सामाजिक सुरक्षा के नाम पर मजदूरों से सरकारी धोखाधड़ी

September 18, 2022 0 By Yatharth

भवन एवं अन्य निर्माण मजदूर (रोजगार तथा सेवा शर्तों का नियमन) कानून, 1996

एस वी सिंह

क्या आपने कभी शहतूत देखा है, 

जहां गिरता है, उतनी जमीन पर 

उसके लाल रस का धब्बा पड़ जाता है। 

गिरने से ज्यादा पीड़ादायी कुछ नहीं। 

मैंने कितने मजदूरों को देखा है 

इमारतों से गिरते हुए, 

गिरकर शहतूत बन जाते हुए

– सबीर हका, ईरान के निर्माण मजदूर

केंद्र सरकार के ‘मजदूर एवं रोजगार मंत्रालय’ द्वारा पारित, ‘भवन एवं अन्य निर्माण मजदूर (रोजगार तथा सेवा शर्तों का नियमन) कानून, 1996’, “The Building and Other Construction Workers (Regulation of Employment and Conditions of Services) Act, 1996”, 1 मार्च 1996 से प्रभावी हुआ। ये कानून, सारे देश में, सरकारी अथवा निजी, हर उस प्रतिष्ठान पर लागू होता है, जहां, मालिक ने खुद अथवा ठेकेदारी व्यवस्था में, आज अथवा पिछले 12 महीने में किसी भी एक दिन, 10 अथवा उससे अधिक निर्माण मजदूरों से काम किया है। ‘भवन एवं अन्य’ निर्माण कार्य में शामिल हैं; नया निर्माण, पुराने को तोड़ना, बदलाव करना, मरम्मत करना, रखरखाव (maintenance), गली, सड़क, रेल, हवाई पट्टी, सिचाई नहर, नाली, सीवर लाइन, ढलान बनाना, पुश्ते बनाना, बाढ़ रोकथाम, जल यातायात सम्बन्धी निर्माण, विद्युत उत्पादन निर्माण, वितरण, गैस पाइप लाइन, बिजली लाइन, टेलीफोन लाइन, मोबाइल टावर, रेडिओ, टी वी संयंत्र, पुल, फ्लाई ओवर, कूलिंग टावर आदि। ‘फैक्ट्री एक्ट, 1948’ तथा ‘खनन कानून, 1952’ के तहत आने वाले निर्माण कार्य इस कानून में शामिल नहीं हैं। ‘निर्माण मजदूरों’ में कुशल, अर्द्ध कुशल, अकुशल, कच्चे, पक्के सभी मजदूर, सुपरवाइजर, क्लर्क, शामिल हैं। कानून का उद्देश्य है; भवन एवं दूसरे निर्माण मजदूरों की सेवा-शर्तों और रोजगार एवं कार्य के वातावरण, परिस्थितियों को निर्धारित करना, निर्माण मजदूरों के स्वास्थ्य, सुरक्षा और दूसरे कल्याणकारी उपाय करना, उससे सम्बंधित योजनाएं बनाना और उनका कार्यान्वयन सुनिश्चित करना, निर्माण कार्य की विशिष्ट परिस्थितियों के अनुरूप, मजदूरों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए सभी आवश्यक कदम उठाना। कानून के अनुच्छेद 24 के तहत, केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा ‘भवन निर्माण मजदूर कल्याण बोर्ड’ (आगे बोर्ड) की स्थापना हुई, जिन्हें ‘भवन निर्माण कल्याण कोष’ गठित कर, निर्माण मजदूरों के लिए विभिन्न कल्याण योजनाएं लागू करने की जिम्मेदारी दी गई है। इस कानून के अंतर्गत, निर्माण मजदूरों को जो सुविधाएं मिलनी तय हुई थीं, जो अब उनका कानूनी अधिकार है, वे कितनी पूरी हुईं , इसकी जांच पड़ताल करना और उन्हें पाने के लिए जन-आन्दोलन करना, मजदूरों का अधिकार भी है और कर्तव्य भी। इस कानून की प्रस्तावना का पहला वाक्य पढ़ने में कितना सुखद लगता है; “सरकार, मजदूरों के स्वास्थ्य, उनकी सामाजिक सुरक्षा और उनकी कल्याणकारी योजनाओं को संरक्षित रखने और उन्हें बढ़ाते जाने के लिए प्रतिबद्ध है”। हालांकि, आज जब सरकार, मजदूरों की असीम कुर्बानियों द्वारा हांसिल 44 अधिकारों को छीनकर, उन्हें 4 लेबर कोड का झुनझुना थमाने के लिए ‘प्रतिबद्ध’ नजर आ रही है, तब ये वाक्य, मजदूरों से कितना क्रूर मजाक लगता है।

