‘द कश्‍मीर फाइल्स’ के बाद क्‍या?

April 1, 2022 0 By Yatharth

सम्पादकीय, मार्च 2022

‘द कश्‍मीर फाइल्‍स’ खूब देखी व दिखाई जा रही है। दोनों उद्देश्‍य पूरे हो रहे हैं – पैसों की खूब कमाई हो रही है और घृणा भी खूब फैल रही है। जेबें भी गरम हो रही हैं और नफरत की राजनीति भी खूब फल-फूल रही है। कहा जा रहा है कि इसने अब तक के बॉक्‍स ऑफिस के सारे रिकार्ड तोड़ डाले हैं। आखिर तभी तो पैसे की बारिश हो रही है! और घृणा की तो पूछिए मत। हालत यह है कि सिनेमा हॉल में ही प्रत्‍येक शो के बाद कोई ‘देशभक्‍त’ बंदा एकाएक प्रकट होता है और दर्शकों को संबोधित करते हुए मुसलमानों के खिलाफ अनाप-शनाप बोलने और विषवमन करने लगता है। यह मान लिया जाता है कि दर्शकों में कोई मुसलमान नहीं है। 

               वैसे अब इसमें अचंभित होने जैसी ‘फीलिंग’ नहीं होती है। धर्म-संसद द्वारा इससे भी गंदी और खतरनाक जुबान में ये ही सब बातें कही और बोली गईं थीं। फर्क बस इतना है कि इस बार नफरत की यह आंधी हमारे नन्‍हें-मुन्‍हें बच्‍चों की मासूमियत एवं नरमी को भी उड़ा ले जाएगी, क्‍योंकि मनाही के बावजूद इतिहास की एक पुस्‍तक की तरह बच्‍चों तक यह फिल्‍म पहुंचा दी गई है!

               जिन बच्‍चों ने यह फिल्‍म देखी है, उनके नरम दिलों तक हिंदू-मुस्लिम घृणा की सड़ांध भरी राजनीति की बदबू जा पहुंची है। लेकिन वे बेचारे तो अभी यह समझने की स्थिति एवं उम्र में ही नहीं हैं‍ कि वे यह समझ पाएं कि देश में क्‍या हो रहा है और उन्‍हें कहां ले जाया जा रहा है? वे फिल्‍म की बातों को इतिहास का सच मान ले रहे हैं और आसानी से भ्रातृघातक दंगाई राजनीति के आगोश में खींच लिए जा रहे हैं। उसे अब बगल में बैठा मुस्लिम बच्‍चा आतंकी, हत्‍यारा और न जाने क्‍या-क्‍या लगने लगा होगा। जो माहौल बना दिया गया है उसमें कोई मुस्लिम बच्‍चा तो फिल्‍म पर कोई प्रश्‍न नहीं ही खड़ा कर सकता है, लेकिन अगर कोई हिंदू बच्‍चा भी इस फिल्‍म पर या इससे जुड़ी किसी बात पर सवाल उठा दे तो समझ लीजिए उसकी शामत आ जाएगी। यह रिपोर्ट आ रही है कि बच्‍चों के बीच भी ”देशद्रोही” और ”देशभक्‍त” वाला बंटवारा हो चुका है। ऐसी जानकारियां आ रही हैं कि जो बच्‍चे फिल्‍म को समाज में गलत संदेश वाला मानते हैं उन्‍हें दूसरे बच्‍चे देशद्रोही कहने लग रहे हैं, उनसे झगड़ने लगे हैं और यहां तक कि मारपीट भी करने लगे हैं। मोहल्‍लों में, सड़कों पर, बसों एवं ट्रेनों में, कॉलेजों में, विश्‍वविद्यालयों मे, … जहां-जहां के बारे में भी इन्‍होंने (फिल्‍म बनाने वालों ने) सोचा होगा, हर उस जगह घृणा फैल चुकी है, आपसी वैमनस्‍य का खूब प्रसार हो चुका है। फिल्‍म ने अपना काम कर दिया है। जिस उद्देश्‍य से प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से लेकर भाजपा के सारे मुख्‍यमंत्रि‍यों ने फिल्‍म को सराहा और इसका प्रमोशन किया, वह उद्देश्‍य पूरा हुआ दिखाई देता है। भाजपा शासित राज्‍य सरकारों ने इसे टैक्‍स फ्री कर के, तो भाजपा के नेताओं और करोड़पति समर्थकों ने हॉल बुक कर के गरीबों तथा कम आय के लोगों तक इस फिल्‍म को पहुंचाने का काम कर दिया है। बस एक ही चीज पूरी होनी रह गई है। वह यह कि दंगे के लिए बारूद की ढेर जमा कर देने तथा माहौल के बावजूद अभी तक दंगा कहीं नहीं भड़का है! कत्‍लेआम नहीं मचा है!   ये सब देख-सुन कर किसी भी संवदेनशील व्‍यक्ति के मन में आक्रोश पैदा होगा। वह यह सोचकर अवसाद की भावना से भर जाएगा कि हम कहां आ गए हैं! हम पूछना चाहते हैं, जिस उद्देश्‍य की प्राप्ति के लिए ये सब किया जा रहा है, वे सारे नहीं भी तो अधिकांश पूरे हो चुके हैं। अगर कुछ बाकी बचा है, तो शायद कुछ दिनों में वे भी पूरे हो जाएंगे। लेकिन इसके बाद क्‍या होने वाला है? नफरत और घृणा तो फैल गई, अब इसके आगे क्‍या? जहर फैलाना बंद कब होगा? प्‍यार और सद्भावना नहीं बांट सकते तो नफरत का जहर फैलाना तो बंद कर दीजिए, महानुभावों! क्‍या आप चाहते हैं लोग सच में तलवार और बंदूक लेकर निकल आएं?

