फ्रेडरिक एंगेल्स की 127वीं मुत्यु वार्षिकी पर एक श्रृंखलाबद्ध विशेष लेख

September 18, 2022 0 By Yatharth

अजय सिन्हा

फ्रेडरिक एंगेल्स का जन्म बार्मेन में 28 नवंबर 1820 में हुआ था। यानी कार्ल मार्क्स से वे 2 सालों से अधिक छोटे थे। उनकी जीवन यात्रा की शुरुआत एक एक उद्योगपति की संतान के रूप में हुई लेकिन अंत कार्ल मार्क्स के अभिन्न मित्र व सहयोगी के साथ-साथ सवर्हारा के एक महान शिक्षक और वैज्ञानिक समाजवाद के सिद्धांतकार के रूप में हुआ। उनका नाम हमेशा कार्ल मार्क्स के साथ तथा उनके बराबर के सम्मान के साथ लिया जाता है, और यह सही भी है। दोनों कालजयी थे, और जब तक यह दुनिया है तब तक उनका नाम सदैव ही सर्वहारा वर्ग के महान शिक्षक के रूप में लिया जाएगा। जब कभी भी सर्वहारा वर्ग पूंजीवाद को परास्त कर कम्युनिज्म कायम करेगा, तब इन दोनों मित्रों का सपना सच में कायम होगा और यही उनका सर्वोच्च सम्मान भी होगा।

इन दोनों मित्रों का जन्म स्थान जर्मनी के राइन प्रदेश में था जो कोयला एवं धातुओं की प्रचुरता वाला प्रदेश था और इसलिए औद्योगिक और राजनीतिक दोनों दृष्टि से एक महत्वपूर्ण प्रदेश था, जहां पूंजीपति वर्ग सामंतवाद का कट्टर दुश्मन था लेकिन साथ में पूंजीपति वर्ग के संपूरक वर्ग सर्वहारा वर्ग भी काफी शक्तिशाली बन चुका था। जर्मनी एक क्रांति के द्वार पर खड़ा था जिसमें पूंजीपति वर्ग और मजदूर वर्ग दोनों अपने-अपने तरीके से तथा अपने वर्ग हितों के अनुरूप सामंतवाद के खिलाफ और जनवाद और जनतंत्र के लिए उठ खड़े हो रहे थे जिसकी एक चरम परिणति हम 1848 की हुई असफल क्रांति में देखते हैं जो दोनों वर्गों के लिए ही अनर्णित और अधुरी थी। इस तरह हम देखते हैं कि वे जब युवाकाल में प्रवेश कर रहे थे तब से ही सर्वहारा वर्ग को पूंजीपति वर्ग के समक्ष और जनवाद के लिए लड़ते एवं खड़ा होते वर्ग के रूप में देख रहे थे जिसके बाद में वे शिक्षक, सिद्धांतकार, रणनीतिकार व नेता भी बने। 

ठीक उसी समय जर्मनी में दर्शन शास्त्र के क्षेत्र में भी एक व्यापक क्रांति हो रही थी जिससे दोनों मित्र न सिर्फ प्रभावित थे बल्कि उसमें पूरी ताकत से कूद पड़े। इस क्रांति के शीर्ष पर हेगेल और उनका भाववादी दर्शन था जिसमें सिर के बल खड़ा (भाववाद के आधार पर खड़ा) वह हेगेलियन द्वंद्ववादी चिंतन पद्धति भी थी जिसे मार्क्स और एंगेल्स दोनों ने मिलकर पैरों के बल (भौतिकवाद के आधार पर) खड़ा करने का काम किया। इस तरह मार्क्स और एंगेल्स हेगेल के भाववादी झाड़-झंखाड़ से चौतरफा घिरे उस भव्य विशालकाय महल में से उस महान वैज्ञानिक विश्लेषण पद्धति को निकाल लाने का काम किया जो प्रकृति से लेकर मानव समाज के इतिहास तथा खासकर आधुनिक युग के पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को समझने एवं विश्लेषित करने की कुंजी थी जिसका उपयोग होते हम दोनों मित्रों की महान कृति ‘पूंजी’ में हर जगह देख सकते हैं। लेकिन इसे करने के लिए न सिर्फ हेगेल के दर्शन का बल्कि उनके युवा विरोधी बावेर बंधुओं के भाववाद से लेकर फायरबाख के भाववाद से सने भौतिकवाद तथा तमाम तरह के पुराने भौतिकवाद के अवैज्ञानिक रूपों व अवधारणाओं की भी कपालक्रिया करना जरूरी था। जब दोनों मित्रों के बीच पूर्ण सहमति के आधार पर सैद्धांतिक एकता स्थापित हुई तो यही वह सबसे पहला काम था जिसे दोनों ने मिलकर पूरी शिद्दत के साथ पूरा किया। 

