ख़तरनाक ड्रग व्यापार

November 15, 2021 0 By Yatharth

सड़ते पूंजीवादी फोड़े से रिसता मवाद

एस वी सिंह

‘कार्डेलिया द इम्प्रेस’ उस क्रूज़ (पानी के छोटे जहाज) का नाम है जिस पर समन्दर में ‘नशेखोरी की मदहोशी भरी मस्ती/ पागलपन’ वाले स्वप्नलोक में विचरते करते कुछ बिगडैल, नशेड़ी और निठल्ले रईसज़ादे, 20 अक्टूबर 2021 ‘पकडे’ गए। नशेड़ियों की इस पार्टी वाले क्रूज़ में प्रवेश शुल्क ₹80000 से ₹5,00,000 के बीच था। ज़ाहिर है हराम की दौलत वालों की औलादें ही प्रवेश के लिए पात्र थीं। ये आवारा, दिशाहीन युवक ड्रग्स को कैसे अंडर वियर की सिलाई आदि में छिपाकर ले गए, मीडिया ने ऐसी चटपटी ख़बरें चटखारे लेकर छापीं क्योंकि ये रईसज़ादे फ़िल्मी कलाकारों से भी सम्बन्ध रखते थे, और सनसनीखेज खबरों का भूखा मीडिया ये जानता था कि ये ख़बरें ख़ूब बिकने वाली हैं। हालाँकि ये भी हो सकता है कि ड्रग सप्लाई वहीँ की गई हो क्योंकि ड्रग आजकल बहुत आसानी से सर्वत्र उपलब्ध होने वाले पदार्थ बन चुके हैं। व्यवस्थाजन्य सडन ऐसे ही ज़ारी रही तो हो सकता है ये ख़तरनाक ड्रग्स कुछ दिनों में अमेज़न से ऑनलाइन भी मिलने लगें। अपनी औलादों के भविष्य की दुहाई देकर खुद को किसी भी राजनीतिक-सामाजिक आन्दोलनों से दूर रखने वाले तटस्थ समुदाय को अब इस कड़वी हकीक़त से दो-चार होना पड़ेगा।  

इस अश्लील स्टोरी का दूसरा विभत्स अध्याय ‘नशाखोरी नियंत्रण विभाग’ की छापेमारी से शुरू होता है। ये सरकारी नशाखोरी नियंत्रण विभाग (NCB) का छापा था या किसी लुटेरे पिंडारियों के गिरोह ने हमला बोला था या हॉलीवुड फिल्मों की तर्ज़ पर समुद्री लुटेरों ने उस क्रूज़ को अपने क़ब्ज़े में ले लिया था; घटना के बाद से हर रोज़ जिस तरह की ख़बरें आ रही हैं उनके आलोक में, ये तय कर पाना मुश्किल है। इस सरकारी चढ़ाई का पहला किरदार है उसका सरदार, समीर दाऊद वानखेड़े। जेम्स बांड टाइप ये सरकारी बाबू जो बॉलीवुड को नशामुक्त कर डालने का वादा करता है, और जो अब इस केस से हटाया जा चुका है, नारकोटिक कंट्रोल ब्यूरो का ज़ोनल डायरेक्टर है और उसका कुल मासिक वेतन लगभग ₹90,000 है। एन सी पी नेता नवाब मलिक के अनुसार समीर वानखेड़े बूर्बेरी ब्रांड की कमीज़ पहनता है जिसकी क़ीमत ₹70,000 से शुरू होती है, जो टी शर्ट पहनता है उसकी क़ीमत ₹30,000, बेल्ट की क़ीमत ₹1,00,000, उसके जूते लुई वुइत्तोन कंपनी के होते हैं जो ₹2,00,000  में आते हैं, उनकी घड़ियाँ ₹25-30 लाख की होती हैं। उनकी एक और विनम्र आदत है। प्रधानमंत्री की तरह वो भी एक बार पहने कपड़ों को दुबारा पहने हुए नज़र नहीं आता!! आय से अधिक संपत्ति (Disproportionate Assets) होना एक गंभीर आपराध है जिसकी शिकायत ना भी हो तो भी सीबीआई के संज्ञान में आते ही स्वत: एफआईआर दायर कर जाँच शुरू हो जानी चाहिए। अभी तक ना तो इन आरोपों का खंडन किया गया है और ना ही कोई मामला दर्ज़ किया गया है।

