महाराष्ट्र : बुदबुदाकर उफनती बुर्जुआ राजनीति की गटरगंगा

March 23, 2022 0 By Yatharth

एम असीम

जैसा कि कई दिनों से संभावित था, राकांपा के नवाब मलिक बनाम नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो/समीर वानखेड़े टकराव के बाद अब महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) की ओर से शिवसेना के संजय राऊत ने किरीट सोमैया व एनफोर्समेंट डाइरेक्टोरेट (ईडी) के खिलाफ मोर्चा खोला है। बीजेपी के नेता, महाराष्ट्र के एमवीए नेताओं को खुलेआम ईडी के नोटिस व गिरफ्तारी की धमकियां देते रहे हैं तो एमवीए ने बीजेपी के साथ ही ईडी पर भी हमला बोल दिया है। राऊत के अनुसार किरीट सोमैया ही ईडी के दफ्तर में बैठ नोटिस तैयार कराता है।  उसने महाराष्ट्र सरकार से ईडी अफसरों के भ्रष्टाचार की जांच कर उन्हें जेल भेजने की मांग की है। उधर बीजेपी की ओर से केंद्रीय मंत्री नारायण राणे ने जवाब दिया तो मुंबई महानगरपालिका के अधिकारी उसके बंगले को अवैध होने का नोटिस ले जांच करने पहुंच गए। राणे में जवाब में कहा कि ईडी दफ्तर में ठाकरे परिवार के चार सदस्यों के खिलाफ नोटिस तैयार हैं तथा ईडी जल्द कार्रवाई करेगा। मौजूदा मामले की शुरुआत सोमैया द्वारा रायगढ़ जिले में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की पत्नी रश्मि ठाकरे के 19 बंगलों के आरोप से हुई थी। वैसे जहां ये बंगले होने का आरोप था वह जमीन अन्वय नाइक (जिसकी खुदकुशी के मामले में अर्नब गोस्वामी गिरफ्तार हुआ था) से खरीदने की बात तो ठाकरे परिवार ने भी मान ली है पर बंगले अभी नहीं मिले हैं। 19 फरवरी की अखबारी रिपोर्टों के अनुसार अब सोमैया ने उद्धव ठाकरे पर बंगलों को अदृश्य करा देने का इल्जाम लगाया है।

मुंबई देश में वित्तीय/औद्योगिक पूंजी का सबसे बड़ा केंद्र है। चुनांचे यह बुर्जुआ राजनीति, खास तौर पर फासिस्ट राजनीति, के लिए जरूरी रोकड़ा सप्लाई के नजरिए से बहुत अहम है। स्वाभाविक ही है कि बीजेपी के हाथ से यहां की सत्ता निकलने के बाद यहां जो द्वंद्व खड़ा हो गया है वह बहुत तीखा है और ये लड़ाई बहुत कटु होने वाली है। बीजेपी किसी भी तरह शिवसेना को झुकाने व महाराष्ट्र की सत्ता में वापस आने हेतु हर हरबा हथियार इस्तेमाल कर रही है।

इस लड़ाई में केंद्र व राज्य सरकार की एजेंसियों, न्यायालय, अफसरशाही व स्वयं सियासी दल ही नहीं, तमाम किस्म के बिल्डर, ठेकेदार, तस्कर, कालाबाजारी माफिया व पुलिस खबरियों-दलालों, गोदी मीडिया, आदि के गिरोह भी शामिल हैं। अंबानी के घर के सामने मिले जिलेटिन और मुंबई पुलिस कमिश्नर द्वारा भिजवाई गई फर्जी आतंकवादी धमकी के बाद तथाकथित मुठभेड़ विशेषज्ञ पुलिस अफसरों के जरिए हफ्ता वसूली और उसमें पुलिस कमिश्नर से गृहमंत्री तक के हिस्से पर तू-तू मैं-मैं भी सार्वजनिक हो चुकी है जिसके बाद गृहमंत्री जेल में हैं और पुलिस कमिश्नर कई महीने फरार रहने के बाद बीजेपी/न्यायपालिका संरक्षण की वजह से जेल के बाहर है पर अपने पूर्व अधीनस्थ मुंबई पुलिस की पूछताछ में।

इसके पहले कोरोना की असली-नकली दवाओं, ऑक्सीजन, वैक्सीन से लेकर अन्य राहत सामग्री तक में गड़बड़ी व हेराफेरी के मामले पर दोनों पक्ष जूझते रहे हैं, यहां तक कि रात में ढाई बजे बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस उस आदमी की पैरवी करने थाने में पहुंच गए थे जिसे जरूरी दवाओं की बड़ी मात्रा में तस्करी के इल्जाम में गिरफ्तार किया गया था। ऐसे इल्जामों में कई बीजेपी कार्यकर्ता या उसके करीबियों के पकड़े जाने की खबरें भी उन दिनों आईं थीं।

