ब्राजील संसद पर फासीवादी हमला

January 24, 2023 0 By Yatharth

संसद में वर्ग सहयोग से नहीं, सड़कों पर वर्ग संघर्ष से ही हारेगा फासीवाद

सिद्धांत

दक्षिण अमेरिकी देश ब्राजील में 30 अक्टूबर 2022 को आम चुनाव संपन्न हुआ जिसमें घोर दक्षिणपंथी सत्तासीन राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो की हार हुई और सामाजिक-जनवादी नेता लूला दा सिल्वा ब्राजील के 39वें राष्ट्रपति घोषित हुए। एक भूतपूर्व मजदूर व ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता और वर्कर्स पार्टी के नेता लूला 2003 से 2010 तक भी ब्राजील के राष्ट्रपति रह चुके हैं। दोनों उम्मीदवारों के बीच का फासला बेहद छोटा था जिसमें लूला को कुल मतों का 50.9 % मिला और बोल्सोनारो को 49.1%। 1 जनवरी 2023 को लूला का शपथ ग्रहण संपन्न हुआ।

हालांकि इसके कुछ ही दिन बाद 8 जनवरी को बोल्सोनारो के समर्थकों ने संसद, राष्ट्रपति भवन व सुप्रीम कोर्ट पर धावा बोल दिया। करीब 5000 की हिंसक भीड़ ने लाठी डंडे लेकर ब्राजील की राजधानी ब्राजीलिया के ‘थ्री पावर्स प्लाजा’ पर चढ़ाई कर दी जहां राज्यसत्ता के तीनों अंगों के मुख्यालय हैं। मौजूद पुलिस बल से भिड़ते और बैरिकेड तोड़ते हुए भीड़ ने संसद में घुस कर तोड़फोड़ करना शुरू कर दिया। फिर राष्ट्रपति भवन एवं सुप्रीम कोर्ट में भी घुस कर तोड़फोड़ की गई। यहां तक कि पत्रकारों को भी निशाना बना कर उनपर हमले किए गए।

ज्ञातव्य है कि उस वक्त संसद सेशन में नहीं था और राष्ट्रपति लूला भी ब्राजीलिया से बाहर थे। अंततः भारी पुलिस तैनाती और दमन (लाठीचार्ज, आंसू गैस, गिरफ्तारियां आदि) के बाद भीड़ पर काबू पाया जा सका। घटना के पश्चात लूला ने 31 जनवरी तक ब्राजीलिया में आपातकाल सरीखे प्रावधान लागू कर दिए हैं।

हमले की पृष्ठभूमि और वारदात

बोल्सोनारो के समर्थकों द्वारा किया गया यह हमला कोई अचानक या स्वतःस्फूर्त रूप से हुई घटना नहीं बल्कि एक सुनियोजित हमला था जिसकी तैयारी उसके कार्यकाल के समय से ही चल रही थी। ज्ञातव्य है कि अमेरिका में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति चुनाव हार जाने के कुछ ही हफ्तों बाद 6 जनवरी 2021 को उसके हजारों समर्थकों द्वारा भी अमेरिकी संसद पर ऐसा ही हमला किया गया था। ब्राजील चुनाव से पहले बोल्सोनारो के कट्टर समर्थकों के बीच बोल्सोनारो के पराजित हो जाने पर वैसा ही एक हमला आयोजित करने पर विमर्श शुरू हो चुका था। मुद्दा भी बिलकुल वही था – चुनाव में धोखाधड़ी जिसके कारण ही बोल्सोनारो हारा और लूला को जान बूझ कर जिताया गया। बस अमेरिका में बोल्सोनारो की जगह ट्रम्प था और लूला की जगह पर जो बाइडेन। सोशल मीडिया पर भी सक्रिय रूप से प्रचार चलाया गया जिससे व्यापक जनता तक यह बात पहुंची।

