इंकलाबी मजदूर केंद्र का छठा सम्मेलन

October 19, 2022 0 By Yatharth

खुले सत्र में आईएफटीयू (सर्वहारा) की तरफ से लिखित वक्तव्य (3 अक्टूबर 2022)

आईएफटीयू (सर्वहारा)

साथियों, इमके अर्थात इंकलाबी मजदूर केंद्र का छठा सम्मेलन हो रहा है एवं इस अवसर पर हमें बिना सदेह उपस्थित हुए ही अपनी बात कहने का जो अवसर दिया गया है, हम इसके लिए अध्यक्ष मण्डल एवं इमके के वरिष्ठ साथियों के आभारी हैं और उनको दिल से धन्यवाद देते हैं। साथ ही साथ हम इंकलाबी मजदूर केंद्र के इस छठ्ठे सम्मेलन की सफलतापूर्वक संपन्न होने की कामना करते हुए उनका क्रांतिकारी अभिनंदन करते हैं।

साथियो! आज जब इमके का ये छठा सम्मेलन हो रहा है, और जैसा कि सम्मेलन के लिए तय किये गए मुख्य नारों से भी पता चलता है, हम सभी एक बहुत ही खतरनाक दौर से गुजर रहे हैं। यह एक ऐसा दौर है जो फासीवाद के उभार और सम्पूर्ण अंधेरगर्दी का दौर है। यह जनतंत्र के पूर्ण विघटन और सड़न का दौर है, पुराने पूंजीवादी जनतंत्र के जो कुछ भी ‘अच्छे’ दिन थे उसके लौटने की संभावना के पूरी तरह खत्म होने का दौर है। इसलिए मजदूर वर्ग के कंधों पर एक महान जिम्मेवारी आ खड़ी हुई है। वह सिर्फ यह नहीं है कि हमें फासीवाद का विरोध करना है या फासीवाद को खत्म करना है, बल्कि फासीवाद जिस जमीन से उभरता है उस जमीन को, यानी अद्दतन पूंजीवादी दौर, जिसमें जनतंत्र का विघटन अवश्यम्भावी बन गया है, उसको भी जड़मूल से कैसे नष्ट किया जाए, इस पर मजदूर वर्ग को विचार करना होगा, क्योंकि इसकी जिम्मेवारी मजदूर वर्ग एवं उसकी अगुआ ताकतों के कंधों पर ही है।

साथियो! जब हम फासीवाद के खिलाफ लड़ने की बात करते हैं, हम उदारीकरण, निजीकरण, साम्राज्यवादी वैश्वीकरण की नीतियों के विरोध की बात करते हैं, चार नए श्रम कोड और ठेका प्रथा का विरोध करते हैं, या स्थायी नियुक्ति और न्यूनतम मासिक मजदूरी की मांग करते हैं – तो ये सभी मांगें जायज हैं और इन पर आर-पार के संघर्ष की जरूरत भी है, क्योंकि इसी संघर्ष से आगे के संघर्ष का रास्ता प्रशस्त होगा, लेकिन ये उस दौर की मांगें हैं जब पूंजीवादी जनतंत्र तहस-नहस होने के कगार पर नहीं पहुंचा था, इसका विगलन अभी शुरू नहीं शुरू नहीं हुआ था और स्वयं पूंजीवाद के अंदर समय-समय पर तीव्र विकास के लक्षण मौजूद थे जिनकी वजह से हमारे पास जनतांत्रिक अधिकारों का न्यूनतम वातावरण मौजूद था जिसका उपयोग करते हुए मजदूरों को अपने जीवन के हालात में सुधार लाने हेतु फैक्टरियों एवं कारखानों में लड़ने के कुछ अवसर मौजूद रहते थे। इसके विपरीत, ये वो दौर है जब पूंजीवाद पूरी तरह आकंठ और आपादमस्तक कभी खत्म नहीं होने वाले संकट के दौर से गुजर रहा है, एक ऐसा संकट जो पुराने तमाम संकटों से भिन्न है, जो आम तौर पर पिछली सदी के सत्तर के दशक में शुरू हुआ माना जाता है और खास तौर पर देखें तो 2008 के संकट के बाद से और तेजी से गहराया। जहां तक भविष्य की बात है, तो संकट के कभी खत्म न होने के आसार के बारे में हम तो क्या, कम्युनिस्ट और मजदूर वर्ग के लोग तो क्या, खुद पूंजीवादी सिद्धांतकार भी कह रहे हैं। कहीं कोई ग्रोथ में उभार की कोई उम्मीद पूंजीवादी अर्थशास्त्रियों को नहीं दिख रही है। पूंजी निवेश में निरंतर गिरावट है। यदा-कदा जो उभार आते दिखते हैं, उनकी संख्या पहले की तुलना में कम है और उभार के काल में भी। मतलब कि संकट सदैव बना रह रहा है और आगे भी इसके बने रहने के संकेत हैं। ग्रोथ बस चंद दिनों का मेहमान होता है। द्वंद्ववादी अर्थ में हम कह सकते हैं कि संकट चिरस्थाई है और इसलिए मजदूर वर्ग पर हमला भी और बढ़ेगा। सत्ता में अलग-अलग पार्टियों, जिनका बुनियादी चरित्र अंबानी-अडानी की दुकान वाला ही है, को भेजने से इस हमले के रुकने, थमने या खत्म होने की आज कहीं कोई गुंजाइश या संभावना नहीं है।

