आर्टिफिशल इंटेलीजेंस नहीं, मानवता को खतरा पूंजीवाद से है

May 25, 2023 0 By Yatharth

एम असीम

आर्टिफिशल इंटेलीजेंस (एआई) के हालिया उल्लेखनीय विकास ने एक ओर उत्साह तो दूसरी ओर आशंकाओं को जन्म दिया है। जहां इस तकनीक से उत्पादक शक्तियों के क्रांतिकारी विकास की संभावना नजर आ रही है तो वहीं एक बार फिर इसके खतरों को लेकर आशंका जताई जा रही है। यहां हम इन आशाओं व जोखिमों के मद्देनजर एआई की भौतिकवादी नजरिए से पड़ताल करते हुए इसके महत्व पर एक संक्षिप्त टिप्पणी करेंगे। एआई का मुख्य खतरा बताया जा रहा है कि यह अतिमानवीय बुद्धि है जो जल्द ही सचेतन बनकर इंसानों को पीछे छोड़ देगी। तब एआई आधारित मशीनें खुद स्वामी बनकर मनुष्यों को अपना गुलाम बना लेंगी। 28 मार्च को स्टीव वॉजनीयक व एलन मस्क सहित 2900 हस्ताक्षरों के साथ 6 महीने नए एआई का प्रशिक्षण रोक इसके लिए सुरक्षा उपाय तय करने की अपील इसी विचार से प्रेरित है।

दूसरी आशंका जताई जा रही है कि एआई बहुत से काम खत्म कर देगा। चैटजीपीटी आने के बाद हल्ला तेज हुआ है कि भविष्य में बहुत से काम एआई करेगा। असल में जैसे-जैसे छंटनी और बेरोजगारी के काले बादल वैश्विक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था पर मंडरा रहे हैं, वैसे-वैसे शासक वर्ग के बुद्धिजीवी यह समझाने में पूरी बौद्धिक ऊर्जा झोंक रहे हैं कि ऐसी गंभीर परिस्थिति के लिए रोबोट और एआई जैसी प्रौद्योगिकी जिम्मेदार हैं। गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट है कि उच्च वेतन व गैरशारीरिक श्रम वाले 30 करोड़ रोजगार समाप्त हो जाएंगे। उसके प्रधान अर्थशास्त्री जान हैटजिएस कहते हैं, “अमेरिका और यूरोप दोनों में व्यावसायिक कार्यों संबंधी डेटा से हम पाते हैं कि लगभग दो-तिहाई वर्तमान नौकरियां कुछ हद तक एआई स्वचालन के दायरे में हैं…। हमारे अनुमानों का विश्व स्तर पर विस्तार करने से जेनेरेटिव एआई 30 करोड़ पूर्णकालिक नौकरियों को ऑटोमेशन से खतरा पैदा कर सकता है।”[1]

सर्वप्रथम, चेतना क्या है?

सबसे पहले हम एआई के सचेतन और बुद्धिमान होने के प्रश्न को लेते हैं। इसके लिए हमें चेतना को समझना होगा। जैव विकास के दौरान ऐसे जीवों का आविर्भाव हुआ जो पिछले पैरों पर खड़े हो अपने हाथों को अन्य कामों में प्रयोग करने लगे। जीवित रहने के लिए प्रकृति से संघर्ष में इन्होंने सामूहिकता की आवश्यकता महसूस की। “हाथ के विकास के साथ, श्रम के साथ आरंभ होने वाली प्रकृति पर विजय ने प्रत्येक अग्रगति के साथ मानव के क्षितिज को व्यापक बनाया। मनुष्य को प्राकृतिक वस्तुओं के नए नए और अब तक अज्ञात गुणधर्मों का लगातार पता लगता जा रहा था। दूसरी ओर, श्रम के विकास ने पारस्परिक सहायता, सम्मिलित कार्यकलाप के उदाहरणों को बढ़ा कर और प्रत्येक व्यक्ति के लिए इस सम्मिलित कार्य कलाप की लाभप्रदता स्पष्ट कर के समाज के सदस्यों को एक दूसरे के निकटतर लाने में आवश्यक रूप से मदद दी। संक्षेप में, विकसित होते मानव उस बिंदु पर पहुंचे जहां उन्हें एक दूसरे से कुछ कहने की जरूरत महसूस होने लगी। इस वाक्-प्रेरणा से धीरे-धीरे पर निश्चित रूप से काया पलट हुआ, जिससे कि लगातार और भी विकसित मूर्च्छना पैदा हो, और मुख के प्रत्यंग एक-एक कर नयी-नयी संहित ध्वनियों का उच्चारण करना धीरे-धीरे सीखते गए। पशुओं के साथ तुलना करने से सिद्ध हो जाता है कि यह व्याख्या ही एकमात्र सही व्याख्या है कि श्रम से और श्रम के साथ भाषा की उत्पत्ति हुई।” (फ्रेडरिक एंगेल्स, ‘वानर के नर बनने में श्रम की भूमिका’)[2]

प्रकृति के साथ इस सामूहिक अन्योन्यक्रिया के जरिए ही श्रम करने वाले हाथों को नियंत्रित करने वाले अंग मस्तिष्क में प्रकृति के गुणधर्मों की अधिकाधिक समझ के प्रतिबिंबन, इसके अमूर्तिकरण व सामान्यीकरण के जरिए चेतना का विकास हुआ और इसको परस्पर संप्रेषित करने के लिए विचारों के वाहक के रूप में भाषा का विकास हुआ। भाषा के बिना चेतना, विचार और बुद्धि का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। जाहिर है चेतना विकास के क्रम में मानव शरीर के एक अंग – मस्तिष्क – द्वारा अर्जित विशिष्ट गुणधर्म है। मानव चेतना व विचार मानवीय जरूरतों को पूरा करने के लिए निर्देशित व्यावहारिक सामाजिक गतिविधि के आधार पर विकसित होते हैं। हम ऐसे विचार बनाते हैं जो चीजों के बीच परस्पर संबंधों को व्यक्त करते हैं, और विशेष रूप से, हम समझते हैं कि इन रिश्तों में क्या उपयोगी और महत्वपूर्ण है, क्योंकि दुनिया में जीवित रहने के लिए हमें इसे समझने की आवश्यकता है।

चेतना मानव मस्तिष्क से बाहर अस्तित्वमान कोई स्वतंत्र चीज नहीं जिसे एक बाह्य शक्ति के द्वारा कहीं ओर प्रत्यारोपित किया जा सकता है। मानव अपने श्रम की क्षमता बढ़ाने हेतु निर्मित औजारों के रूप में निर्मित किसी यंत्र में इस चेतना को आरोपित नहीं कर सकता। कंप्यूटर व उन्हें संचालित करने वाले सॉफ्टवेयर भी मानव क्षमता को बढ़ाने वाले यंत्र ही हैं। शरीर द्वारा दोहराई जाने वाली क्रियाओं को बाह्य ऊर्जा द्वारा प्रदान की गई गति के जरिए अधिक सटीकता व तीव्रता से निरंतर अथक स्वचालित ढंग से करने वाले औजार ही मशीनें हैं। मस्तिष्क की दोहराई जाने वाली क्रियाओं को भी बाह्य ऊर्जा द्वारा प्रदान की गई गति के जरिए अधिक सटीकता व तीव्रता से निरंतर अथक स्वचालित ढंग से करने वाले औजार ही वो मशीनें हैं जिन्हें कम्प्यूटिंग (हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर दोनों) मशीनें कहा जाता है। एआई इसका सर्वोन्नत रूप है।

एआई क्या है? क्या यह सचेतन बन सकती है?