सारा उत्पादन एवं निर्माण, मजदूर और मेहनतकश किसान ही करते हैं। विशालकाय मशीनों, कच्चे माल और जमीन में कितनी भी जड़ पूंजी लगी हो, मजदूरों का हाथ लगे बगैर, उसकी कीमत दो कौड़ी की भी नहीं। उन्हीं की श्रम-शक्ति की चोरी से मुनाफे और पूंजी के प्रचंड पहाड़ खड़े होते हैं। जुलाई में जारी विश्व बैंक के आंकड़ों1 के अनुसार 2021 के अंत में, भारत के निर्माण उद्योग के बाजार का आकार $609 बिलियन था। देश में मजदूरों की कुल तादाद 47,12,95,529 (सेंतालिस करोड़, बारह लाख, पिचानवे हजार, पांच सौ उनतीस) है। इनका लगभग 93%, मतलब 43.83 करोड़ मजदूर, असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं। असंगठित क्षेत्र में, खेती-किसानी के बाद, ‘भवन एवं अन्य निर्माण’ ही देश का दूसरा सबसे बड़ा उद्योग है। 1996 में जब ‘भवन एवं अन्य मजदूर कानून’ पारित हुआ, तब निर्माण मजदूरों की कुल तादाद 85 लाख आंकी गई थी। 24 मार्च को राज्य सभा में पूछे गए प्रश्न के जवाब में श्रम मंत्री ने बताया कि इस वक्त देश में निर्माण मजदूरों की कुल संख्या2 4,56,67,175 है। अकेले यू पी में 1,19,36,594 निर्माण मजदूर हैं।  

‘राज्य भवन एवं अन्य निर्माण मजदूर कल्याण बोर्ड’ तथा पंजीकरण  

हर राज्य, सरकारी अधिसूचना द्वारा, बाकायदा वैधानिक दर्जा देते हुए, भवन एवं अन्य निर्माण मजदूर कल्याण बोर्ड प्रस्थापित करेगा, जिसका चेयरमैन केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा। बोर्ड के अन्य सदस्य, जिनकी अधिकतम संख्या 15 हो सकती है, राज्य सरकार नियुक्त करेगी। बोर्ड में, भवन निर्माण मालिक और मजदूर बराबर तादाद में रहेंगे। बोर्ड, सचिव की नियुक्ति करेगा जो उसका मुख्य प्रशासनिक अधिकारी होगा। बोर्ड की नियमित बैठकें होंगी जिनमें मजदूर प्रतिनिधि उपस्थित रहेंगे। मीटिंग में हुई चर्चा-निर्णय का ब्यौरा एक रजिस्टर में दर्ज रहेगा। बोर्ड के सभी सदस्यों को समान वोट का अधिकार होगा और सभी फैसले बहुमत से लिए जाएंगे। 

कानून के अनुच्छेद 7 के अनुसार, वे सभी भवन एवं अन्य निर्माण कंपनी मालिक, जिन्होंने साल में कभी भी 10 या उससे अधिक निर्माण मजदूरों को काम पर लिया है, कानून लागू होने के 60 दिन में अनिवार्य रूप से अपने व्यवसाय का पंजीकरण कराएंगे। इसके लिए सम्बंधित राज्य सरकार, विशेष अधिकारियों की नियुक्ति करेगी। पंजीकरण ना करने पर, वे निर्माण मजदूर को काम पर नहीं ले सकेंगे। निर्माण व्यवसाय पंजीकरण का फॉर्म और उसका शुल्क राज्य सरकारों द्वारा तय किए जाएंगे। पंजीकरण अधिकारी, पंजीकृत निर्माण व्यवसाय प्रतिष्ठान को एक सर्टिफिकेट जारी करेंगे जिसमें निर्माण मजदूरों के सम्बन्ध में उनके सभी कर्तव्यों का उल्लेख रहेगा, जिनका अनुपालन सुनिश्चित करना, उक्त व्यवसायिक प्रतिष्ठान तथा साथ ही मालिकों, डायरेक्टरों, प्रमोटरों की निजी जिम्मेदारी भी होगी। निर्माण व्यवसाय मालिक संस्थान/ कंपनी में हुए किसी भी बदलाव अथवा व्यवसाय बंद होने की सूचना तत्काल पंजीकरण कार्यालय को देंगे। अगर पंजीकरण अधिकारी के संज्ञान में कभी भी ये तथ्य आता है कि उक्त व्यवसाय के पंजीकरण में कोई असत्य जानकारी दी गई है, अथवा कोई जानकारी छुपाई गई है तो, अनुच्छेद 8 के अनुसार उसका पंजीकरण तत्काल रद्द कर दिया जाएगा और उसके लिए आवश्यक दंडात्मक कार्यवाही तुरंत शुरू की जाएगी। उसके बाद वह कभी भी, किसी भी निर्माण मजदूर को काम पर नहीं ले सकेगा। इसके विरुद्ध, हालांकि, अनुच्छेद 9 के अनुसार वह 10 दिन में अपील कर सकता है। अगर अपील मंजूर नहीं हुई तब निर्माण व्यवसाय से उसकी हमेशा के लिए छुट्टी हो जाएगी।  