इसका मतलब ये है कि बड़े एकाधिकारी और वित्तीय पूंजीपतियों के सुपर मुनाफे को सुरक्षित रखने के अतिरिक्त सरकार को मजदूर वर्ग ही नही, आम जनता के किसी भी हिस्से को देने के लिए कुछ नहीं है। आज के दौर के इजारेदार पूंजीवाद के पास देने के लिए कुछ भी नहीं है, सिवाए हमला करने के।

हमारे द्वारा कहे गए “आज के दौर के पूंजीवाद” का अर्थ साम्राज्यवाद एवं एकाधिकारी पूंजीवाद के वर्तमान दौर से ही है। इजारेदारियों के, और इजारेदारियों में भी अधिकतम ऊंचाइयों पर पहुंची एवं बड़ी से बड़ी वित्तीय इजारेदारियों के दौर में न केवल मजदूर वर्ग को देने के लिए कुछ नहीं है, अपितु दूसरे अंतर्वर्ती वर्गों, जिसमें किसान, आम दुकानदार, छोटे व्यापारी, निम्न पूंजीपति वर्ग और मध्य वर्ग का निचला हिस्सा शामिल हैं, को भी लाभान्वित करने या देने के लिए कुछ नहीं है। ये बीच के वो मध्यवर्ती वर्ग हैं जिनके ऊपर भी इजारेदार पूंजी के द्वारा की जा रही निर्मम मार की तलवार लटक रही है। हालांकि जो पूंजी इन अंतरवर्ती पूंजीवादी वर्गों के पास है, वह भी मजदूर वर्ग का शोषण करके, यानी मजदूरों के द्वारा पैदा किये गए अधिशेष की लूट का ही हिस्सा है, क्योंकि नई पूंजी एकमात्र मजदूर वर्ग द्वारा ही पैदा होती है और ये वर्ग मजदूर वर्ग से इतर के वर्ग हैं।

मजदूर वर्ग का तो ये हाल है कि नए-नए कानून बनाकर इसके खून का आखिरी कतरा भी चूस लेने की तैयारी है, इसे लद्दू जानवर से भी बदतर बना देने की हवस जोर मार रही है, जबकि मजदूर वर्ग ही वर्तमान विशाल मात्रा में जमा हुए और पुराने बेकार पड़े कुल सामाजिक धन व पूंजी का निर्माणकर्ता है। कुछ भी नहीं है जिसे मजदूर वर्ग के अलावा किसी और ने बनाया है (प्रकृति के अतिरिक्त)। आज की सुंदर चमकदार दुनिया और सभ्यता उसी की मिहनत का कमाल है।

आज पूरी मानवजाति खतरे में है। हम देख सकते हैं कि दुनिया में विश्वयुद्ध का नगाड़ा फिर से बजने लगा है जो नाभिकीय भी हो सकता है। चार से पांच दशकों के निरंतर संकट से बाहर निकलने का इजारेदार पूंजीपति को अभी यही एक रास्ता दिख रहा है। लेकिन इसका खामियाजा सबसे ज्यादा मजदूर वर्ग को ही भोगना पड़ेगा। ऐसे में आसन्न महाविनाश को देखते हुए युद्धों को जन्म देने वाले पूंजीवाद-साम्राज्यवाद से ही मुक्ति पाना मजदूर वर्ग का लक्ष्य होना चाहिये, जो एक ही साथ तात्कालिक है और दूरगामी भी। मजदूर वर्ग को इससे आंखें नहीं चुरानी चाहिये।

