पेट्रोल/डीजल की ऊंची कीमतों पर बेहया मोदी सरकार का ताज़ा पैंतरा

May 9, 2022 0 By Yatharth

रवींद्र गोयल

महंगाई का भूत लगता है अब मोदी सरकार को डराने लगा है. श्रीलंका में जारी  आर्थिक बर्बादी जनित उथल पथल मोदी सरकार को भयावह सपने दे रही है. नेपाल जैसा विदेशी मुद्रा का संकट आने वाले समय में यहाँ भी खड़ा हो सकता है.इसलिए अब बढती कीमतों के बारे में वो चिंतित लग रहे हैं.  जिस केंद्र  सरकार के कानों पर पेट्रोल, डीजल आदि की बढती कीमत के सवाल पर जूं न रेंगती थी उसके  लिए अब राज्य सरकारों को जिम्मेवार ठहराने की कसरत ज़ारी है. साहेब  ने 27 अप्रैल 22 को कोविद समस्या पर चर्चा के लिए  बुलाई मुख्यमंत्रियों की मीटिंग में विपक्ष शासित राज्यों से वैश्विक संकट के इस समय में आम आदमी को लाभ पहुंचाने और सहकारी संघवाद की भावना से काम करने के लिए "राष्ट्रीय हित" में पेट्रोल , डीजल पर वैट कम करने का आग्रह किया. यह जानना दिलचस्प होगा की यह अपील मीटिंग की निर्धारित कार्यसूची  से बाहर थी. बैठक में मोदी की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि बातचीत पूरी तरह से एकतरफा थी. बैठक में मुख्यमंत्रियों के बोलने की कोई गुंजाइश नहीं थी.

मोदी जी की बात कितनी वाजिब है,  पेट्रोल डीजल पर लगाये जा रहे टैक्स पर आज तक लगाम क्यों नहीं लगायी गयी आदि सवालों पर चर्चा से पहले यह जानना दिलचस्प होगा की ऊँची कीमतों के लिए कारक कारणों की कितनी दलीलें यह जन विरोधी सरकार पिछले  सालों में दे चुकी है.

मई 2012 में, नरेंद्र मोदी ने तेल की कीमतों की बढ़ोतरी पर कहा था कि कांग्रेस सरकार का निकम्मापन तेल की बढती कीमतों के लिए जिम्मेवार है और   भाजपा के सत्ता में आने पर ईंधन की कीमतों में कमी कर दी जाएगी. लेकिन सत्ता में आते ही उसके सुर बदल गए. और बे सिरपैर की सफाई देने लगे.सबसे पहले तो ईंधन की ऊंची कीमतों के  लिए  अंतरराष्ट्रीय स्तिथि को जिम्मेवार ठहराया गया. जब दुनिया में ही दाम ऊंचे हों तो मोदी बेचारा क्या कर सकता है. जब यह उजागर होने लगा कि अंतरराष्ट्रीय कीमतें नहीं मोदी जी की टैक्स नीति इसके लिए जिम्मेवार है तो नया तर्क सामने आया. उत्तर प्रदेश के एक मंत्री ने फरमाया की यह कोई देश के लिए सवाल ही नहीं है क्योंकि  पेट्रोलियम उत्पादों का आसमान छूता मूल्य देश की आबादी के  केवल उस 5% को प्रभावित करता है जो चार पहिया वाहनों में यात्रा करते हैं. इसी ज्ञान को आगे सरकाते हुए भूतपूर्व केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री रामेश्वर तेली ने कहा कि मध्यम वर्ग को उच्च कीमतों की पीड़ा को सहन करना चाहिए ताकि सरकार को COVID-19 टीके उपलब्ध कराने में मदद मिल सके. 