बोर्ड, ‘भवन एवं अन्य निर्माण मजदूर कल्याण कोष’ की स्थापना करेगा, जिससे निर्माण मजदूरों को अनेक अधिकार हांसिल होंगे, जिन्हें प्राप्त करने के लिए लाभार्थियों, मतलब निर्माण मजदूरों को भी अपना पंजीकरण कराना होगा। जैसे ही हम ‘कर्मचारी राज्य जीवन निगम (ESIC) की वेबसाइट esic.nic.in खोलते हैं, तुरंत आधे हिस्से में मोदी जी की मुस्कुराती हुई तस्वीर नजर आती है। साथ ही, दूसरे आधे हिस्से में ‘असंगठित मजदूरों की समायोजित श्रेणियां, ‘Category of Unorganized Workers Covered’ शीर्षक के नीचे मजदूरों की 6 श्रेणियां नजर आती हैं; निर्माण मजदूर, घरेलू मजदूर, विस्थापित मजदूर, कृषि मजदूर, ऑनलाइन कंपनियों द्वारा रखे गए मजदूर (gig and platform workers) तथा अन्य असंगठित मजदूर। इन सभी श्रेणियों के मजदूरों को अपने अधिकारों को हांसिल करने के लिए, अपना पंजीकरण कराना अनिवार्य है। ऑनलाइन पंजीकरण के लिए साइट है; www.eshram.gov.in । पंजीकरण कराने के लिए श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के निशुल्क सहायता केंद्र का नंबर है- 14434 । पंजीकरण होने के बाद निर्माण मजदूर को एक कार्ड जारी होता है, जिसे प्राप्त कर लेने के बाद ही वह विभिन्न आर्थिक सुविधाओं का हकदार बनता है। मार्च 2022 को देश में कुल पंजीकृत निर्माण मजदूरों की तादाद 4,56,67,175 है। 

भवन एवं अन्य निर्माण मजदूर कल्याण कोष उपकर कानून, 1996    

19 अगस्त 1996 को संसद द्वारा पारित इस कानून में निर्माण मजदूर कोष के लिए धन एकत्रित करने का ब्यौरा दिया गया है, जिससे भवन एवं अन्य निर्माण मजदूर (रोजगार एवं सेवा शर्तों का नियमन कानून), 1996 में दिए गए, निर्माण मजदूरों के अधिकारों के अनुरूप आवश्यक आर्थिक मदद की जा सके। निर्माण मजदूर कल्याण बोर्ड, आगामी साल भर के अनुमानित खर्च का बजट बनाएगा। हर एक बिल्डर को अपनी परियोजना के कुल बजट का कम से कम 1% और अधिकतम 2% अनिवार्य रूप से निर्माण मजदूर कल्याण कोष में जमा करना होगा। कानून के अनुच्छेद 1 व 2 के अनुसार, बिल्डर को मिलने वाले हर भुगतान से ये उपकर काट कर ही भुगतान किया जाएगा। बिल्डर द्वारा कोष में जमा राशि का रिटर्न, बोर्ड द्वारा निर्धारित अवधि में जमा करना होगा। ऐसा ना करने पर बोर्ड को दंडात्मक कार्यवाही करने का अधिकार है। निर्माण प्रोजेक्ट को रद्द या रोका भी जा सकता है। निर्धारित दो अवधियों में जमा ना करने पर ब्याज भी देय होगा। अनुपालन ना किए जाने पर राज्य सरकार के सम्बंधित अधिकारी निर्माण परियोजना में कभी भी प्रवेश कर सकते हैं और रिकॉर्ड चेक कर सकते हैं। फिर भी यदि बिल्डर आवश्यक निर्धारित राशि जमा नहीं करता है तो उसकी माल-मत्ता बेचकर वसूली की जाएगी, और सम्बंधित मालिक के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाएगा, जिसके तहत उससे ना सिर्फ ब्याज और दण्ड सहित वसूली की जाएगी, बल्कि उसे 6 महीने की सजा भी हो सकती है। इसके साथ ही निर्माण मजदूर भी पंजीकृत होने के बाद राज्य सरकार द्वारा निर्धारित एक निश्चित रकम 60 साल की उम्र होने तक इसमें जमा करेगा। राज्य सरकार भी इस कोष में अपना योगदान देगी।   

