लेनिन : एक जीवनी

May 25, 2023 0 By Yatharth

(सर्वहारा क्रांति के महान नेता व्लादिमीर ई. लेनिन के 153वें जन्मदिवस पर 1955 में प्रकाशित राहुल संकृत्यायन द्वारा लिखित जीवनी के महाक्रांतिअध्याय का एक अंश)

लेनिन अब उस समय को निकट देख रहे थे, जब उन्हें पेत्रोग्राद के नजदीक रहकर जनशक्ति का संचालन दृढ़तापूर्वक अपने हाथ में लेना पड़ेगा । हेलसिंगफोर्म पेत्रोग्राद से बहुत दूर था। वहां से जल्दी-जल्दी संदेशों का आना-जाना नहीं हो सकता था। इसलिए, 30 सितम्बर को लेनिन हेलसिंगफोर्स छोड़ कर विबोर्ग पहुंच गये ।

1. अन्तिम तैयारियां

विबोर्ग से लेनिन ने पार्टी नेताओं के पास संदेश भेजते हुए जोर दिया कि विद्रोह की तैयारी में जल्दी करनी चाहिए, क्योंकि अस्थायी सरकार क्रान्ति-विरोधी सेनाओं को औद्योगिक केन्द्रों के पास जमा कर रही थी। वह चाहती थी कि क्रान्तिकारी पलटनों को दोनों राजधानियों से और दूसरे बड़े-बड़े शहरों से हटाकर तथा युद्ध के मोर्चे पर भेज कर क्रान्ति की ताकतों को कमजोर कर दे। लेनिन ने यह भी बतलाया कि देश के महत्वपूर्ण भागों में पूंजीवादी वर्ग क्रान्ति-विरोधी केन्द्र संगठित कर रहे हैं और पेत्रोग्राद को जर्मनों के हाथ में देने का भी षड्यंत्र रच रहे हैं। वे जर्मन साम्राज्यवादियों से मिलकर क्रान्ति को चूर-चूर करने के लिए रूसी पलटनों को युद्ध के मैदान से हटाने का भी प्रस्ताव कर रहे हैं।

विद्रोह की कला – लेनिन शतरंज के खिलाड़ी की तरह उस समय हरेक मोहरे की स्थिति को बड़े ध्यान से देखते हुए उसकी शक्ति को आंक रहे थे। समाजवादी क्रान्ति में वह उतावलापन दिखाने के लिए तैयार नहीं थे। क्रान्ति की शक्तियों को बढ़ाने के लिए उन्होंने लगातार लेखों और भाषणों द्वारा जनता को अपने पक्ष में करने का प्रयत्न किया। धोखे में डालने वाले मेन्शेविकों और समाजवादी क्रान्तिकारियों के आचरण ने जनता को बतला दिया था कि केवल बोल्शेविक ही उसके सच्चे हितैषी है। 1917 ई० के बसन्त में जब पार्टी के कुछ आदमियों ने तुरन्त अस्थायी सरकार को उलट फेंकने के लिए कहा, तो लेनिन ने उन्हें फटकारा, क्योंकि इसका अर्थ यह होता कि अभी तक पूरी तौर से तैयार न हुई जनता पीछे रह जाती और बोल्शेविक आगे बढ़ जाते। बोल्शेविकों के लिए आगे रहते हुए भी पीछे आती जनता के साथ अटूट सम्बंध रखना क्रान्ति की सफलता के लिए अत्यावश्यक था। लेनिन जानते थे कि जनता बोल्शेविकों के साथ अटूट सम्बंध बनाये रखकर आगे बढ़ने को तैयार है। लेनिन समझ गये कि आखिरी घड़ी आ गयी है।

“देरी का अर्थ मृत्यु” – 12 अक्तूबर को लेनिन ने केन्द्रीय कमिटी के नाम एक पत्र में लिखा था:

“संकट की स्थिति अब परिपक्व हो चुकी है। रूसी क्रान्ति का सारा भविष्य दांव पर है। बोल्शेविक पार्टी की इज्जत कसौटी पर है। समाजवाद के सम्बंध में अन्तर्राष्ट्रीय कमकर-क्रान्ति का सारा भविष्य दांव पर है।”