‘स्वतन्त्र गवाह/ पंच’ की एंट्री से इस वीभत्स अश्लील स्टोरी का तीसरा और डरावना अध्याय शुरू होता है। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 100 (4) स्वतन्त्र गवाह को इस तरह परिभाषित करती है, “इस अध्याय में कोई भी छापा मारने से पहले, ऐसा करने वाले अधिकारी अथवा दूसरे व्यक्ति को जिस जगह छापा मारा जा रहा है उसी क्षेत्र से और अगर उस क्षेत्र से कोई ऐसा व्यक्ति ना मिल पा रहा हो या इच्छुक ना हो तो दूसरे क्षेत्र से, दो या उससे अधिक निष्पक्ष एवं सम्मानित व्यक्तियों को छापे व तलाशी की कार्यवाही के दौरान स्वतन्त्र गवाह के रूप में उपस्थित रखना होगा। वह इस काम के लिए लिखित आदेश ज़ारी कर सकता है।”  मुक़दमे के दौरान, आरोपी को सज़ा कराने में इन स्वतन्त्र गवाहों-पंचों की गवाही अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। आईये देखें, मुम्बई को नशामुक्त करने की पावन मुहीम पर निकले, देसी जेम्स बांड समीर वानखेड़े के ‘स्वतन्त्र गवाह’ कितने स्वतन्त्र थे, कितने सम्मानित थे और कितने स्थानीय थे!! पहले ‘स्वतन्त्र और सम्मानित’ गवाह का नाम है किरन गोसावी जो फिलहाल अपनी तशरीफ़ मुम्बई की आर्थर रोड जेल में ले जा चुके हैं। क्रूज़ में आर्यन खान के साथ बिंदास और दबंग स्टाइल में ली गई उनकी सेल्फी मीडिया में अभी तक छाई हुई है। गोसावी जी का पहला परिचय समीर वानखेड़े का अंग रक्षक होना कराया गया था। उसके बाद उन्हें स्वतन्त्र जासूस बताया गया। उसके बाद उन्हें एक्सपोर्टर बताया गया क्योंकि 2018 में उन्होंने कई लोगों से उन्हें मलेशिया में रोज़गार दिलाने के नाम पर पैसे ठगे हैं। चिन्मय देशमुख नाम के बेरोज़गार को जब ₹3,09,000 देकर भी रोज़गार ना मिला तो उन्होंने किरन गोसावी और उनकी सहायक शेरबानो कुरैशी के नाम धोखाधड़ी का मुक़दमा दर्ज कराया था। उनका आरोप ये भी है कि जब उन्होंने किरन गोसावी से पैसे वापस मांगे तो उन्होंने पिस्तौल निकाल ली थी, ये उनके ‘सम्मानित’ होने का एक और पक्का सबूत है!!। ये ‘सवतंत्र और सम्मानित’ गवाह विदेश भाग जाना चाहता था लेकिन पुलिस ने दबोच लिया क्योंकि एक मंत्री हर रोज़ प्रेस कांफ्रेंस किए जा रहे थे। दरअसल गोसावी भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में समर्पण करना चाहता था, बात नहीं बनी। पुणे पुलिस का कहना है कि उसने अनेक बेरोज़गारों को ठगा है। उनके विरुद्ध इसके आलावा भी अनेक आपराधिक मामले लंबित हैं। ये किरन गोसावी ड्रग विरोधी महकमे को इतने पसंद आए हैं कि वे अनेक मामलों में ‘सवतंत्र एवं सम्मानित गवाह’ बनने का गौरव हांसिल कर चुके हैं। दूसरे ‘स्वतन्त्र’ गवाह मनीष भानुशाली तो गोसावी से भी ज्यादा ‘स्वतन्त्र और सम्मानित’ हैं!! उन्हें तो फासिस्ट मोदी सरकार के सबसे महाबली नेता गृह मंत्री, प्रधानमंत्री और जाने कितने मंत्रियों-संत्रियों के सन्निकट होने का गौरव हांसिल है। शुरुआत में उन्होंने नकारा लेकिन बाद में स्वीकार करना पड़ा कि वे भाजपा के सदस्य हैं और नशा प्रबंधन विभाग की ‘हर संभव मदद’ करते रहते हैं। वे मूल रूप से गुजरात से हैं। वे भी आए दिन ‘स्वतन्त्र गवाह’ बनते रहते हैं।