निर्माण मजदूरों के कानूनी अधिकार  

कानून के अध्याय 6 (vi) से 11 (xi) में निर्माण मजदूरों को मिले कानूनी अधिकारों का विवरण दिया हुआ है। निर्माण मजदूरों का काम अत्यंत जोखिमभरा है, इसलिए मजदूरों के काम के घंटे व सेवा शर्तें, सरकार द्वारा अलग से तय होंगे। निर्माण मजदूरों को सप्ताह में एक दिन का आराम आवश्यक रूप से दिया जाएगा। आपातकालीन परिस्थितियों में अगर उस दिन भी काम करना है, या निर्धारित समय के अतिरिक्त काम कराया गया तो दोगुने रेट से भुगतान करना होगा। प्रत्येक मजदूर से क्या काम कराया गया, कितने घंटे काम कराया गया, इसका रजिस्टर मालिक को रखना होगा, जिसे सम्बंधित अधिकारीयों अथवा मजदूर प्रतिनिधियों को निरिक्षण के लिए उपलब्ध कराना होगा। मजदूरों के लिए कार्य स्थल पर स्वच्छ पीने का पानी, शौचालय, कार्य परिसर में समुचित निवास जहां रसोई व स्नानघर की सोने की जगह के अतिरिक्त अलग व्यवस्था हो, बिजली की व्यवस्था, मजदूरों के बच्चों के लिए प्रशिक्षित कर्मचारियों की देखरेख में शिशु पालन घर (क्रेच) की व्यवस्था, प्राथमिक उपचार की व्यवस्था बिलकुल निशुल्क उपलब्ध करनी होगी। साथ ही अनुदान युक्त कैंटीन की व्यवस्था भी अनिवार्य रूप से करनी होगी। साथ ही ऐसे व्यक्ति को, जिसे कम सुनाई पड़ता हो, नजर कमजोर हो अथवा चक्कर आते हों, ऊंचाई से डर लगता हो, काम पर नहीं लिया जा सकता। 

अध्याय 7 में आवश्यक सुरक्षा इन्तेजामों का विवरण दिया गया है। जिस निर्माण परियोजना में 500 या उससे अधिक निर्माण मजदूर कार्य कर रहे हों, वहां सुरक्षा कमेटी बनेंगी जिनमें मजदूरों के प्रतिनिधि भी आवश्यक रूप से शामिल होंगे। सुरक्षा कमेटी की मीटिंग और लिए गए फैसलों का रिकॉर्ड रखा जाएगा। सुरक्षा अधिकारी भी नियुक्त किया जाएगा। कोई भी दुर्घटना होने पर, शीघ्रतिशीघ्र उसकी सूचना पुलिस को देना, 48 घंटे के अन्दर उसकी पूरी रिपोर्ट जांच अधिकारी को प्रस्तुत करना, मालिक की जिम्मेदारी है जिसकी जांच अधिकतम 30 दिन में पूरी होनी चाहिए। 8 वें अध्याय में जांच अधिकारियों, जैसे इंस्पेक्टर से महा निरीक्षक तक, सभी के कर्तव्यों का उल्लेख है। नियमित रूप से निर्माण परियोजना का मुआयना करना उनकी ड्यूटी है। पाड़ बांधने (scaffolding) व हटाने में अक्सर दुर्घटनाएं होती हैं, उसके लिए तकनीकी स्टाफ की निगरानी आवश्यक है, और बीच-बीच में उसे टेस्ट किया जाना जरूरी है। सारा सामान प्रशिक्षित ड्राईवर द्वारा संचालित वाहनों द्वारा ही लाया-ले जाया जाएगा। निर्माण परियोजना में धूल-मिटटी, गैस, गंध से बचाव सुनिश्चित किया जाना चाहिए। बिजली के तार और लोहे के टुकड़े कहीं भी पड़े नजर नहीं आने चाहिएं। सभी मजदूरों को हेलमेट, बूट, विशेष ड्रेस, सुरक्षा बेल्ट उपलब्ध कराना और उनका अनुपालन कराना मालिक की जिम्मेदारी है। किसी भी मामले में निर्धारित मापदंडों का पालन ना होने पर भारी जुर्माने, तथा 6 महीने की सजा का भी प्रावधान है।     

इस कानून के अंतर्गत निर्माण मजदूर अनेक वित्तीय सुविधाओं के हकदार हैं। निर्माण मजदूरों के बच्चों की शिक्षा, मजदूर अथवा बच्चों की शादी, दुर्घटना का शिकार हो जाने पर मदद, मृत्यु हो जाने पर पेंशन एवं उचित एकमुश्त मुआवजा, मातृत्व पर मदद, इन सब का प्रावधान इस कानून में है। हालांकि इस सम्बन्ध में बोर्ड तथा सम्बंधित राज्य सरकार को बहुत अधिक विवेकाधिकार दिए गए हैं और आर्थिक मदद के मामले में नीति स्पष्ट नहीं है। मतलब, मालिक को अनुपालन से बच निकलने की गुंजाईश कानून में शुरू से ही रखी गई है। मजदूर, अधिकारपूर्वक अपनी सुविधाएं हांसिल ना कर पाएं, इसीलिए, शायद भरपूर ‘किन्तु-परन्तु’ रखे गए हैं। निर्माण मजदूर कल्याण कोष से सितम्बर 2016 से जून 2022 के बीच, मात्र 7985 मजदूरों को वित्तीय3 सहायता प्रदान की गई।        