जब यह पैंतरा भी न चल सका तो ईंधन की कीमतों को समझाने के लिए भाजपा ने एक और बचाव गढ़ा कि पिछली कांग्रेस सरकार ने देश के वित्त को इतनी खराब स्थिति में छोड़ दिया कि वर्तमान सरकार के पास पेट्रोल और डीजल पर कर अधिक रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. वित्तमंत्री ने यह बताया  की भूतकाल में कांग्रेस सरकार ने तेल कंपनियों को तेल के घाटे के एवाज़ में जो आयल बांड्स जारी किये थे, उस क़र्ज़ को लौटने के लिए पेट्रोल और डीजल पर अधिक कर रखना मजबूरी है. 
लेकिन यहाँ भी निर्मला सीतारमण जी देश से झूठ बोल रही हैं.कुल आयल बांड की देनदारी केवल 1.30 लाख करोड़ की है और 10 हज़ार करोड़ की सालाना ब्याज के देनदारी है. जबकि पिछले सालों में केंद्र सरकार अब तक 27 लाख करोड़ रुपये पेट्रोल डीजल  पर टैक्स के रूप में वसूल  कर चुकी है. केंद्रीय राजस्व में पेट्रोलियम क्षेत्र के टैक्स का हिस्सा नीचे तालिका में दिया गया है. इस तालिका से स्पष्ट है कि मोदी सरकार के 8 साल में केंद्र सरकार ने 26,51,919 करोड़ रुपये ईंधन कर के रूप में जुटाए. भारत में लगभग 26 करोड़ परिवार हैं. इसका मतलब है कि केंद्र सरकार ने हर परिवार से औसतन 1,00,000 रुपये ईंधन कर के रूप में एकत्र किए हैं!. इसको दूसरे तरीके से देखें तो मोदी सरकार ने भारत के प्रत्येक गाँव के हिसाब से करीबन 4 करोड़ रुपये टैक्स के रूप में वसूले. 
तो फिर माज़रा क्या है? मोदी को इंधन टैक्स से इतना प्रेम क्यों?
इस गुत्थी को हल करने के लिए जानना जरूरी है कि यह लाखों करोड़ रूपया  आ कहाँ से रहा है और जा कहाँ रहा है. इसी में ईंधन टैक्स पर अतिशय मोदी सरकार के प्रेम के बीज छुपे हैं.   
आम धारणा  के विपरीत  पेट्रोल, डीजल का इस्तेमाल समाज के निचले या मेहनती तबके ही ज्यादा करते हैं. इस विषय में ताज़ा तो कोई अध्ययन उपलब्ध नहीं है  लेकिन 2014 में पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा कराये गए एक अध्ययन ने  पाया  था 99.6% पेट्रोल परिवहन क्षेत्र में लगता है. और सबसे ज्यादा पेट्रोल दोपहिया वाहन (61.42 प्रतिशत) इस्तेमाल करते हैं. इसी तरह 70% डीजल की खपत भी  परिवहन क्षेत्र में ही  होती है और कृषि क्षेत्र  डीजल का 13% उपयोग करता है.* यानि ईंधन टैक्स  का बड़ा हिस्सा  किसानों,  दोपहिया वाहन चलाने वालों, ऑटो और टैक्सी चालकों, यात्रियों और गृहिणियों ने दिया.यानि समाज के निम्न मध्यम वर्गीय या मध्यम वर्गीय  हिस्सों ने ही दिया.  
और इन लोगों से टैक्स वसूलना करना आसान है. भूतपूर्व कांग्रेसी मंत्री चिदंबरम के शब्दों में ‘ईंधन पर टैक्स के रूप में तो सरकार को एक सोने की खान मिल गयी. सरकार को यह भी महसूस हुआ कि उसे इस सोने के खनन के लिए मेहनत भी बिल्कुल नहीं करनी पड़ती है: करदाता खुद ही इस सोने का खनन करेंगे और हर दिन हर मिनट सरकार को सौंपते रहेंगे!’ 
चिदंबरम बताते हैं 2020-21 के दौरान, लाखों उपभोक्ताओं ने, केंद्र सरकार को ईंधन टैक्स के रूप में 4,55,069 करोड़ रुपये का भुगतान किया. लेकिन मोदी जी ने  कॉर्पोरेट के मुनाफे पर लगनेवाले टैक्स की दर को 30 प्रतिशत से  घटाकर 22 प्रतिशत कर दिया और नए निवेश के लिए यह दर उदारतापूर्वक कम करते हुए मात्र 15 प्रतिशत कर दिया. संपत्ति कर(wealth tax) समाप्त कर दिया  और विरासत कर (inheritance tax) पर विचार भी नहीं किया गया.  क्या आश्चर्य कि इस बीच सिर्फ 142 अरबपतियों की संपत्ति 23,14,000 करोड़ रुपये से बढ़ कर 53,16,000 करोड़ रुपये हो गयी. सिर्फ एक साल में यह 30,00,000 करोड़ रुपये की बढ़ोत्तरी है!

लेकिन जब सरकार को लगा की पेट्रोल डीजल पर टैक्स की डकैती जनता की  बर्दाश्त की हद से बाहर हो रही है तो उसने नवम्बर में केंद्रीय करों में कमी की और इसकी साख को राज्य चुनावों में भुनाया.  लेकिन इस बीच में रूस यूक्रेन युद्ध ने सरकारी तखमीने में पलीता लगा दिया. चुनाव तक तो  पेट्रोल डीजल के दाम स्थिर रखे लेकिन फिर बढ़ाना शुरू कर दिया.  अब भी स्तिथि यही है कि दिल्ली में 1 मई के पेट्रोल के 105 रुपये लीटर के भाव में से केंद्र सरकार का हिस्सा 27.90 रूपया है आर दिल्ली सरकार का हिस्सा 17.13 रूपये प्रति लीटर है. अन्य राज्यों में  भी यही हाल है.  फिर भी राज्यों से टैक्स कम करने की अपील एक जन विरोधी सरकार की ही सोच है. दिवालिया पन है और आम जनता को गुमराह करने की साजिश का हिस्सा है. इस षड़यंत्र का भंडाफोड़ जरूरी है.