क्लासिक्स | समाजवाद और युद्ध – लेनिन

June 20, 2022 0 By Yatharth

फूट का इतिहास और रूस में सामाजिक जनवाद की वर्तमान स्थिति

युद्ध के संबंध में रूसी सामाजिक जनवादी मजदूर पार्टी की ऊपर वर्णित कार्यनीति रूस में सामाजिक जनवाद के तीस साल के विकास का अनिवार्य परिणाम है। इस कार्यनीति तथा हमारे देश में सामाजिक-जनवाद की वर्तमान स्थिति को हमारी पार्टी के इतिहास पर गौर किये बगैर ठीक तौर से नहीं समझा जा सकता। यही वजह है कि हमारे लिए यहां भी पाठकों को इस इतिहास के मुख्य तथ्यों की याद दिलाना जरूरी है।

एक विचारधारात्मक प्रवृत्ति के रूप में सामाजिक जनवाद 1883 में पैदा हुआ, जब रूस पर लागू सामाजिक जनवादी विचारों को पहले-पहल विदेश में ‘श्रम-मुक्ति’ दल1 द्वारा क्रमबद्ध ढंग से प्रतिपादित किया गया। अंतिम दशाब्दी की शुरूआत तक सामाजिक-जनवाद रूस के आम मजदूर आंदोलन से बिलकुल असंबंधित केवल एक विचारधारात्मक प्रवृत्ति बना रहा। अंतिम दशाब्दी की शुरूआत में सामाजिक आंदोलन के उभार, मजदूरों की हलचल और हड़ताल आंदोलन ने सामाजिक जनवादियों को मजदूर वर्ग के संघर्ष (आर्थिक तथा राजनीतिक दोनों ही) के साथ अविभाज्य रूप से संबंधित एक सक्रिय राजनीतिक शक्ति बना दिया। ठीक उसी क्षण से सामाजिक जनवादी अर्थवादियों और ‘इस्क्रा’ -पंथियों2 में विभाजित होने लगे।

अर्थवादी और पुराना ‘ईस्क्रा’

(1894-1904) 

रूसी सामाजिक जनवाद के भीतर अर्थवाद एक अवसरवादी रुझान था। उसका राजनीतिक सार यह कार्यक्रम बनकर रह गया था: “मजदूरों के लिए आर्थिक संघर्ष उदारतावादियों के लिए राजनीतिक संघर्ष”। उसके मुख्य सैद्धांतिक आधार का नाम “कानूनी मार्क्सवाद” अथवा “सत्रुवेवाद” था, जो हर प्रकार की क्रांतिकारिता से पूर्णतः रहित तथा उदारतावादी बुर्जुआ वर्ग की आवश्यकताओं के अनुकूल रूपांतरित “मार्क्सवाद” को “मान्यता देता था”। रूस में मजदूर समुदाय के पिछड़ेपन का हवाला देते हुए और “जनता के साथ चलने की चाह के कारण अर्थवादी लोग मजदूर वर्ग के आंदोलन के कार्यभार तथा कार्य-क्षेत्र को आर्थिक संघर्ष तथा उदारतावाद के राजनीतिक समर्थन तक ही सीमित करते थे और अपने सामने स्वतंत्र राजनीतिक अथवा कोई क्रांतिकारी कार्य नहीं रखते थे।