इस घृणित, अश्लील दास्ताँ का चौथा अध्याय ₹25 करोड़ की रिश्वत वाला है जिसमें क़ानून अगर सच में अपना काम कर रहा होता तो एफआईआर हो चुकी होती और कई ‘स्वतन्त्र और सम्मानित’ लोग जेल के अन्दर होते। पहले दो ही स्वतन्त्र गवाह बताए गए थे लेकिन फिर तीसरे गवाह, प्रभाकर सैल प्रकट हुए जिन्होंने इस गटर गंगा में मौजूद कलाकारों पर सबसे गंभीर आरोप लगाए और क़ानूनी पद्धति से लगाए। वे सहार पुलिस स्टेशन गए और लिखित रिपोर्ट दी कि वे किरन गोसावी के अंगरक्षक हैं और उन्होंने अपने कानों से किरन गोसावी और शाहरुख़ खान की सचिव पूजा ददलानी की बात सुनी है जिसमें गोसावी कह रहा है कि कुल ₹25 करोड़ की डील है जिसमें से ₹8 करोड़ समीर वानखेड़े को जाएँगे। उन्होंने अदालत में हलफिया बयान भी दिया लेकिन कोई हैरानी नहीं कि इस मामले में भी अभी तक कुछ होता नज़र नहीं आया। इस मामले में, चूँकि, एक मंत्री अपना निजी हिसाब बराबर करने के लिए कमर कस लगा हुआ है इसीलिए रोज़ नए ख़ुलासे हो रहे हैं और हर रोज़ व्यवस्था के सड़ते तंत्र से रिसता मवाद नज़र आ रहा है। अभी ताज़ा एंट्री मोहित काम्बोज ‘भारतीय’ की हुई है जो पहले कांग्रेस में रहते हुए ₹1000 करोड़ के एक बैंक फ्रॉड में लिप्त था और जैसा कि आज हर अपराधी कर रहा है, वो भाजपा में शामिल हो गया। ‘जितना खांटी अपराधी उतना बड़ा ओहदा वाले फ़ॉर्मूले के तहत वो युवा भाजपा का महाराष्ट्र अध्यक्ष बन गया!!