अक्तूबर के आरम्भिक दिनों में केन्द्रीय कमिटी, मास्को कमिटी, पेत्रोग्राद कमिटि और पेत्रोग्राद तथा मास्को की सोवियतों के बोल्शेविक सदस्यों के नाम लिखे अपने एक पत्र में लेनिन ने कहा था :

“बोल्शेविकों को सोवियतों की कांग्रेस की प्रतीक्षा करने का कोई अधिकार नहीं है; उन्हें तुरन्त शक्ति हाथ में लेनी चाहिए! … प्रतीक्षा करना क्रान्ति के प्रति घोर अपराध है।”

अक्तूबर के आरम्भ में हुए पेत्रोग्राद के बोल्शेविकों के सम्मेलन का संचालन लेनिन ने अपने छिपने के स्थान से किया। सम्मेलन के लिए उन्होंने प्रस्तावों के मसौदे बनाये, आगे आने वाली पार्टी कांग्रेस के प्रतिनिधियों के लिए हिदायतें तैयार की, और गुप्त अधिवेशन में पढ़ने के लिए एक पत्र लिखा । 20 अक्तूबर (पुराना 7 अक्तूबर) 1917 को लिखे पत्र में लेनिन ने फिर दोहराया :

“हमें यह स्वीकार करना होगा कि यदि करेन्स्की की सरकार निकट भविष्य में सर्वहारा और सैनिकों द्वारा उखाड़ नहीं फेंकी गयी तो क्रान्ति नष्ट हो जायगी।”

अगले दिन उत्तरी भूभाग की सोवियतों की कांग्रेस के बोल्शेविक-प्रतिनिधियों के लिए उन्होंने जो पत्र लिखा था, उसमें कहा था “देरी का अर्थ मृत्यु है!”

लेनिन ने मार्क्स और एंगेल्स के सूत्र को दोहराते हुए कहा था कि विद्रोह युद्ध की तरह एक कला है, उसको संयोग और साहस पर छोड़ना मूर्खता है। उसके लिए पूरे कौशल से तैयारी करना तथा संगठन करना और सावधानी के साथ कार्यक्रम की योजना तैयार करना आवश्यक है। विद्रोह की कला के सम्बंध में लेनिन ने निम्न नियम पार्टी के सामने उपस्थित किये थे :

“1. विद्रोह के साथ खिलवाड़ मत करो, परन्तु एक बार जब वह आरम्भ हो गया हो तो अच्छी तरह याद रखो कि तुम्हें अन्त तक जाना है।

“2. यह आवश्यक है कि निर्णायक समय पर निर्णायक स्थान में अपनी सेना को अधिक से अधिक परिमाण में जमा किया जाये, नहीं तो शत्रु बेहतर तैयार और संगठित होने के कारण विद्रोहियों को नष्ट कर देगा।

“3. एक बार जब विद्रोह आरम्भ हो जाये तो अत्यंत दृढ़ निश्चय के साथ काम करना चाहिए, पूरी तौर से और सभी परिस्थितियों में हमें आक्रमणात्मक युद्ध करना चाहिए। ‘प्रतिरक्षात्मक युद्ध हथियारबन्द-विद्रोह के लिए मृत्यु है।’

“4. शत्रु को अचानक घेरने की, उस समय से फायदा उठाने की जब कि शत्रु की सेनाएं बिखरी हुई हों, पूरी कोशिश करनी चाहिए।

“5. हमें हर दिन, (बल्कि एक नगर की बात होने पर कहा जा सकता है, हर घंटा) कम से कम कोई छोटी सी सफलता प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए और सभी परिस्थितियों में नैतिक बल को ऊंचा रखना चाहिए ।

“हथियारबन्द-विद्रोह के सम्बंध में सभी क्रान्तिकारियों के तजुर्बों के सार को मार्क्स ने इतिहास में क्रान्तिकारी दांव-पेंच के सबसे बड़े आचार्य दान्तन के शब्दों को दुहराते हुए कहा था : “साहस, साहस और उससे भी अधिक साहस करो।”

लेनिन ने विद्रोह के लिए निम्न योजना तैयार की थी :