निर्माण मजदूरों की स्थिति 

निर्माण उद्योग, मजदूरों के लिए सबसे खतरनाक उद्योग है। 2019 में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल 48,000 (हर रोज लगभग 131) मजदूर कार्य करते हुए मारे जाते हैं। इनमें अकेले निर्माण उद्योग में अपना काम करते हुए, हर रोज मारे जाने वाले मजदूरों की तादाद 38 है। ‘बांधकाम मजदूर संगठन, अहमदाबाद’ ने 11 मई 2019 में अहमदाबाद में एक सेमिनार आयोजित किया था। उनके शोध4 के अनुसार, भारत में निर्माण मजदूरों के काम के दौरान मरने की दर, इंग्लैण्ड से 20 गुना अधिक है और 80% निर्माण परियोजनाएं मजदूरों के लिए अत्यंत असुरक्षित हैं। संगठन के सचिव, विपुल पंड्या ने बताया कि दुर्भाग्य से ना तो भारत सरकार और ना अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, निर्माण उद्योगों में हुई मौतों या घायलों का कोई ब्यौरा रखते हैं। केंदीय श्रम विभाग, निर्माण मजदूरों की मौत की पूरी जानकारी, सूचना के अधिकार में भी नहीं देता। विपुल पंड्या तथा दर्शन पटेल द्वारा किए गए अध्ययन तथा सूचना अधिकार में जो भी जानकारी प्राप्त हुई, उसके अनुसार, 2018 में अकेले गुजरात में, जहां देश के कुल निर्माण उद्योग का 13% हिस्सा है, कुल 137 निर्माण मजदूरों की निर्माण कार्य करते हुए मौत हुई। गुजरात में निर्माण परियोजनाओं में होने वाली दुर्घटनाओं के 74% में कोई पुलिस रिपोर्ट या एफआईआर नहीं होती। सिर्फ उन्हीं दुर्घटनाओं में दिखावे की पुलिस कार्यवाही होती है, जहां मजदूर की मौत हो जाती है। देश के कुल निर्माण उद्योग में 25% भागीदारी महाराष्ट्र की है, और वहां मजदूरों की मौत भी देश में सबसे अधिक है, लेकिन महाराष्ट्र सरकार इन आंकड़ों को संयोजित नहीं करती। इसलिए असलियत मालूम ही नहीं पड़ती। महाराष्ट्र में, निर्माण मजदूरों के सवास्थ्य, सुरक्षा एवं सेवा शर्तों और कार्य की परिस्थितियों के लिए एक विशिष्ट कानून बनने के 26 साल बाद भी, निर्माण मजदूर सबसे ज्यादा शोषित, उत्पीड़ित, असुरक्षित समूह है। उक्त कानून बनने के 20 साल होने पर, 2017 में एनडीटीवी ने नवी मुंबई के ‘साई मन्नत पैराडाइस ग्रुप’ की निर्माण परियोजना में मजदूरों के कार्य की दशा पर, खुफिया कैमरों की मदद से एक शोध5 किया था। शोध के परिणाम इस तरह हैं; 22 मई 2017 को रहमतुल्लाह शेख और ऐतबारी अंसारी की, 190 फूट की ऊंचाई से गिरकर मौत हो गई। वे और एक मजदूर 17 वीं मंजिल पर बिल्डिंग के बाहर, एक पतले से पटरे पर खड़े होकर बाहर से प्लास्टर कर रहे थे, जो एक पतली रस्सी से बंधा नीचे लटक रहा था। रस्सी टूट गई, तीनों नीचे गिर गए। उनमें एक मजदूर दूसरी छत से लटकी एक रस्सी से लटक कर बुरी तरह जख्मी हो गया, लेकिन जिंदा बच गया। रहमतुल्लाह शेख और ऐतबारी अंसारी गिरते ही मर गए। निर्माणाधीन बिल्डिंग में कहीं भी सेफ्टी नेट नहीं था, बिजली के तार जिनमें बिजली मौजूद थी, हर तरफ लटके पड़े थे। उसी साल मार्च 22 को एक दूसरे मजदूर सोनू कुशवाहा की गिरने से मौत हो चुकी थी। मजदूरों के जख्मी होने की तो हर रोज की वारदात थी। सोनू की मौत के अगले महीने भी मजदूरों के पास हेलमेट नहीं थे, पैरों में बूट नहीं थे। लेबर इस्पेक्टर एक बार भी मुआयना करने नहीं आया। कोई ऐसी बिल्डिंग नहीं, जहां निर्माण मजदूरों की बलि ना चढ़ी हो। 

