पूंजी के लिए पर्यावरण सुरक्षा नहीं, मुनाफा जरूरी है
July 5, 2024माइकल रोबर्ट्स
(मार्क्सवादी अर्थशास्त्री माइकल रॉबर्ट्स के लेख ‘फिक्सिंग द क्लाइमेट – इट जस्ट एन्ट प्रॉफिटेबल‘ का अनुवाद)1
2023 में, यह रिकॉर्ड किए गए इतिहास में पहली बार था कि पृथ्वी की सतह का तापमान 1850-1900 की आईपीसीसी (Intergovernmental Panel on Climate Change; IPCC) की बेसलाइन से 2.0°C अधिक हो गया। इसके अलावा दुनिया के 90% से अधिक महासागरों में हीटवेव की स्थिति थी। पहले के सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए ग्लेशियरों की सबसे ज्यादा बर्फ इस बार पिघल गयी है और अंटार्कटिक समुद्री बर्फ की मात्रा अब तक के सबसे निचले स्तर पर गिर गई है।
पिछले महीने जारी आकंड़ों के हिसाब से विगत एक साल में वैश्विक स्तर पर रिकॉर्ड तोड़ उच्च तापमान दर्ज किये गए हैं, जिसमें से 2024 की मई आज तक के सभी मई महीनों में सबसे गरम थी। NOAA (राष्ट्रीय समुद्री तथा वायुमंडलीय प्रशासन; National Oceanic and Atmospheric Administration) के राष्ट्रीय पर्यावरण सूचना केंद्र (National Centre for Environment Information; NCEI) के डेटा और वैज्ञानिकों के अनुसार, पृथ्वी के महासागर के तापमान ने भी लगातार 14वें महीने उच्चतम तापमान का रिकॉर्ड बनाया। NCEI के वैश्विक वार्षिक तापमान रैंकिंग आउटलुक के अनुसार, 50% संभावना है कि 2024 को आज तक का सबसे गर्म वर्ष माना जाएगा और 100% संभावना है कि यह अभी तक के शीर्ष पांच सबसे गर्म वर्षों में से होगा।
कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन (जो ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण है) की अद्यतन प्रवृत्ति से यह पता चलता है कि पृथ्वी की सतह का औसत तापमान इस दशक के अंत तक 2015 पेरिस जलवायु सम्मेलन द्वारा निर्धारित 1.5 डिग्री सेल्सियस की बेसलाइन सीमा को आसानी से पार कर जाएगा। वास्तव में, अगर कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया तो कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन इस सदी के मध्य या उससे पहले बेसलाइन से कम से कम 1.8 डिग्री सेल्सियस ऊपर बढ़ने की ओर अग्रसर है। संयुक्त राष्ट्र जलवायु प्रमुख साइमन स्टील ने कहा है कि औद्योगिक युग के बाद से पृथ्वी, वैश्विक तापमान में, 2.7 डिग्री सेल्सियस की “विनाशकारी उच्च” वृद्धि की ओर अग्रसर है।
सवाल है, क्या किया जाए? कार्बन उत्सर्जन को रोकने व नियंत्रित करने, यहां तक कि मौजूदा कार्बन डाइऑक्साइड को पकड़कर वायुमंडल से बाहर करने के बहुत सारे तकनीकी उपाय सुझाये गये हैं। यही नहीं, बड़ी शक्तियों व शक्तिशाली पूंजीवादी देशों ने जीवाश्म ईंधन के उत्पादन को क्रमिक रूप से खत्म करने (phase out) और इसकी जगह तथाकथित नवीकरणीय उर्जा (वायु, सौर एवं हाइड्रो, आदि) के उत्पादन को आगे बढ़ाने का आह्वान भी विगत अंतर्राष्ट्रीय जलवायु शिखर सम्मेलन (COP28) में किया हुआ है। यही नहीं, स्वच्छ उर्जा में निवेश की मात्रा भी अब जीवाश्म ईंधन में निवेश की तुलना में दुगुनी हो चुकी है।
लेकिन यह अभी भी काफी नहीं है। जीवाश्म ईंधन के उत्पादन को पर्याप्त तेजी से ‘समाप्त’ नहीं किया जा रहा है और नवीकरणीय ऊर्जा भी पर्याप्त तेजी से जीवाश्म ईंधन की जगह नहीं ले पा रही है। अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी का अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर 2030 तक हर साल औसतन 1,000 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का निर्माण किया जाना चाहिए। लेकिन दुनिया की स्वच्छ ऊर्जा योजनाएँ (और वे केवल योजनाएँ हैं) अभी भी उस आंकड़े तक पहुँचने के लिए आवश्यक लक्ष्य से लगभग एक तिहाई कम हैं।