दोनों मित्रों के बीच सैद्धांतिक एकता बॉयर बंधुओं को लेकर आई शुरूआती अड़चनों के बावजूद जल्द ही कायम हो गई, खासकर तब जब मार्क्स की पहली रूखी1 मुलाकात के बाद एंगेल्स इंगलैंड के मजदूर वर्ग की दशा पर लिखना शुरू किया। मार्क्स और एंगेल्स की पहली मुलाकात कोलोन स्थित राइनिशे साइटुंग अखबार के संपादकीय कार्यालय में होती है। जेल्डा के कोट्स लिखते हैं कि ‘यहां पर ही (राइनिशे साइटुंग अखबार के संपादकीय कार्यालय में) वह मार्क्स से पहली बार मिले। किंतु उनकी यह पहली मुलाकात बहुत ही रूखी थी। मार्क्स के विरुद्ध एंगेल्स को बॉयर (Bauer) बंधुओं ने प्रभावित किया था जिनसे उनके अभी तक घनिष्ठ संबंध थे किंतु मार्क्स तब तक बॉयर बंधुओं से झगड़ चुके थे और बर्लिन के दार्शनिकों की ”स्वतंत्र” विचारधारा से अपने संबंध अंतिम रूप से तोड़ लिए थे, जबकि एंगेल्स की निष्ठा उनके प्रति अब तक बनी हुई थी।’

हम पाते हैं कि बहुत कम उम्र से ही एंगेल्स की गहरी रूचि दर्शनशास्त्र के अतिरिक्त अर्थशास्त्र में भी थी। अपने पिता के व्यवसाय के संबंध में जब उन्हें मैनचेस्टर जाने का और इंगलैंड में 21 महीने बिताने का समय मिला तो उनके लिए इसके एक-एक दिन का उपयोग आर्थिक परिस्थितियों को समझने और इंगलैंड जैसी एक पूर्णत: विकसित पूंजीवादी व्यवस्था में मजदूर वर्ग की अत्यधिक विपन्न दशाओं, मालिकों एवं मजदूरों के आपस के संबंधों और श्रमजीवी वर्ग के आंदोलनों को करीब से देखने व समझने तथा उनकी जांच परख करने का एक ऐसा अवसर मिला जिसका सकारात्मक प्रभाव बाद में प्रकटत: मार्क्स के साथ पूर्ण सैद्धांतिक एकता और आजीवन अकाट्य मैत्री के रूप में दिखता है, और जिसका ही परिणाम यह हुआ कि मार्क्स और एंगेल्स दोनों ही अपना अलग-अलग अस्तित्व खो कर मार्क्स-एंगेल्स बन जाते हैं। उन दोनों की सैद्धांतिक एकता, जो व्यक्तिगत अभिन्न मैत्री में भी बदल जाती है, की इतिहास में और कोई दूसरी मिसाल नहीं है। हम पाते हैं कि एंगेल्स काल्पनिक ही सही लेकिन समाजवादी सर्वहारा आंदोलन में कूद पड़ते हैं। वे चार्टिस्ट आंदोलन में भाग लेते हैं। यही नहीं, वे रॉबर्ट ऑवेनवादियों के पत्र न्यू मॉरेल वर्ल्ड और चार्टिस्ट पत्र नॉर्दर्न स्टार से जुड़ जाते हैं।2 आगे चलकर वे इन सबसे सही निष्कर्ष निकालते हुए, अपनी दार्शनिक अंतदृष्टि और प्रखर प्रतिभा व ज्ञान के बल पर पूंजीवाद की आम प्रवृत्तियों के बरक्स सर्वहारा वर्ग की ऐतिहासिक जिम्मेवारी और उसके मानव समाज में पड़ने वाले युगांतरकारी प्रभावों, भविष्य और महत्वों को भी समझने में कामयाब होते हैं। ये वे दिन हैं जब मार्क्स और एंगेल्स सैंकड़ों मील दूर रहकर भी एक दूसरे के करीब पहुंचने लगते हैं। उन्होंने जब डोइट्श-फ्रांसुएसिशे यारब्यूखेर राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की आलोचना प्रकाशित की, तो मार्क्स ने इसे ”सच्ची प्रतिभा का रेखाचित्र” कहा था, क्योंकि इसमें एंगेल्स ने पूंजीवादी उत्पादन के तीव्र विकास के साथ-साथ उसके फलस्वरूप मानव समाज पर पड़ने वाले अमानवीय प्रभावों की एक साथ विवेचना की थी, यानी एंगेल्स यह देख पाने में सक्षम हो चुके थे कि पूंजीवादी विकास का एक अर्थ अंतत: मानव समाज का घोर पतन भी है। यही नहीं, मार्क्स ने यह माना था कि ”इसमें वैज्ञानिक समाजवाद के काफी फलदायी बीज सन्निहित थे” (वही, पेज – 16)। तब वे महज 22 वर्ष के थे और मजदूर वर्ग के जीवन की कठिनाइयों में से किसी एक से भी वे सीधे प्रभावित नहीं थे। 