एआई के सचेतन होने का डर चेतना संबंधी इस भ्रमपूर्ण विचार पर आधारित है कि कंप्यूटर और सोचने वाले व्यक्ति के बीच एकमात्र अंतर मानव मस्तिष्क के कंप्यूटर की तुलना में अधिक शक्तिशाली और परिष्कृत होने का ही है। अतः जैसे ही शक्तिशाली कंप्यूटर मानव मस्तिष्क की क्षमताओं से आगे निकल जाएंगे, वे सचेत बन जाएंगे। लेकिन एआई द्वारा सूचनाओं को संसाधित करने का तरीका मानव मस्तिष्क से भिन्न है। मनुष्य की तर्ज पर सोचने-विचारने की क्षमता सबसे उन्नत एआई में भी नहीं है। एआई विलक्षण स्तर की उच्च क्षमता वाला मगर बुद्धि का सिर्फ एक हिस्सा है – यह संदर्भ को समझे बिना या दिए गए कार्य के वास्तविक उद्देश्य को जाने बगैर निष्क्रिय रूप से डेटा एकत्र कर उसमें मौजूद पैटर्न्स (नमूने या सांचे) की पहचान करता है। लेकिन ये पैटर्न चीजों के अंतरसंबंधों व उनकी आवश्यकता की व्याख्या नहीं करते। एआई को कोई अंदाजा नहीं कि ये डेटा वास्तविक वस्तुओं का प्रतिनिधित्व करता है जो एक दूसरे से संबंधित हैं, जिनके वस्तुनिष्ठ गुण हैं। उसे पता नहीं होता कि डेटा में ये विशिष्ट पैटर्न क्यों मौजूद हैं या उनका क्या मतलब है।

एआई मशीन या डीप लर्निंग तकनीक आधारित ‘तंत्रिका (न्यूरल) नेटवर्क’ (तथाकथित क्योंकि यह मानव न्यूरॉन्स की कुछ ही विशेषताओं को प्रतिबिंबित करता है) करोड़ों-अरबों सूचनाओं वाले डेटासेट्स पर प्रशिक्षित किए जाते हैं। कुछ डेटा पहले से वर्गीकृत होते हैं, बाकी का यह  सांख्यिकीय संभाव्यता (कौन किसके साथ कितनी बार पाया जाता है) के आधार पर क्लस्टर बनाता है। इस प्रकार टोकन बनते हैं (चैटजीपीटी जैसे लार्ज लैंग्वेज मॉडल के संदर्भ में टोकन=शब्द या वाक्यांश)। चैटजीपीटी को जिस डेटासेट पर ट्रेनिंग दी गई उसमें 1 ट्रिलियन से अधिक टोकन हैं। सांख्यिकीय संभाव्यता के आधार पर इनमें कौन शब्द/वाक्यांश किसके पहले या बाद में कितनी बार जुड़ता है एआई पैटर्न तैयार करता है। इसके समक्ष जो सवाल रखा जाता है उसके आधार पर यह इन पैटर्न के आधार पर नए पैटर्न गढ़ता है और भाषाई जवाब उत्पन्न (generate) करता है। इसीलिए इसे जेनरेटिव एआई कहा जाता है। दरअसल इसका नाम है चैट करने वाला जेनरेटिव प्री-ट्रेन्ड ट्रांसफॉरमर – जवाब उत्पन्न करने वाला पूर्वप्रशिक्षित रूपांतरक। यह पैटर्न के अर्थ या संदर्भ नहीं मात्र सांख्यिकीय संभाव्यता के सिद्धांत पर भाषाई जवाब उत्पन्न करता है अतः गलतियां इसके लिए स्वाभाविक चीज हैं। इसकी प्रकृति की वजह से ही भाषा के बरक्स कोडिंग, गणित, प्राकृतिक विज्ञानों, आदि क्षेत्रों में गलतियों की संभावनाएं कम हो जाती हैं।[3]

पर इससे यह भी साफ हो जाता है कि इस नए आर्टिफिशल इंटेलीजेंस में न कुछ आर्टिफिशल है न इंटेलीजेंट (बुद्धिमान)। आर्टिफिशल या कृत्रिम इसलिए नहीं है क्योंकि यह कुछ भी सृजित नहीं कर रहा। यह सिर्फ मानवों – लेखकों, कलाकारों, वैज्ञानिकों, संगीतकारों, प्रोग्रामरों – द्वारा सृजित ज्ञान भंडार को मिक्स एंड मैच कर हमारे सामने प्रस्तुत कर रहा है। और इस मिक्स एंड मैच में इसे इसके संदर्भ और भावों का कोई बोध नहीं है। जहां तक इंटेलीजेंस का सवाल है यह शब्द यहां बुद्धि के अर्थ में नहीं जासूसी के अर्थ में आया है क्योंकि पैटर्न मैचिंग वाले एआई का प्रथम इस्तेमाल वहीं हुआ था – सैटेलाइट तस्वीरों के आधार पर पता लगाना समुद्र में किसका कौन जहाज कहां है, कहां कौन से हथियार तैनात हैं, वगैरह। विभिन्न घटनाओं के संबंध में इससे प्राप्त जानकारी के आधार पर युद्ध व विदेश नीति संबंधी बयान व खबरें आजकल हम खूब देख सकते हैं।[4]         

इसे एआई से चित्र या पाठ (text) उत्पन्न करने वाले ऐसे प्रश्न पूछकर आसानी से सिद्ध किया जा सकता है, जिनके लिए संपूर्ण व उसके भाग और उनके परस्पर संबंधों की समझ की आवश्यकता होती है। तंत्रिका विज्ञान के प्रोफेसर गैरी मार्कस, जो ‘एआई संशयवादी’ हैं, ने एआई से घोड़े की सवारी करने वाले अंतरिक्ष यात्री को चित्रित करने के लिए कहा, जो उसने अच्छे से किया। फिर इसे अंतरिक्ष यात्री की सवारी करने वाले घोड़े को चित्रित करने के लिए कहा, तो उसने घुड़सवार अंतरिक्ष यात्री की भी छवि बनाई। यह इन भागों के बीच के विभिन्न संबंधों को नहीं समझता है। इसके बजाय यह केवल उन शब्दों के आधार पर छवियों का निर्माण करता है जो इन शब्दों से जुड़ी होती हैं। उसे यह नहीं पता कि अंतरिक्ष यात्री क्या होता है, और उसके लिए घोड़े की सवारी करना बेतुका क्यों है (घोड़े के लिए अंतरिक्ष यात्री की सवारी करना तो दूर की बात है)। यही करने के लिए एक स्कूली बच्चे से भी कहें तो वह तुरंत इसकी विसंगति को समझ कर हंसेगा।