हम देख रहे हैं कि पूंजी निवेश के लिए कहीं कोई ज्यादा जगह नहीं बची है। जो बची है वह भी लगातार सिकुड़ती जा रही है। इसीलिए मजदूर वर्ग के श्रम की लूट से होने वाले लाभ या अधिशेष की मात्रा भी लगातार कम हो रही है और मुनाफा दर में और भी ज्यादा तथा सतत गिरावट और इसी के साथ मंदी का एक और नया दौर दिखाई दे रहा है। ध्यान देने वाली बात यह है कि इसने स्वाभाविक रूप से पूंजीपतियों के बीच वर्तमान ही नहीं, भूत काल में पैदा हुए अधिशेष, जो छोटे-बड़े तमाम पूंजीपतियों के पास है, की लूटमार के लिए एक बेहद ही कटु संघर्ष को जन्म दिया है। यह खुद पूंजीपति वर्ग के अलग-अलग हिस्सों के बीच जन्म ले रहा है/ या ले चुका है और निस्संदेह यह भी इजारेदार पूंजीपतियों के पक्ष में जाने वाला है और जा चुका है। आज के इजारेदार पूंजीवाद के दौर में जो इजारेदार पूंजीपति हैं, यानी जो इजारेदार वित्तीय महाप्रभु हैं, वो एक तरफ मजदूर वर्ग द्वारा पैदा किये नए अधिशेष को भी तरह-तरह के हथकंडों के बल पर ज्यादा से ज्यादा हड़प ले रहे हैं, और साथ ही साथ वित्तीय पूंजी के बाजारों में भी हेराफेरी कर के और सट्टेबाजी के द्वारा छोटी-मंझोली पूंजियों को भी अपने दखल में ले रही हैं तथा उनको निगलती जा रही हैं।

इसलिए यह एक ऐसा दौर है जिसमें सिर्फ मजदूर वर्ग के लिए संकट नहीं है। वो तो है ही। साथ ही साथ अन्य तमाम मेहनतकश वर्गों एवं दूसरे अंतर्वर्ती वर्गों के समक्ष भी अस्तित्व का संकट आ खड़ा हुआ है। वे पहले की तुलना में अत्यंत तीव्र गति से उजड़ रहे हैं। गौर फरमाने वाली बात यह है कि यह शायद ही कभी खत्म होने वाला संकट है। इसका मतलब यह है कि यह वह दौर है जब समग्र पूंजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध एक निर्णायक लड़ाई का दौर आ चुका है और इसका मुख्य जिम्मा ही नहीं एकमात्र जिम्मा उस मजदूर वर्ग के कंधे पर है, जो अन्य सभी वर्गों के विक्षोभ की अगुआई इस लक्ष्य के साथ कर सकता है जो शोषण और उत्पीड़न के पूर्ण खात्मे पर आधारित होगा। समाज का, इसलिये अन्य तमाम वर्गों का भविष्य भी इसी में है।

क्या इसका मतलब यह है कि हमें अर्थात मजदूर वर्ग को छोटी-मंझोली पूंजियों से साझा मोर्चा बनाना चाहिए? नहीं, कदापि नहीं। हालांकि विशेष परिस्थितियों में अस्थाई गठबंधन से हमेशा ही इनकार करना मुश्किल है। लेकिन क्या जो लड़ाई इजारेदार पूंजी और छोटी-मंझोली पूंजियों के बीच छिड़ी हुई है, उसका फायदा उठाते हुए मजदूर वर्ग को समाज के नेतृत्वकर्ता और भावी शासक वर्ग के तौर पर कैसे पेश किया जाए इस पर भी विचार नहीं किया जाना चाहिए? इसका जवाब है – हां, अवश्य करना चाहिये। इसके लिए जरूरी नारे पेश किए जाने जाहिए जो इस लक्ष्य से प्रेरित और इसकी ओर जाते हों। मजदूर वर्ग अगर इस पर विचार नहीं करता है तो वह सबसे अधिक और सुसंगत क्रांतिकारी वर्ग होने का दावा नहीं कर सकेगा। हम स्वयं उसकी अगुआ ताकत होने का दावा करने का नैतिक अधिकार खो देंगे, भले ही कागज पर नहीं लेकिन जमीनी तौर, खासकर वर्तमान काल में जब भारत ही नहीं पूरी दुनिया पूंजीवाद के संकट से सबसे अधिक जूझ रही है और आम जनता तबाही और बर्बादी से कराह रही है। इस गाढ़े वक्त का नहीं, तो फिर हम किस वक्त का इंतजार कर रहे थे, हमें इस पर विचार करना होगा। हम मानते हैं कि “मजदूर वर्ग ही तमाम पीड़ित-शोषित वर्गों का, और इसलिये समाज का भी, नेता है” इसे सीना ठोक कर कहने, और आजीविका और अधिकारों के लिए छिटपुट या सघन लड़ाइयां जहां भी चल रही हैं उन सभी लड़ाइयों का केंद्रीकरण करते हुए, यानी उन्हें एक लड़ी में पिरोते हुए मजदूर वर्ग सहित पूरी मानवजाति के पूंजीवाद से चल रहे मुक्ति-संघर्ष, जो पिछली की भी पिछली सदी से उबड़-खाबड़ रास्ते से होते चली आ रही है, को अंतिम मंजिल तक ले जाने का उद्घोष करने का आज सबसे उचित अवसर है।