सबसे प्रमुख बात यह थी कि वे इस बीच बॉयर बंधुओं के प्रति अपनी निष्ठा से भी मुक्त हो चुके थे, यानी हेगेलवादी दर्शन में जो कुछ भी सर्वोत्तम और क्रांतिकारी था (यानी द्वंद्ववाद) उसे उन्होंने अच्छी तरह समझ लिया था और मार्क्स की ही भांति उसकी वैज्ञानिक तरीके से कपालक्रिया करने को तैयार हो चुके थे। उनका उपरोक्त लेख इस बात का प्रमाण था कि ऐतिहासिक एवं आर्थिक विकास के रहस्यों को सुलझाने के लिए वह द्वंद्ववाद का अचूक कुंजी के रूप में उपयोग करने लगे थे। स्वाभाविक है कि दर्शन को लेकर मार्क्स और एंगेल्स के बीच जो भी मतभेद थे उसके तिरोहित होने का समय आ चुका था। इस समय की वास्तविकता यह थी कि एक यानी मार्क्स फ्रांस की क्रांति और दर्शनशास्त्र का अध्ययन कर रहे थे, तो बहुत दूरी पर रहते हुए दूसरा यानी एंगेल्स इंगलैंड की औद्योगिक दशाओं का अध्ययन कर रहे थे। लेकिन फिर भी दोनों एक ही सूत्र में बंधते जा रहे थे। यह सूत्र था इतिहास की भौतिक अवधारणा जो दोनों की लेखों में साफ-साफ दिख रही थी। इसलिए हम पाते हैं कि 1844 आते-आते वर्तमान पूंजीवादी समाज के चरित्र के बारे दोनों एक ही निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। हालांकि दर्शन के क्षेत्र में मार्क्स की समझ में आयी परिपक्वता स्पष्ट रूप से एंगेल्स की तुलना में अधिक थी और यह उन दोनों के लेखों या पांडुलिपियों में भी साफ-साफ देखा जा सकता है। 

डोइट्श-फ्रांसुएसिशे यारब्यूखेर में एंगेल्स के लेख के प्रकाशित होने के बाद ही हम पाते हैं कि दोनों के बीच पत्राचार की शुरूआत होती है। 1844 में इंगलैंड से जर्मनी वापस आते हुए एंगेल्स पेरिस सिर्फ इसलिए आते हैं कि मार्क्स से मुलाकात करनी है और सैद्धांतिक एकता की घोषणा करना है। मिलते ही दोनों ने जब यह देख लिया कि एकता वास्तविक है और उसका आधार वैज्ञानिक है तो दोनों ने तुरंत ही एक साथ मिलकर पवित्र परिवार3 लिखने की घोषणा कर दी। एंगेल्स ने इसके चंद पन्ने ही लिखे थे, किंतु मार्क्स ने उसे विस्तार देकर उसे पुस्तकाकार रूप दे दिया। पेजों की संख्या कई गुनी बढ़ गई थीं। एंगेल्स ने जब पुस्तक की एक प्रति स्वयं देखी तो वे चकित रह गए। लेकिन वे प्रसन्न थे कि मार्क्स ने इसका इतना अधिक विस्तार कर दिया और वह छप भी गया, अन्यथा उन्हें डर था कि ”कौन जानता है कि कब तक सामग्री इस मेज पर ही पड़ी रहती।” 

