लेनिनग्राद – मौत के जबड़ों में जीत का संगीत

December 20, 2022 0 By Yatharth

फासीवाद के प्रतिरोध में कला की महान शक्ति

एम असीम

एक साल से भयानक नाजी घेराबंदी झेल रहे लेनिनग्राद में 9 अगस्त 1942 को दमित्री शोस्ताकोविच की 7वीं सिम्फनी का प्रदर्शन विश्व इतिहास की अतुलनीय अनोखी घटना थी। यह वही 9 अगस्त थी जिस तारीख को हिटलर ने पहले ही लेनिनग्राद पर विजय उत्सव मनाने का ऐलान किया हुआ था। मगर इस दिन लेनिनग्राद फिलहार्मोनिक ऑर्केस्ट्रा ने यह संगीत पेश किया। इसे पूरे शहर में लाउडस्पीकर पर और सोवियत संघ व दुनिया में रेडियो पर प्रसारित किया गया था। मनोवैज्ञानिक दबाव के तौर पर मोर्चे के जर्मन फौजियों को सुनाने के लिए भी उधर की ओर बड़े-बड़े लाउडस्पीकर लगाए गए थे। इस मौके पर शांति कायम रहे, इसके लिए संगीत शुरू होने के ठीक पहले सोवियत लाल फौज के तोपखाने ने ऑपरेशन स्क्वॉल चलाकर जर्मन मोर्चे पर भारी बमबारी करते हुए बहुत थोड़े समय में ही 3 हजार गोले दाग उसे चुप कर दिया था। आसमान में भी सोवियत युद्धक जहाज नजर रखे हुए थे। इस हालात में 78 मिनट के इस संगीत प्रदर्शन ने लेनिनग्राद शहर व सोवियत संघ ही नहीं, पूरी दुनिया को रोमांचित व झकझोर कर रख दिया था। उस दिन ही दुनिया ने यह समझ लिया था कि जो देश व जनता बमबारी, भूख व मौत के जबड़ों के बीच इस कठिन स्थिति में ऐसा महान संगीत प्रदर्शन आयोजित कर सकते हैं, उन्हें किसी हालात में पराजित नहीं किया जा सकता। इससे सारी दुनिया में यह संदेश गया कि नाजी लुटेरे हमलावर सोवियत संघ को कभी किसी हालत में भी जीत नहीं पाएंगे।

22 जून 1942 को सोवियत संघ पर नाजी आक्रमण के तुरंत बाद ही जर्मन व फिनलैंड की फौजों ने लेनिनग्राद पर हमला कर उसे घेर लिया था। लगभग चारों ओर से घिरे लेनिनग्राद को बाहर से मदद पहुंचाना भी नामुमकिन था। 900 दिन की इस घेराबंदी में लड़ाई ही नहीं, भूख व ठंड से भी भारी बर्बादी हुई व लगभग 6 लाख लोग मृत्यु का शिकार हुए। लेनिनग्राद कंजरवेटरी में पियानो वादक 35 वर्षीय शोस्ताकोविच व उनका परिवार खुद लेनिनग्राद में थे। शोस्ताकोविच उस वक्त स्वयंसेवी फायरमैन का काम कर रहे थे। उन्हें बमबारी के बीच इमारतों व छतों पर आग बुझाने का काम मिला था, जिसमें कई बार वे मौत के मुंह में जाते-जाते बचे थे। आग बुझाने के इस काम के दौरान जुलाई 1941 में ही उन्होंने इस सिम्फनी की रचना आरंभ कर दी थी और उनके कुछ दोस्तों ने इसके आरंभिक हिस्से बमवर्षा व आग बुझाने के काम के बीच टुकड़ों में ही सुने थे। “न तो बर्बर बमबारी, न जर्मन विमान, और न ही संकटग्रस्त शहर का तनाव पूर्ण वातावरण इसके प्रवाह को रोक सका,” उन्होंने बाद में याद किया, “इस पर मैंने जिस अति मानवीय तीव्रता के साथ काम किया वैसा मैं पहले कभी नहीं कर पाया था।” अक्तूबर में शोस्ताकोविच को परिवार सहित लेनिनग्राद से सुरक्षित निकाल पहले मॉस्को, फिर कुईबीशेव (समारा) ले जाया गया। वहीं दिसंबर में उन्होंने यह रचना पूरी की।