कोरोना महामारी में जब लोग घरों-अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से तड़प-तड़प कर और सड़कों पर अनंत चलते-चलते मर रहे थे, तब मोदी सरकार दिल्ली में ‘वैभव और शान’ के प्रतीक ‘ग्रांड विस्टा प्रोजेक्ट’ को बनाने की योजनाएं बना रही थी, और खर्च की परवाह ना करते हुए अपने इस फैंसी प्रोजेक्ट को तत्काल पूरा कर डालना चाहती थी, जिससे देश के बड़े कॉर्पोरेट मगरमच्छों के हित में, दुनिया के बाजार में भारत का ‘विश्वगुरु’ वाला मुखौटा बेचा जा सके, वैश्विक साम्राज्यवादी लूट में उनकी हिस्सेदारी को बढ़ाया जा सके। इस परियोजना को इकनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली ने अपने मई 2021 में बहुत सटीक परिभाषित किया था “आपदा पर निर्मित भ्रम; केन्द्रीय विस्टा परियोजना को जारी रखना भयावह जिद्दीपन को उजागर करता है”  (An Illusion Built on Tragedy; Continuing the Central Vista Redevelopment amidst the pandemic reveals a sinister stubbornness)। निर्माण मजदूरों के लिए ये ‘प्रतिष्ठित’ सरकारी परियोजना भी बाकी जैसी ही ‘कल्याणकारी’ साबित हुई!! दिल्ली की उबलती गर्मी में मजदूरों को लोहे के कंटेनर्स में रखा गया, जहां हवा आने की कोई खिड़की नहीं थी, पीने को पानी नहीं था, शौच की व्यवस्था ना के बराबर थी। मीडिया में रिपोर्ट छपने पर ‘राष्ट्रभक्त’ मोदी सरकार को ज्ञात हुआ कि मजदूर भी इन्सान होते हैं, ऐसी जगह में बंद रहे तो जानवर भी विद्रोह कर देते हैं। उसके बाद पूरे परिसर को उंचे-उंचे पत्तरे लगाकर ढक दिया गया। ऐसा, धूल-मिटटी के फैलाव को रोकने के मकसद से कम, मजदूरों के काम के हालात को छुपाने के मकसद से ज्यादा किया गया था। 1 अगस्त को मजदूरों को ले जा रही बस दुर्घटनाग्रस्त हुई जिसमें 24 मजदूर घायल हुए। मई 2021 की स्क्रॉल की रिपोर्ट6 के अनुसार सेंट्रल विस्टा परियोजना में कई मजदूर कोविदग्रस्त थे, 50 वर्षीय सुपरवाईजर पश्चिमी दिल्ली से 20 किमी यात्रा कर सुबह हाजिर होते थे, जबकि कानून कहता है कि सभी निर्माण मजदूरों को परिसर में ही ‘उचित’ आवास मिलेगा, 30 मजदूरों को 12 घंटे से भी अधिक काम करने को विवश किया गया, कई मजदूरों को बुखार-खांसी में काम करना पड़ रहा है, ऐसा एक मजदूर ने नाम ना जाहिर करने की शर्त पर बताया, कई मजदूर कोरोना पोजिटिव बताए गए लेकिन जबानी, टेस्ट रिपोर्ट देने से मना कर दिया। उसके बाद मीडिया को फोटो लेना भी प्रतिबंधित कर दिया गया, स्क्रॉल संवाददाता ने छुपकर मजदूरों से बात की उन्होंने बताया कि अन्दर बहुत बुरे हाल हैं।

देश में निर्माण मजदूरों की आज हकीकत क्या है, इसे समझने के लिए एक बिलकुल ताजा घटना काफी है। श्री माता अमृतमयी देवी ‘अम्मा’ ट्रस्ट द्वारा 2800 बिस्तरों वाले विशाल अस्पताल का निर्माण, फरीदाबाद के सेक्टर 88 में काफी हद तक पूरा हो चुका है। ये विशाल व प्रतिष्ठित अस्पताल लगभग 12,000 मजदूरों के हाथों ने ही बनाया है। विभिन्न प्रदेशों से आए इन विस्थापित निर्माण मजदूरों के रहने के लिए लगभग 2000 झुग्गियां अस्पताल परिसर की दीवार से बाहर सटकर बनाई गई हैं, जिससे मजदूर सुबह जल्दी काम पर उपस्थित रहें, छुट्टी ना ले पाएं और देर रात तक, कभी-कभी रात भर काम कर पाएं। मजदूर अपने परिवार सहित इन झुग्गियों में रहते हैं। 24 अगस्त को इस अस्पताल का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किया गया, जिसके अभूतपूर्व सुरक्षा इन्तेजाम किए गए। प्रबंधन ने इन मजदूरों से कहा है कि 20 से 24 अगस्त तक सारा निर्माण कार्य बंद रहेगा और इस दौरान वे अपनी झुग्गियों में नहीं रह सकते। “हम कहां जाएंगे, हमारा तो यहां कोई नहीं है”, मजदूरों ने पूछा। “कहीं भी जाओ, उससे हमें कुछ लेना-देना नहीं। 20 तारीख को एक भी मजदूर नजर आया तो सशस्त्र पुलिस-फौज उसे खींचकर झुग्गी से बाहर करेगी। हां, 25 अगस्त को काम शुरू होगा, सुबह 9 बजे से पहले हर मजदूर अपनी जगह तैयार मिलना चाहिए”, प्रबंधन ने जवाब दिया। हताश, निराश, बेहाल मजदूर अस्पताल की प्रमुख ट्रस्टी श्री अमृतमयी देवी से मिलने में कामयाब हो गए। उन्हें उनकी हालत पर रहम कर झोंपड़ियों में रहने की इजाजत दे दी और सुरक्षा अधिकारी इन मजदूरों पर दया करते हुए इस शर्त पर राजी हुए कि कोई भी अपनी झोंपड़ी से बाहर नहीं झांकेगा।               

मजदूरों के हित में बने कानूनों का अनुपालन क्यों नहीं होता? 