इस द्वंद्व का एक महत्वपूर्ण पहलू मराठी-गुजराती राष्ट्रीयता आधारित अस्मिता का द्वंद्व भी है जो ऐतिहासिक रूप से तीखा रहा है और एकीकृत मराठी भाषी राज्य और गुजराती पूंजीपतियों के दबाव में मुंबई को गुजरात में शामिल करने के सवाल पर यहां काफी शहादतों वाला आंदोलन का इतिहास है। पिछले दशकों में जिस तरह अंबानी, अदानी, टाटा जैसे गुजराती इजारेदार पूंजीपतियों ने अपना वर्चस्व कायम किया है और बीजेपी सरकार के साथ उनके हित लगभग एकाकार हो गए हैं, उसने छोटे-मध्यम मराठी पूंजीपतियों, खास तौर पर रियल एस्टेट बिल्डरों, को पीछे धकेलना शुरू किया है, उससे यह द्वंद्व और भी तीक्ष्ण रूप ले रहा है और इसने हिंदुत्व के आधार पर लंबे अरसे तक बीजेपी की करीबी रही मराठी अस्मिता की झंडाबरदार शिवसेना को भी उससे अलग हो एनसीपी-कांग्रेस के साथ आने को विवश कर दिया है। संजय राऊत के ईडी द्वारा बिल्डरों से उगाही के इल्जाम और गुजराती लॉबी की ओर से मुखर किरीट सोमैया को मुख्य निशाना बनाने से भी ऐसा ही इंगित होता है। पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ भी एमवीए का सबसे बड़ा इल्जाम यही है कि उसने बुलेट ट्रेन व इंटरनेशनल फाइनेंशियल सेंटर, आदि कई मामलों में महाराष्ट्र के हितों के साथ गद्दारी कर गुजरात को लाभ पहुंचाया है। किरीट सोमैया पर मराठी भाषा के शास्त्रीय दर्जे के विरोध का भी इल्जाम है। पिछले सप्ताह ही पुणे में सोमैया की पिटाई तक हो चुकी है। गुजराती बहुसंख्यक निवासी कॉलोनियों में मांसाहार पर रोक के खिलाफ मराठी निवासियों के विरोध की कई घटनाओं में भी शिवसेना ने इसी बिनाह पर समर्थन दिया है।

जाहिर है कि महाराष्ट्र की सत्ता व उससे प्राप्त होने वाले लाभों को लेकर यह टकराव मीडिया रिपोर्टिंग की तमाम लुकाछिपी व हकीकत पर पर्दा डालने के बावजूद भी मात्र बुर्जुआ राजनीति ही नहीं, पूरी की पूरी बुर्जुआ व्यवस्था की सड़न, भ्रष्टाचार-दुराचार, व लुटेरे चरित्र को इसकी पूरी बदसूरती में जनता के सामने पेश कर रहा है। यह बता रहा है कि पूंजीवादी व्यवस्था में मेहनतकश जनता का बुनियादी आर्थिक शोषण तो है ही, साथ में पूरा निजाम हद दर्जे के अनैतिक दुराचार और लूट में मुब्तिला है, हालांकि जनता को रोजाना देशप्रेम, कर्तव्य व त्याग की तकरीरें सुनाई जाती हैं।

निश्चित ही इसका एक पहलू यह भी है कि बुर्जुआ राजनीति के इस आपसी टकराव से बीजेपी के सामने एक तात्कालिक अड़चन पैदा हो गई है और बीजेपी शासित राज्यों की तुलना में यहां विरोधी कार्यकर्ताओं को फासिस्ट दमन से कुछ सीमित राहत की सांस भी मिली है। अगर फासीवाद विरोधी शक्तियां स्पष्ट रणनीति के साथ अपनी स्वतंत्र संयुक्त शक्ति बना कर संघर्ष करें तो निश्चय ही पूंजीवाद के ऐसे टकरावों का उपयोग युद्धकौशल के रूप में जरूर कर सकती हैं। पर सिर्फ इन द्वंद्वों और एमवीए जैसे गठबंधनों के सहारे फासीवाद को रोके जाने की बात खोखली कल्पना मात्र होगी क्योंकि पूंजीवाद के अंदरूनी टकराव कितने भी तीखे क्यों न हो, वह देर सबेर इन्हें अपने तौर पर हल कर ही लेता है। पूंजीवाद की अपनी गति से इजारेदार पूंजी के वर्चस्व को रोका नहीं जा सकता, न ही मजदूर वर्ग तथा अन्य मेहनतकश जनता के शोषण में  ढील की कोई गुंजाइश है। वह काम तो पूंजीवाद के उन्मूलन द्वारा ही मुमकिन है।