इस सिम्फनी का प्रीमियर 5 मार्च 1942 को बोलशोई थिएटर के ऑर्केस्ट्रा द्वारा समुईल समसूद के निर्देशन में कुईबीशेव में ही किया गया। साथ ही इस संगीत की माइक्रोफिल्म तैयार कर इरान व तुर्की के रास्ते ब्रिटेन व अमरीका में भी भेजी गई। सोवियत संघ पर नाजी हमले का एक वर्ष होने पर 22 जून को हेनरी वुड के निर्देशन में लंदन फिलहार्मोनिक ऑर्केस्ट्रा द्वारा इसकी प्रस्तुति को बीबीसी पर प्रसारित किया गया और 19 जुलाई को न्यूयॉर्क में आर्तुरो टॉसकानिनी के निर्देशन में इसकी प्रस्तुति एनबीसी पर प्रसारित हुई। इस प्रकार यह सिम्फनी लेनिनग्राद के पहले ही दुनिया के करोड़ों श्रोताओं तक पहुंच फासीवाद के खिलाफ संयुक्त प्रतिरोध का वैश्विक प्रतीक बन चुकी थी। तभी ‘टाइम’ पत्रिका ने इसे अपने मुखपृष्ठ पर जगह दी थी।

पर 9अगस्त को लेनिनग्राद में हुआ प्रदर्शन असाधारण, अभूतपूर्व व रोमांचकारी था। सातवीं सिम्फनी की कहानी संगीत के इतिहास में अत्यंत आश्चर्यजनक है। लेनिनग्राद में पहला पूर्ण प्रदर्शन अगस्त 1942 में एक अधभूखे ऑर्केस्ट्रा द्वारा दिया गया था, जिनकी क्षीण अवस्था का प्रतीक ड्रम वादक जाउदहत आयदरोव था, जिसे सचमुच मृतकों के बीच से बचाया गया था। आयदरोव को पहले लाश समझ लिया गया था, लेकिन हताश ऑर्केस्ट्रा कंडक्टर, कार्ल एलियासबर्ग सुनिश्चित करने के लिए खुद मुर्दाघर गए, और इस कथित शव को हिलते और सांस लेते हुए पाया। आयदरोव ने साइड ड्रम बजाते हुए सिम्फनी में सबसे अधिक मुश्किल भूमिकाओं में से एक निभाई थी।

2 अप्रैल 1942 को, लेनिनग्राद शहर के कला विभाग के बोरिस जागोर्स्की और याशा बाबुश्किन ने सिम्फनी के प्रदर्शन की तैयारी की घोषणा की। लेनिनग्राद की रक्षा में शामिल वरिष्ठ सोवियत राजनेता आंद्रेई जदानोव ने पूर्वाभ्यास की अनुमति देने और शहर के लिए मनोबल बढ़ाने के लिए संगीत प्रसारण रुकावटों को जल्दी से समाप्त कर दिया। सिम्फनी का प्रदर्शन “नागरिक ही नहीं सैन्य गर्व का मामला बन गया”। ऑर्केस्ट्रा के एक सदस्य के अनुसार, “लेनिनग्राद के अधिकारी लोगों को कुछ भावनात्मक संबल देना चाहते थे।” प्रचार के रूप में इसके संभावित महत्व के कारण इसे एक महत्वपूर्ण राजनीतिक कार्य माना गया था।