               ‘द कश्‍मीर फाइल्‍स’ कश्‍मीर घाटी में रहने वाले कश्‍मीरी पंडितों पर 1990 के आसपास और उसके बाद हुए नृशंस जुल्‍म की कहानियों पर आधारित फिल्‍म है। इसलिए यह जानना हम सबका फर्ज बनता है कि खुद घाटी या जम्‍मू के रिफ्यूजी कैंपों में रह रहे कश्‍मीरी पंडित इस फिल्‍म के बारे में क्‍या कहते हैं। क्‍या इस फिल्‍म में उन्‍हें अपने जीवन के दुख-दर्द का अक्‍स दिखाई देता है? क्‍या इस फिल्‍म में जो कहा या दिखाया गया है उससे वे खुद को रिलेट कर पाते हैं? क्‍या वे यह मानते हैं कि इस फिल्‍म की उनके जीवन में सुधार लाने में कोई भूमिका हो सकती है? इसके बारे में कश्‍मीरी पंडित और उनकी संघर्ष कमिटी के लोग बहुत कुछ बोल और लिख रहे हैं। लेकिन किसे पड़ी है उनकी बात सुनने की! मेनस्‍ट्रीम मीडिया नहीं सुन रहा। स्‍वयं प्रधानमंत्री और गृह मंत्री नहीं सुनते। देश की कोई बड़ी संस्‍था नहीं सुन रही। तो फिर यही बचता है कि हम और आप सुनें और फैसला भी खुद करें।