जलवायु नीति पहल (Climate Policy Initiative) के अनुसार, निवेश के आवश्यक स्तर तक पहुंचने के लिए, जलवायु वित्त को 2030 तक वैश्विक स्तर पर लगभग 9 ट्रिलियन डॉलर प्रति वर्ष तक बढ़ाने की आवश्यकता होगी, जो 2021-22 में बमुश्किल 1.3 ट्रिलियन डॉलर था।
और यह फंडिंग आ ही नहीं रही है। अमीर देशों ने आखिरकार 2022 में गरीब देशों को जलवायु वित्त मदद में मात्र 100 बिलियन डॉलर देने का अपना लक्ष्य पूरा किया – वादे से दो साल बाद। और तो और, पिछले दशक में, गरीब देशों को मिलने वाले जलवायु-संबंधी हस्तांतरण में अधिकांश वृद्धि सार्वजनिक स्रोतों के कारण आई है। सरकारी सहायता या मल्टीलेटरल डेवलपमेंट बैंक से आने वाली वित्तीय मदद 2013 और 2022 के बीच लगभग दोगुनी, यानी कुल मिलाकर $38 बिलियन से $83 बिलियन हो गयी। लेकिन दूसरी तरफ, ओईसीडी (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन) के अनुसार, 2022 में निजी जलवायु वित्तीय मदद केवल $21.9 बिलियन थी जो कि “बेहद कम” है।
हालांकि सार्वजनिक फंडिंग के यह आंकड़े भी बढ़ा-चढ़ाकर बताये गए हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि कुछ पैसे मौजूदा विदेशी सहायता बजट से लिए गए हैं, और जलवायु वित्तीय मदद के रूप में गिने जाने वाली राशि का एक हिस्सा मुख्यतः स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी विकास परियोजनाओं के लिए आवंटित किया गया था, जिससे जलवायु को केवल मामूली और अप्रत्यक्ष लाभ ही होता है। ऑक्सफैम की क्लाइमेट फाइनेंस शैडो रिपोर्ट 2023 के अनुसार अगर इन सभी राशियों को निकाल दिया जाए, तो $83 बिलियन में से केवल $21-24.5 बिलियन ही प्रत्यक्ष तौर पर शुद्ध जलवायु वित्त के रूप में बचता है।
आखिर जलवायु सम्बंधित लक्ष्य पूरे क्यों नहीं हो रहे हैं? आवश्यक वित्त क्यों नहीं मिल रहा है? यह नवीकरणीय ऊर्जा की लागत मूल्य की वजह से नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में नवीकरणीय ऊर्जा की कीमतों में तेजी से गिरावट आई है। समस्या यह है कि सरकारें तो इस बात पर जोर दे रही हैं कि निजी निवेश ही नवीकरणीय ऊर्जा में अगुआ भूमिका ले, लेकिन निजी निवेश तभी होता है जब निवेश करना लाभदायक हो।
लाभप्रदता ही समस्या है – दो तरीकों से। पहला, वैश्विक स्तर पर औसत लाभप्रदता निम्न स्तर पर है और इसलिए हर चीज में निवेश वृद्धि धीमी हो गई है। दूसरा, और यह बड़ी विडंबना और विरोधाभास है, कि कम निवेश और जीडीपी ग्रोथ जीवाश्म ईंधन ऊर्जा उपयोग को कम करके कार्बन उत्सर्जन विस्तार को धीमा कर देगी। 2002-2015 की अवधि में अपने कार्बन उत्सर्जन को ‘चरम पर पहुंचाने और फिर उसे गिराने’ में सफल रहे 18 देशों पर किए गए एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि इस प्रक्रिया का एक प्रमुख चालक – जो औसतन उत्सर्जन में 36% की गिरावट के लिए जिम्मेदार है – ऊर्जा के उपयोग में कमी थी, जो अंशतः ‘जीडीपी में लगभग 1% की कम वृद्धि’ के कारण हुई थी (ले क्वेरे एट अल., 2019: 215)। जैसे-जैसे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर शून्य के करीब पहुंच रही है, कार्बन उत्सर्जन से विकास को पूरी तरह से अलग करना अधिक व्यवहार्य हो गया है (श्रोडर और स्टॉर्म, 2020)।