असल में लेनिनग्राद का कंसर्ट लेनिनग्राद रेडियो ऑर्केस्ट्रा के बचे-खुचे जीवित संगीतकारों द्वारा किया गया था। मूल 40 सदस्यीय लेनिनग्राद रेडियो ऑर्केस्ट्रा में से केवल 14 या 15 तब तक जीवित बच सके थे; अन्य लोग या तो भूखे मर गए थे या दुश्मन से लड़ाई में। शोस्ताकोविच की सिम्फनी के लिए 100 संगीतकारों के ऑर्केस्ट्रा की आवश्यकता थी। कंडक्टर एलियासबर्ग, जिनका “डिस्ट्रोफी” के लिए इलाज चल रहा था, उन संगीतकारों की तलाश करने के लिए घर-घर गए, जिन्होंने भुखमरी या कमजोरी के कारण ऑर्केस्ट्रा के अनुरोध का जवाब नहीं दिया था। फिर इनका साथ देने के लिए पूरे लेनिनग्राद व वहां के मोर्चे पर मौजूद फौजी टुकड़ियों में से सभी संगीतकारों को ढूंढ निकाला गया।

उस दौर में लेनिनग्राद में बाहर से रसद पहुंचाना लगभग असंभव था और वहां के निवासी 200 ग्राम प्रतिदिन के नाममात्र के राशन पर किसी तरह जिंदा थे। अधिकांश संगीतकार भुखमरी से पीड़ित थे, जिससे रिहर्सल करना मुश्किल हो गया था। ऑर्केस्ट्रा में बड़े ब्रास (पीतल) के बाजे व ड्रम बजाना अत्यंत मेहनत का कष्टसाध्य काम होता है। नतीजा यह था कि रिहर्सल के दौरान कमजोर व थके संगीतकार अक्सर गिर जाते थे और इसी बीच तीन की मौत भी हो गई थी। बाद में कलाकारों की मदद के लिए शहर के संगीत प्रेमी नागरिकों ने अपने राशन में से दान के रूप में अतिरिक्त भोजन एकत्र किया था। गर्म ईंटों से रिहर्सल की जगह को गर्म रखा जाता था। सभी कलाकारों के लिए 252 पृष्ठ की संगीत रचना की प्रतिलिपियां भी हाथ से ही तैयार की गईं थीं। तब तक सामूहिक अभ्यास के लिए अन्य पुरानी रचनाओं को बजाकर ही काम चलाया गया था।

मार्च 1942 में पहला पूर्वाभ्यास तीन घंटे का रखा गया था। लेकिन 15 मिनट के बाद ही इसे रोकना पड़ा क्योंकि उपस्थित 30संगीतकार अपने उपकरणों को बजाने के लिए बहुत कमजोर थे। बाबुश्किन की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि “पहला वायलिन (वादक) मर रहा है, ड्रम (वादक) काम के मध्य मर गया, फ्रेंच हॉर्न (वादक) मौत के कगार पर है…।” ऑर्केस्ट्रा अंतिम कंसर्ट से पहले 6 अगस्त को केवल एक बार ही सिम्फनी को पूरी तरह से बजा कर रिहर्सल करने में सक्षम हो पाया था।

9 अगस्त 1942 को ग्रैंड फिलहारमोनिया हॉल में कंसर्ट प्रस्तुत किया गया। यह वह दिन था जिसका हिटलर ने लेनिनग्राद के एस्टोरिया होटल में एक भव्य भोज के साथ शहर के पतन का जश्न मनाने के लिए पहले से ऐलान किया था। प्रदर्शन से पहले एलियासबर्ग द्वारा एक पूर्व-रिकॉर्डेड रेडियो संदेश प्रसारित हुआ था:

“कामरेड्स, हमारे शहर के सांस्कृतिक इतिहास में एक महान घटना होने वाली है। कुछ ही मिनटों में, आप पहली बार हमारे उत्कृष्ट साथी नागरिक दमित्री शोस्ताकोविच की सातवीं सिम्फनी सुनेंगे। उन्होंने इस महान रचना को शहर में उन दिनों के दौरान लिखा था जब दुश्मन पागलपन की हद तक जाकर लेनिनग्राद में प्रवेश करने की कोशिश कर रहा था। जब फासीवादी सूअर पूरे यूरोप पर बमबारी और गोलाबारी कर रहे थे, और यूरोप को लगा कि लेनिनग्राद के दिन खत्म हो गए हैं। लेकिन यह प्रदर्शन हमारे जज्बे, हौसले और लड़ने की तैयारी का गवाह है। जरूर सुनो, साथियों!”