पुराने ‘ईस्क्रा’ ने (1900-1903) क्रांतिकारी सामाजिक-जनवाद के उसूलों के नाम पर अर्थवाद के खिलाफ कामयाब संघर्ष चलाया। वर्ग-चेतन सर्वहारा के समस्त शिरोमणियों ने ‘ईस्क्रा’ का पक्ष लिया। क्रांति से पहले बरसों तक सामाजिक जनवाद ने अधिक से अधिक सुसंगत तथा समझौताहीन कार्यक्रम पेश किया। और वर्ग संघर्ष ने, 1905 की क्रांति में जनता की कार्रवाइयों ने उस कार्यक्रम की पुष्टि कर दी। अर्थवादियों ने अपने को जनता के पिछड़ेपन के अनुकूल तब्दील कर दिया। ‘ईस्क्रा’ मजदूरों के हरावल को शिक्षित-दीक्षित करता रहा, जो जनता को आगे ले चलने में समर्थ था। सामाजिक-अंधराष्ट्रवादियों द्वारा इस समय पेश की जानेवाली सारी दलीलें (कि जनता का ख्याल रखना जरूरी है, कि साम्राज्यवाद प्रगतिशील हैं, कि क्रांतिकारियों ने “भ्रम” पाल रखे हैं, इत्यादि) अर्थवादियों द्वारा पेश की गयी थीं। मार्क्सवाद में “सत्रुवेवादी” ढंग की अवसरवादी तब्दीली से रूस का सामाजिक-जनवाद बीस साल पहले परिचित हो चुका था।

मेंशेविज्म और बोल्शेविज्म

( 1903 – 1908 )

बुर्जुआ-जनवादी क्रांति के युग ने सामाजिक-जनवादी धाराओं के बीच एक नये संघर्ष को जन्म दिया, जो पहले के संघर्ष का सीधा सिलसिला था। अर्थवाद “मेंशेविज्म” में परिवर्तित हो गया। पुराने ‘ईस्क्रा’ की क्रांतिकारी कार्यनीति की हिमायत ने “बोल्शेविज्म” को जन्म दिया।

मेंशेविज्म 1905 – 1908 के तूफानी बरसों में उदारतावादी बुर्जुआ लोगों द्वारा समर्थित एक अवसरवादी रुझान और मजदूर आंदोलन में उदारतावादी बुर्जुआ प्रवृत्तियों का वाहक था। मजदूर वर्ग के संघर्ष को उदारतावाद के अनुकूल बनाना- यह था उसका सारतत्व। इसके विपरीत बोल्शेविज्म ने उदारतावादियों की ढुलमुलयकीनी और गद्दारी के बावजूद सामाजिक-जनवादी मजदूरों के सामने क्रांतिकारी संघर्ष के निमित्त जनवादी किसान समुदाय को उठाने का कार्यभार पेश किया। और जैसा कि खुद मेंशेविकों ने एकाधिक बार स्वीकार किया, मजदूर जनता क्रांति के दौरान सभी बड़ी से बड़ी कार्रवाइयों में बोल्शेविकों के साथ चलती रही।

1905 की क्रांति ने रूस में अडिग क्रांतिकारी सामाजिक-जनवादी कार्यनीति की आजमाइश की, उसे मजबूत किया, गहन और फौलादी बनाया। वर्गों और पार्टियों की खुली कार्रवाइयों ने सामाजिक जनवादी अवसरवाद (“मेंशेविज्म”) और उदारतावाद के संबंध को बार-बार बेनकाब किया।

 मार्क्सवाद और विसर्जनवाद

(1908-1914) 

प्रतिक्रांति के दौर ने सामाजिक-जनवाद की अवसरवादी और क्रांतिकारी कार्यनीति के सवाल को फिर एक बिलकुल नये रूप में फौरी सवाल बना दिया। मेंशेविज्म की मुख्य धारा ने उसके अनेक श्रेष्ठतम प्रतिनिधियों के विरोध के बावजूद विसर्जनवाद की धारा को, रूस में नई क्रांति के लिए संघर्ष के परित्याग, गैर कानूनी संगठन और सरगर्मी के परित्याग, “गुप्त कार्रवाई” और जनतंत्र के नारे के तिरस्कारपूर्ण उपहास, इत्यादि को जन्म दिया। ‘नाशा जार्या’ पत्रिका के कानूनी लेखकों (सर्वश्री पोत्रेसोव, चेरेवानिन, इत्यादि) के दल के रूप में पुरानी सामाजिक-जनवादी पार्टी से बिलकुल स्वतंत्र एक ऐसा केंद्र एकजुट हुआ, जिसका वह रूसी उदारतावादी बुर्जुआ वर्ग हजार तरीके से समर्थन प्रचार तथा पोषण करता था, जो क्रांतिकारी संघर्ष से मजदूरों को विरत करना चाहता था ।