एंगेल्स और मार्क्स दोनों काफी सतर्क ही नहीं परिश्रमी लेखक थे और किसी लेख को पूरा करने के पहले वे सामग्री को पूरी तरह सभी कोणों से जांच-परख लेते थे लेकिन दोनों के संबंधों में एक वाकया आता है जब हम एंगेल्स को मार्क्स को किसी पुस्तक या लेख को अधिक पूर्ण बनाने के लोभ से बचने की सलाह देते पाते हैं। 1845 के जनवरी में मार्क्स को लिखे अपने पत्र में एंगेल्स लिखते हैं कि ”इस बात का ध्यान रखो कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर तुम अपना कार्य जल्द पूरा कर लो। यदि अपने अधिकांश कार्य से तुम स्वयं पूर्णत: संतुष्ट नहीं हो, तो भी कोई बात नहीं। समय पूरा हो चुका है और हमें अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। उपयुक्त समय आ गया है। ध्यान रखो कि अप्रैल तक तुम्हे तैयार हो जाना है। तुम वैसा ही करो जैसे मैं करता हूं, अपने लिए एक तिथि तय कर लो और तिथि तक अपना काम जरूर समाप्त कर लो और उसके शीघ्र मुद्रण का ख्याल रखो। उसका प्रकाशन तुरंत होना चाहिए।” 

यहां मार्क्स पुस्तक को सभी दृष्टियों से पूरी तरह संतुष्ट होने के आग्रही दिखते हैं, वहीं एंगेल्स काम को जल्द से जल्द पूरा करने के आग्रही। असल में यह कार्यशैली में अंतर को तो दिखाता है लेकिन मतभेद को नहीं। इसका अर्थ यह है कि दोनों ही काम की सभी तरीके से पूर्णता हासिल करने के पक्षधर थे, लेकिन यह अंतर किसी विशेष संदर्भ में प्रकट होता है। काम को जल्द से जल्द से पूरा कर लेने का एंगेल्स के आग्रह के पीछे यहां मुख्य रूप से क्रांति, जो पूरे यूरोप में फूट पड़ने वाली थी, की संन्निकटता में उनका विश्वास था।  

इंगलैंड के संबंध में अपने आर्थिक अनुसंधान के परिणामों को एंगेल्स पुस्तक के रूप में 1845 के ग्रीष्म में दुनिया के सामने लाते हैं – 1844 में इंगलैंड के श्रमजीवी वर्गों की दशा (‘कंडीशन ऑफ दि वर्किंग क्लासेज इन इंगलैंड इन 1844) इस पुस्तक ने न सिर्फ युवा एंगेल्स के प्रखर ज्ञान और प्रतिभावान लेखन शैली से दुनिया को परिचित कराया, अपितु यह भी साबित किया कि एंगेल्स पूंजीवादी उत्पादन पद्धति के मर्म और इसके प्रभुत्व वाले समाज में मौजूद विरोधाभासों को पूरी तरह समझ चुके थे और उसे व्यक्त करने में भी प्रखरता हासिल कर चुके थे। इसमें शुरू से लेकर अंत तक एंगेल्स की चिंतन पद्धति पूरी तरह वैज्ञानिक और/यानी ऐतिहासिक भौतिकवादी एवं द्वंद्ववादी है इसे कोई भी देख सकता है। 

इस पुस्तक में एंगेल्स यह दिखाने में सक्षम होते हैं कि पूंजीवाद का विकास किस तरह एक ध्रुव पर ऐश्वर्य और दूसरे ध्रुव पर दुखमय स्थितियां पैदा करता है जिनमें श्रमजीवियों को तथा जनता के अधिकांश हिस्से को अपना जीवन गुजारना पड़ता है। वे यह दिखाते हैं कि पूंजीवादी विकास की बढ़ती तीव्रता के साथ-साथ मजदूर वर्ग अलगाव में जाता है, हतोत्साहित होता है और कुल निचोड़ में उन्हें अमानवीय स्थितियों में धकेलते हुए स्वयं उन्हें भी अमानवीय बनाता है। एंगेल्स दिखाते हैं कि किस तरह पूंजीवाद ने, जिसका नारा बंधुत्व और स्वतंत्रता था, सिर्फ नाम के वास्ते उन्हें आजादी दी है और किस तरह वास्तव में उन्हें गुलामी के अंधेरे में धकेल दिेया है। वे बताते हैं कि मजदूर न सिर्फ अपने शरीर को अपितु अपनी आत्मा को भी पूंजीपतियों के हाथों बेचने पर मजबूर होते हैं। उन्होंने यह स्पष्टता के साथ दिखाया कि किस तरह मजदूर वर्ग पूंजीवादी व्यवस्था के अंतर्गत इस बात के लिए भी निश्चिंत नहीं रह पाता है कि उसकी साधारण से साधारण शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति भी हो पाएगी या नहीं।