30 अक्टूबर 2022 को मतगणना के परिणाम आने के बाद बोल्सोनारो के काडरों ने जमीन पर उतर कर सीधे सेना को सत्ता तख्तापलट करने का आह्वान करना शुरू किया। रियो डि जेनेरो, साओ पाउलो आदि बड़े छोटे शहरों के सैन्य स्थलों व कैम्पों, यहां तक की ब्राजीलिया में सेना मुख्यालय, के सामने इन्होंने अपने कैंप लगाकर तख्तापलट के लिए सेना को भड़काने हेतु लगातार प्रदर्शन शुरू कर दिए। 12 दिसंबर को एक प्रदर्शनकारी की गिरफ्तारी के खिलाफ कई बोल्सोनारो समर्थक फेडेरल पुलिस के ब्राजीलिया स्थित मुख्यालय में जबरन घुस गए और मारपीट व तोड़फोड़ करने के साथ पुलिस की गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया! संसद हमले के एक दिन बाद ही दो राज्यों, रोन्डोनिया व पराना जो बोल्सोनारो के गढ़ माने जाते हैं, में समर्थकों द्वारा तीन बिजली ट्रांसमिशन टावर गिरा दिए गए जिसमें से एक ब्राजील के सबसे बड़े हाइड्रोपावर प्लांट ‘इताइपू’ को देश के पॉवरग्रिड से जोड़ता था। परिणाम आते ही बोल्सोनारो की हार के खिलाफ ज्यादातर ट्रक ड्राइवरों ने हड़ताल की घोषणा कर दी और सभी राज्यों में हाईवे व सड़कों पर 321 बिंदु जाम कर दिए। पुलिस दमन के बाद ही 9 नवंबर को हड़ताल टूटी।

उपरोक्त तथ्य स्पष्ट कर देते हैं कि बोल्सोनारो के घोर-दक्षिणपंथी व फासीवादी विचार वाले कैडर बेहद अनुशासित व प्रभावी रूप से व्यापक जनता के बीच अपना प्रचार ले जा रहे हैं और एक हिस्से पर मजबूत पकड़ भी रखते हैं। संसद हमले के एक दिन पहले ही 100 से भी ज्यादा बसों में हजारों की भीड़ को ब्राजीलिया लाया गया था। बाद में ब्राजील के न्याय मंत्री ने खुलासा किया कि इन बसों की फंडिंग मुख्यतः ऐग्री-बिजनस (यानी कॉर्पोरेट कृषि क्षेत्र) के पूंजीपतियों द्वारा की गई थी। गौरतलब है कि ब्राजील के जीडीपी का 19%, रोजगार का 33% और निर्यात का 44% इसी ऐग्री-बिजनस क्षेत्र से आता है, यानी यह ब्राजील के शासक वर्ग का एक अहम हिस्सा है जिसका भारी समर्थन जायर बोल्सोनारो के पीछे है।

बोल्सोनारो के विगत 4 वर्षों के शासन के बाद यह देखने को मिला कि राज्यसत्ता के भी कई अंग बोल्सोनारो के प्रति झुकाव रखने लगे हैं। ब्राजील की सेना तक इसमें शामिल है। 30 अक्टूबर से शुरू हुए चुनाव परिणाम विरोधी प्रदर्शनों को तीनों सेनाओं के कई उच्च अधिकारियों का समर्थन मिला। 8 जनवरी की घटना में सेना की मिलिट्री पुलिस के प्रमुख की भी सक्रिय भूमिका पाई गई है। हिंसक प्रदर्शनकारियों पर मिलिट्री पुलिस को नर्म रवैया अख्तियार करते हुए देखा गया था। एक जगह तो मिलिट्री पुलिस प्रदर्शनकारियों के कैंप में साथ खाना खाते देखे गए! इसके अतिरिक्त, हाईवे पुलिस के बड़े हिस्से में भी बोल्सोनारो के प्रति झुकाव है। ट्रक ड्राइवरों की हड़ताल तोड़ने के सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद हाईवे पुलिस का ड्राइवरों के प्रति नर्म रवैया देखा गया। यहां तक कि संसद हमले के कार्यान्वयन में लूला द्वारा नियुक्त किए गए अधिकारी भी संलिप्त पाए गए।