सड़ती पूंजीवादी व्यवस्था के सड़ते फोड़े से रिसते मवाद वाली इस अश्लील कहानी का अन्तिम व पांचवां अध्याय है, इस सडन के दूसरे छोर का भाजपा के ‘राष्ट्रवादी व यशस्वी’ भूतपूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नविस के घर तक पहुँच जाना।  हिन्दू अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक देश के सबसे कुख्यात ड्रग तस्कर जयदीप राणा की देवेन्द्र फड़नवीस की पत्नी अमृता फड़नवीस के साथ तस्वीर अभी भी मीडिया में मौजूद है जिससे साबित होता है कि भूतपूर्व भाजपा मुख्यमंत्री के सम्बन्ध ड्रग तस्करों से हैं। इतना ही नहीं नवाब मलिक ने ये भी पूछा है कि मालदीव्स में हुई ऐय्याशी की एक पार्टी जिसमें मुम्बई फिल्म उद्योग के कलाकार, भाजपा पार्टी के कई नेता और कुख्यात तस्कर सभी शामिल थे। उस पार्टी के खर्चे का भुगतान किस खाते से किया गया, बताया जाए? इसके जवाब में देवेन्द्र फड़नवीस ने जो जवाब दिया, ‘मैं दीवाली के बाद बम फ़ोडूंगा/ शीशे के घरों में रहने वाले दूसरों पर पत्थर नहीं मारते’, वह इन आरोपों की स्वीकारोक्ती है। नवाब मलिक के सवालों/ आरोपों का जवाब देने के बजाए उनपर आरोप मंधना और एक दम नंगा हो जाने पर मानहानि का मुक़दमा दायर कर भाग निकलने का प्रयास ये सिद्ध करता है कि सभी आरोप सही हैं। इस वीभत्स गटर स्नान से अब तस्करों के ख़ूनी पंजों की पहुँच सबसे शीर्ष पर विराजमान महबलियों का संलिप्त होना प्रस्थापित होता जा रहा है। सत्ता के चरित्र को इससे ज्यादा नंगा करना सत्ता के लिए ठीक नहीं इसलिए जल्दी ही दोनों पक्षों में डील हो जाएगी और प्रेस कांफ्रेंस का दैनिक धारावाहिक बंद हो जाएगा।            

देश में ख़तरनाक ड्रग तस्करी की भयावहता

केंद्र के ख़ुफ़िया विभाग ने 15 सितम्बर 2021 को अडानी के मुन्द्रा बंदरगाह से 2988.22 किलो खतरनाक हेरोइन ड्रग जब्त की जिसकी क़ीमत ₹21000 करोड़ है। ये अब तक के इतिहास में हमारे देश में ये सबसे बड़ी और दुनियाभर में सबसे बड़ी ड्रग जब्तियों में से एक है। ये माल अफ़गानिस्तान से चला और ईरान के बंदरगाह से विजयवाड़ा के एम सुधाकर और उनकी पत्नी पूर्णा वैशाली की कंपनी ‘आशी ट्रेडिंग कंपनी’ के आयात लाइसेंस पर आया। हिन्दू में छपी रिपोर्ट के मुताबिक़, आशी ट्रेडिंग कंपनी का कहना है कि उनका आयात-निर्यात लाइसेंस दूसरे इस्तेमाल करते हैं और उन्हें उसके एवज में कमीशन मात्र मिलता है, उसमें कोई कौन सा माल ला रहा है इससे उनका कोई लेना-देना नहीं है। उनका ये भी कहना है कि मुन्द्रा स्थित अडानी के निजी बंदरगाह में इस तरह लाइसेंस देकर कमीशन कमाना आम बात है!! इससे पहले जुलाई महीने में मुंबई के न्हावा शेवा बंदरगाह से 300 किलो और अगस्त 2020 में 191 किलो हेरोइन बरामद हुई थी। इस ड्रग की अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में क़ीमत लगभग ₹7 लाख प्रति किलो है। इन सब मामलों की जाँच राष्ट्रिय जाँच एजेंसी (NIA) को दे दी गई और फिर उस मामले में क्या चल रहा है, कभी जानने को नहीं मिला। 

संयुक्त राष्ट्र संघ की ड्रग नियंत्रण रिपोर्ट 2014 के मुताबिक़ 2011 से 2013 के बीच 3 साल में भारत में ड्रग तस्करी 455% से बढ़ी है। सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय की 2019 कि रिपोर्ट के मुताबिक भारत में नशे की भयावहता का ये आलम है।

नशे का प्रकारनशेड़ियों की कुल तादादआदत लग चुके लोगएडिक्ट जो इसके बगैर नहीं रह सकते, बीमार हो चुके, ईलाज चाहिए
शराब16,00,00,0005,07,00,0002,07,00,000
गांजा3,01,00,00072,00,00025,00,000
भांग11,00,000ज्ञात नहींज्ञात नहीं
हेरोइन63,00,000ज्ञात नहींज्ञात नहीं
रासायनिक पदार्थ25,00,000ज्ञात नहींज्ञात नहीं
नाक से सूंघकर77,00,00022,00,0008,05,000
कुल तादाद 20,77,00, 000  