अवसरवादियों के इस दल को रूसी सामाजिक जनवादी मजदूर पार्टी के जनवरी, 1912 के उस सम्मेलन ने पार्टी से निकाल दिया, जिसने विदेश-स्थित अनेक दलों और ग्रुपों के घोर प्रतिरोध के बावजूद पार्टी को बहाल किया। दो साल से भी अधिक मुद्दत तक (1912 के शुरू से 1914 के बीच तक) दो सामाजिक-जनवादी पार्टियों के बीच डटकर संघर्ष चलता रहा : जनवरी, 1912 में चुनी गयी केंद्रीय समिति और उस “संगठन समिति” के बीच, जिसने जनवरी सम्मेलन को मानने से इनकार कर दिया था और जो भिन्न ढंग से, ‘नाशा जार्या’ दल के साथ एकता बरकरार रखते हुए पार्टी को बहाल करना चाहती थी। मजदूरों के दो दैनिक अखबारों (‘प्राव्दा’ और ‘लूच’3 तथा उनके उत्तरवर्त्तियों) के बीच और चौथी राज्य दूमा के भीतर दो सामाजिक-जनवादी ग्रुपों (‘प्राव्दा’-पंथियों अथवा मार्क्सवादियों के रूसी सामाजिक-जनवादी मजदूर ग्रुप और छेईद्जे के नेतृत्व में चलनेवाले विसर्जनवादियों के “सामाजिक जनवादी ग्रुप”) के बीच प्रचंड संघर्ष चलता रहा।

पार्टी के क्रांतिकारी उसूलों के प्रति वफादारी की रक्षा रखते हुए। मजदूर आंदोलन के नये उभार (विशेषत: 1912 के वसंत के बाद) को सहारा देते हुए, कानूनी और गैर कानूनी संगठन, अखबार और प्रचार में ताल-मेल बैठाते हुए ‘प्राव्दा’-पंथियों ने वर्ग-चेतन मजदूरों की प्रबल बहुसंख्या को अपने गिर्द संगठित कर लिया, जबकि विसर्जनवादी, जो राजनीतिक शक्ति के रूप में एकमात्र ‘नाशा जार्या’ ग्रुप की मार्फत काम करते थे, उदारतावादी बुर्जुआा तत्वों के सर्वतोमुखी समर्थन पर अवलंबित रहे।

दोनों पार्टियों के अखबारों को मजदूर ग्रुपों द्वारा खुलेआम दिये गये चंदों से, जो सामाजिक जनवादियों से सदस्यता-चंदा वसूल करने का उस दौर में रूसी परिस्थितियों के अनुकूल ढाला गया एक तरीका (और कानूनी तौर से एकमात्र संभव तथा सभी द्वारा बेरोक जांचा जा सकनेवाला एकमात्र तरीका) था, ‘प्राव्दा’-पंथियों (मार्क्सवादियों) की शक्ति और प्रभाव के सर्वहारा स्रोत तथा विसर्जनवादियों (और उनकी “संगठन समिति”) की शक्ति और प्रभाव के बुर्जुआ उदारतावादी स्रोत की उल्लेखनीय पुष्टि हुई। ये रहे उक्त चंदों के कुछ आंकड़े, जो पूरे के पूरे ‘मार्क्सवाद तथा विसर्जनवाद’4  नाम की पुस्तक में और संक्षेप में 21 जुलाई, 1914 के जर्मन सामाजिक-जनवादी अखबार ‘लाइपजिग जन-समाचारपत्र’5 में दिये गये हैं ।

1 जनवरी 1914 से 13 मई 1914 तक पीटर्सबर्ग के मार्क्सवादी (‘प्राव्दा’ -वादी) और विसर्जनवादी दैनिक अखबारों को प्राप्त चंदों की संख्या और रकम :

प्राव्दा‘ – पंथीविसर्जनवादी
चंदो की संख्यारुबलों में रकमचंदों की संख्यारुबलों में रकम
मजदूर दलों से…….2,87318,9346715,296
गैर मजदूर दलों से…….7132,6504536,760