सच है कि नवीनतम एआई कुछ कार्यों में मनुष्यों से अधिक कुशल हैं। लेकिन गहराई से जांचने पर ये उपलब्धियां ठीक इस तथ्य का परिणाम हैं कि एआई सचेत नहीं है। गूगल के डीपमाइंड के जिस अल्फागो ने गो खेल में 2016 में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को हरा विजय हासिल की थी उसे इस स्तर तक पहुंचने में 3 करोड़ गेम के प्रशिक्षण की आवश्यकता पड़ी थी। यह किसी भी मनुष्य द्वारा अपने जीवनकाल में खेले जाने वाले गेम से कहीं अधिक है।”[5] कोई इंसान इतने सारे गेम कभी नहीं खेल सकता, सिर्फ इसलिए नहीं कि जीवनकाल सीमित है, बल्कि इसलिए कि वह बुद्धिमान व संवेदनशील है – हम ऊब जाएंगे, और हमें खाने, काम करने और लोगों से बात करने की जरूरत होगी। ये मशीनें ठीक इसीलिए इतनी शक्तिशाली हैं क्योंकि ये असंवेदनशील व अचेतन हैं। इन्हें चीजों का बार-बार परीक्षण करने एवं बड़ी मात्रा में पाठ पढ़ने के लिए तैयार किया जा सकता है, ताकि वे उपयोगी पैटर्न या काम करने के तरीके बता सकें। गो या शतरंज में हर चाल के मुकाबले वाली चाल की एक परफेक्ट सारणी बनाई जा सकती है। ऐसी सारणी में खरबों चालें होंगी जिन्हें कोई व्यक्ति नहीं पढ़ सकता। लेकिन अल्फागो प्रति सेकंड 63 हजार चालों का मूल्यांकन कर सकता है। जाहिर है कि उसकी बुद्धि नहीं, बिना रुके गणना की क्षमता ही मनुष्य की तुलना में बेहतर है। कोई व्यक्ति बिना रुके तेजी से हजार किलोमीटर नहीं चल सकता लेकिन मानव निर्मित कार चल सकती है। कार या एआई दोनों मनुष्य की कार्यक्षमता का विस्तार करते हैं, पर दोनों में से कोई सचेतन नहीं है।  

अवधारणाओं के बीच संबंध चेतना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन एआई इसकी समझ से पूर्णतः रहित है। एआई अवधारणाओं के संदर्भ में ‘सोचता’ नहीं है, बल्कि डेटासेट के विशिष्ट पैटर्न पहचानता है। यह ‘ओवरफिटिंग’ के रूप में जानी जाने वाली उस समस्या से ग्रस्त है, जो तब होता है जब एआई ने किसी विशेष कार्य को अपनी ‘समझ’ से पूरा किया हो, लेकिन उसमें इस समझ को किसी थोड़ा भी अलग चीज में स्थानांतरित करने की क्षमता नहीं है, जो मानवीय चिंतन का स्वाभाविक गुण है। एक एआई को वीडियो गेम खेलने के लिए प्रशिक्षित किया गया। इसे वह किसी भी इंसान से बेहतर करने में समर्थ था। लेकिन जब गेम के कुछ हिस्सों में केवल चंद पिक्सेल बदलकर फिर से डिजाइन किया गया तो एआई को बदले गेम पर पुनः प्रशिक्षित करना पड़ा। 2016 में अल्फागो की जीत की व्यापक घोषणा की गई थी, लेकिन इसकी एक कमजोरी सामने आने पर 2023 में एक शौकिया खिलाड़ी ने इसे चकमा देते हुए 15 में से 14 गेम में हरा दिया। एआई अपनी गलती नहीं सुधार पाया, क्योंकि यह चिंतन नहीं करता।

साफ है कि एआई सचेत है, या भविष्य में बन जाएगा, यह काल्पनिक बहस बस इस तथ्य को अस्पष्ट करती है कि जो वास्तव में विकसित किया जा रहा है वह मानव की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए एक उपकरण मात्र है। एआई कुछ क्षेत्रों में मनुष्यों की क्षमताओं से बेहतर है, यह अति-बुद्धिमत्ता का नहीं, इस बात का प्रमाण है कि यह एक अचेतन उपकरण है। मशीनों का काम ही कुछ कार्यों में इंसानों की तुलना में अधिक शक्तिशाली, अधिक सटीक, अधिक तेज होना है। अतः एआई का सचेत समझ से कोई लेना-देना नहीं है। यह मानवता पर शासन करने और उसका दमन करने की इच्छा रखने में सक्षम नहीं है। यह तो किसी चीज की इच्छा या भय से ही रहित है।

उत्पादक शक्तियों के विकास में एआई की क्रांतिकारी क्षमता

एआई का मुख्य गुण बड़े डेटासेट्स में उच्च सटीकता से पैटर्न पहचानना है। बड़ी मात्रा में जानकारी पर प्रशिक्षित किये जाने से उन्हें मौजूद पैटर्न की पहचान करने की वह क्षमता मिलती है, जो मनुष्य या तो कर नहीं सकते, या उन्हें समझने में बहुत लंबा समय लगेगा। एआई उत्कृष्टता से अत्यधिक उन्नत पैटर्न की पहचान और इन पैटर्नों के आधार पर संभावना/भविष्यवाणी करता है। उत्पादन को व्यवस्थित करने के अधिक कुशल तरीके खोजने के लिए इसे सभी प्रकार की गतिविधियों पर लागू किया जा सकता है।