देश में नशे के शिकार हो चुके लोगों की कुल तादाद 20 करोस 77 लाख है। ये आंकडे 2019 के हैं। जिस गति से नशाखोरी बढ़ती जा रही है, आज के हालात और भयावह हैं, आगे क्या हाल होगा, सोचकर ही कंपकंपी छूटती है। खतरनाक ड्रग्स का व्यापार भयानक रूप से बढ़ रहा है, ये इस वक़्त दुनिया का सबसे फलता-फूलता, सर्वाधिक मुनाफ़ा देने वाला व्यवसाय बन चुका है। सबसे खतरनाक और कड़वी हकीक़त ये है कि युवाओं में नशे को फैशन के नाम पर परोसा जा रहा है। नशेड़ियों में युवाओं की तादाद बढ़ती जा रही है और महिलाओं में भी ड्रग एडिक्ट्स की तादाद बढ़ती जा रही है।

कृपया 1 मिनट का समय निकालकर ये फाइल ज़रूर देखें। ये दुनियाभर में नशे पर हो रहे खर्च का वर्ल्डओमीटर है। ये हर पल ड्रग सेवन पर हो रहे खर्च को दर्शाता है। आपने इतना तेज़ घूमता मीटर नहीं देखा होगा। इसे देखना और इसके परिणाम सोचना कितना डरावना अनुभव है। ऐसा लगता है जाने कितने लोग, लोगों को ज़हर बेचकर और उसका आदी बनाकर अपना मुनाफ़ा कमा  रहे हैं बेशक ख़ुद उनके बच्चे भी उस ज़हर का शिकार हो रहे हों। यही है इस मुनाफ़ाखोर पूंजीवादी व्यवस्था की कड़वी हकीक़त।  

दुनिया के सबसे ख़तरनाक ड्रग

दुनियाभर में युवाओं में ड्रग एडिक्शन बहुत खतरनाक गति से बढ़ रहा है। अमेरिका में सबसे ज्यादा मौतें ड्रग की मात्रा ज्यादा हो जाने की वज़ह से हो रही हैं हालाँकि मात्रा ज्यादा ना हो तब भी मौत ही होनी है लेकिन तुरंत नहीं, धीरे-धीरे।  ‘24/7 वाल स्ट्रीट’ द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार सबसे ख़तरनाक और जान लेवा 15 ड्रग्स ये है।