इस प्रकार 1914 तक हमारी पार्टी ने रूस के वर्ग-चेतन मजदूरों के 4/5 हिस्से को क्रांतिकारी सामाजिक-जनवादी कार्यनीति के तहत एकताबद्ध कर लिया था। 1913 के पूरे साल के लिए मजदूर दलों से ‘प्राव्दा’-पंथियों को 2,181 और विसर्जनवादियों को 661 चंदे प्राप्त हुए। 1 जनवरी 1913 से 13 मई, 1914 तक के आंकड़े थे : ‘प्राव्दा’-पंथियों के लिए (याने हमारी पार्टी के लिए) मजदूर दलों से 5,054 चंदे और विसर्जनवादियों के लिए 1,332 चंदे याने 20.8 फीसदी।

मार्क्सवाद और सामाजिक-अंधराष्ट्रवाद

(1914 – 1915) 

1914-1915 के महान यूरोपीय युद्ध ने सभी यूरोपीय सामाजिक जनवादियों के साथ ही रूसी सामाजिक-जनवादियों को भी एक विश्वव्यापी पैमाने के संकट पर अपनी कार्यनीति की आजमाइश करने का अवसर दिया। अन्य सरकारों की अपेक्षा जारशाही के मामले में युद्ध का प्रतिक्रियावादी, दस्युतापूर्ण और गुलाम-मालिक स्वरूप कहीं अधिक ज्वलंत रूप में बेनकाब होता है। इसके बावजूद विसर्जनवादियों का मुख्य ग्रुप (हमारे ग्रुप के अतिरिक्त एकमात्र दूसरा ग्रुप, जिसका रूस में अपने उदारतावादी संबंधों की बदौलत गंभीर प्रभाव है) सामाजिक-अंधराष्ट्रवाद की ओर चला गया! काफी लंबे अर्से से वैधता के एकाधिकार का उपभोग करते हुए इस ‘नाशा जार्या’ दल ने ”युद्ध का विरोध न करने”, त्रिराष्ट्र (अब चतुर्राष्ट्र) संधि की विजय कामना करने, जर्मन साम्राज्यवाद पर ”अति पैशाचिक पापों” का अभियोग लगाने, आदि के पक्ष में प्रचार चलाया है। प्लेखानोव ने, जिन्होंने 1903 से बराबर अपनी घोर राजनीतिक ढुलमुलयकीनी तथा अवसरवाद की ओर स्थानांतरण के उदाहरण प्रस्तुत किये हैं, यही स्थिति और भी ज्यादा जोर के साथ अपनायी और उसके लिए वह रूस के सारे बुर्जुआ अखबारों द्वारा प्रशंसित हुए। प्लेखानोव यह ऐलान करने की हद तक गिर गये हैं कि जारशाही न्यायसंगत युद्ध चला रही है। वह इस हद तक गिर गये हैं कि उन्होंने इटली के सरकारी अखबारों में इंटरव्यू छपवाये हैं और उसे युद्ध में खीचने की कोशिश की है!!

यों इस बात की पूर्णतः पुष्टि हो गयी कि विसर्जनवाद का हमारा मूल्यांकन और अपनी पार्टी से विसर्जनवादियों के मुख्य ग्रुप का निष्कासन सही था। अब विसजर्नवादियों का असली कार्यक्रम और उनकी प्रवृत्ति का असली महत्व केवल आम अवसरवाद में ही नहीं, बल्कि महान राष्ट्र के प्रतिनिधियों के नाते रूसी जमींदारों तथा बुर्जुआ वर्ग के विशेषाधिकारों और लाभों की रक्षा में भी निहित है। यह राष्ट्रवादी-उदारतावादी मजदूर नीति की प्रवृत्ति है। यह सर्वहारा समुदायों के खिलाफ “अपने” राष्ट्रीय बुर्जआ वर्ग के साथ आमूलवादी टुटपुंजिया वर्ग के एक हिस्से और मुट्ठी भर विशेषाधिकारप्राप्त मजदूरों का गठजोड़ है।