“पेत्रोग्राद को घेरो और उसका बाहर से सम्बंध विच्छेद कर दो; नौसैनिक बेड़े, कमकरों और सेना के सम्मिलित आक्रमण द्वारा पेत्रोग्राद पर अधिकार करो।” इन तीनों मुख्य शक्तियों को इस तरह जोड़ो कि “चाहे जितने मूल्य पर भी निम्न स्थानों पर कब्जा करना और उन्हें हाथ में रखना निश्चित हो जाए : (क) टेलीफोन सम्बंध; (ख) सदर तारघर; (ग) रेलवे स्टेशन; और, सबसे बढ़कर (घ) पुल।” अत्यधिक महत्वपूर्ण कार्रवाइयों के लिए “सबसे अच्छे कमकरों, और तरुण कमकरों, सबसे अच्छे नौसैनिकों, और सबसे साहसी व्यक्तियों” के तूफानी दस्ते संगठित करने चाहिए, “जिनका आदर्श-वाक्य हो : ‘हम एक-एक कर मर जायेंगे, पर शत्रु आगे नहीं बढ़ पायेगा।’” लेनिन ने लिखा था : “रूसी और विश्व क्रान्ति, दोनों की सफलता दो या तीन दिनों की लड़ाई पर निर्भर करती है।”

2. “समाजवादी क्रान्ति जिन्दाबाद!”

ऊपर की पंक्तियों से मालूम होगा कि लेनिन और बोल्शेविक पार्टी ने क्रान्ति की तैयारी कितनी सावधानी से की थी। कार्यक्रम के साथ क्रान्ति आरम्भ करने का दिन भी निश्चित कर लिया गया था। 20 अक्तूबर को लेनिन ने केन्द्रीय कमिटी के निर्णय के अनुसार विबोर्ग से पेत्रोग्राद के लिए गुप्त रीति से प्रस्थान किया। अगले दिन स्तालिन ऐवाज कारखाने के एक मजदूर के घर में उनसे मिले। कई घंटे तक आगे की कार्रवाइयों के बारे में गुरु-शिष्य की बातें होती रही। लेनिन की हिदायत के अनुसार स्तालिन ने विद्रोह की एक विस्तृत योजना बनायी। इसे उन्होंने लेनिन के सामने रखा। लेनिन ने उसको पसन्द किया। सूत्रकार लेनिन के अत्यंत योग्य भाष्यकार स्तालिन थे, इसका स्पष्ट परिचय इस समय मिला।

तीन दिन बाद, 23 अक्तूबर को पार्टी की केन्द्रीय कमिटी की ऐतिहासिक बैठक हुई। लेनिन ने रिपोर्ट पेश करते हुए जोर देकर कहा कि विद्रोह को तुरंत आरम्भ करना अत्यावश्यक है। इस रिपोर्ट के बाद लेनिन द्वारा रखे गये प्रस्ताव को केन्द्रीय कमिटी ने मंजूर किया। इसमें कहा गया था कि “सशस्त्र विद्रोह आज का प्रथम काम है।” 29 अक्तूबर को केन्द्रीय कमिटी की परिवर्धित बैठक ने भी लेनिन की बात का समर्थन किया। इस बैठक में लेनिन दो घंटे बोले थे। लेनिन के प्रस्ताव पर ही विद्रोह के संचालन के लिए स्तालिन की प्रमुखता में एक पार्टी केन्द्र कायम करने का निश्चय किया गया। पार्टी केन्द्र में पेत्रोग्राद-सोवियत की सैनिक-क्रांतिकारी-कमिटी के मुखिया सम्मिलित थे। विद्रोह का प्रायः पूरा संचालन इसी के हाथ में था।

जिस स्थिति में यह महान कदम उठाया जा रहा था, उसमें लेनिन की पैनी दृष्टि ही परिणाम को स्पष्ट रूप से देख सकती थी। यह भारी जोखिम का काम था। लेकिन जैसा कि स्तालिन ने कहा है :

