विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार पक्की करो

February 7, 2022 0 By Yatharth

जनता बनाम संघ-बीजेपी

साथ ही मेहनतकश जनता के सवालों पर जन संघर्ष तेज करो

साथियों,
कुछ राज्यों में मौजूदा विधानसभा चुनावों का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह जनता बनाम भाजपा चुनाव में बदल गया है। ज्यादातर जगहों पर ये आम लोग ही हैं – मजदूर, किसान, निम्न मध्यम वर्ग के लोग, रेहड़ी-पटरी वाले, छात्र और युवा आदि – जो भाजपा के खिलाफ सबसे प्रबल प्रचारक बन गए हैं। जनता अब धन बल, बाहुबल व मीडिया प्रचार के बल पर होने वाले चुनाव प्रचार में मूक दर्शक मात्र नहीं है। इसके बजाय वह इस बार के चुनावों में सक्रिय खिलाड़ी है, और सफलतापूर्वक सांप्रदायिक और राष्ट्रवादी उन्माद को भड़काने के आरएसएस-बीजेपी के फासीवादी मंसूबों और साजिशों को विफल कर रहे हैं और भाजपा नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों से अपने जीवन व आजीविका की समस्याओं-तकलीफों – मूल्य वृद्धि, बेरोजगारी, किसानों के मुद्दे, महिलाओं के खिलाफ अपराध, शिक्षा और स्वास्थ्य से परे, सरकार कोरोना के दौरान लोगों को बीमारी और भूख – पर स्पष्ट और तीखे प्रश्न पूछ उनसे जवाब मांग रहे हैं।


यह चुनाव ऐसे वक्त में हो रहा है, जब दैनिक जीवन की आवश्यक वस्तुओं पर महंगाई आसमान छू रही है, बेरोजगारी ऐसी तेजी से बढ़ रही है कि 20 से 30 उम्र की तो लगभग पूरी पीढ़ी ही अब बेरोजगार है, श्रमिकों के सामने छंटनी और गिरती मजदूरी मुंह बाये खड़ी है, किसानों के खेतों को छुट्टे सांड व अन्य पशु नष्ट कर रहे हैं और किसानों व छोटे व्यवसायियों की आय में तेज गिरावट आई है। ऑनलाइन डिजिटल शिक्षा के नाम पर बंद स्कूल, लगभग न के बराबर स्वास्थ्य सेवाएं, महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध और दलितों पर अत्याचार, सरकार द्वारा अपराधियों के बजाय पीड़ितों पर पूरी ताकत दिखाना, जैसे हाथरस में हम सबने देखा, यही बीजेपी सरकारों का मूल चरित्र है।


1 फरवरी को जो आम बजट पेश हुआ, उसने भी साफ दिखा दिया है कि इस सरकार के लिए बेरोजगारी, महंगाई, बढ़ती भुखमरी, शिक्षा-स्वास्थ्य व्यवस्था की सम्पूर्ण बदइंतजामी व उसे महंगा कर आम लोगों की पहुँच से दूर करना, आदि समस्याओं का कोई महत्व नहीं। वह अब उन के समाधान हेतु कोई कदम उठाना तो दूर उनका जिक्र तक नहीं कर रही है। इसके बजाय वह बड़े कॉर्पोरेट पूंजीपति घरानों जैसे अदानी, अंबानी, टाटा, आदि की दौलत व मुनाफे बढ़ाने में पूरी ताकत से जुटी है। यहां तक कि अंबानी की दौलत एक ही साल में दुगनी हो गई। उधर किसान आंदोलन के सामने झुकना तो पड़ा मगर गरूर से भरी मोदी सरकार अब किसानों से इसका बदला लेने पर उतारू है – कृषि बजट व एमएसपी पर फसलों की सरकारी खरीद के लक्ष्य दोनों में पहले के मुकाबले और कटौती कर दी गई है। खाद्य सब्सिडी में बड़ी कटौती बताती है कि गरीब लोगों को कोरोना काल में मिल राशन चुनावों के बाद बंद होने वाला है। शिक्षा-स्वास्थ्य, आदि का तो जिक्र तक नहीं किया गया।


नरेंद्र मोदी द्वारा सांप्रदायिक-राष्ट्रवादी उन्माद फैलाने के लिए फिरोजपुर फ्लाईओवर पर चली गई चाल बुरी तरह विफल रही है, अधिकांश लोग उससे बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हुए हैं। इसने बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया है, यहां तक ​​कि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को वहां से उम्मीदवार बनाकर अयोध्या और मंदिर के मुद्दे पर पूरे चुनावी माहौल को सांप्रदायिक रूप से ध्रुवीकरण करने की रणनीति को छोड़कर गोरखपुर वापस भागना पड़ा है। इसी तरह, विभिन्न राज्यों में कई प्रमुख भाजपा नेताओं और मंत्रियों को अपने ही निर्वाचन क्षेत्रों में लोकप्रिय प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है और कई जगहों पर प्रचार करने से भी रोका जा रहा है।