रूसी सामाजिक-जनवाद में वर्तमान आंतरिक अवस्था 

जैसा कि हम पहले ही कह चुके हैं, जनवरी 1912 के हमारे सम्मेलन को न तो विसर्जनवादियों ने मान्यता प्रदान की, न विदेशों में स्थित कई दलों (प्लेखानोव, अलेक्सिन्स्की, त्रोत्स्की तथा दूसरों) ने और न तथाकथित “जातीय” (याने गैर रूसी) सामाजिक-जनवादियों ने। हम पर बेशुमार गालियों की बौछार में सबसे ज्यादा दुहरायी जानेवाली गालियां थीं “जबर्दस्ती हड़पनेवाले” और “फुटबाज”। हम ऐसे अचूक और वस्तुपरक ढंग से जांचे जा सकनेवाले आंकड़ों का हवाला देकर जवाब देते थे, जो यह सिद्ध करते थे कि हमारी पार्टी ने रूस के वर्ग-चेतन मजदूरों के 4/5 हिस्से को एकताबद्ध कर लिया है। प्रतिक्रांति के दौर में गैर कानूनी सरगर्मियों की कठिनाइयों को देखते हुए यह संख्या कम नहीं है।

‘नाशा जार्या’ ग्रुप को निकाले बगैर सामाजिक-जनवादी कार्यनीति के आधार पर रूस में “एकता” संभव होती, तो हमारे अनेकानेक विरोधियों ने अपने आपस तक में एकता क्यों नहीं स्थापित कर ली? जनवरी, 1912 से कम से कम साढ़े तीन साल बीत चुके हैं और इस पूरी मुद्दत में हमारे विरोधी बहुत चाहते हुए भी हमारे मुकाबले में सामाजिक-जनवादी पार्टी नहीं बना सके हैं। यह तथ्य हमारी पार्टी की बेहतरीन वकालत है।