               घाटी के पी‍ड़ि‍त कश्‍मीरी पंडितों के कार्यकर्ता संजय टिक्‍कू द वायर को इंटरव्‍यू देते हुए 1990 के आस-पास हुई दुखद घटनाओं को याद करते हुए कहते हैं– ”हम जिसे जन पलायन (mass migration) कहते हैं वह मार्च 1990 में शुरू हुआ। आतंकी संगठन प्रतिदिन हिट लिस्‍ट बनाते और मस्जिदों में साट देते थे। इस हिट लिस्‍ट में पंडित, नेशलन कांफ्रेस के वर्कर्स और आम मुस्लिम होते थे। व्‍यक्तिगत तौर पर पंडितों और मुसलमानों के बीच सहृदयतापूर्ण (cordial) रिश्‍ते थे, इसलिए मुसलमान लोग शाम की नमाज से लौटने के बाद अपने पड़ोसी पंडित परिवारों को इसकी सूचना दे देते थे। वे अपने पड़ोसी पंडित और उसके परिवार को बचाना चाहता थे।” (अंग्रेजी से अनुदित) वे आगे कहते हैं – ”जो हमको बचाने की कोशिश कर रहे थे वे भी मारे जा सकते थे। लेकिन वे फिर भी किसी तरह हम तक पहुंच जाते थे और बता देते थे।” वे मारे गए लोगों की संख्‍या के बारे मे पूछे जाने पर कहते हैं – ”14 मार्च 1989 से 31 मई 1990 के बीच में मारे गये 187 कश्‍मीरी पंडितों का रिकार्ड हमारे पास है।” क्‍या पलायन करते कश्‍मीरी पंडितों को भी मारा गया था, इसका उत्‍तर संजय टिक्‍कू ”ना” में देते हैं। वे उपरोक्‍त इंटरव्‍यू में ही आगे कहते हैं – ”नहीं, जहां तक हमारे सर्वे की बात है और (पीड़ि‍त) लोगों से हमने जो बातचीत की है उसके अनुसार रास्‍ते में कोई भी नहीं मारा गया।” यही नहीं, वे फिल्‍म में हर कश्‍मीरी मुसलमान को जिहादी बताये जाने की बात का खुलकर खंडन करते हैं। वे कहते हैं – ”अगर ऐसा होता, तो किसी भी कश्‍मीरी पंडित के लिए, या किसी भी दूसरे अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के लिए (घाटी) छोड़कर जा पाना मुश्किल हो जाता। यह सिर्फ श्रीनगर की बात नहीं है। उत्‍तर के सुदूर इलाकों से शहर आने के लिए गाड़ी पकड़ कर आतंक के रेड जोन कहे जाने वाले क्षेत्र को पार करना पड़ता है। मेरी सोच के मुताबिक, अगर फिल्‍म का दावा सच होता तो वे (घाटी छोड़ने वाले कश्‍मीरी पंडित) जम्‍मू पहुंच ही नहीं पाते।” कश्‍मीरी पंडितों पर हुए जुल्म की सच्‍चाई को दबा दिए जाने के आरोप के बारे में संजय टिक्‍कू का कहना है कि ”यह झूठ है कि सच्‍चाई को छुपाया गया है। हमने इन तथ्‍यों को रिकार्ड किया है और उन्‍हें बार-बार रखा है .. मैं खुद जी न्‍यूज के साथ नादीमार्ग, जहां 23 कश्‍मीरी पंडितों को मारा गया था, उन्‍हें ले कर गया था और हर चीज बताई थी।” ‘द कश्‍मीर फाइल्‍स’ के बाद आगे क्‍या होगा, इसके बारे में संजय टिक्‍कू कहते हैं कि उन्‍हें कोई उम्‍मीद नहीं है। उल्‍टे, वे यह मानते हैं कि इस फिल्‍म ने घाटी में उनके लिए खतरा और बढ़ा दिया है। उनके शब्‍दों में – इस फिल्‍म ने अरक्षितता (खतरों के प्रति संवेदनशीलता) और बढ़ा दी है।

               सवाल है, पीड़ि‍त कश्‍मीरी पंडितों के हकों के लिए लड़ने वाले एक महत्‍वपूर्ण व्‍यक्ति से, जिनकी उन‍ दिनों उम्र महज 20 साल की रही होगी, जब हम आज यह सब सुनते हैं, तो फिर किसी के मन में स्‍वाभाविक रूप से यह सवाल उठेगा कि फिल्‍म में यह क्‍यों दिखाया गया है कि मुस्लि‍म समुदाय का बच्‍चा-बच्‍चा कश्‍मीरी पंडितों के खून का प्‍यासा था? क्‍या संजय टिक्‍कू खुद कश्‍मीरी पंडित होकर और जानबूझ कर झूठ बोल रहे हैं? संजय टिक्‍कू जैसे अन्‍य कश्‍मीरी पंडित भी हैं जो यह कह रहे हैं कि यह फिल्‍म मनोरंजन के नाम पर 2024 का आम चुनाव जीतने के ख्‍याल से भाजपा द्वारा किये जा रहे मुस्लिम विरोधी हिंदू ध्रुवीकरण एवं प्रोपगंडा को बेहद खतरनाक तरीके से परोसता है। लेकिन जो नफरती वातावरण और घृणा का बवंडर खड़ा किया गया है उसमें उनकी बातें और शब्‍द सुखे पत्‍ते की तरह इधर-उधर उड़ जा रहे हैं। उन्‍हीं के नाम पर यह सब कुछ किया जा रहा है कि कोई उनकी बात सुनने के लिए तैयार नहीं दिखता। यह भी एक सच्‍चाई है कि जो भी संयम और धैर्य अपनाने और उस समय की ठोस जानकारी बताने की कोशिश कर रहा है उनको भीड़ और प्रशासन दोनों ने मिलकर प्रताड़ि‍त करना शुरू कर दिया है। मकसद और संदेश दोनों स्‍पष्‍ट एवं दिन के उजाले की तरह साफ है – इस फिल्‍म द्वारा खड़ा किये गए नफरती बवंडर को कोई भी रोकने या शांत करने की हिम्‍मत और कोशिश नहीं करे। अब तो डर इस बात का लगता है कि अगर कश्‍मीरी पंडित आगे बढ़कर इसी तरह सच बोलते रहेंगे तो उन्‍हें भी कोपभाजन और विषवमन का शिकार बनना पड़ेगा। उत्‍पीड़ि‍तों को ही हमले का निशाना बनाने की फासिस्‍टों की विधा से हम भलीभांति परिचित हैं। सच बोलने वाले कश्‍मीरी पंडितों को बिका हुआ, गद्दार, देशद्रोही और मुसलमान की औलाद तक कह दिया जा सकता है।