क्र सड्रग का नाम और रासायनिक पहचानशरीर को किस तरह नुकसान पहुँचाता हैपरिणाम
1.असतमिनोफेन Acetaminophen, दर्द में ली जाने वाली दवा जिसमें कुछ रसायन मिलाकर बहुत ही घातक ड्रग बनती है।लीवर पूरी तरह ख़राब हो जाता है जिसे ठीक नहीं किया जा सकता। सबसे ख़तरनाक नशा जिसे कई लोग अनजाने में दर्द नियंत्रित करने के लिए भी लेते हैं।अमेरिका में हर साल कम से कम 4500 मौतें। 25000 गंभीर मरीज़
2.शराब/ अल्कोहललीवर, तनाव, अनिद्रा, कैंसर, दिल का दौरा, आत्म हत्या88000 मौतें, दुर्घटनाएँ
3.एन्ज़ोदिअज़ेपिनेस Benzodiazepines, बेन्जोस, तनाव दूर करने के लिए इस्तेमाल होने वाले रसायनों का मिश्रणसाँस लेने में रूकावट पैदा हो जाती है।मात्रा ज्यादा होने पर दम घुट जाना, 31% मौतें
4.एंटी कौयगुलांट Anticoagulants खून का थक्का रोकने में इस्तेमाल होने वाले रसायनदिल का दौरा, धमनियों में रक्त जम जानाआतंरिक रक्त स्राव से मौतें
5.Antidepressants तनाव नियंत्रित करने और मूड ठीक रखने वाले रसायनदिल का दौरा, अत्यधिक तनावदिल के दौरे से मौतों में इनका हिस्सा ज्यादा
6.Anti -Hypertensions, तनाव रोधकबी पी, कैंसर, डायबिटीजबढ़ती मौतें
7.ब्रोमोक्रिप्तिन Bromocriptine, पार्किन्सन रोग रोकथाम वाले रसायनमहिलाओं में मासिक धर्म रुक जाना, स्तनों से दूध बहना, गर्भ धारण ना हो पाना, अनिद्रामानसिक रोग, दुर्घटनाएँ
8.च्लेरिथ्रोम्य्सिन Chlarithromycin, निमोनिया, खांसी में दिए जाने वाले रसायनह्रदय रोगबढ़ती मौतें
9.क्लोज़पिन Clozapineदिमागी असंतुलनआत्म हत्या
10.कोकीनसेक्स उत्तेजना बढ़ाने के लिए इस्तेमाल होने वाली ‘मनोरंजक ड्रग’, नपुंसकताहर साल 14000 मौतें
11.कोल्चिसिन, Colchicineगठिया, संधिवातबढ़ती मौतें
12.खांसी की दवाओं वाले ड्रग, DXMखांसी, मानसिक असंतुलनपागलपन, कोमा
13.दिगोक्सिन, लानोक्सिनह्रदय रोग, उल्टियाँ, पेट में दुखनबढ़ती मौतें
14.हेरोइन, मॉर्फिन, भांग के बीजमांस पेशियाँ कमजोर हो जाना, नाक और फेफड़ों में घातक परिणाम, कैंसर, गुर्दे ख़राब हो जानासबसे तेज़ी से फ़ैल रहा नशा। हर साल तेज़ी से बढ़ती मौतें
15.सेमी सिंथेटिक ओपिओड्स, दर्द निवारक दवाएंसाँस लेने में तक़लीफ़, शराब के साथ लेने से शारीर में घातक रोग पीड़ाअमेरिका में ओपिओद महामारी जैसे हालात, दुनियादारी से बेखबर, दीवानापन, पागलपन, मौत