हमारी पार्टी के खिलाफ लड़नेवाले सामाजिक-जनवादी ग्रुपों का समूचा इतिहास पतन और विघटन का इतिहास है। मार्च,1912 में बिना किसी अपवाद के उनमें से सभी हमें गाली देने में “एकताबद्ध” हो गये। लेकिन उनके बीच अगस्त, 1912 में ही, जब हमारे खिलाफ तथाकथित “अगस्त गुट”6 बनाया गया था, विघटन शुरू हो गया था। उनमें से कुछ ग्रुप अलग हो गये। वे पार्टी और केंद्रीय समिति नहीं बना सके। उन्होंने “एकता बहाल करने के प्रयोजन से” केवल एक संगठन समिति नियुक्त की। दरअसल यह संगठन समिति रूस के विसर्जनवादी ग्रुप के लिए बेजान आड़ साबित हुई। रूस में मजदूर आंदोलन के जबर्दस्त उभार तथा 1912-1914 की आम हड़तालों की पूरी मुद्दत के दौरान समूचे “अगस्त गुट” में केवल ‘नाशा जार्या’ ग्रुप ही एक ऐसा था, जिसने जनता में काम किया, जिसकी शक्ति उसके उदारतावादी संबंधों में निहित है। फिर 1914 के प्रारंभ में लाटवियाई सामाजिक-जनवादियों ने “अगस्त गुट” से रस्मी तौर से नाता तोड़ लिया (पोलिश सामाजिक-जनवादी उसमें शामिल ही नहीं हुए थे) और गुट के एक नेता त्रोत्स्की ने फिर अपना विशेष ग्रुप बनाकर गुट को गैर रस्मी तौर से छोड़ दिया। जुलाई, 1914 में ब्रसेल्स सम्मेलन में, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी ब्यूरो की कार्यकारिणी समिति, काउत्स्की और वानडरवेल्डे शरीक थे, हमारे खिलाफ तथाकथित “ब्रसेल्स गुट” बनाया गया, जिसमें लाटवियाई शरीक नहीं हुए और जिससे पोलिश विरोध पक्ष के सामाजिक-जनवादी फौरन अलग हो गये। युद्ध छिड़ने पर यह गुट विघटित हो गया। ‘नाशा जार्या’ प्लेखानोव, अलेक्सिन्स्की और काकेशियाई सामाजिक-जनवादियों के नेता आन की हार की वांछनीयता का प्रचार करनेवाले खुल्लमखुल्ला सामाजिक-अंधराष्ट्रवादी बन गये। संगठन समिति और बुंद ने सामाजिक-अंधराष्ट्रवादियों की तथा सामाजिक-अंधराष्ट्रवाद के उसूलों की रक्षा की। छेईद्जे का दूमा ग्रुप युद्ध ऋणों के विरुद्ध मत देने के बावजूद (रूस में बुर्जुआा जनवादियों, त्रुदोवीकों तक ने उनके खिलाफ मत दिये थे) ‘नाशा जार्या’ का वफादार संगी-साथी बना रहा। हमारे चरम सामाजिक-अंधराष्ट्रवादी-प्लेखानोव, अलेक्सिन्स्की और उनकी मंडली-छेईद्जे के ग्रुप से बहुत खुश थे। पेरिस में ‘नाशे स्लोवो’ (पहले का ‘गोलोस’) नाम के अखबार का प्रकाशन शुरू किया गया, जिसमें मुख्य शिरकत मार्तोव और त्रोत्स्की की थी, जो अंतर्राष्ट्रीयतावाद की अमूर्त पैरवी को ‘नाशा जार्या’, संगठन समिति या छेईद्जे के ग्रुप से एकता की बेशर्त मांग के साथ जोड़ना चाहते थे। 250 अंक निकलने के बाद उस अखबार को खुद अपने विघटन की बात कबूल करने के लिए मजबूर होना पड़ा : संपादकमंडल का एक हिस्सा हमारी पार्टी की तरफ खिंच आया, मार्तोव संगठन समिति के प्रति वफादार बने रहे, जिसने ‘नाशे स्लोवो’ की उसके “अराजकतावाद” के लिए सार्वजनिक रूप से निंदा की (ठीक जैसे जर्मनी के अवसरवादी, डेविड और उनकी मंडली, Internationale Korrespondenz,7 लेजियन और उनकी मंडली कामरेड लीब्कनेख्त पर अराजकतावाद का अभियोग लगाती है); त्रोत्स्की ने संगठन समिति के साथ अपने संबंध-विच्छेद की घोषणा की, लेकिन छेईद्जे के ग्रुप के साथ जाना चाहा। छेईद्जे के ग्रुप के एक नेता की व्याख्या के अनुसार ग्रुप का कार्यक्रम और कार्यनीति ये हैं। प्लेखानोव तथा अलेक्सिन्स्की प्रवृत्ति की पत्रिका ‘सोव्रेमेन्नी मीर’8 के 1915 के पांचवें अंक में छेन्केली ने लिखा है :

“यह कहने का कि जर्मन सामाजिक-जनवाद अपने देश को युद्ध करने से रोकने की स्थिति में था, लेकिन उसने वैसा नहीं किया, अर्थ है या तो मन ही मन यह चाहना कि बैरीकेडों पर न सिर्फ वह खुद ही दम दे दे, बल्कि उसकी पितृभूमि का भी दम निकल जाये, या पास की चीजों को अराजकतावाद की दूरबीन से देखना।”[1]

इन चंद पंक्तियों में सामाजिक-अंधराष्ट्रवाद का संपूर्ण सार अभिव्यक्त है: वर्तमान युद्ध में “पितृभूमि की रक्षा” के विचार का उसूली औचित्य भी और क्रांति के प्रचार तथा उसकी तैयारी का-फौजी सेंसर की अनुमति से – मखौल भी। सवाल यह कतई नहीं है कि जर्मन सामाजिक-जनवाद युद्ध रोकने की स्थिति में था अथवा नहीं, न यही सवाल है कि क्रांतिकारी आम तौर से क्रांति की सफलता की जमानत कर सकते हैं कि नहीं। सवाल यह है कि क्या हमें समाजवादियों की तरह आचरण करना चाहिए, या साम्राज्यवादी बुर्जुआ वर्ग के आलिंगन में सचमुच “दम दे देना” चाहिए?