इसकी एक बड़ी वजह है किसानों के साथ हुआ विश्वासघात – उन्हें लग रहा है कि चुनाव में बीजेपी की जीत मोदी के लिए कृषि कानूनों को वापस लाने का पक्का संकेत होगा। दूसरे, छात्र और युवा भयावह बेरोजगारी और भर्ती प्रक्रिया के मुद्दे पर आरएसएस-भाजपा शासन के ‘सबका साथ, सबका विकास’ मॉडल की क्रूरता का भी अनुभव कर रहे हैं। जनता के अन्य सभी तबकों को भी ऐसा ही अनुभव हुआ है जब भी उन्होंने अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने की कोशिश की है। यहां तक ​​कि जिन लोगों ने कोरोना के दौरान घुटती सांसों से हांफ रहे अपने रिश्तेदारों-दोस्तों को बचाने के लिए सिर्फ ऑक्सीजन सिलिन्डर का अनुरोध किया, उन्हें भी इस ‘मजबूत’ सरकार द्वारा नहीं बख्शा गया, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति, क्षेत्र और यहां तक ​​कि उनकी अपनी पार्टी के ही क्यों न हों।


अतः मौजूदा स्थितियों में राज्य विधानसभा चुनावों में फासीवादी भाजपा की चुनावी हार एक स्वागत योग्य और सकारात्मक परिणाम होगी, क्योंकि यह निश्चित रूप से फासीवादी आरएसएस-भाजपा के लिए एक झटका होगा और पूरे देश की जनता में भाजपा विरोधी गुस्से के बढ़ते ज्वार के ताप को और बढ़ा देगा। इसलिए फासीवादी भाजपा की चुनावी हार सुनिश्चित करने के लिए सभी फासीवाद विरोधी ताकतों को अपनी पूरी ताकत लगा जनता से बीजेपी को एक भी वोट न देने की अपील करनी चाहिए।


हम जानते हैं कि सिर्फ भाजपा की चुनावी हार से ही जनजीवन की समस्याएं हल नहीं हो जाएंगी। लेकिन आम लोगों की बढ़ती राजनीतिक चेतना, शक्तिशाली इजारेदार कॉर्पोरेट पूंजी और उनके द्वारा नियंत्रित मीडिया घरानों द्वारा वित्तपोषित आरएसएस-बीजेपी के सांप्रदायिक और कट्टर प्रचार के सामने उनके जीवन की वास्तविक समस्याओं पर जोर, और राजसत्ता व कॉर्पोरेट पूंजी के बीच संबंधों की उनकी बढ़ती जानकारी उन्हें इस एहसास की ओर ले जाएगी कि यह न केवल इस या उस बुर्जुआ पार्टी की सरकार बल्कि वह पूंजीवादी व्यवस्था ही है जो उनके गहन शोषण और अत्यधिक दुख-तकलीफ के लिए जिम्मेदार है। जैसे-जैसे पूंजीवाद का आर्थिक संकट गहराता जा रहा है, इसके भी जल्द से जल्द होने की संभावना है और अभी जनता के विभिन्न तबकों के जो संघर्ष उभर रहे हैं उनका ज्वार बढ़ता ही जाएगा। इन जनसंघर्षों पर नृशंस दमनचक्र चलाने, सभी जनवादी अधिकारों को छीनने और मेहनतकश जनता में आपसी वैमनस्य पैदा करने वाली फासिस्ट बीजेपी सरकार को चुनावी झटका भी इस दिशा में एक बड़ा काम होगा। इसलिए बीजेपी को चुनाव में हराना इस वक्त की बड़ी जरूरत है।


इससे पहले कि हम समाप्त करें, एक चेतावनी। फासीवादी भाजपा चुनाव में हार और सरकार की बागडोर खोने से बचने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। वे लोगों की एकता को तोड़ने और अपने लिए आपसी दुश्मनी पैदा करने के लिए हर तरह के जोड़-तोड़ का इस्तेमाल करेंगे। आम लोगों व सभी फासीवाद विरोधी ताकतों के लिए अनिवार्य है कि वे ऐसी किसी भी घटना के लिए सतर्क रहें और चुनावों से पहले और बाद में आरएसएस-भाजपा के जघन्य मंसूबों को विफल करने के लिए लोगों के बीच एकता और एकजुटता बनाए रखने के ऐसे किसी भी प्रयास पर तत्काल इसे विफल करने वाली प्रतिक्रिया दें।


साभार,
यथार्थ’ । ‘सर्वहारा’ । ‘द ट्रुथ’
सर्वहारा एकता मंच । इफ्टू (सर्वहारा)