लेकिन दूसरी ओर, नवीकरणीय ऊर्जा की कम कीमतें ऐसे निवेशों की लाभप्रदता को कम करती हैं। सौर (सोलर) फार्मों के संचालन के साथ-साथ सौर पैनल निर्माण भी मुनाफे की भारी कमी से जूझ रहा है। यह पूंजीवादी निवेश के मूल अंतर्विरोध को दिखाता है – एक तरफ, उच्च उत्पादकता के जरिये लागत कम करना और दूसरी तरफ, लाभप्रदता में गिरावट के कारण निवेश का धीमा होना।
ब्रेट क्रिस्टोफर्स की एक और बेहतरीन किताब, ‘द प्राइस इज रॉंग – व्हाई कैपिटलिज्म विल नॉट सेव द प्लैनेट’ का यही मुख्य संदेश है। क्रिस्टोफर्स का तर्क है कि ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए निवेश लक्ष्यों को पूरा करने में बाधा नवीकरणीय ऊर्जा बनाम जीवाश्म ईंधन ऊर्जा की कीमत की वजह से नहीं है। यह जीवाश्म ईंधन उत्पादन की तुलना में नवीकरणीय ऊर्जा की लाभप्रदता के कारण है।
“नवीकरणीय ऊर्जा के मामले में, मुख्य निर्णयकर्ता ऊर्जा कंपनियां, अन्य डेवलपर्स और – विशेष रूप से – वित्तीय संस्थान हैं, जिनके निवेश पूंजी को आगे बढ़ाने या न बढ़ाने और उसकी कीमतों को तय करने के संबंध में निर्णय ही अंततः यह निर्धारित करते हैं कि सौर और वायु फार्म परियोजनाएं आगे बढ़ेंगी या नहीं। इसलिए, हम पूछ सकते हैं कि जब नवीकरणीय ऊर्जा डेवलपर्स द्वारा निवेश प्रस्ताव प्रस्तुत किए जाते हैं, तो ऐसे वित्तपोषकों के मन में सबसे हावी कौन सा प्रश्न रहता है? यह है : क्या मुझे अपना पैसा वापस मिलेगा, और वो भी एक स्वीकार्य वित्तीय रिटर्न के साथ? इस प्रश्न का मूल उत्तर, निश्चित रूप से है : आम तौर पर केवल तब जब परियोजना लाभदायक है।”
क्रिस्टोफर्स बताते हैं कि स्वीडन जैसे देश में वायु ऊर्जा का उत्पादन बहुत सस्ते दर पर किया जा सकता है। लेकिन लागत में कमी से इसकी रेवेन्यु क्षमता भी कम हो जाती है। यह विरोधाभास जीवाश्म ईंधन कंपनियों के तर्कों को बल देता है कि तेल और गैस उत्पादन को जल्दी से समाप्त नहीं किया जा सकता है। वुड मैकेंजी के मुख्य अर्थशास्त्री पीटर मार्टिन ने इसे दूसरे तरीके से समझाया है : “पूंजी की बढ़ी हुई लागत का ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधन उद्योगों पर गहरा प्रभाव पड़ता है”, और यह कि उच्च दरें “असमान रूप से नवीकरणीय और परमाणु ऊर्जा को प्रभावित करती हैं क्योंकि उनकी कैपिटल इंटेंसिटी अधिक होती है और रिटर्न कम होता है।”
जैसा कि क्रिस्टोफर्स बताते हैं, तेल और गैस की लाभप्रदता आम तौर पर नवीकरणीय ऊर्जा की तुलना में कहीं ज्यादा रही है और यही कारण है कि 1980 और 1990 के दशक में तेल और गैस की बड़ी कंपनियों ने नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में अपने पहले उपक्रमों को शुरू करने के तुरंत बाद ही बंद कर दिया था। “इसी तरह वही तुलनात्मक गणना यह भी बताती है कि आज वही कंपनियां क्यों अत्यंत धीमी गति से स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ रही हैं”।
क्रिस्टोफर्स ने शेल के सीईओ वाएल सवन के हवाले से बताया कि क्या वे नवीकरणीय ऊर्जा के कम रिटर्न को अपनी कंपनी के लिए स्वीकार्य मानते हैं : “कम कार्बन के मामले में मैं स्पष्ट रूप से कह रहा हूं। हम जिस भी व्यवसाय में उतरेंगे, उसमें मजबूत रिटर्न के लिए प्रयास करेंगे। हम कम रिटर्न के लिए निवेश करने को उचित नहीं ठहरा सकते। हमारे शेयरधारक हमें मजबूत रिटर्न के लिए आगे बढ़ते हुए देखने के हकदार हैं। अगर हम किसी व्यवसाय में दोहरे अंकों का रिटर्न हासिल नहीं कर पाते हैं, तो हमें निर्ममता से यह सवाल पूछना चाहिए कि क्या हमें उस व्यवसाय में बने रहना चाहिए। बिल्कुल, हम कम से कम कार्बन के लिए आगे बढ़ना चाहते हैं, लेकिन यह लाभदायक होना चाहिए।”