यही नहीं, एंगेल्स मजदूरों की इन्हीं अत्यंत खराब दशाओं में ही आशा के अंकुर भी देख पाते हैं, खासकर तब जब मजदूर बड़े जन समूहों में संगठित होते हैं या बड़े जन समूहों के रूप में एक साथ काम करते हैं जिससे उनके बीच सामूहिक चेतना पैदा होती है या उसके पैदा होने की भौतिक रूप से संभावना दिखती है। वे भावी समाजवादी सर्वहारा आंदोलन की संभावना यहीं से देख पाते हैं और लिखते हैं कि स्वयं अपनी जीवन दशाओं से ही मजदूर वर्ग यह सोचने को विवश होगा कि उनकी दरिद्रता और भौतिक पतन से मुक्ति का एकमात्र रास्ता शोषक पूंजीपति वर्ग को उखाड़ फेंकना है और यही चीज उन्हें संगठित और एकताबद्ध होने की ऐतिहासिक प्रेरणा और शक्ति देगा। इस अर्थ में हम इस बात से सहमत हैं कि यह पुस्तक वैज्ञानिक समाजवाद की आधारशिला रखने वाली प्रथम कृति थी। यह सच है कि इसी पुस्तक से सर्वहारा आंदोलन में एंगेल्स की ऐतिहासिक भूमिका, जिसमें उनका सर्वहारा वर्ग का महान शिक्षक बनना भी शामिल है, की शुरुआत होती है। दर्शन के क्षेत्र में भी इसी पुस्तक के माध्यम से एंगेल्स अपने पिछले तमाम पूवाग्रहों, जर्मन दर्शन की निरर्थक पेचिदगियों, भाववादी आदर्शों, आदि से पूरी तरह से मुक्त करती है।  