देश में दो तरह के कानून हैं; एक- जो लागू होते हैं और दूसरे- जो लागू नहीं होते। पहली श्रेणी में सबसे टॉप पर वे कानून हैं, जिनसे सरकार आम नागरिकों से कर वसूलती है। इस मामले में वसूली की तारीख से एक दिन की देरी होने पर ही भारी जुर्माना लगता है और फिर भी देर हुई तो सीधे जेल। ये बात कर दाता को स्पष्ट रूप से मालूम होती है। ऊपर से नीचे तक, शासन तंत्र का सारा अमला इस मामले में अधिकतम मुस्तैद रहता है। इसके बाद वे सब कानून हैं जो अमीर वर्ग, कॉर्पोरेट के लिए होते हैं। कोरोना महामारी में 995 विस्थापित मजदूर अनंत चलते-चलते मर गए, जन आक्रोश भी जबरदस्त बना, मीडिया ने भी खूब दिखाया लेकिन सरकार पत्थर जैसी संवेदनहीन बनी रही और उन्हें एक पैसे की भी मदद नहीं मिली। वहीं दूसरी ओर, कॉर्पोरेट द्वारा कोई मांग किए बगैर ही सरकार, आपातकाल जैसी हरकत में आ गई और तुरंत 20 लाख करोड़ का राहत पैकेज घोषित कर दिया। सिर्फ घोषित कर के ही नहीं रुकी, बैंकों के चेयरमैन को बार-बार दिल्ली तलब कर सख्ती से पूछा; राहत पैकेज के अनुपालन की स्थिति क्या है, हमें हर सप्ताह बताया जाए। पिछले पांच साल में कॉर्पोरेट के लगभग 10 लाख करोड़ के बैंक कर्ज माफ हुए जिससे स्वाभाविक रूप से बैंकों की पूंजी निबट जानी थी। सरकार ने बैंकों को पूंजी देने की व्यवस्था हर बजट में रखी। इसकी कोई मांग कॉर्पोरेट ने नहीं की थी। सरकार उनकी संभावित जरूरतों का भी शिद्दत से अध्ययन करती रहती है। जो सरकार ये काम अच्छी तरह करती है, वही कुशल कहलाती है, आगे सेवा का अवसर पाती है। हर बजट से पहले फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI) की जो बैठक होती है, वह संसद में बजट प्रस्तुति और उसके बाद होने वाले शोरगुल से कहीं ज्यादा अहम होती है। ये सब इसलिए होता है क्योंकि ये वर्ग इस व्यवस्था का ‘इंजन’ कहलाता है, और इंजन को ठप्प नहीं पड़ने दिया जा सकता।

दूसरी श्रेणी, उन कानूनों की है जिनकी भाषा और विषय बहुत मनभावन और रसीले होते हैं, लेकिन वे कभी लागू नहीं होते। मजदूरों-किसानों के हित में बने कानून, सरकारी वादे, आश्वासन इस श्रेणी में आते हैं। ये अकस्मात नहीं होता। कानून बनने और उनके कार्यान्वयन प्रणाली में ही यह निहित होता है। श्रम विभाग के अधिकारियों को जब कहा जाता है, कि न्यूनतम वेतन कानून कहीं भी लागू नहीं हो रहे, तो वे कहते तो जरूर हैं कि ‘देखेंगे’, लेकिन मंद-मंद मुस्कुरा रहे होते हैं, कि कैसे मूर्ख लोग हैं, इतना भी नहीं जानते कि ये कानून लागू होने के लिए बने ही नहीं। पहले, जब मजदूर उनकी नाक में दम कर दिया करते थे, तब मजबूरी में लागू करने पड़ते थे। आजकल मजदूरों ने तंत्र की नाक में दम करना बंद कर दिया है इसलिए लागू भी नहीं हो रहे। बिल्डर, जब बाकी सारे सरकारी कानून शिद्दत से अमल में लाते हैं, तब निर्माण मजदूरों के लिए बने इस कानून की परवाह क्यों नहीं करते? उत्तर साफ है, वे जानते हैं कि ये कानून करोड़ों मजदूरों के हाथ में सरकार द्वारा थमाया हुआ एक झुनझुना है, अमल के लिए बना ही नहीं है। अमन के लिए बना होता तो प्रधानमंत्री श्रम मंत्री से जवाब मांगते, श्रम मंत्री राज्य सरकार से जवाब मांगते और ये प्रावधान कानून में ही निहित होते। देश के निर्माण उद्योग बाजार का आकार 609.6 बिलियन डॉलर है। निर्माण उद्योग मालिक को कुल परियोजना मूल्य का 1% से 2% तक निर्माण मजदूर कल्याण कोष में देना होता है। इसका औसत 1.5% भी पकड़ा जाए, तो कुल 9.14 बिलियन डॉलर रकम निर्माण मजदूर कल्याण कोष में जमा होनी चाहिए थी। इसका 0.1% भी नहीं है। कितनी रकम है, ये जानकारी सूचना के अधिकार में भी नहीं देते। उंची-उंची निर्माणाधीन इमारतों से कितने मजदूर हर साल मरते हैं, जो सरकार ये आंकड़ा भी ना रखती हो, जो आंकड़े हैं, उन्हें, सूचना के अधिकार में भी देने को तैयार ना हो, वह सरकार निर्माण मजदूरों को, दुर्घटनाग्रस्त हो जाने अथवा मर जाने पर क्या मुआवजा देगी? गूगल पर काफी सर्च किया, लेकिन इस कानून का अनुपालन ना करने पर किसी बिल्डर, सरकारी अधिकारी अथवा बोर्ड मेम्बर पर कोई कार्यवाही हुई हो, ऐसा एक भी उदहारण नहीं मिला।            