 हमारी पार्टी के कार्यभार

रूस में सामाजिक जनवाद का उदय हमारे देश की बुर्जुआ-जनवादी क्रांति (1905) से पहले हुआ और उसने क्रांति तथा प्रतिक्रांति के दौरान शक्ति प्राप्त की। हमारे देश में टुटपुंजिया अवसरवादी प्रवृत्तियों और रंगों की असाधारण बहुतायत की वजह रूस का पिछड़ापन है और यूरोप में मार्क्सवाद के प्रभाव तथा युद्ध से पहले कानूनी तौर से कायम सामाजिक-जनवादी पार्टियों के स्थायित्व ने हमारे आदर्श उदारतावादियों को “मुनासिब”, “यूरोपीय” (गैर क्रांतिकारी), “कानूनी” “मार्क्सवादी” सिद्धांत एवं सामाजिक-जनवाद का लगभग पुजारी बना दिया है। रूस का मजदूर वर्ग हर किस्म के अवसरवाद के खिलाफ तीस साल तक डटकर संघर्ष चलाये बिना अपनी पार्टी का निर्माण अन्यथा नहीं कर सकता था। विश्वयुद्ध का अनुभव, जिसने यूरोपीय अवसरवाद को शर्मनाक पतन के मुंह में पहुंचाया और सामाजिक-अंधराष्ट्रवादी विसर्जनवाद के साथ हमारे राष्ट्रवादी-उदारतावादियों के गंठजोड़ को मजबूत किया, हमारे इस विश्वास को और भी अधिक मजबूत बना देता है कि हमारी पार्टी को उसी सुसंगत क्रांतिकारी रास्ते पर आगे बढ़ते रहना चाहिए।

जुलाई – अगस्त, 1915 को लिखित

खंड 26, पृ० 307-350

टिप्पणियां –

1.  ‘श्रम-मुक्ति’ दल – पहला रूसी मार्क्सवादी ग्रुप। गे० वा० प्लेखानोव ने 1883 में जेनेवा में इसकी स्थापना की। ‘श्रम-मुक्ति’ दल ने रूस में मार्क्सवाद के प्रचार में काफी हाथ बंटाया और नरोदवाद पर गंभीर चोट की।

1883 और 1885 में प्लेखानोव ने रूसी सामाजिक-जनवादियों के कार्यक्रम के दो मसविदे बनाये, जिन्हें ‘श्रम-मुक्ति’ दल ने प्रकाशित किया। यह रूस में सामाजिक-जनवादी पार्टी की स्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। परंतु ‘श्रम-मुक्ति’ दल ने उदारतावादी बुर्जुआ वर्ग की भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर और किसान समुदाय की क्रांतिकारिता तथा जारशाही पर विजय पाने के लिए किसानों तथा मजदूरों के गंठजोड़ की भूमिका को घटाकर आंकने जैसी गंभीर गलतियां भी कीं।

अगस्त, 1903 में, रूसी सामाजिक-जनवादी मजदूर पार्टी की दूसरी कांग्रेस में ‘श्रम-मुक्ति’ दल ने अपने को भंग करने की सूचना दी।- पेज 1

2.  ‘ईस्क्रा’ (‘चिनगारी’) – पहला अखिल रूसी अवैध मार्क्सवादी समाचार-पत्र लेनिन द्वारा 1900 में विदेश में संस्थापित और वहां से गुप्त रूप में प्रेषित ‘ईस्क्रा’ ने रूसी सामाजिक-जनवादी आंदोलन को वैचारिक दृष्टि से ऐक्यबद्ध बनाने में और बिखरे हुए स्थानीय संगठनों को मिलाकर एक क्रांतिकारी मार्क्सवादी पार्टी के निर्माण की तैयारियों में बहुत बड़ी भूमिका निभायी।