इसके अतिरिक्त इस पुस्तक के माध्यम से एंगेल्स इंगलैंड के तत्कालीन मजदूर वर्ग आंदोलन के विभिन्न रूपों से भी दुनिया को परिचित कराते हैं, खासकर मजदूरों के ट्रेड यूनियन आंदोलन के महत्व, उसकी सार्थकता, और साथ ही साथ एक विशुद्ध आर्थिक आंदोलन के रूप में, अर्थात अर्थवादी अर्थ में मजदूर आंदोलन की सीमा एवं उसकी अपर्याप्तता को समझते और समझा पाते हैं। यही कारण है कि जब इंगलैंड में मजदूर वर्ग का चार्टिस्ट आंदोलन शुरू हुआ तो मार्क्स की भांति एंगेल्स भी इसे मजदूर वर्ग के एक ठोस राजनीतिक आंदोलन के रूप में, एक ऐसे आंदोलन के रूप में जिसके अंतर्गत मजदूर वर्ग पूंजीपति वर्ग से अपने लिए राजनीतिक शक्ति छीन लेने के लिए उठ खड़ा हुआ था, उसका स्वागत ही नहीं किया अपितु उसमें जी-जान से लग गए। जेल्डा के कोट्स के शब्दों में – ”एंगेल्स ने यह विचार रखा कि अगर समाजवाद को श्रमिक वर्ग के आंदोलन का एक सजीव हिस्सा बनना है तो उसे चार्टिस्टों की क्रांतिकारी भावना को अपनाना होगा।” लेकिन वहीं एंगेल्स यह भी मानते थे कि चार्टिस्टों को भी समाजवादियों की दूरदर्शिता अपनानी होगी।” उस दौर की कठिनाई यह थी कि जो समाजवादी थे वे दूरदर्शी तो थे लेकिन काल्पनिक समाजवादी थे, और इससे भी अधिक ज्यादातर पूंजीपति वर्ग से आए थे और इसीलिए उग्र प्रगतिकामी होने के बदले सुधारवादी, नैतिकतावादी, लोकोपकारी, बौद्धिक श्रेष्ठतावादी, अमूर्त आदर्शवादी और शांतिवादी थे, जो इस बात से तो दुखी थे कि मजदूरों का जीवन दुखों से भरा और नारकीय बना दिया गया है, लेकिन जो यह नहीं मानते थे कि दुनिया को ये ही दुखों का पहाड़ झेलते मजदूर बदलेंगे और ठीक उन्हीं औजारों से बदलेंगे जिन्हें पूंजीपति वर्ग ने पैदा किए हैं। इसलिए ऐसे समाजवादी न तो ऐतिहासिक विकास को स्वीकार करते थे और न ही मजदूर वर्ग द्वारा समाज के आमूलचूल परिवर्तन में इसकी भूमिका को, जिसे इन्हीं दीन-हीन मजदूरों के द्वारा एक दिन पूरा किया जाना है। वे महज लोकोपकार के माध्यम से या फिर नैतिक दबाव के जरिए ही अपने समाजवादी उसूलों को मूर्त रूप देने की इच्छा और आशा पाल रखी थी। मार्क्सवाद के जन्म के पूर्व की यही स्थिति थी, लेकिन एंगेल्स अपनी उपरोक्त पुस्तक में इसे पूरी शिद्दत से दिखाते हैं कि काल्पनिक समाजवादियों से आगे बढ़ना क्यों जरूरी है और इसे कैसे किया जा सकता है, खासकर तब जब एंगेल्स स्वयं यह मानते थे और उपरोक्त पुस्तक में उन्होंने इसे अभिव्यक्त भी किया था कि ”इंगलैंड क्रांति से बहुत दूर नहीं है।” इसे मार्क्सवाद विरोधियों ने एंगेल्स को गलत साबित करने के लिए हाथों-हाथ लिया, लेकिन क्या यह संभव नहीं है कि मजदूर आंदोलन के वेग (दिशा नहीं) की मात्रा को समझने में गलती हो, खासकर जब उसे निर्धारित करने वाले दूसरे कारकों की अनुपस्थिति हो? यह और ऐसी अन्य दूसरी भविष्यवाणियां जरूर गलत साबित हुईं लेकिन यह भी सत्य है कि अधिकांश अन्य भविष्यवाणियां सचमुच घटित हुईं। एंगेल्स गलतियों को जोशीली युवावस्था से जोड़ते हैं, लेकिन ऐसी गलतियां और उनकी संभावना किसी भी उम्र के वास्तविक जमीनी क्रांतिकारी के जीवन का अनैच्छिक लेकिन स्वाभाविक हिस्सा होती हैं। जेल्डा के कोट्स बिल्कुल ठीक कहते हैं – ”परिस्थितियां उनकी आशा के अनुरूप नहीं बदलीं। किंतु, समाज-विकास के भूत, वर्तमान और भावी क्रम के संबंध में उनका विश्लेषण आश्चर्यजनक रूप से उपयुक्त और सही साबित हुआ। ऐसा इसलिए हुआ कि उन्होंने अपने आप दिशा और लक्ष्य इतने स्पष्ट रूप में देख लिया था कि पार किये जाने वाले असली रास्तों की लंबाई उन्हें कम लगी। जैसा कि लांगे ने कहा है – ‘आम तौर पर हम चीज को अधिक साफ देख पाते हैं उसके बारे में कल्पना करते हैं कि वह, वास्तविक दूरी की तुलना में, वस्तुत: नजदीक है।” जाहिर है यह किसी भी सच्चे क्रांतिकारी के जीवन का स्वाभाविक हिस्सा है कि वह ऐसी गलती कर सकता है। यह ठोस परिस्थिति के ठोस मूल्यांकन का सवाल खड़ा करता है जो उस समय की, जबकि मार्क्सवाद का अभी जन्म भी नहीं हुआ था और मार्क्स–एंगेल्स की क्रांति की अवधारण को अभी ठोस होना बाकी था, की स्थिति में बहुत असामान्य बात नहीं है। लेनिन के वक्त में हम इस समस्या को परिपक्व रूप से हल होते देखते हैं (जिस पर विस्तार से बात करना इस लेख के इस भाग में संभव नहीं है) जिसका कतई यह मतलब नहीं है कि लेनिन किसी अलग पेड़ से फल खा रहे थे। पेड़ वही था जिसका नाम मार्क्स-एंगेल्स से जुड़ता है और लेनिन उसी पेड़ का विस्तार थे।  (अगले अंक में जारी)     

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  1. देखें जेल्डा के. कोट्स द्वारा लिखित ‘फ्रेडरिक एंगेल्स : जीवन और कार्य’ नामक पुस्तिका, पेज संख्या 15
  2. देखें जेल्डा के. कोट्स द्वारा लिखित ‘फ्रेडरिक एंगेल्स : जीवन और कार्य’ नामक पुस्तिका, पेज संख्या 15
  3. पूरा नाम था – दि होली फैमिली ऑर ए रिव्यू ऑफ दि क्रिटिकल थिंकिंग अगेंस्ट ब्रूनो बॉयर एंड हिज फॉलोवर्स