गंभीर समस्याओं को हल करने की एआई प्रौद्योगिकी की क्षमता वास्तविक है। गूगल के  डीपमाइंड के प्रयोग से जटिल प्रोटीनों की संरचना, कार्य व व्यवहार को जानना आसान हो गया है। स्वच्छ ऊर्जा की विशाल मात्रा के उत्पादन हेतु सिद्धांत रूप से ज्ञात परमाणु संलयन (फ्यूजन) एक और बड़ी चीज है जिसमें एआई मदद कर रहा है। डीपमाइंड ने आंखों के उन छिपे जैविक पैटर्न की खोज में भी काम किया है जिनसे बाद में होने वाली दृष्टि संबंधी समस्या की संभावना का संकेत मिलता है। यह डॉक्टरों को प्रकट होने से पहले ही बीमारियों का इलाज करने में मदद देता है। इमारतों में ऊर्जा के उपयोग के पैटर्न का विश्लेषण कर संचालन के अधिक कुशल तरीके की खोज करके बड़ी मात्रा में ऊर्जा को बचाया जा सकता है। हवाई जहाज जैसी चीजों के डिजाइन को अधिक कुशल बनाया जा सकता है। यदि इसे अर्थव्यवस्था और सार्वजनिक सेवाओं के हर क्षेत्र में व्यवस्थित रूप से लागू किया गया, तो ऊर्जा की बचत में भारी वृद्धि की जा सकती है।[6]

जटिल पैटर्न पहचानने और जहां कुछ डेटा गायब है, वहां संभावना/भविष्यवाणी द्वारा मानव रचनात्मकता को विकसित करने की एआई की बहुत बड़ी क्षमता है। इसका एक उदाहरण स्वचालित अनुवाद है। किसी टेक्स्ट को यथोचित सटीक रूप से तुरंत अनुवाद कर सकते हैं क्योंकि एआई विभिन्न भाषाओं में शब्दों और वाक्यों के बीच सहसंबंधों की पहचान कर विश्वसनीय रूप से भविष्यवाणी करता है कि दूसरी भाषा में कौन से शब्द या वाक्य का मतलब वही है। यह तत्काल ऑडियो अनुवादों को संभव बना रहा है, ताकि ईयरफोन पहन किसी को विदेशी भाषा में बोलते हुए उसका लाइव अनुवाद सुना जा सके। माइक्रोसॉफ्ट ने पहले ही ऐसा उपकरण विकसित कर लिया है, जो दृष्टिहीन लोगों को एक ऐप द्वारा दुनिया के बारे जानने में सक्षम बनाता है। यदि आप कैमरे को किसी वस्तु की ओर इंगित करते हैं, तो वह उसका लेबल पढ़ सकता है। माना जाता है कि यह आपको बता सकता है कि आप अपने किन दोस्तों को देख रहे हैं और उनके चेहरे के भाव क्या हैं। यह दृष्टिहीन व्यक्तियों को आत्मनिर्भर होकर विभिन्न कार्य करने के लिए सक्षम कर देगा। डीपमाइंड पुरातत्वविदों को प्राचीन लेखन को समझने में मदद करने में सक्षम है जिसमें पाठ के कुछ हिस्से गायब थे या अन्य कारणों से समझ में नहीं आए थे।[7] जिस किसी चीज से संबंधित पर्याप्त डेटा के साथ एआई को प्रशिक्षण संभव है, छिपे हुए पैटर्न को उजागर करने के लिए एआई की शक्ति द्वारा उसके रहस्य को हल किया जा सकता है।

निस्संदेह मानव रचनात्मकता की सहायता करने के संदर्भ में चैटजीपीटी और डीएएलएल-ई द्वारा खोली गई संभावनाएं आकर्षक हैं। विजुअल डेटा की विशाल मात्रा और इंटरनेट पर उपलब्ध लिखित भाषा के आधार पर, ये एआई एक संकेत पर तुरंत नई छवियां बना सकते हैं। मानव रचनात्मकता की शक्ति को विकसित करने के लिए इन तकनीकों की क्षमता उल्लेखनीय है। उच्च गुणवत्ता वाली छवियां स्पष्ट रूप से उनके लिए बहुत मददगार हैं जिन्हें अवधारणा के प्रोटोटाइप या प्रमाण बनाने की आवश्यकता है। टेक्स्ट उत्पादक एआई जैसे चैटजीपीटी किसी को भी विभिन्न जरूरत हेतु सुसंगत टेक्स्ट तेजी से ड्राफ्ट करने में मदद कर सकता है। यह कोड लिखने में भी इतनी मदद कर सकता है कि यह उन के लिए भी संभव हो जाएगा जिनके पास कोडिंग का कोई प्रशिक्षण नहीं है। उन्हें बस प्राकृतिक भाषा में यह लिखना है कि वे अपनी वेबसाइट/सॉफ्टवेयर से क्या कराना चाहते हैं और यह कैसा दिखना चाहिए।

किंतु पूंजीवाद की बेड़ियों में जकड़ा एआई संकेंद्रण व असमानता बढ़ाएगा

एआई का वास्तविक महत्व क्या है? समाज पर इसका प्रभाव क्या होगा? इसके लिए हमें एआई के चरित्र के बजाय उस सामाजिक व्यवस्था के चरित्र को, उसके वर्ग विन्यास को, वर्गों के परस्पर संबंधों को, उस उत्पादन व वितरण प्रणाली को जानना होगा जिसमें इसका प्रयोग होना है – इसका मालिक कौन है? वह इसे किस मकसद से प्रयोग में लाता है? उस समाज के विभिन्न वर्गों के हितों पर इसका क्या प्रभाव होगा? यह इसके महत्व को समझने हेतु अहम सवाल हैं।

मार्क्स ने बताया कि इतिहास में हरेक नवीन सामाजिक व्यवस्था उत्पादक शक्तियों के विकास की राह प्रशस्त करती है। लेकिन एक निश्चित स्तर पर उत्पादक शक्तियां उत्पादन के उन संबंधों से आगे निकल जाती हैं जिनमें उन्हें काम करना होता है, और उत्पादन के ये संबंध विकास के लिए बेड़ियां बन जाते हैं। उत्पादन के पूंजीवादी तरीके ने सामंती समाज के स्तर से उत्पादक शक्तियों के अत्यधिक विकास को बढ़ावा दिया। लेकिन अब यह विकास के लिए बेड़ी बन गया है। यही कारण है कि नई तकनीकों के बावजूद निवेश और उत्पादकता वृद्धि बहुत कम हैं। एआई, और अन्य डिजिटल प्रौद्योगिकियां जैसे इंटरनेट, उत्पादन के उन साधनों का प्रतिनिधित्व करती हैं जो पूंजीवाद में यथोचित उपयोग के लिए ‘अति-उन्नत’ हैं – क्योंकि पूंजीवाद निजी लाभ हेतु उत्पादन की प्रणाली है। संभावित निवेश से लाभ नहीं कमाया जा सकता है, तो निवेश नहीं किया जाएगा। और मुनाफा सिर्फ मजदूरों की श्रम-शक्ति का दोहन कर इस श्रम के उत्पादों को बाजार में बेचकर ही कमाया जा सकता है।