समाज को नशाखोरी में तबाह होने से बचाना;
एक गंभीर चुनौती

गुजरात में मुंद्रा पोर्ट पर 15 सितम्बर को ज़ब्त 3000 किलो ख़तरनाक ड्रग हेरोइन 30 लाख लोगों को बरबाद करने के लिए काफ़ी है। नशे का शिकार एक व्यक्ति सिर्फ़ अपनी ही ज़िन्दगी बरबाद नहीं करता बल्कि हर एक व्यक्ति, एक पूरे परिवार की ज़िन्दगी को नरक बना देता है और ये सब उसके अपने हाथ में नहीं होता। ड्रग्स में मौजूद रसायन शरीर में ऐसे बदलाव लाते हैं जिससे वो इन्सान उस ड्रग को पाने के लिए तड़पता है और उसके लिए कुछ भी कर सकता है। उसे बहुत धैर्य से, बहुत प्यार से समझाना होता है, हर रोज़ अपने धैर्य की परीक्षा देनी होती है और कुछ ही मामलों में कामयाबी मिलती है वो भी बहुत धीरे-धीरे, तिल तिल कर। जिस तरह सत्ताधारी पार्टियों की मिलीभगत ड्रग तस्करों-व्यापारियों से ज़ाहिर होती जा रही है और जैसे-जैसे मुनाफ़ा कमाने की पाशविक शक्तियों को ना सिर्फ़ खुली छूट दी जा रही है बल्कि उन्हें अधिकतम मुनाफ़ा कूटने के लिए उकसाया जा रहा है, अब तो इस बात पर भी शक़ करने का आधार बनता है कि ये ज़ब्त की हुई ड्रग्स सरकारी मालखाने में सुरक्षित रहती होगी या जला दी जाएगी। बहुत मुमकिन है कि ये फिर, सारी की सारी या इसका अधिकांश भाग फिर बाज़ार में बेच दी जाएगी। एक किलो पदार्थ की क़ीमत अगर ₹7 लाख रुपये हो तो उसका बिना बिके सरकारी मालखाने में सुरक्षित पड़े रहना आज नामुमकिन है। समीर वानखेड़े जैसा ही एक ड्रग नियंत्रण ब्यूरो का ज़ोनल डायरेक्टर जो चंडीगढ़ में तैनात था वो खुद ज़प्त की हुई ड्रग बेचता पकड़ा जा चुका है जो 13 साल की जेल काट रहा है। ये पहली बार नहीं है कि ड्रग तस्कर भाजपा के भूतपूर्व मुख्यमंत्री के घर तक पहुंचे हुए पकडे गए हैं। पंजाब के चुनाव में तो मुख्य चुनावी मुद्दा ही ये था कि सरकार में आए तो ड्रग तस्कर मजीठिया को, जिसकी मंत्री की आधिकारिक गाड़ी से ड्रग बरामद हुई थी, जेल भेजेंगे। ये ड्रग तस्कर बड़े कॉर्पोरेटस के गुर्गे हैं ये शक़ करने का आधार मौजूद है। सरकारी बंदरगाहों पर जब सरकारी अमले के रहते हुए ड्रग तस्करी हो जाती है तो निजी बंदरगाह पर जहाँ मालिक को सिर्फ़ और सिर्फ़ मुनाफ़ा चाहिए, क्या ड्रग तस्करी रुक सकती है? क्या ₹21000 करोड़ का माल अडानी के बंदरगाह पर उसकी मिलीभगत के बगैर आया? ये एक कन्साइनमेंट है, कुल कितनी ड्रग आती होगी? अडानी से अभी तक कोई पूछताछ नहीं हुई है। 2020-21 में अडानी की आमदनी 257% से बढ़ी है, उसे हर रोज़ लगभा ₹1002 करोड़ का मुनाफ़ा हुआ है। जब सारे उद्योग-धंधे बंद थे तो ये कमाई हुई कहाँ से? इतना मुनाफ़ा तो सिर्फ़ ड्रग तस्करी से ही आ सकता है। मीडिया में ये भी आ चुका है कि ये ज़ब्ती इसलिए हुई कि जिस अधिकारी को जिस वक़्त जिस जगह पर होना था, वो किसी कारण से वहाँ नहीं रह पाया और नए बन्दे ने खेल ख़राब कर दिया जैसा वाक़या कश्मीर के कुख्यात पुलिस अधिकारी देवेन्द्र सिंह की गिरफ़्तारी के वक़्त हुआ था जब वो आतंकवादियों को अपनी गाड़ी में बिठाकर दिल्ली आ रहा था। दूसरे, ये जो कभी कभार ज़ब्तियाँ होती हैं ये तो, दरअसल, इन ड्रग तस्करों/व्यापारियों की आपसी रंजिश के नतीजे में होता है।

