मोबाइल ऐप से हाजिरी – नरेगा श्रमिकों की मजदूरी की चोरी

August 3, 2022 0 By Yatharth

एम असीम

पारदर्शिता बढ़ाने के नाम पर केंद्र की भाजपा सरकार ने ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम के तहत काम मांगने वाले लगभग 15 करोड़ श्रमिकों के लिए एक ऐप पर अपनी उपस्थिति दर्ज करना अनिवार्य कर दिया है। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों में, श्रमिक, ज्यादातर महिलाएं, अत्यंत विरल व दुर्बल मोबाइल नेटवर्क और ऐप के माध्यम से कार्य स्थल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए स्मार्टफोन की कमी के साथ ही बहुत अधिक जटिलताओं से जूझ रही हैं। इस प्रकार कोविड-19 के कहर से जूझ रही अर्थव्यवस्था में, जब बड़े पैमाने पर श्रमिक अन्य क्षेत्रों में बेरोजगार हुए हैं, वे अब नरेगा में मजदूरी से प्राप्त अपनी आय का एकमात्र या पूरक स्रोत भी खो दे रहे हैं। नरेगा जो ग्रामीण भारत में गरीब श्रमिकों के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच रहा है, महामारी के बाद पहले से भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि अपनी नौकरियां चली जाने से देश भर में बहुत से श्रमिक गांवों में लौट आए। आय के इस नुकसान ने उनके लिए भोजन तक की उपलब्धता को कम कर दिया है। प्रवासी श्रमिकों के परिवारों ने बताया कि वे न केवल कम खा रहे हैं, बल्कि उसमें भी बहुत कम पौष्टिक भोजन मिल पा रहा है। उदाहरण के लिए, अक्टूबर और दिसंबर 2020 के दौरान अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट के एक सर्वेक्षण के अनुसार, कम से कम 60% परिवारों ने कहा कि वे लॉकडाउन से पहले की तुलना में कम खा रहे थे। 

ऐसे भयावह समय में, भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार ने गत मई में आदेश दिया कि देश भर में काम की जगह पर मनरेगा श्रमिकों की उपस्थिति को चिह्नित करने के लिए एनएमएमएस ऐप अनिवार्य किया जाए। 13 मई को ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी एक आदेश के अनुसार, योजना के कार्यान्वयन में अधिक “पारदर्शिता” और “नागरिक निरीक्षण में वृद्धि” लाने के लिए उपस्थिति दर्ज करने हेतु इस ऐप को पिछले साल एक पायलट के रूप में पेश किया गया था। आदेश में कहा गया है कि आगे से देश भर में नरेगा में उपस्थिति दर्ज करने के लिए इस्तेमाल होने वाले कागजी मस्टर रोल को बंद कर दिया जाएगा। उपस्थिति दिन में दो बार, सुबह और दोपहर में ली जाती है, और मौजूद श्रमिकों की संख्या के प्रमाण के रूप में जियो-टैग की गई तस्वीरों के साथ अपलोड करनी होती है। अगर किसी वजह से ऐसा न हो पाए तो काम पर आने व भौतिक मस्टर रोल में हाजिरी दर्ज होने के बावजूद मजदूरी का भुगतान नहीं किया जाता क्योंकि सरकार उसे नहीं मानती। 

आर्टिकल-14 वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार भीलवाड़ा और राजसमंद जिलों में नरेगा कार्य स्थलों पर मेट (सुपरवाइजर) बताते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में खराब कनेक्टिविटी से निपटने के दौरान उन्हें ऐप के साथ बहुत जद्दोजहद करनी पड़ती है। यह तथाकथित ‘पारदर्शिता’ भारत के सबसे गरीब श्रमिकों को प्रभावित कर रही है। 

मनरेगा एक मांग-संचालित योजना है जिसे 2006 में शुरू किया गया था और ग्रामीण परिवारों को कम से कम 100 दिनों का काम प्रदान करना इसका मकसद था। आम तौर पर अकुशल श्रमिकों द्वारा किए गए कार्यों ने वर्षों से ग्रामीण सड़क, बुनियादी ढांचे, आश्रयों, आंगनवाड़ी, कुंओं और जल संचयन संरचनाओं का निर्माण किया है। इस योजना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों से संबंधित महिलाओं और व्यक्तियों की बड़े पैमाने पर भागीदारी देखी गई है। वर्षों से इसमें श्रमिकों को भुगतान में देरी और जॉब कार्ड बनाने में गड़बड़ी की शिकायतें रही हैं। श्रमिकों के भुगतान को उनके आधार से जुड़े बैंक खातों से जोड़ने और जॉब कार्डों को हटाने से योजना के कार्यान्वयन में और भी जटिलताएं आ गईं।

जब यह योजना 2005 में लागू की गई थी, तो इसकी तकनीकी रीढ़ नरेगा सॉफ्ट को विशेष रूप से ऑनलाइन और ऑफलाइन काम करने के लिए डिजाइन किया गया था ताकि सभी स्तरों पर किए जा रहे कार्यों पर नजर रखी जा सके और उपस्थिति, जॉब कार्ड पंजीकरण और अन्य रसीदों के लिए उपयोग किए जाने वाले मस्टर रोल जैसी जानकारी संग्रहीत की जा सके। इसके तुरंत बाद, भौतिक रजिस्टर को खत्म करने के इरादे से इलेक्ट्रॉनिक मस्टर रोल या ईएमआर पेश किए गए, और नरेगा सॉफ्ट में दर्ज किए गए नामों से मुद्रित मस्टर रोल तैयार किए गए। इसके बाद श्रमिकों के बैंक खातों के साथ आधार के एकीकरण के साथ-साथ भुगतान की प्रक्रिया के लिए और अधिक केंद्रीकृत प्रणालियों का पालन किया गया। अब, एनएमएमएस ऐप ने कार्य स्थलों पर श्रमिकों और मेट्स को फिर दिक्कतों में डाल दिया है। 