“लेनिन जोखिम से डरते नहीं थे, क्योंकि वह जानते थे, वह अपनी भविष्य दर्शी आंखों से देख रहे थे, कि विद्रोह का होना अनिवार्य है, कि विद्रोह विजयी होकर रहेगा, कि रूस का यह विद्रोह साम्राज्यवादी युद्ध को खत्म करने का रास्ता साफ करेगा, कि वह पश्चिमी देशों की थकी-मांदी जनता को उठाकर खड़ा कर देगा, कि वह साम्राज्यवादी युद्ध को गृह-युद्ध में परिवर्तित करेगा। वह जानते थे कि विद्रोह सोवियतों के गणराज्य की स्थापित करेगा और सोवियतों का यह गणराज्य सारी दुनिया में क्रान्तिकारी आन्दोलन के लिए एक गढ़ का काम देगा।

“हम जानते हैं, लेनिन की यह क्रान्तिकारी दूरदर्शिता पीछे अद्वितीय सच्चाई साबित हुई।”

केन्द्रीय कमिटी की दोनों बैठकों में कामेनेफ और जिनोवियेफ ने विद्रोह आरम्भ करने के प्रस्ताव के विरुद्ध वोट दिये। उन्होंने मेन्शेविक पत्र “नोवाया जीस्न” के 18 अक्तूबर (पुराने पंचांग) वाले अंक में अपना वक्तव्य प्रकाशित करते हुए कहा कि बोल्शेविक विद्रोह की तैयारी कर रहे हैं। विद्रोह की तैयारी अत्यन्त गुप्त रीति से की जा रही थी। समय से पहले भेद खोल देना भारी विश्वासघात था; यह पीठ में छुरा भोंकना था। कामेनेफ, जिनोवियेफ, त्रात्स्की और कुछ अन्य लोगों ने भी सर्वहारा क्रान्ति की योजना को बेकार करने के लिए, हर तरह की काशिश की। त्रात्स्की ने प्रस्ताव रखा था कि सोवियतों की द्वितीय कांग्रेस के आरम्भ होने से पहले विद्रोह आरम्भ नहीं करना चाहिए। लेनिन ने उसका मुंहतोड़ जवाब देते हुए कहा था कि कांग्रेस के अधिवेशन तक प्रतीक्षा करने का मतलब होगा “निरी बेवकूफी या सरासर विश्वासघात!” उन्होंने मांग की कि कामेनेफ और जिनोवियेफ को क्रान्ति के साथ गद्दारी करने के अपराध में पार्टी से निकाल बाहर करना चाहिए।

विभीषणों को सफलता नहीं मिली। पार्टी केन्द्र ने विद्रोह की सारी तैयारी बड़ी दृढ़ता के साथ की।

इस समय लेनिन पेत्रोग्राद में विबोर्ग की तरफ छिपे रहकर वहीं से केन्द्रीय कमिटी का लगातार पथ-प्रदर्शन कर रहे थे। एक रात तो वह अस्थायी सरकार के हाथ में पड़ते-पड़ते बचे। वह टहलने के लिए बाहर गये थे, रास्ते में एक पहरेदार ने उन्हें रोक लिया। लेकिन, उसने कागज-पत्रों को देखने के बाद उन्हें छोड़ दिया। उसे पता नहीं लग सका कि यह कौन आदमी है।

बोल्शेविक विद्रोह की तैयारी कर रहे हैं, यह कामेनेफ और जिनोवियेफ की कृपा से अस्थायी सरकार को मालूम हो ही गया था। वह जानती थी कि विद्रोह के जनरल स्टाफ का सदर दफ्तर स्मोल्नी में है। उसने 6 नवम्बर को उस पर आक्रमण करने का हुक्म दिया।