रूसी सामाजिक-जनवादी मजदूर पार्टी की दूसरी कांग्रेस में (1903) बोल्शेविकों (क्रांति में अटल आस्था रखनेवालों) और मेंशेविकों (अवसरवादियों) में पार्टी के विभाजित हो जाने के बाद ‘ईस्क्रा’ पर मेंशेविकों का कब्जा हो गया (अंक 52, नवंबर,1903 के बाद से) और तब से उसे लेनिनीय पुराने ‘ईस्क्रा’ से भेद दर्शाने के लिए नव ‘ईस्क्रा’ कहा जाने लगा। मेंशेविकों ने उसे मार्क्सवाद तथा पार्टी के विरुद्ध संघर्ष का साधन और अवसरवाद के प्रचार का मंच बना दिया। – पेज 1

3.  ‘लूच’ (‘किरण’) – सितंबर, 1912 से जुलाई, 1913 तक पीटर्सबर्ग से प्रकाशित एक मेंशेविक-विसर्जनवादी वैध दैनिक पत्र – पेज 3

4. ‘मार्क्सवाद तथा विसर्जनवाद। आधुनिक मजदूर आंदोलन की बुनियादी समस्याएं। लेख-संग्रह। भाग 2’ जुलाई, 1914 में पार्टी प्रकाशनगृह ‘प्रिबोई’ द्वारा छापा गया था। उसमें विसर्जनवाद के विरोध में लेनिन द्वारा लिखे हुए कई लेख भी शामिल किये गये थे।-पेज 3

5.  Leipziger Volkszeitung (‘लाइपजिग जन-समाचारपत्र’) – 1894 में संस्थापित यह दैनिक समाचारपत्र शुरू में वामपंथी सामाजिक-जनवादियों का मुखपत्र था; 1917 से 1922 तक वह जर्मनी की स्वतंत्र सामाजिक-जनवादी पार्टी का मुखपत्र था और 1922-1933 में दक्षिणपंथी सामाजिक जनवादियों का मुखपत्र बन गया। – पेज 3

6. अगस्त गुट – विसर्जनवादियों, त्रोत्स्कीवादियों और दूसरे अवसरवादियों का एक बोल्शेविक विरोधी गुट, जिसका निर्माण त्रोत्स्की की पहल पर और अगस्त, 1912 में वियेना में पार्टी विरोधी दलों तथा प्रवृत्तियों के प्रतिनिधियों की कांफ्रेंस में हुआ था। वियेना कांफ्रेंस ने सामाजिक-जनवादी कार्यनीति से संबंधित सभी सवालों पर पार्टी विरोधी और विसर्जनवादी निर्णय लिये थे और पार्टी के गुप्त रूप से काम करने का विरोध किया था।

मजदूरों ने अपनी अलग, मध्यमार्गी पार्टी बनाने की विसर्जनवादियों की कोशिशों का समर्थन नहीं किया। इसलिए पंचमेल तत्वों से बना हुआ बोल्शेविक विरोधी अगस्त गुट कांफ्रेंस के दिनों में ही टूटने लग गया। साल-डेढ़ साल बाद उसका अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया । – पेज 5

7.  Internationle Korrespondenz (‘अंतर्राष्ट्रीय संवाद’) – सितंबर, 1914 से अक्तूबर, 1918 तक बर्लिन से प्रकाशित एक जर्मन सामाजिक-अंधराष्ट्रवादी पत्रिका –  पेज 6

8.  ‘सोव्रेमेन्नी मीर’ (‘आधुनिक विश्व’) – 1906 से 1918 तक पीटर्सबर्ग से प्रकाशित एक साहित्यिक, वैज्ञानिक और राजनीतिक मासिक। उसे गेओर्गी प्लेखानोव और दूसरे मेंशेविकों का घनिष्ठ सहयोग प्राप्त था। प्लेखानोववादियों के साथ गठबंधन के दौर में और 1914 के आरंभ में बोल्शेविकों ने भी उसे अपना सहयोग प्रदान किया। पहले विश्वयुद्ध के वर्षों में वह सामाजिक-अंधराष्ट्रवादियों का प्रवक्ता बन गया। – पेज 6