ऐप कैसे काम करता है

एक बार ऐप डाउनलोड हो जाने के बाद पंचायत समिति द्वारा एक लॉगिन आईडी बनाई जाती है, जिसके माध्यम से मेट अपने ब्लॉक के मस्टर रोल तक पहुंच सकते हैं। मेट को पहले हर रोज मस्टर रोल डाउनलोड कर सब हाजिर श्रमिकों के नाम के आगे निशान लगाना होगा। फिर उन्हें उपस्थित सभी मजदूरों की एक सामूहिक फोटो अपलोड कर सबमिट पर क्लिक करना होगा। आमतौर पर, पहली बार सुबह 6 बजे से सुबह 7 बजे के बीच उपस्थिति ली जाती है और दोपहर बाद काम खत्म होने के बाद फिर से ली जाती है। पर वास्तव में यह सब करना बहुत अधिक जटिल है।

मेट्स को इसके लिए सरकार ने स्मार्टफोन नहीं दिए हैं। ये उन्हें अपने खर्च पर खरीदने हैं और चार्ज करने के लिए बिजली की कमी से भी जूझना है। तकनीकी गड़बड़ियां और नेटवर्क त्रुटियां इतनी बार-बार होती हैं कि दिन का काम पूरा करने के बाद उपस्थिति के अपलोड होने की प्रतीक्षा में साइट पर श्रमिक अक्सर घंटों धूप में बिताते हैं। हाजिरी सही नहीं लग पाई और इस वजह से मजदूरी कट गई तो मजदूर भी मेट से ही शिकायत करते हैं। इसलिए बहुत से मेट अब यह काम नहीं करना चाहते।   

नरेगा – श्रमिकों के लिए एक सुरक्षा कवच 

नरेगा के प्रति मौजूदा सरकार का राजनीतिक विरोध पुराना है। 2015 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे एक गौरवशाली खाई-खुदाई योजना और यूपीए सरकार की विफलताओं का “जीवित स्मारक” कहा था। लेकिन नरेगा के तहत काम की बढ़ती मांग कुछ और ही कहानी बयां करती है। मनरेगा वेबसाइट से पता चलता है कि 2020 में देश व्यापी तालाबंदी के दौरान, 2019-2020 के दौरान काम करने वाले परिवारों की संख्या 5.48 करोड़ से बढ़कर 2020-2021 में 7.55 करोड़ हो गई। इसके अतिरिक्त, योजना के तहत हर साल केंद्र द्वारा जारी की जाने वाली धनराशि भी मांग के साथ ही बढ़ी है। उदाहरण के लिए, केंद्र ने 2019-2020 में 71,020 करोड़ रुपये जारी किए, और यह संख्या 2020-2021 में तेजी से बढ़कर 1,09,810 करोड़ रुपये हो गई। अगले वित्तीय वर्ष में, इस हेतु 97,000 करोड़ रु से अधिक जारी किए। 

स्पष्ट है कि बढ़ती बेरोजगारी के दौर में यह रोजगार गारंटी योजना ग्रामीण गरीब श्रमिक परिवारों के लिए डूबते को तिनके का सहारा जैसे है हालांकि इसमें बहुत कम, न्यूनतम सीमा से भी कम मजदूरी दी जाती है। शहरी मजदूरों के लिए भी ऐसी ही एक रोजगार गारंटी योजना की जरूरत महसूस की जाती रही है जिसके लिए विभिन्न ओर से मांग भी उठाई जाती रही है। परंतु पूंजीपति वर्ग और उसके ‘विद्वान’ तथा मीडिया आरंभ से ही इसके सख्त खिलाफ रहे हैं। उनके अनुसार इससे मजदूर आलसी व निकम्मे हो जाते हैं और अर्थव्यवस्था में मजदूरी दर बढ़ने से उनकी लागत बढ़ जाती है और मुनाफा कम हो जाता है। अतः वे इसे बंद करने की मांग उठाते रहे हैं। वे चाहते हैं कि बेरोजगार मजदूरों के पास किसी प्रकार का कोई सहारा न रहे तो वे और भी कम मजदूरी पर और भी अधिक घंटे काम करने के लिए मजबूर होंगे तथा यूनियन-हड़ताल वगैरह के जरिए किसी प्रकार के श्रम अधिकार भी नहीं मांगेंगे। यही वजह है कि अभी मोदी सरकार इसे सीधे बंद तो नहीं कर पा रही है लेकिन वह इसमें काम देने के रास्ते में हर तरह की बाधा/अड़चन खड़ी कर रही है जिसमें मजदूरी दर को अत्यंत नीच रखना व किये काम की मजदूरी का महीनों देर से भुगतान करना तो पहले ही शामिल था अब एप पर हाजिरी को अनिवार्य बना किये गए काम की मजदूरी की चोरी का नया रास्ता लिया गया है जिससे मजदूर खुद ही नरेगा में काम मांगना छोड़ दें।