विश्व भर में सामान परिस्थिति

उपरोक्त घटनाएं दिखाती हैं कि आज जो ब्राजील में हो रहा है वही अन्य देशों में भी हो रहा या होने वाला प्रतीत होता है, चाहे वह अमेरिका-यूरोप हों या एशियाई देश। दशकों से गहराता जा रहा विश्व पूंजीवादी संकट कई बड़े आर्थिक झटकों के बाद आज स्थाई प्रतीत होने वाले संकट में तब्दील हो चुका है जहां जनता को कोई भी प्रभावी आर्थिक राहत देने की जगह लगभग खत्म हो चुकी है। दशकों से “मध्यमार्गी” दक्षिणपंथी पार्टियों अथवा वामपंथी मुखौटा पहने पूंजीपक्षीय पार्टियों के शासन में मजदूर वर्ग पर सबसे पहले ही यानी इस संकट के शुरुआत से ही हमले शुरू कर दिए गए थे और जो राहत/अधिकार उसने लड़ कर हासिल किए थे उन्हें धीरे-धीरे ध्वस्त कर दिया गया। लेकिन अब संकट गहराने पर इसकी चपेट में आम मेहनतकश जनता और तमाम दरमियानी वर्ग भी आ चुके हैं जिनकी चीख-पुकार पूरी दुनिया में सुनाई दे रही है, जैसे भारत में एक वर्ष पहले ही ऐतिहासिक किसान आंदोलन में दिखा। इसके कारण मेहनतकश जनता के बीच इन “वामपंथी”, “मध्यमार्गी” व लिबरल पार्टियों से ही नहीं बल्कि एक हद तक पूरी व्यवस्था के प्रति ही गहरा अविश्वास पैदा हो रहा है। विश्व भर में शासक वर्गों द्वारा भी उनके घटते मुनाफे को बढ़ाने के लिए बेलगाम शोषण व पूंजी के केन्द्रीकरण की नीतियों को लागू कर पाने और किसी भी विरोध को कुचल पाने वाली घोर-दक्षिणपंथी, यहां तक कि फासीवादी, पार्टियों को प्रायोजित किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर, मजदूर वर्ग के शोषण व जनता के जीवन-जीविका के संकट की जड़ – पूंजीवादी व्यवस्था – को पलटने की ओर व्यापक जनता का नेतृत्व कर पाने वाली क्रांतिकारी पार्टी का आज पूरी दुनिया में ही अभाव है। ऐसी विकट परिस्थितियों में जनता किसी सकारात्मक बदलाव कि आस में इन फासीवादी व तानाशाह पार्टियों व नेताओं के खोखले वादों/नारों के पीछे रैली कर रही है।

ब्राजील में जनता के इसी अविश्वास और मोहभंग के कारण 2018 चुनाव में लूला की पार्टी को हार का सामना करना पड़ा और जायर बोल्सोनारो को राष्ट्रपति चुना गया था। हालांकि बोल्सोनारो के शासन काल में लागू हुई जनविरोधी नीतियां तथा कोविड महामारी में सरकारी कुशासन के कारण हुई 7 लाख मौतों के बाद इस समर्थन को धक्का पहुंचा है। परंतु व्यवस्था के प्रति अविश्वास आज भी जनता के बड़े हिस्से में मौजूद है जो इस चुनाव परिणाम में तो दिखता ही है जिसमें एक समय ब्राजील के लोकप्रियतम मजदूर नेता रहे लूला महज 1.8% वोट के फासले से ही जीत दर्ज कर पाए, लेकिन इस परिणाम के प्रति जनता के रवैये से यह ज्यादा स्पष्ट होता है। चुनाव परिणाम को चुनाव आयोग, सेना व सुप्रीम इलेक्टोरल कोर्ट द्वारा हरी झंडी दे देने के बाद भी जनता के बड़े हिस्से ने इसे अस्वीकार कर दिया।

