मिटेंगे अब अपराधों के साये

January 19, 2022 0 By Yatharth

शैलेन्द्र चौहान

वर्षों की धुंध,

सामंतों, जमीदारों, साहूकारों, बिचौलियों और

सहकारी मंडियों का फरेब

पूंजीपतियों की बिसात

तुम्हारा खून पसीना और आँसू, तुम्हारी हताश आशाएँ, भय और सहिष्णुता

एक बार फिर हम तक पहुंचे तुम्हारे दीर्घ अनुभव

राजधानी के मुहाने पर लगे टेंट और ट्रेक्टर ट्रॉली के जरिए

जो पहले भोगे गए

अत्याचारों, डकैती, अपमान, झांसा और अन्याय

की प्रतिकृति थे

मेहनत की, और भुगतना पड़ा यह सब

‘इच्छा और कौशल’ के बरक्स सत्ता का अहंकार

पुलिस, सीआरपीएफ, आईटीबीपी की तैनाती

बेंत, वाटर कैनन और पैलेट गन

रायफल और आंसू गैस

हां, वह सत्ता के मद में अंधा है

नागरिकों का तिरस्कार करता है और अक्सर करता है

और करेगा आगे भी

आंदोलनकारी मेहनती किसानो

आओ और मार्ग प्रशस्त करो

शांत, अडिग, धीरोदात्त

कोई देरी नहीं

भूले नहीं वो दिन

भयानक, घृणित, षडयंत्रपूर्ण ।

जब झूठा राजा, झूठे प्रशासकों और मंत्रीपुत्र ने

किया वो सबसे जघन्य कर्म

दिन दहाड़े बर्बर हत्याएं

जिन नागरिकों ने उन पर भरोसा किया लोकतंत्र के नाम पर

उन्हें रोंदा

सत्ताखोरो, सफेद लोहे की तरह है तुम्हारा गर्म दिल

फिर भी हम तुम्हारी बात सुनते हैं!

तुम्हारी जयजयकार करते हैं

हाँ, तुम्हारी ‘घंटी अब बज चुकी है,’

अभी भी समय है! होश में आओ ।

आओ, एक-एक आततायी, लातों के भूत

जिनका वक्त अब पूरा हुआ

उनके अपराध को चुनौती दो

पुराने अपराधों के साये मिटेंगे सिर्फ हमारी एकता से ।