3. भूचाल के दिन

बोल्शेविक निहत्थे नहीं थे। उनके पास जारशाही के सिखलाये हुए, किन्तु अब क्रान्ति के पक्षपाती सैनिक थे, बख्तरदार मोटरें थी और कितने ही तोपखाने, रिसाले और जहाजी बेड़े भी थे। अस्थायी सरकार ने बोल्शेविक पत्र “रबोची पुत” (कमकर-पथ) को बन्द करने का हुक्म निकाला। प्रेस और सम्पादकीय कार्यालय के बाहर सशस्त्र सेनाएं और हथियारबन्द मोटरें आकर खड़ी हो गयीं । स्तालिन ने उन्हें मार भगाने का हुक्म दिया। लाल गारद और क्रांतिकारी सैनिकों ने उनके हुक्म का पालन करते हुए क्रान्ति-विरोधियों को वहां में मार भगाया। 11 बजे दिन को “रबोची पुत” निकला। इसमें स्तालिन का लेख “हमें किस चीज की जरूरत है?” छपा था। इस लेख में अस्थायी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए जनता से अपील की गयी थी। उसी दिन लाल गारद और क्रान्तिकारी सैनिक फुर्ती से स्मोल्नी के आसपास जमा हो गये।

विद्रोह शुरू हो गया।

लेनिन अब भी अज्ञातवास में थे। वह स्मोल्नी पहुंचने के लिए अधीर हो रहे थे। लेकिन, केन्द्रीय कमिटी की आज्ञा के बिना वह अपने स्थान को नहीं छोड़ सकते थे। शाम के वक्त नादेज्दा क्रुप्स्काया ने “केन्द्रीय कमिटी के सदस्यों को” सम्बोधित लेनिन का एक पत्र केन्द्रीय कमिटी को दिया। उसमें लिखा था :

“स्थिति अत्यन्त संकटमय है … । इस समय हर चीज सूत के एक धागे से लटकी हुई है। … ताकत को … 25 अक्तूबर (नया 7 नवम्बर) तक करेन्स्की मंडली के हाथ में किसी हालत में भी नहीं रहने देना चाहिए, किसी भी हालत में नहीं। इस बात का निर्णय बिना चूके आज ही शाम या आज ही रात को करना होगा।

“क्रान्तिकारियों की देर को, जो कि आज विजयी हो सकते हैं (और निश्चय ही आज विजयी होंगे), और जिनके कल बहुत अधिक खोने का जोखिम है, सब कुछ खोने का जोखिम है, इतिहास कभी क्षमा नहीं करेगा।

“कार्रवाई में देरी का अर्थ है – मृत्यु।”

लेनिन केन्द्रीय कमिटी पर तुरन्त कार्रवाई का फैसला करने के लिए जोर डाल रहे थे। उनको डर था कि त्रात्स्की और उसके समर्थक विद्रोह को कहीं स्थगित न करा दें। विद्रोह के लिए जैसे फौलादी हृदय और दिमाग की जरूरत थी, उसकी उम्मीद त्रात्स्की जैसे ढुलमुलयकीनों से नहीं की जा सकती थी। उधर करेन्स्की भी विद्रोह को दबाने के लिए भारी प्रयत्न कर रहा था। उसी रात उसे युद्ध के मोर्चे से विश्वसनीय सेना के पेत्रोग्राद तक पहुंचने की आशा थी।

लेनिन स्मोल्नी में – 6 नवम्बर की रात को स्तालिन के जोर देने पर केन्द्रीय कमिटी ने लेनिन को स्मोल्नी में बुलाकर उनके हाथ में नेतृत्व की बागडोर देने का निश्चय किया। लेनिन के वहां पहुंचने में देर नहीं हुई। स्तालिन ने सारी बातों की पूरी रिपोर्ट देकर बतलाया कि शरद् प्रासाद पर अधिकार करने की योजना कहां तक तैयार हो चुकी है। लेनिन अब क्रान्तिकारी विद्रोह के सारथी थे! इतना योग्य सारथी इतिहास में बहुत दुर्लभ है।

7 नवम्बर (पुराना 25 अक्तूबर) को प्रातःकाल सारा पेत्रोग्राद विद्रोही सर्वहारा के हाथ में था और टेलीफोन-सम्बंध, सदर तारघर, रेडियो स्टेशन, नेवा नदी के पुल, रेलवे के स्टेशन तथा अधिकांश महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालय अब करेन्स्की-सरकार के हाथ से निकल गये थे। विद्रोह ने एक सांस में भारी सफलता प्राप्त कर ली थी।