उच्च स्तर पर स्वचालन कर इंटरनेट और एआई जैसी तकनीक इस प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगाती है। उदाहरण के लिए, इंटरनेट ने बड़ी मात्रा में जानकारी की प्रतिलिपि साझा करने को सक्षम किया, जिसमें बहुत कम श्रम लगता है। किसी फिल्म या गीत को अनगिनत लोगों के साथ साझा किया जा सकता है। अतः इंटरनेट ने संगीत और फिल्म उद्योगों के प्रमुख भागों में से एक – रिकॉर्डिंग की नकल और वितरण – को रातोंरात बेमानी बना दिया। इसने पूंजीवाद की इस शाखा के लिए बहुत बड़ी समस्या पेश की – जब कोई मुफ्त में एल्बम की प्रति प्राप्त कर सकता है तो लाभ कैसे कमाया जा सकता है? पूंजीपतियों ने ऑनलाइन ‘पीयर-टू-पीयर’ शेयरिंग को अपराध बना और स्ट्रीमिंग सेवाओं की स्थापना करके इस समस्या को हल करने का प्रयास किया है। इनका ‘अपनी’ सामग्री पर एकाधिकार है और दर्शकों/श्रोताओं को किराया भुगतान करना पड़ता है। कॉर्पोरेट मुनाफे की सुरक्षा के नजरिए से यह समाधान प्रभावी रहा है। लेकिन यह रचनात्मक कार्यों के उत्पादन और वितरण पर एक अतार्किक बंधन है, और हमें तकनीक की क्षमता का पूर्ण उपयोग करने से रोकता है।

मार्क्स ने बताया है कि मशीनरी पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में श्रम उत्पादकता को बढ़ाकर मालों के मूल्य को गिराती है।[8] एआई भी यही करता है। उदाहरणार्थ, प्रकाशनों हेतु लेखन और छवियों को एआई द्वारा निर्मित किया जा सकता है, और फिल्म लेखक प्लॉट हेतु विचारों का तेज मंथन कर सकते हैं, तो उनके काम का मूल्य बहुत कम हो जाएगा। अगर श्रमिकों को वस्तुओं के उत्पादन के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और कौशल को भी केवल टाइपिंग के संकेतों तक सीमित कर दिया जाए, तो उनकी श्रम-शक्ति का मूल्य भी बहुत कम हो जाएगा।

किंतु समाजवादी समाज में यह बुरी चीज नहीं होगी। कलाकार को एक पल की सूचना पर ‘कलाकृति’ का निर्माण करने के लिए एआई की शक्तियों का कोई डर नहीं होगा, क्योंकि कला का निजी संपत्ति के साथ रिश्ता टूट जाएगा। उसका उत्पादन लाभ या जीवनयापन के साधन के रूप में नहीं, स्वयं व समाज के लिए किया जाएगा। यह विचारों और प्रतिभाओं की वास्तविक अभिव्यक्ति तथा संवाद का एक तरीका होगा। अतः एआई से कोई खतरा नहीं होगा, बल्कि वे कलाकार के लिए सहायक उपकरण होंगे।

पूंजीवाद के तहत एआई सभी तकनीकों की ही तरह मानवता को मुक्त करने के बजाय एकाधिकार और असमानता की इसकी अंतर्निहित प्रवृत्ति को ही बढ़ावा देगा। चित्र, पाठ उत्पन्न करने और समस्याओं के हल हेतु सबसे अच्छा एआई विशाल पूंजी की वजह से सर्वश्रेष्ठ इंजीनियरों, सर्वश्रेष्ठ हार्डवेयर और सबसे बड़े डेटाबेस वाले गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसे इजारेदारों द्वारा ही विकसित किया जायेगा। वे लाभ कमाने के लिए अपने एकाधिकार का उपयोग करेंगे, और प्रौद्योगिकी का प्रयोग उत्पादन को तेज व सस्ता करने, श्रमिकों की छंटनी और वेतन कम करने के लिए किया जाएगा। इसका उपयोग पहले ही श्रम को गति देने अर्थात शोषण की दर बढ़ाने के जरिये के तौर पर किया जा रहा है। कैमरे और अन्य सेंसर सस्ते प्रभावी रूप से हजारों श्रमिकों की श्रम प्रक्रिया की निगरानी एवं उन्हें अनुशासित कर सकते हैं ताकि वे उतने ही वेतन पर अधिक उत्पादन कर सकें। अमेजन इसके लिए कुख्यात है।[9] स्वचालित निगरानी जैसे-जैसे उन्नत और सस्ती होती जाएगी, इसे पूरी अर्थव्यवस्था में लागू किया जाएगा। इससे श्रमिकों का तनाव और अलगाव बढ़ेगा।

एआई जैसी क्रांतिकारी तकनीक, जिसकी वास्तविक क्षमता उत्पादन को युक्तिसंगत बनाना और मानवता की रचनात्मक शक्तियों को बढ़ाना है, का उपयोग पूंजीवाद कामगार को और अधिक अनुशासित करने एवं श्रमिकों को बेकार बनाने के लिए करता है। इसलिए इसका प्रभाव अर्थव्यवस्था में स्थिरता और बहुतायत लाना नहीं होगा, बल्कि अधिक अनिश्चितता, विशाल कॉर्पोरेट के हाथों में अधिकाधिक शक्ति केंद्रित करने और असमानता को बढ़ाने के लिए होगा। अर्थव्यवस्था पर और अधिक एकाधिकार करके, मजदूरी को और भी कम करके, और पूंजी को कम हाथों में केंद्रित करके, पूंजीवाद के तहत एआई पूंजीवादी बाजार की अराजकता को और भी बढ़ा देगा।

आश्चर्य नहीं है कि मानवता के हित में अपनी अद्भुत क्षमता के बावजूद, एआई आशंका व भय पैदा कर रहा है। एआई का यह भय प्रौद्योगिकी नहीं, पूंजीवादी उत्पादन के अजीब अराजक विरोधाभासों को प्रकट करता है। पूंजीवाद के तहत, मानव विचार की उच्चतम उपलब्धियां, गरीबी और अज्ञानता की बुराइयों को खत्म करने की क्षमता वाली सबसे चमत्कारिक प्रौद्योगिकियां ही और अधिक गरीबी पैदा करती हैं। हम एक अवैयक्तिक, असंवेदनशील, कृत्रिम बुद्धि के गुलाम होने से डरते हैं, लेकिन हम पहले से ही पूंजीवादी बाजार की अवैयक्तिक, अंधी और अचेतन शक्तियों के अधीन हैं, जो असंवेदनशील तो हैं ही, बुद्धिमान या तर्कसंगत भी कतई नहीं है।