कलाकारों की बेहद खराब शारीरिक स्थिति के बावजूद, यह संगीत कार्यक्रम अत्यधिक सफल रहा। पूरे एक घंटे तक तालियां बजती रहीं। संगीत के भावनात्मक प्रभाव के कारण कई दर्शकों की आंखों में आंसू थे। इसे “पीड़ित लेनिनग्राद की संगीतमय जीवनी” के रूप में देखा गया था। मनोवैज्ञानिक युद्ध की रणनीति में लाउडस्पीकरों ने पूरे शहर के साथ-साथ जर्मन सेना के लिए भी कंसर्ट को प्रसारित किया – “जर्मन मनोबल पर एक सामरिक चोट”। एक जर्मन सैनिक ने बाद में याद किया कि कैसे उनके स्क्वाड्रन ने “नायकों की सिम्फनी सुनी”। एलियासबर्ग बाद में उस दौरान लेनिनग्राद मोर्चे के कुछ जर्मनों से मिले, जिन्होंने उन्हें बताया कि इससे उन्हें विश्वास हो गया था कि वे शहर पर कभी कब्जा नहीं कर सकेंगे: “हम किस पर बमबारी कर रहे हैं? हम लेनिनग्राद को कभी नहीं जीत पाएंगे क्योंकि यहां के लोग निस्वार्थ हैं”।

लेनिनग्राद प्रीमियर को संगीत समीक्षकों द्वारा इसके मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक प्रभावों के कारण युद्ध के सबसे महत्वपूर्ण कलात्मक प्रदर्शनों में से एक माना गया था। कंसर्ट के ऑर्केस्ट्रा कंडक्टर एलियासबर्ग ने बाद में कहा था कि “उस क्षण में, पूरे शहर ने अपनी मानवीयता पुनः हासिल की और हमने उस विवेक रहित नाजी युद्ध मशीन पर विजय प्राप्त कर ली।” उस समय यह सिम्फनी पूरी दुनिया में नाजी प्रतिरोध में बहादुरी का प्रतीक बन गई थी। लेकिन बाद में शीत युद्ध की कम्युनिस्ट विरोधी नफरत के दौर में इसे उपेक्षित किया गया। यहां तक की 1980 के दशक में यह दुष्प्रचार भी चलाया गया कि सिम्फनी जर्मन नाजी हमले के खिलाफ नहीं स्तालिन व बोल्शेविक शासन के विरोध में थी!

लेकिन यह सिम्फनी आज भी फासीवाद विरोधी संघर्ष का एक बड़ा प्रतीक है और हाल के दशकों में दुनिया के बहुत से देशों में पूंजीवाद जिस तरह संकटग्रस्त हो व सड़कर फासीवाद को आगे बढ़ा रहा है, उसमें इसका महत्व कई गुना बढ़ गया है। खास तौर पर यह अन्याय, शोषण व उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष में कला की विशिष्ट भूमिका की द्योतक है और कला के लिए कला के पतित कुविचार पर घातक प्रहार करती है। खास तौर पर आज हमारे देश में जब फासिस्ट मुहिम आगे बढ़ रही है और बहुत से लेखक, कलाकार, साहित्यकार आदि जनता के साथ खड़े होकर अपनी भूमिका निभाने के बजाय पूंजीपतियों द्वारा आयोजित फेस्टिवलों, मेलों, आदि में जाकर उनकी लल्लो-चप्पो में लगे हैं तब लेनिनग्राद सिम्फनी के इस शानदार इतिहास को जानने का महत्व अत्यंत अधिक हो गया।