मार्क्स के करूणारसपूर्ण काव्यमय किन्तु वास्तविक जीवन को बड़े प्रेम से पढ़ेगी दुनिया

May 25, 2023 0 By Yatharth

(1954 में प्रकाशित राहुल संकृत्यायन द्वारा लिखित कार्ल मार्क्स की जीवनी का एक अंश)

मार्क्स युगप्रवर्तक पुरुष थे, अब इससे विरोधी भी इंकार नहीं कर सकते। इतिहास में किसी एक पुरुष को एक समय में मानवता की इतनी संख्या और इतने प्रतिशत ने अपना मार्गदर्शक नहीं माना। मार्क्स का जीवन बड़ी गहरी और तीव्र बौद्धिकता – पुराने शब्दों में ज्ञानमार्ग का था। उसके साथ दूसरे ज्ञान को व्यवहार में लाने की ओर भी उनका उतना ही अधिक जोर था, जिसे पुरानी परिभाषा के अनुसार ज्ञान और कर्म का समन्वय कह सकते हैं। साथ ही दोनों बंधुओं में आदर्शवाद और त्याग की वह भावना देखी जाती है, जो कि केवल जातक की कहानियों में ही हमें मिलती है। लेकिन जातकों में भी त्याग दुख की जड़ के उच्छेद के लिए उतना नहीं देखा जाता, जितना कि मार्क्स और एंगेल्स में। मार्क्स ने स्वेच्छापूर्वक कष्ट का जैसा जीवन बिताया, अलंकारिक भाषा में हम कह सकते हैं कि मानवता को दुखों से मुक्त करने के लिए उन्होंने स्वयं मानव की सहिष्णुता-शक्ति से परे के दुखों को सहा।

जब तक कि सारी दुनिया मार्क्स की चिकित्सा द्वारा स्वस्थ नहीं हो जाती, आधी बची हुई मानवता मार्क्स के पथ पर आरूढ़ होकर सुख-संतोष, निश्चिंतता और संस्कृति-कलायुक्त जीवन बिताने नहीं लगती, तब तक उसके लिए मार्क्स का ज्ञान और व्यवहार (कर्म) ही अंत्यत प्रिय और हित का होना चाहिए। भावी पीढ़ियां सारे विश्व में मार्क्स के बनाए मार्ग पर आरूढ़ हो सुखी जीवन बिताते हुए मार्क्स के जीवन के इस तीसरे पहलू की ओर विशेष ध्यान देंगी, तब वह मार्क्स के करूणारसपूर्ण काव्यमय किन्तु वास्तविक जीवन को बड़े प्रेम से पढ़ेंगी।

अद्भुत प्रतिभा

कितनी ही प्रतिभाएं होती हैं, जिनकी महानता में कोई संदेह नहीं, लेकिन उनमें निरंतर काम करने की लगन और उत्साह नहीं होता, जिसके कारण वह मानवता के लिए बहुत काम नहीं कर पातीं। पर, मार्क्स जितने ही प्रतिभाशाली थे, उतने ही कठोर परिश्रमी भी। दिन ही नहीं रात से सुबह तक बैठे काम करना, दसियों बरस तक दस-दस घंटे रोज ब्रिटिश म्यूजियम में देश-विदेश के मानव-जीवन के हरेक पहलुओं पर लिखे गए अनमोल रिकार्डों की धूल पोंछकर उन्हें तन्मय होकर अध्ययन करना बिल्कुल अनहोनी सी बात मालूम होती है। वह मानवता के सबसे अधिक उत्पीड़ित और सबसे अधिक संख्या वाले जनगण को बंधन से मुक्त करना चाहते थे। इस महान महत्व के काम को बड़ी तीव्रता से वह अनुभव करते थे। एक जीवन क्या अगर उन्हें सौ जीवन भी मिलता, तो वह इसी काम में लगाते।

अनुपम मित्रता

यदि मार्क्स की प्रतिभा को लौहमय शरीर मिला था, जो कि असाधारण परिश्रम और कष्टों को सहन कर सकता था, तो उनको समाज में एक बाहरी शरीर भी एंगेल्स के रूप में मिला था। “एक प्राण दो शरीर” या “बहिश्वर प्राण” की कहावत इन दो मित्रों पर बिल्कुल ठीक घटती है। उनके बौद्धिक कार्यों में हाथ बंटाने के लिए एंगेल्स जिस तरह तैयार रहते थे, और उसके लिए सक्षम भी थे; उसी तरह उनके कष्टों को बांटने में उन्हें बड़ा आनंद आता। एंगेल्स ने एक तरह अपने सारे बौद्धिक और शारीरिक जीवन की इस मित्रता पर बलि चढ़ा दी थी। दोनों मित्रों के बीच लिखे गए हजारों पत्र इसके साक्षी हैं। इतिहास में इस तरह की सर्वांगीण अभिन्न मित्रता दूसरी कोई भी देखी नहीं जाती।