एआई – नियोजित समाजवादी अर्थव्यवस्था के लिए उपयुक्त तकनीक

पूंजीवादी शोषण को बढ़ाने के लिए एआई का उपयोग आपराधिक बर्बादी है। किंतु सामाजिक जरूरतों को पूरा करने के लिए एक जटिल अर्थव्यवस्था की योजना बनाने में एआई से बेहतर कार्य की शायद ही कोई कल्पना कर सकता है। सेंसर जैसी आधुनिक तकनीक के साथ, लॉजिस्टिक्स को स्वचालित करना संभव है, जैसा अमेजन ने दिखाया है। अपने विशाल गोदामों में अमेजन कुशलतापूर्वक एआई और रोबोट का उपयोग करता है कि किन वस्तुओं को कहां और कितनी मात्रा में ले जाना है। कोई कारण नहीं है कि अर्थव्यवस्था में समग्र रूप से सेंसर को एकीकृत नहीं किया जा सकता, जो वास्तविक समय में डेटा प्रदान करे कि क्या उत्पादन व उपभोग किया जा रहा है, किस अनुपात में, कहां, क्या आपूर्ति किया जाना है, कौन सा उपकरण टूटने का खतरा तथा मेंटेनेंस की आवश्यकता है। जर्मन सॉफ्टवेयर कंपनी SAP ने हाना नामक एआई एप्लिकेशन विकसित किया है। इसका उपयोग वॉलमार्ट जैसी कंपनियों द्वारा वास्तविक समय में डेटा का उपयोग करके सभी कार्यों को सामंजस्यपूर्ण ढंग से करने के लिए किया जाता है।

उपरोक्त डेटा के साथ एआई भविष्य के कॉऑर्डिनेशन समितियों द्वारा संचालित साम्यवादी समाज में अर्थव्यवस्था के लिए योजना तैयार करने में मददगार होगा। यह अंततः मानवता की सामूहिक जरूरतों को पूरा करने की दक्षता को अधिकतम करेगा, ताकि किसी को नौकरी के डर में या भूखा या बेघर न रहना पड़े। इससे फालतू निरर्थक कार्य की विशाल मात्रा को समाप्त कर कार्य सप्ताह को तेजी से छोटा किया जा सकेगा। शेष स्वतंत्र समय में नागरिक खुद और मानवता की चौतरफा समृद्धि  के लिए स्वेच्छा से ज्ञान-विज्ञान, कला, संगीत आदि के कार्य करेंगे। जाहिर है यह एआई समाज के सामूहिक निरीक्षण में उनकी सेवा का एक उपकरण होगा। अर्थव्यवस्था के पैटर्न में इसकी अंतर्दृष्टि और उत्पादन लागत को कम करने वास्ते सर्वश्रेष्ठ तरीके का सुझाव महत्वपूर्ण होगा। पूंजीवादी व्यवस्था की ज्यादतियों, लालच, अतार्किकता और अदूरदर्शिता को खत्म करने के लिए उत्पादन में सामंजस्य लाने की तकनीक हमारे हाथ में है। हम इसका उपयोग पूरी मानवता को अच्छी तरह से जीने के लिए जरूरी चीजें देने के लिए कर सकते हैं। यह अभावों और वर्गभेदों से मुक्त समाजवादी समाज के निर्माण को तेज और कम कष्टसाध्य बना देगा।

तकनीक की दुनिया में ‘अति-बुद्धिमान’ एआई के आसन्न आगमन की इस क्रांति का कई इसे ‘वामपंथी’ लोगों ने भी स्वागत किया है जिनके मुताबिक यह चमत्कारी तकनीक हमारी सभी समस्याओं को हल करने की क्षमता रखती है। उन्हें उम्मीद है कि नवीन प्रौद्योगिकी पूंजीवाद को उखाड़ फेंकने की आवश्यकता को भी ‘स्वचालित’ कर देगी, और इसकी मदद से हम ‘पूर्ण स्वचालित’ साम्यवाद में पहुंच सकेंगे।[10] लेकिन जब तक हम पूंजीवाद के अधीन हैं, प्रौद्योगिकी की विशाल क्षमता नहीं, पूंजीवाद ही निर्धारित करेगा कि एआई कैसे विकसित और प्रयुक्त किया जाता है। चुनांचे एआई और ऑटोमेशन द्वारा पूंजीवाद के शोषण और अराजकता से मुक्ति की भविष्यवाणी भ्रम है। एआई, चाहे कितना भी उन्नत हो, मानवता को पूंजीवाद से मुक्त करने का काम नहीं कर सकता है। एकमात्र शक्ति जो पूंजीवाद का मुकाबला कर सकती है, और जिसे ऐसा करने में रुचि है, वह है सर्वहारा वर्ग। केवल मजदूर वर्ग ही समाजवाद को प्राप्त करने में रुचि रखता है। जब हम अंततः पूंजीवाद को उखाड़ फेंकेंगे ताकि अर्थव्यवस्था को सचेत, तर्कसंगत नियोजन के अधीन कर सकें, तभी एआई और अन्य तकनीक मानव विकास के सबसे चमत्कारिक और सामान्य उपकरण के रूप में अपनी पूरी क्षमता तक फल-फूल सकते हैं।

क्या पूंजीवाद में बढ़ती  बेरोजगारी के लिए एआई व ऑटोमेशन जिम्मेदार हैं?

साफ है कि एआई, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, डेटा ड्रिवन डिसिजन मेकिंग, इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्टेशन जैसी तकनीकों में उत्पादन प्रक्रिया में बुनियादी रूपांतरण की संभावना निहित है। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में पुराने कौशल की जरूरत नहीं रह जाएगी। बहुत से पुराने रोजगार समाप्त होंगे। इसी आधार पर बड़ी संख्या में बेरोजगारी के लिए इन तकनीकों को जिम्मेदार बताया जा रहा है। लेकिन स्वचालन के खतरे का विचार उतना ही पुराना है जितना औद्योगिक क्रांति। मशीनीकृत उत्पादन के आगमन के बाद से मानवता ने जहां हमेशा कड़ी कमरतोड़ मेहनत से मुक्ति की क्षमता का सपना देखा है, वहीं मशीन द्वारा प्रतिस्थापित व बेकार बनाए जाने का विचार भी उतना ही पुराना है। दो सदी पहले यंत्रीकरण के आरंभिक दौर से ही मशीनों से बड़े पैमाने पर रोजगार समाप्त होने व श्रमिकों के बेरोजगार होने का यह हौव्वा खड़ा किया जाता रहा है। मशीनीकरण के डर की वजह से इसके विरोध का भी एक इतिहास रहा है। 1820 के दशक के ब्रिटेन में तो लुड्डाइट कहा जाने वाला एक आंदोलन ही चला जिसमें मजदूर कारखानों पर हमला कर मशीनों को तोड़ देते थे। भारत में भी कंप्यूटरीकरण के खिलाफ यूनियनों ने आंदोलन चलाया था।