इन कारणों से, जेपी मॉर्गन बैंक के अर्थशास्त्री इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि दुनिया को जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ने पर एक “रियलिटी चेक” की आवश्यकता है, क्योंकि उनका कहना है कि नेट-शून्य लक्ष्यों को प्राप्त करने में “पीढ़ियां” लग सकती हैं। जेपी मॉर्गन का मानना है कि दुनिया की ऊर्जा प्रणाली को बदलना “एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे दशकों या पीढ़ियों में मापा जाना चाहिए, न कि वर्षों में”। ऐसा इसलिए है क्योंकि नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश “वर्तमान में कम रिटर्न देता है”।
जीवाश्म ईंधन की प्रमुख कम्पनियां इस बात पर ज़ोर देती हैं। तेल उत्पादक कंपनी शेवरॉन के मुख्य कार्यकारी ने पिछले अक्टूबर में फ़ाइनेंशियल टाइम्स को बताया, “आप परिदृश्य बना सकते हैं, लेकिन हम वास्तविक दुनिया में रहते हैं, और हमें वास्तविक दुनिया की मांगों के अनुसार ही पूंजी आवंटित करनी होती है।” पांच में से चार कॉर्पोरेट अधिकारियों ने “परियोजनाओं पर स्वीकार्य रिटर्न बनाने की क्षमता को ऊर्जा प्रणाली के डीकार्बोनाइजेशन में मुख्य बाधा माना।” सऊदी अरामको के मुख्य कार्यकारी अमीन नासर कहते हैं, “हमें तेल और गैस को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की कल्पना को छोड़ देना चाहिए और इसके बजाय, वास्तविक मांग मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए उनमें निवेश करना चाहिए।” एक्सॉनमोबिल के अपस्ट्रीम व्यवसाय के प्रमुख लियाम मैलन ने कहा, “आप पूरे दिन ग्रीन और एनजीओ के बारे में बहस कर सकते हैं, लेकिन ये तथ्य हैं। मुझे लगता है कि यह संदेश हर जगह गूंजने लगा है।”
आश्चर्य की बात नहीं है कि जेपी मॉर्गन जीवाश्म ईंधन परियोजनाओं का एक प्रमुख वित्तपोषक है। जहां एक तरफ बैंक ने 2021 और 2022 में $101 बिलियन के जीवाश्म ईंधन सौदों को मंजूरी दी, वहीं लो-कार्बन सौदों के लिए केवल $71 बिलियन मंजूर किये। जलवायु कार्यकर्ताओं की एक रिपोर्ट में पिछले साल जेपी मॉर्गन चेज, मिजुहो और बैंक ऑफ अमेरिका को जीवाश्म ईंधन उद्योग के सबसे बड़े वित्तपोषक के रूप में नामित किया गया था। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि पेरिस जलवायु समझौते के बाद से आठ वर्षों में दुनिया के सबसे बड़े बैंकों ने इस क्षेत्र को कुल $6.9 ट्रिलियन प्रदान किए हैं।
क्रिस्टोफर्स निष्कर्ष निकालते हैं कि “यदि निजी पूंजी, जो बाजारों में परिचालित हो रही है, वैश्विक बिजली उत्पादन को पर्याप्त रूप से तेजी से डीकार्बोनाइज करने में विफल हो रही है, जबकि इसे सरकारों से सभी तरह का समर्थन मिला है और मिल रहा है, और यहां तक कि जब प्रौद्योगिकी की लागत में भी बहुत तेजी से गिरावट आई है, तो यह निश्चित रूप से एक स्पष्ट संकेत है कि पूंजी इस काम को करने के लिए बनी ही नहीं है।”
इसके बजाय, क्रिस्टोफर्स का तर्क है कि अगर हमें कभी भी कार्बन उत्सर्जन में तेजी से कमी लानी है, तो “नवीकरणीय ऊर्जा परिसंपत्तियों का व्यापक सार्वजनिक स्वामित्व सबसे व्यवहार्य मॉडल प्रतीत होता है।” मैं यह भी जोड़ना चाहूंगा कि किसी भी तीव्र परिवर्तन को सुनिश्चित करने के लिए जीवाश्म ईंधन उत्पादकों के सार्वजनिक स्वामित्व की भी आवश्यकता होगी।
इस बीच, पृथ्वी खतरनाक दर से गर्म होती जा रही है।
- माइकल रॉबर्ट्स का मूल लेख (अंग्रेज़ी में) पढ़ने हेतु यहां क्लिक करें (23 जून 2024) ↩︎