मजदूर वर्ग पर, इसकी ही अगुआ ताकतों के द्वारा ही, यह ‘आरोप’ लगता रहता है कि मजदूर वर्ग संगठित तो नहीं ही है, वर्ग-चेतन भी नहीं है। यह एक सीमा तक सही भी है, क्योंकि अपने जीवन के हालातों को सुधारने के लिए जो तात्कालिक लड़ाई जरूरी है, उसके लिए भी वो पूरे तरीके से तैयार नहीं दिखता है, और वो अपने जीवन को फिलहाल “किसी भी संभव तरीके से”, यानी नारकीय जीवन स्थिति को चरम सीमा तक सहते हुए भी, चला लेने के उपायों में लगा हुआ रहता है। लेकिन पूंजी का सतत और भयंकर हमला, जो संकट के बदस्तूर जारी रहने की वजह से आगे और तेज होगा, स्वयं हमें मजदूर वर्ग के बीच मौजूद “ठहराव” वाली इस स्थिति से बाहर निकालने को आतुर है। हम तो बल्कि यह कहना चाहते हैं कि हमें, अर्थात अगुआ ताकतों को, एक सीमा से अधिक मजदूर वर्ग के सक्रिय नहीं होने के बारे में चिंतित होने की जरूरत नहीं है। इसके विपरीत, इसके बारे में अधिक चिंतित होने की जरूरत है, और इसलिए इस बाबत समय पूर्व ही विचार कर लेना जरूरी है, कि जब कभी मजदूर वर्गीय सरगर्मियों का विस्फोट होगा, तो क्या हमने उसके बरअक्स पूंजीवाद को हमेशा के लिए अजायबघर में विस्थापित कर देने की जरूरी तैयारियों के बारे में कुछ योजना सोच रखी है? मजदूर वर्ग की निष्क्रियता आर्थिक संकट के निरंतर बने रहने की वजह से निश्चय ही हमेशा कायम नहीं रहने वाली चीज है। वह जल्द ही दूर भी हो जाएगी। अगर हमें इस पर भरोसा नहीं है, तो फिर हमें अपने बारे में सोचना चाहिये, न कि मजदूर वर्ग की निष्क्रियता के बारे में।

हम जानते हैं, एक मात्र शोषण होने से ही, जनता पूर्ण बदलाव या उलट-पलट के लिए तैयार नहीं होती। अधिकतम शोषण के दौर में भी आम जनता पहले “किसी भी ढंग से जीने का” कोई उपाय या साधन खोजती है और जब कुछ नहीं बचता दिखता है, एकमात्र तभी उसके अंदर एक खास तरह की सरगर्मी या स्वतःस्फूर्त गति प्रकट होती है। इसमें निराशा के लिए भी जगह है, जो आत्महत्याओं के रूप में प्रकट होती है। या फिर कई तरह के विस्फोटों में प्रकट होती है। दोनों संभावनाएं साथ-साथ प्रकट होती हैं। लेकिन अंततः विस्फोट का होना लाजिमी है।

यहां पर मजदूर वर्ग और उसकी पार्टी की, उसकी अगुआ ताकतों की क्रांतिकारी भूमिका का सवाल तीखेपन से प्रकट होता है जो इस बात से सम्बंध रखता है कि मजदूर वर्ग की अगुआ ताकत निकट भविष्य में फूटने वाले विस्फोट, गुस्से तथा विक्षोभ के शीर्ष पर सवार होने के बारे में, स्वयंस्फूर्त सरगर्मियां, जो मजदूर वर्ग सहित विभिन्न वर्गों के बीच में भी प्रकट हो रही हैं, उनके शीर्ष पर सवार होने और फिर उस स्वयंस्फूर्ती को योजनाबद्ध तरीके से एक क्रांतिकारी दिशा में ले जाने, आदि के बारे में क्या सोचती है और वह इससे संबंधित किस तरह की तैयारियों में लिप्त है। जाहिर है, क्रांतिकारी ताकतें इसे इजारेदार पूंजी के खिलाफ और साथ ही साथ इजारेदार पूंजी जिस जमीन से पैदा लेती है यानी पूंजीवाद के पूरे सिस्टम और मशीनरी के खिलाफ इसे निर्देशित करना चाहेंगी। महज कुछ सुधारों के लिए नहीं, बल्कि मुकम्मल बदलाव के लिए और उलट-पलट के लिये। यही मजदूर वर्ग और उसकी अगुआ ताकतों की पार्टी की आज की मुख्य जिम्मेवारी है।