फासीवादी खतरा और आगे का रास्ता

लूला और उनकी पार्टी के प्रति भी हमें कोई भ्रम नहीं रखना चाहिए। वह पूंजीपतियों की ही एक विश्वस्त पार्टी है जिसने मुनाफे के पहिए को बढ़ाते हुए आम जनता को यथासंभव कुछ आर्थिक राहत प्रदान करने का काम किया है। 2003-11 के बीच लूला द्वारा पेंशन नीति व फिस्कल नीति में किए गए सुधार इन्हीं पूंजीपक्षीय नीतियों के उदाहरण हैं। आज की बात करें तो लूला के नए उपराष्ट्रपति ने पद संभालते ही घोषणा कर दी है कि उनकी सरकार बोल्सोनारो द्वारा लागू किए गए श्रम कानूनों व पेंशन नीति में (जन-विरोधी) ‘सुधारों’ को नहीं बदलेगी, उल्टा वो इसी कड़ी में टैक्स नीति में भी कुछ बाजार-पक्षीय सुधार लाएगी। गौरतलब है कि लूला ने उपराष्ट्रपति के पद के लिए पूंजीपतियों की सबसे विश्वस्त पार्टी ‘पीएसडीबी’ के नेता जेरार्दो ऐल्कमिन को चुना है जिसने 2013 में सार्वजनिक यातायात किरायों में वृद्धि के खिलाफ चल रहे आंदोलन पर साओ पाउलो के राज्यपाल के रूप में बर्बर पुलिस दमन का आदेश दिया था। इसके अतिरिक्त लूला के कैबिनेट मंत्रियों में अन्य दक्षिणपंथी पार्टियों के साथ ‘ब्राजील यूनियन’ पार्टी के नेता भी शामिल हैं, जिसकी एक घटक पार्टी ने ही बोल्सोनारो को 2018 चुनाव में खड़ा किया था!

उथल-पथल के कई साल बीतने के बाद लूला की इस जीत से, उनके पुराने कार्यकाल के कारण, जनता के एक बड़े हिस्से में संकट के निवारण व राहत की नई उम्मीदें जरूर दुबारा जागी होंगी। लेकिन पूंजीवादी व्यवस्था की भीषण संकटग्रस्त स्थिति (खुद लूला के कदम) हमें बता रहे हैं कि उस कार्यकाल को दोहराने यानी वैसी आर्थिक राहत की नीतियां आज लागू करने का स्पेस खत्म हो चुका है। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि ब्राजील संसद पर इस फासीवादी हमले का विरोध न किया जाए। उल्टा, विरोध तक सीमित न होकर इसका मुंहतोड़ जवाब देना एक फौरी जरूरत है। लूला की वर्कर्स पार्टी की तरह पूंजीपति वर्ग से हाथ मिला वर्ग सहयोग की लाइन पर सभी संघर्षों को समाप्त कर चुनाव पर निर्भर हो जाने से बोल्सोनारो भले ही किसी तरह सत्ता से हट गया है, लेकिन फासीवादी ताकतें समाज में आज भी पकड़ बनाई हुई हैं और आगे फासीवादी तख्तापलट का खतरा और बढ़ ही गया है। इसका मतलब यही है कि एक तो जमीनी जुझारू संघर्ष के अभाव में फासीवाद की पकड़ और मजबूत होती जाएगी। दूसरी तरफ एक तथाकथित जनपक्षीय सरकार से दुबारा बनी उम्मीदों टूटने पर (जो कि तय है) पूरी व्यवस्था के प्रति जनता का अविश्वास एक गहरा मोहभंग का रूप ले लेगा जहां क्रांतिकारी विकल्प के अभाव में बोल्सोनारो से भी खतरनाक फासीवादी नेता के आगमन की जमीन उर्वर बन चुकी होगी।

पूरा विश्व आज इसी तरफ बढ़ रहा है। इसलिए ब्राजील ही नहीं पूरी दुनिया की आम आवाम के पास अब एकमात्र विकल्प मजदूर वर्ग के नेतृत्व का है जो आरपार के वर्ग संघर्ष के आधार पर अपने देश में संसद से लेकर सड़कों तक फासीवाद को हमेशा के लिए खदेड़ भगाए और सत्ता की बागडोर हाथ में लेकर मुनाफे के जुए से सभी वर्गों की मुक्ति हेतु एक नए शोषणविहीन समाज का निर्माण करे, जिसके बिना संकट से निवारण या मुक्ति तो क्या कोई टिकाऊ राहत भी आज संभव नहीं है।