एआई जैसी तकनीकें भी मशीनें ही हैं जो कुछ मानसिक क्रियाओं का स्वचालन करती हैं। अतः इनके संभावित प्रभाव का अध्ययन भी यंत्रीकरण के प्रभाव अनुसार ही करना चाहिए। क्या यंत्रीकरण का इतिहास यह सिद्ध करता है कि इसकी वजह से बेरोजगारी बढ़ी है? और अगर यंत्रीकरण व स्वचालन बेरोजगारी के लिए जिम्मेदार नहीं हैं तो फिर बढ़ती बेरोजगारी के लिए वास्तविक जिम्मेदार कारण क्या है? इतिहास बताता है कि यंत्रीकरण और स्वचालन के बावजूद उद्योगों में काम करने वाले श्रमिकों की जरूरत घटने के बजाय बढ़ती गई है और इस जरूरत को पूरा करने हेतु बहुत विशाल पैमाने पर आबादी ने ग्रामीण कृषि व दस्तकारी से शहरी औद्योगिक इलाकों में प्रवास किया है। दरअसल यह तो सही है कि ऑटोमेशन के बाद उतने ही उत्पादन या सेवा के लिए जरूरी श्रमिकों की कम संख्या की जरूरत होती है। लेकिन ध्यान देने की बात है – ‘उतने ही उत्पादन’ के लिए क्योंकि मशीनों और तकनीक का विकास न सिर्फ उत्पादन के नए क्षेत्र सृजित करता है बल्कि समाज की आवश्यकताओं में भी विस्तार करता है।

अतः सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उत्पादन के स्तर को बढ़ाने की जरूरत होती है। इससे पुराने रोजगार समाप्त हो नए रोजगार सृजित होते रहते हैं। कुल मिलाकर काम करने वालों की जरूरत घटती नहीं, बढ़ती ही जाती है। सवाल उठता है कि क्या सामाजिक जरूरतों की वस्तुओं/सेवाओं का उत्पादन इतना बढ़ चुका है कि उनकी उपलब्धता इस स्तर तक पहुंच चुकी है कि अब उत्पादन के विस्तार की कोई आवश्यकता नहीं बची है? यह भी देखना होगा कि क्या कामगारों पर काम का बोझ इतना कम हो चुका है कि वे फालतू हो चुके हैं? अगर उपरोक्त दोनों शर्तें पूरी होती हैं तब तो जरूर एआई एवं अन्य उन्नत तकनीकों के आने से मौजूदा उत्पादन के लिए जितनी श्रम शक्ति सरप्लस हो जाएगी उसके लिए कोई अन्य रोजगार उपलब्ध नहीं होगा। क्या कोई मानेगा कि यह शर्तें पूरी हो चुकी हैं?

यंत्रीकरण के अर्थव्यवस्था पर प्रभाव के दो उदाहरण लेते हैं। कंप्यूटरीकरण से बड़े पैमाने पर बेरोजगारी की आशंका थी। लेकिन इसकी वजह से ही इनफॉर्मेशन टेक्नॉलजी का विशाल उद्योग स्थापित हुआ जिसमें आज बहुत बड़ी तादाद में रोजगार उपलब्ध हैं। 30-40 साल पहले घरेलू उपयोग वाले फुटकर बर्फ की बिक्री एक बड़ा काम था। लगभग हर गली में इसकी दुकानें थीं। बहुत से श्रमिक इसके कारखानों और ढुलाई में लगे थे। घरेलू उपभोग का बर्फ बनाने का काम स्वचालित हो गया तो ये काम खत्म हो गए। लेकिन स्वचालित होते ही यह स्वतंत्र उद्योग न रह फ्रीजर व रेफरीजरेटर के नए उद्योग का अंग बन गया। इसने नए रोजगार पैदा किए। बड़ी तादाद में ऐसे उद्योग आज मौजूद हैं जो आधी सदी पहले नहीं थे। यंत्रीकरण से पुराने काम खत्म हुए, लेकिन नूतन उद्योगों में सृजित रोजगारों ने उनकी जगह ली और श्रमिकों की कुल तादाद घटने के बजाय बढ़ती गई है। 

दरअसल पूंजीवादी उत्पादन संबंधों में मुनाफे का एकमात्र स्रोत श्रमशक्ति द्वारा उत्पादित अधिशेष मूल्य या सरप्लस वैल्यू का हस्तगत किया जाना है। अगर कोई उद्योग पूर्णतः स्वचालित हो तो उसमें सरप्लस वैल्यू व मुनाफा हो ही नहीं सकता। अतः पूर्णतः स्वचालित उद्योग का अस्तित्व ही पूंजीवाद में नामुमकिन है। बल्कि पूंजीवाद का इतिहास ही निरंतर ऐसे उद्योगों का आरंभ है जिनमें श्रम की आवश्यकता अधिक होती है और पूंजी का जैविक संघटन तुलनात्मक रूप से कम होता है। इन उद्योगों में मुनाफे की दर अधिक होती है। ऐसे उद्योगों का आविर्भाव पूंजीवादी व्यवस्था में मुनाफे की औसत दर के गिरने पर रोक का काम करता है।  

यह कमजोर ‘तर्क’ है कि ऑटोमेशन और तकनीक की वजह से काम कम होने से रोजगार खत्म हो गए। यह पूंजीपतियों के शोषण पर पर्दा डालने वालों का कुतर्क है। उन्नत तकनीक की वजह से काम ही नहीं बचा है तो उद्योग, दफ्तर, दुकान, बैंकिंग, आईटी, स्कूल-कॉलेज – हर सेक्टर में काम के घंटे बढ़ा कर 10-12 तक कैसे पहुंच गए हैं? 8 घंटे के बजाय 12 घंटे के कार्य दिवस को कानूनी करने की कोशिश क्यों की जा रही है? भोजन और शौचालय तक के ब्रेक में कटौती क्यों की जा रही है? हर तरह से मजदूरों को काम की गति तेज करने के लिए विवश क्यों किया जा रहा है? हर जगह ऑटोमेशन के बाद काम कम और आसान होने के बजाय काम की गति, दबाव व घंटे बढ़ क्यों रहे हैं? असल में यंत्रीकरण से काम खत्म हो जाने का डर फैला कर भी उन्हें कम मजदूरी पर अधिक घंटे और अधिक तेजी से काम करने के लिए विवश किया जा रहा है।

शासक वर्ग के मीडिया व बुद्धिजीवियों की बात मानी जाए तो काम मशीन करती है। किंतु वास्तविकता है कि 19वीं सदी से शुरू हुए श्रमिक संघर्षों ने 8 घंटे काम, 8 घंटे आराम, 8 घंटे मनोरंजन के जिस सिद्धांत को स्थापित किया था, उसके विपरीत आज अधिकांश कामगार इससे बहुत ज्यादा 12-14 घंटे तक भी काम करने के लिए मजबूर हैं। खुद को मजदूर न मानने वाले सफेद कॉलर वाले बैंक, आईटी, प्रबंधन, आदि वाले तो सबसे ज्यादा घंटे काम करने के लिए विवश हैं! तकनीकी रूप से अत्यंत उन्नत व विकसित माने जाने वाले दक्षिण कोरिया जैसे देश में तो 69 घंटे के कार्य सप्ताह का कानून प्रस्तावित है। फिर श्रमिक फालतू कैसे हो गए, जैसा कि कहा जा रहा है कि आगे काम ही नहीं रहेगा?