ये दौर अंधेरगर्दी का है, तो यह दौर इस घुप्प अंधेरे में से चिंगारियों के भी पैदा लेने का है, नई चमकदार किरणों के फूट पड़ने का भी है। और इसीलिए हम मानते हैं कि फासीवाद जहां एक ओर हमें निराशा में धकेलता है, “कोई उपाय नहीं है” की भावना से जनता को ओतप्रोत करता है, यानी अंधेरगर्दी सहने के लिए मजबूर करता है, वहीं पर हम यह भी जानते हैं कि वह बुनियादी परिवर्तनों की जमीन भी तैयार करता है और कर रहा है। इस दुनिया को बनाने वाला मजदूर वर्ग एक जिंदा कौम है। एक न एक दिन, और वह समय बहुत दूर भी नहीं है, जब वह अवश्य ही अपनी रक्षा में और मानवजाति के महाविनाश के विरुद्ध उठ खड़ा होगा। मजदूर वर्ग की जीत में ही मानवजाति के दुखों के हल की कुंजी निहित है।

जब संकट हद से पार हो जाता है तभी अन्य कारकों के संयोग से वह दौर आता है जब कुछ मिनटों में दशक घटित होते हैं। मजदूर वर्ग जो आज तैयार नहीं दिख रहा है, वो हो सकता है कि जल्दी ही बड़े कारनामे करने को तत्पर दिखने लगे। गहरे संकटकाल में कुछ भी हो सकता है! हमें चीजों को गति में देखने की जरूरत है।

इमके के छठे सम्मेलन के अवसर पर हम मजदूर वर्ग से यह आह्वान करना चाहते हैं कि उनका हद से ज्यादा शोषण, जैसा कि आजकल हो रहा है, जल्द ही हजारों नहीं लाखों चिंगारियों को हवा देगा। जो भी मजदूर आंदोलन में गम्भीरता से लगे हैं उन्हें पता है कि चिंगारियां इधर-उधर और टुकड़ों में फूटनी शुरू हो चुकी हैं। हालांकि यह ठीक है कि चिंगारियों में अभी तपिश कम है, और जंगल मे आग लगाए बिना ही बुझ जा रही हैं। लेकिन कल इन्ही चिंगारियों में इतनी तपिश होगी कि पूरे जंगल मे आग लगा सकती है।

हम उम्मीद करते हैं कि इस सम्मेलन में शामिल सभी साथी हमारी इस बात पर गौर फरमाएंगे और जो हम कहना चाहते हैं उसे समझने की कोशिश करेंगे। हमारा आह्वान है कि आज के अद्यतन दौर की मुख्य जिम्मेवारियों को ठीक से समझा जाये और मजदूर वर्ग को भी उससे लैस किया जाए। इस विशेष अर्थ में यह सम्मेलन जरूर सफल हो इसकी हम दिल से तथा विशेष कामना करते हैं। हम पूरे क्रांतिकारी मजदूर वर्गीय खेमे से यह उम्मीद करते हैं कि फासीवाद ने जो नई चुनौतियां पैदा की है, उन चुनौतियों में जो आशा की किरण है, जो नए समाज के पैदा लेने की संभावना की जमीन निर्मित हुई है, उसको ठीक-ठीक चिन्हित करते हुए आगे बढ़ें। पुरानी कहावत है कि कभी-कभी पूरा जंगल पार करने के बाद भी पेड़ नहीं दिखाई देते।

साथियों, अंत में, हमें इस बात की पक्की उम्मीद है कि हम सभी जरूर एक दिन “इन तैयारियों” को एक साथ पूरी करने में एकजुट होंगे और एक दूसरे का हाथ बटाएंगे। इन्ही शब्दों के साथ अपनी बात खत्म करते हुए एक बार फिर से हम सम्मेलन की पूर्ण सफलता की कामना करते हुए सभी प्रतिनिधि साथियों को क्रांतिकारी अभिनंदन पेश करते हैं।

केंद्रीय कमेटी,

इंडियन फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियंस

(सर्वहारा)