उसी दिन 10 बजे सवेरे सैनिक क्रान्तिकारी कमिटी ने लेनिन द्वारा तैयार किये हुए “रूस के नागरिकों के नाम” ऐतिहासिक घोषणापत्र को जारी करते हुए कहा कि अस्थायी सरकार का तख्ता उलट दिया गया है और राज्यशक्ति सोवियतों के हाथ में आ गयी है।

अपराह्न में लेनिन ने पेत्रोग्राद सोवियत की एक विशेष बैठक में भाषण दिया। भाषण मंच पर अपने महान नेता को देखकर जनता कितनी ही देर तक करतल ध्वनि और हर्षध्वनि करती रही। अपने भाषण में लेनिन ने समाजवादी-क्रान्ति की विजय घोषित करते हुए बतलाया कि रूस में समाजवाद अवश्य विजयी होगा। अपने भाषण को समाप्त करते हुए उन्होंने कहा था : “विश्व समाजवादी-क्रान्ति जिन्दाबाद!”

सोवियतों की कांग्रेस — उसी दिन रात को पौने 11 बजे स्मोल्नी में द्वितीय सोवियत कांग्रेस आरम्भ हुई। इसमें केन्द्रीय और स्थानीय राज्यशक्ति के सोवियतों के हाथ में आने की बाकायदा घोषणा की गयी।

लेनिन को सोने या विश्राम करने की कहां फुर्सत थी! उन्होंने पहली सारी रात स्मोल्नी में रहते हुए विद्रोह के संचालन, सैनिकों के संगठन तथा सोवियत-शासन के अत्यावश्यक पहले कदमों की व्याख्या करने में बितायी थी। प्रायः दो दिन और दो रात लगातार काम करने के बाद, शरद प्रासाद पर अधिकार हो जाने तथा वहीं अस्थायी सरकार के गिरफ्तार कर लिए जाने पर, लेनिन ने 7 नवम्बर की रात को कुछ घंटे स्मोल्नी के पास ही पार्टी के एक कार्यकर्ता के घर में विश्राम किया। लेकिन, उस वक्त भी उन्हें नींद नहीं आई। घर वाले जग न जायें, इसलिए बहुत चुपके से उठकर वह मेज पर जा बैठे, और वहां उन्होंने भूमि- सम्बंधी फरमान तैयार किया। 8 तारीख का सारा दिन उन्होंने उसी तरह लगातार काम में बिताया। पेत्रोग्राद की प्रतिरक्षा तथा नगरवासियों के लिए रोटी का प्रबंध करना सबसे जरूरी और तुरन्त करणीय था। इनके अतिरिक्त उन्हें केन्द्रीय कमिटी की बैठक की भी अध्यक्षता करनी थी जिसमें सोवियत सरकार के सदस्यों के बारे में विचार करना था। इसके बाद वह एक सम्मेलन में गये जिसमें उद्योग-धन्धों पर कमकर-संगठन के नियन्त्रण के बारे में बातचीत करनी थी। शाम तक उन्हें क्षण भर का भी अवकाश नहीं मिला।

शाम को वह सोवियतों की कांग्रेस के अधिवेशन के आरम्भ के समय भाषण देने गये। कांग्रेस ने समाजवादी क्रान्ति के महान नेता का जबरदस्त स्वागत किया। लोग देर तक करतलध्वनि और हर्षोद्गार प्रकट करते रहे। कितनी ही देर तक लेनिन भाषण नहीं दे सके। इतिहास के इस महान नेता ने अब मानव इतिहास में एक नये युग की – सर्वहारा क्रान्ति और सर्वहारा के अधिनायकत्व के युग की – घोषणा की।

लेनिन के प्रस्ताव पर सोवियत कांग्रेस ने सोवियत सरकार के पहले फरमान – शान्ति-सम्बंधी फरमान और भूमि-सम्बंधी फरमान – पास किये। ये युग प्रवर्तक अभिलेख सर्वहारा-अधिनायकत्व को मजबूत करने और समाजवाद का निर्माण करने में अत्यन्त महत्वपूर्ण साबित हुए। इसी कांग्रेस में कमकरों और किसानों की पहली सोवियत सरकार – जन कमिसरों की परिषद – बनायी गयी। लेनिन परिषद के प्रधानमंत्री चुने गये।