख से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। सर्वेक्षण में कहा गया है कि वे गंभीर तीव्र और मध्यम कुपोषण से पीड़ित हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) आमतौर पर इस तरह के सर्वेक्षण करता है, लेकिन इस बार महिला और बाल कल्याण विभाग ने ऐसा किया है। अधिकांश क्षेत्रों में गंभीर तीव्र कुपोषण से प्रभावित बच्चे पाए गए हैं। मध्यम तीव्र कुपोषण वाले बच्चों की संख्या लगभग 3 लाख 50 हजार हैं। वहीं 70 हजार गंभीर कुपोषित बच्चों में से 6,000 को पोषण पुनर्वास केंद्र (NRC) में भर्ती कराया गया है। कुपोषण केंद्र में भर्ती किए गए बच्चों के अलावा अन्य कुपोषित बच्चों का उनके घरों में इलाज किया जा रहा है। बता दें कि कई वर्षों से देश भर में बच्चों के बीच कुपोषण के मामले में मध्यप्रदेश शीर्ष पर है।

हाल ही में मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल शहडोल जिले में 16 मासूम बच्चों की लगातार मौतों के बाद स्वास्थ्य मंत्री और अफसरों की टीम पहुंची अवश्य लेकिन मौत के असल कारणों को छुपाया जा रहा है।

जिले में बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वहां 16314 बच्चे कुपोषण की चपेट में हैं। इसमें से 1328 बच्चे गंभीर और 15 हजार सामान्य कुपोषित हैं। महिला बाल विकास के आंकड़ों पर नजर डालें तो जिले में सबसे ज्यादा बुढ़ार में कुपोषित बच्चे हैं। यहां से सबसे ज्यादा बच्चों को रैफर किया जाता है। अनूपपुर ओर उमरिया के आंकड़ों को जोड़ लिया जाए तो कुपोषण की संख्या 30 हजार के पार पहुंच सकती है। सरकार हर साल कुपोषण मिटाने के लिए 1497 करोड़ रुपए खर्च करती है। लॉकडाउन के बाद से आंगनवाड़ियों में बच्चे नहीं पहुंच रहे है। ये जिम्मेदारी आजीविका मिशन ओर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की है कि वे घर तक आहार पहुचे। लेकिन, दो दिन दिन में आंगनवाड़ी केंद्रों पर ताले पड़े हुए हैं। सरकारी स्वास्थ्य और पोषण आहार वितरण की सेवाएं पूरी तरह चरमराई हुई है। आंगनवाड़ी सहायिका कहती है कि इतना सामान आया है। आंगनवाड़ी से फ्री खिचड़ी और सोया बर्फी एक पैकेट उन्हें मिलता है। पैकेट पर उत्पादन की तारीख नहीं लिखी है। बैच नंबर गायब है। इनका उत्पादन एमपी एग्रो के माध्यम से हो रहा है। उमरिया के वन ग्राम मकरा ओर परपटिया में पोषण के मामले में हालत बदतर है। इसका दर्द सुनीता ओर उनके बच्चे झेल रहे है। 10 साल में 3 बच्चे हुए, जिसमें से 2 सही प्रोटीन नहीं मिलने से बेहद कमजोर हैं। वह बताती है कि किशन की गर्दन नहीं उठती है। इसको सही भोजन नहीं मिला। 6 साल का छोटा दिनेश तो बिस्तर पर पड़े रहता है। इसके हाथ तक अकड़े हुए है। एक कदम नहीं चल सकता। स्वास्थ्य मंत्री और भोपाल से स्टेट कोआर्डिनेशन के लिए एनआरएचएम की टीम भी पहुंची । साथ मे मिशन डायरेक्टर  डिप्टी डायरेक्टर आदि शामिल थे । टीम ने उड़ान बुढ़ार , धनपुरी, गोहपारू स्वास्थ्य केंद्रों का निरीक्षण किया। महिला बाल विकास विभाग की आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने 106 गांव का सर्वे किया।

भोपाल से स्टेट कोआर्डिनेशन के लिए एनआरएचएम की टीम भी पहुंच गई । टीम ने उड़ान बुढ़ार , धनपुरी, गोहपारू स्वास्थ्य केंद्रों का निरीक्षण किया। महिला बाल विकास विभाग की आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने 106 गांव का सर्वे किया। यहां नए कुपोषित बच्चे मिले हैं।

अगर अन्य राज्यों की बात करें तो, आंध्र प्रदेश में 2,67,228 बच्चे (69,274 एमएएम और 1,97,954 एसएएम) कुपोषित हैं। कर्नाटक में 2,49,463 बच्चे (1,82,178 एमएएम और 67,285 एसएएम) कुपोषित हैं। उत्तर प्रदेश में 1.86 लाख, तमिलनाडु में 1.78 लाख,  असम में 1.76 लाख और तेलंगाना में 1,52,524 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। वहीं, बच्चों के कुपोषण के मामले में नई दिल्ली भी पीछे नहीं है। राष्ट्रीय राजधानी में 1.17 लाख बच्चे कुपोषित हैं। बता दें कि 2011 की जनगणना के मुताबिक, देश में 46 करोड़ से अधिक बच्चे हैं। 

इसके अलावा ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर भी भारत का स्थान और नीचे गिरा है। 116 देशों में जहां 2020 में भारत 94वें स्थान पर था, वहीं 2021 में वह गिर कर 101वें स्थान पर पहुंच गया है। भारत अब अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे हो गया है। यह बेहद चिंताजनक है।