‘पढ़ना-लिखना सीखो, ओ! मेहनत करने वालो’     

सरकार की असल मंशा क्या है, ये बात सत्ता का तंत्र अच्छी तरह जानता है और बिलकुल उसी के अनुरूप काम करता है। वर्ग विभाजित समाज में, शासन तंत्र शासक वर्ग के हितों से विभिन्न तरह से, बहुत गहराई से गुंथा होता है। वह ना सिर्फ शासक वर्ग के हितों के लिए समर्पित सरकार की नीयत को अच्छी तरह जानता है, बल्कि शासक वर्ग के हितों को और बेहतर तरीके से कैसे साधा जा सकता है, और शोषित-पीड़ित वर्ग के हाथ में आकर्षक झुनझुने देकर, आश्वासन देकर, कैसे बहलाया जा सकता है, संघर्ष के रास्ते से उन्हें कैसे भटकाया जा सकता है, सरकार को ये सलाह भी लगातार देता रहता है। उनकी ये काबलियत ही उनकी तंत्र में तरक्की सुनिश्चित करती है। इतिहास में सर्वप्रथम, मजदूर वर्ग द्वारा मालिक वर्ग को दी गई शानदार, विजयी चुनौती, ‘पेरिस कम्यून’ का विश्लेषण करते हुए अपनी ऐतिहासिक कृति ‘फ्रांस में गृह युद्ध’ में कार्ल मार्क्स लिखते हैं, “मजदूर वर्ग पहले से बनी-बनाई राज्य मशीनरी को अपने हाथ में लेकर, उसे अपने हित में नहीं इस्तेमाल कर सकता”। तदनुरूप, ये बदलाव उन्होंने अपनी कालजयी कृति, ‘कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो’ में भी किया। पूंजीवादी निजाम में, मजदूर आज तक जो कानून भी अपने हित में बनवा पाए हैं, और उनमें से जितने भी लागू करवा पाए हैं, वह सरकारी तंत्र की नाक में दम करके ही संभव हुआ है। मौजूदा सरकारी तंत्र की नाक में दम करने लायक बनने के लिए, मजदूरों को सबसे पहले इस तंत्र को ठीक से समझना होगा और संगठित होना होगा। ये दोनों काम करने में वे आज नाकाम हैं, इसीलिए ना सिर्फ अपने हित में नए कानून बनवा नहीं पा रहे, और जो हैं उन्हें भी लागू नहीं करवा पा रहे, बल्कि जो हैं उन्हें भी खोते जा रहे हैं। जो कानून लागू हुआ करते थे, वे भी लागू नहीं हो रहे। मजदूरों को इस राजनीति को समझना, उनके लिए ऑक्सीजन जितना ही आवश्यक है। ये प्रक्रिया, उनका राज, समाजवाद, प्रस्थापित हो जाने के बाद भी जारी रखनी पड़ेगी, वरना रूस और चीन के मजदूरों की तरह उनकी हसीन दुनिया बनकर भी लुट सकती है, वे कभी भी ठगे जा सकते हैं। 28 सितम्बर 1864 को प्रथम इंटरनेशनल में कार्ल मार्क्स और फ्रेडेरिक एंगेल्स ने मजदूरों को एक बहुत जरूरी सीख दी है, जिसे मजदूरों ने कभी नहीं भूलना चाहिए, “मजदूर वर्ग की मुक्ति मजदूर वर्ग का खुद का काम है”। (अगले अंक में जारी)

महत्वपूर्ण लिंक

1. https://tradingeconomics.com/india /labor-force-total-wb-data.html

2. https://pib.gov.in/PressReleasePage .aspx?PRID=1809240

3. https://drive.google.com/drive/ folders/1qQimeZwtEmJVx4QqHoJmEIIxFK3oHT7E

4. https://www.counterview.net/ 2019/05/indias-80-construction-sites-unsafe.html

5. https://www.ndtv.com/india-news/even-after-fatal-accidents-indias-construction-sites-remain-death-traps-for-workers-1734233

6. https://scroll.in/article/995968/three-workers-at-central-vista-contract-covid-19-many-complain-of-cramped-living-space-late-wages