अतः उन्नत तकनीक व मशीनीकरण के यथार्थ के एक ही पहलू पर जोर देते समय अक्सर यह सच्चाई पर्दे के पीछे छिपा दी जाती है कि ऐसा केवल पूंजीवादी उत्पादन संबंधों के तहत होता है कि ऑटोमेशन की वजह से लोगों की आजीविका खतरे में पड़ जाती है। इसलिए ऑटोमेशन पर दोष मढ़ने की बजाय हमारे निशाने पर पूंजीवादी व्यवस्था होनी चाहिए। पूंजीवाद के न होने की परिस्थिति में रोबोटिक्स और आर्टिफिशल इंटेलीजेंस के क्षेत्र में हुई तकनीकी प्रगति से काम के घंटे कम हो जाएंगे और लोगों का जीवन और उनकी आजीविका कठिन होने की बजाय पहले से सुगम हो जाएंगे।

वास्तव में देखें तो अनाज, दाल, फल-सब्जी, दूध, मांस, आदि खाद्य पदार्थों से लेकर वस्त्र, जूते, आवास, रोजमर्रा के जरूरी सामान हों या सफाई, पानी, बिजली, सिंचाई, यातायात से लेकर स्कूल-कॉलेज, अस्पताल, अन्य सांस्कृतिक आवश्यकतायें हों, आज मुश्किल से 10% ही अपनी आवश्यकता पूरी कर पाते हैं। अगर सभी नागरिकों की जरूरतें पूरा करने की योजना बनाई जाये तो उत्पादन/सेवाओं के प्रचंड विस्तार के लिए श्रमिकों की कमी पड़ेगी। तब सभी स्त्री-पुरुषों के लिए श्रम करना अनिवार्य कर देने के बाद भी जरूरत पूरी नहीं होगी। तब जरूरत होगी कि तकनीक का और भी विकास तथा ऑटोमेशन किया जाये। सड़क पर कोई इंसान झाड़ू क्यों लगाता रहे, मशीन क्यों नहीं जो जल्दी से सफाई कर सके? ऐसे कामों हेतु जाति जैसी निकृष्ट अमानवीय व्यवस्था क्यों अस्तित्व में रहे? खेत, खान में आदमी पशुवत दिन-रात क्यों खटता रहे? उसके लिए इतना यंत्रीकरण क्यों न किया जाये ताकि सभी स्त्री-पुरुष सब बिना कमरतोड़ मेहनत के इन कामों की जिम्मेदारी संभाल सकें।

अतः न सिर्फ पर्याप्त काम है बल्कि उसके विस्तार की अपार सम्भावनायें भी हैं। बाधा है वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में पूरे समाज के सामूहिक श्रम से पैदा इन उत्पादन के साधनों पर कुछ लोगों का स्वामित्व और बाकी के लिए उन्हें अपनी श्रमशक्ति बेचने की विवशता। श्रमशक्ति से उत्पादित मूल्य का चुरा लिया गया हिस्सा ही उनका मुनाफा है जिसको एकत्र कर ये पूंजी के मालिक बने हैं। जितनी कम श्रम शक्ति का उपयोग कर ये उत्पादन कर सकें, उतना ही अधिक मुनाफा इन्हें नजर आता है। लेकिन यह उत्पादन बिके कहां? श्रमिकों की क्रय शक्ति कम है। जरूरत होते हुए भी वे खरीद नहीं सकते। खुद पूंजीपतियों के लिए पहले ही चारों ओर सरप्लस अंबार लगा है, वे खाते-खाते अफरा रहे हैं। इसलिए ‘अति-उत्पादन’ की स्थिति है। उद्योग 60-70% क्षमता पर चल रहे हैं। नया निवेश हो नहीं रहा है। इस व्यवस्था में मुनाफे के लिए उत्पादन बढ़ाना नहीं बल्कि कम श्रमिकों से कराना मुख्य मकसद बन गया है। इसलिए ऑटोमेशन का नतीजा छंटनी और बेरोजगारी होता है, इसलिए नहीं कि काम की कमी है।

यही आज के समाज का मूल अंतर्विरोध है जिसका समाधान सरकार द्वारा दी गई न्यूनतम आय वाली खैरात नहीं, उत्पादन के समस्त साधनों पर समाज का सामूहिक स्वामित्व है। इससे समाज के सभी सदस्यों की बुनियादी जरूरतों की पूर्ति के लिए उत्पादन की योजना बनाने से न सिर्फ चाहने वालों हेतु रोजगार होगा, बल्कि सबके लिए काम करना अनिवार्य करना होगा। कोई निठल्ला नहीं रह सकेगा। बेरोजगारी की वजह है मुनाफे के लिए उत्पादन की पूंजीवादी व्यवस्था। अगर सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए, सबके लिए आवश्यक वस्तुओं/सेवाओं की प्रचुरता हेतु उत्पादन को संगठित किया जाए तो काम करने वालों की कमी पड़ेगी, तकनीक को और भी अधिक उन्नत करना होगा। उस स्थिति में एआई व अन्य क्रांतिकारी क्षमता वाली तकनीकों का मानवता के हित में पूर्ण प्रयोग संभव होगा और इनसे किसी को भयभीत होने की आशंका समाप्त हो जाएगी।


[1] https://www.zerohedge.com/markets/ibm-stop-hiring-roles-can-be-replaced-ai-nearly-8000-workers-be-replaced-automation

[2] https://www.marxists.org/hindi/marx-engels/1876/part-labour-ape-to-man.htm

[3] Amitabh Guha, https://indianexpress.com/article/opinion/columns/what-technology-leaders-asking-for-a-six-month-halt-on-ai-dont-want-you-to-know-8534917/ 

[4] Evegeny Morozov,  https://www.theguardian.com/commentisfree/2023/mar/30/artificial-intelligence-chatgpt-human-mind

[5] G Marcus, E Davis, Rebooting AI: Building Artificial Intelligence We Can Trust, Pantheon Books, 2019 

[6] Daniel Morley, http://www.marxist.com/artificial-intelligence-doomsday-for-humanity-or-for-capitalism.htm

[7] Y Assael, T Sommerschield, B Shillingford, N de Freitas, “Predicting the past with Ithaca”, Deepmind, 9 March 2022 

[8] Marx, Capital, Volume One, Ch 15.

[9] N Dyer-Witheford, A Mikkola Kjosen, J Steinhoff, Inhuman Power: Artificial Intelligence and the Future of Capitalism, Pluto Press, 2019, pg 93

[10] Aaron Bastani, Fully Automated Luxury Communism: A Manifesto, Verso Books, 2019