               जहां तक कितने कश्‍मीरी पंडित मारे गए जैसे प्रश्‍न हैं, तो इस सवाल के जवाब में अब कोई एक उत्‍तर नहीं रह गया है। ‘द कश्‍मीर फाइल्स’ के निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री बिना किसी ठोस सबूत या स्रोत के इस संख्‍या को खींच कर कुछ सौ से 4000 तक पहुंचा देते हैं, जबकि आरटीआई से प्राप्‍त और सरकारी विभाग से मिली जानकारी एवं कश्‍मीरी पंडित संघर्ष समिति से मिली जानकारी के मुताबिक भी यह संख्‍या कुल मिलाकर अधिकतम 650 तक जाती है। इसके पहले किसी ने भी हजारों की संख्‍या में कश्‍मीरी पंडितों के मारे जाने की बात नहीं की है। अफसोस की बात है कि इसमें प्रधानमंत्री मोदी के तथ्‍य छुपाये गये जैसे बयान ने भी जलती आग को और अधिक प्रज्‍ज्‍वलित करने में घी का काम किया है। कोई आश्‍चर्य नहीं कि यह संख्‍या कल को लाखों तक पहुंच जाएगी।

               घाटी के एक अखबार में बहुत पहले 23 कश्‍मीरी पंडितों का एक पत्र/बयान छपा था जिसमें कहा गया था कि कश्‍मीरी पंडितों के निर्गमन (exodus) में एक उच्‍च स्‍तरीय सुनियोजित षड्यंत्र शामिल था। उन्‍होंनें सीधे तौर पर तत्‍कालीन गवर्नर जगमोहन पर ”प्रशासन से मिलीभगत कर भाजपा एवं शिव सेना सरीखे हिंदू सांप्रदायिक संगठनों को फायदा पहुंचाने के लिए इस समुदाय (कश्‍मीरी पंडितो के समुदाय) को बलि का बकरा बनाने का आरोप मढ़ा था।” इसके कुछ ही दिनों बाद ही इसके संपादक की हत्‍या कर दी गई थी।

               हम देख सकते हैं कि 2024 में जीत के लिए मोदी सरकार, आरएसएस तथा भाजपा सहित हिंदुत्‍ववादी  संगठनों की तैयारी की दिशा बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट है। हालांकि इसमें पूरा शक है कि सरकार कश्‍मीरी पंडितों को घाटी में फिर से बसाने के लिए कुछ ठोस काम करेगी। इसके बारे में पूछे जाने पर स्‍वयं कश्‍मीरी पंडित कह रहे हैं कि इसकी कोई उम्‍मीद नहीं है। इसके विपरीत वे यह मानते हैं कि इस फिल्‍म के प्रदर्शन के बाद घाटी में धार्मिक आधार पर वैमनस्‍य बढ़ा है। इसका मतलब है कश्‍मीरी पंडितों के लिए घाटी में लौटना अब और मुश्किल होगा। इसलिए कश्‍मीरी पंडितों के एक हिस्‍से को इसका बखूबी अहसास है कि यह फिल्‍म उनके खिलाफ जाने वाला है और इसीलिए वैमनस्‍य को पाटने के लिए वे इस फिल्‍म का खुलेआम विरोध करने लगे हैं। निस्‍संदेह यह एक अच्‍छी खबर है कि भाईचारे के हो रहे कत्‍ल को रोकने का प्रयास उन्‍होंने अपने स्‍तर से शुरू कर दिया है। ऐसे कश्‍मीरी पंडितों, जो संख्‍या में कम ही हैं, की जितनी सराहना की जाए कम है। फासिस्‍टों के गेम प्‍लान के विरुद्ध जाने का उन्‍हें खामियाजा भी भोगना पड़ सकता है, इसलिए अगर वे डटे रहते हैं तो यह एक बहुत बड़ी बात होगी। हम ऐसे बहादुर कश्‍मीरी पंडितों का अभिनंदन करते हैं। इतने सालों तक तथा इतने सारी कठिनाइयों के बीच जीवन की कठोर जद्दोजहद झेलते हुए वे अब इतना तो समझ ही चुके हैं कि धर्म, जाति, क्षेत्र, रंग, नस्‍ल, आदि के भेदभाव से सिंचित राजनीति से किसी का भला नहीं हो सकता है सिवाय फासिस्‍टों और उनके आका पूंजीपतियों एवं बड़े इजारेदार पूंजीपतियों के।