इस पूरे अश्लील और वीभत्स प्रकरण में,  जिसे आर्यन खान के नाम से ‘लोकप्रिय’ बनाया जा रहा है, एक और महत्वपूर्ण हकीक़त रेखांकित होती है। भाजपा/ संघ ने धीरे-धीरे हर सरकारी महक़मे में गंभीर दख़ल कर ली है। नागरिकता कानूनों के विरुद्ध मज़बूत होते जा रहे आन्दोलनों को समाप्त करने के लिए दिल्ली में अल्पसंख्यक समुदाय के विरुद्ध हिंसा, राज्य द्वारा प्रायोजित थी जिसे सांप्रदायिक दंगों का नाम दिया गया। ये हकीक़त हर रोज़ अदालतों द्वारा की जा रही गंभीर टिप्पणियों और जाँच में पुलिस की नीयत पर अदालतों द्वारा लग रहे गंभीर सवालिया निशानों से साबित हो गई है। उस हिंसा के दौरान भी लोगों ने स्पष्ट देखा कि कैसे पुलिस की ‘मदद’ के लिए ‘कुछ सिविलियन लोग’ हाथों में लाठियां लिए मौजूद रहते थे। जामिया की लाइब्रेरी में तो छात्रों पर लाठियां बरसाने वाला पूरा गिरोह ही इन्हीं का था। सीबीआई, एनआईए, इनकम टैक्स, ई डी ये सब भाजपा/ संघ की शाखाओं की तरह काम कर रहे हैं, ये बात अब किसी को समझाने की ज़रूरत नहीं, सारा देश जनता है। चुनाव आयोग कितना निष्पक्ष है, एक घटना ने ही साबित कर दिया, जब अपनी स्वतन्त्र राय रखने का सबक सिखाने के लिए एक भूतपूर्व चुनाव आयुक्त को ही सरकारी एजेंसियों ने आतंकित कर के रख दिया था। सुप्रीम कोर्ट के भूतपूर्व जज अरुण मिश्रा एक कार्यक्रम में कह ही चुके हैं कि मोदी महान हैं और सरकार और न्यायपालिका को मिलकर चलने की ज़रूरत नहीं है। नारकोटिक कंट्रोल ब्यूरो के चरित्र ने भी ये साबित कर ही दिया है कि भाजपा का ही एक विभाग उसे देखता है, साथ ही ये भी साबित हो चुका है कि सभी सरकारी इदारों को भाजपा/ संघ ही चला रहे हैं।  अब इस हकीक़त को वे छुपाना भी नहीं चाहते। भाजपा कार्यकर्ता का ड्रग अधिकारी की तरह काम करना, आर्यन खान को घसीटते हुए ले जाना, उजागर होने के बाद भी सरकार द्वारा उसका खंडन करने की ज़हमत भी ना उठाना, क्या साबित करता है? चोरी, उगाही, अपहरण करते हुए रंगे हाथ पकडे जाने पर और महाराष्ट्र के एक मज़बूत मंत्री द्वारा उससे अपने निजी हिसाब बराबर करने की ज़िद के चलते जिस प्रक्रिया में भाजपा के बड़े ‘राष्ट्रवादी’ नेता हर रोज़ नंगे होते जा रहे थे, समीर वानखेड़े को जो अब इस जाँच से जो हटाया गया है, वो दरअसल उसे बचाने के लिए ही किया गया है। ठीक उसी तरह जैसे किसी जेबक़तरे के पकडे जाने पर उसे पीटने वालों की भीड़ में उसके साथी भी शामिल हो जाते हैं और पीटते-पीटते उसे धकियाकर भगा देते हैं। अगर ऐसा ना होता तो समीर वानखेड़े को गिरफ्तार किया गया होता और उसे रिमांड पर लेकर सघन पूछताछ की जा रही होती कि वो किसके इशारे पर काम कर रहा है, देश में खतरनाक ज़हर ड्रग आपूर्ति करने वाले कौन लोग हैं, कौन कौन से नेता और कॉर्पोरेट इस मानवद्रोही ख़ूनी व्यापार में संलिप्त हैं?? अडानी के साथ भी बिलकुल यही सलूक किया जाना चाहिए था। फ़ासीवाद की मौजूदा दूसरी लहर ने पहली मूल लहर के अपने पूर्वजों से सीखा है कि जनवाद की नौटंकी एक दम बंद करने की ज़रूरत नहीं है। इससे लोग तुरंत समझ जाते हैं। जनवादी इदारों को ही फासीवादी क्रायक्रम लागू करने का औजार बना डालो। हिटलर की तरह संसद को फूंकने की क्या ज़रूरत है? संसद में ही अपने लठैत बिठा दो। कोई दंडवत करने में आना-कानी कर रहा हो तो अपने मार्शलों को बोल दो। वे उसे कोने में ले जाकर सी सी टी वी का बटन बंद कर ‘समझा’ देंगे!!   

हर तरह के नशे को भयानक तरीक़े से बढाया जा रहा है। आप किसी भी कॉलेज, युनिवेर्सिटी में चले जाईये आपको नशेड़ी युवाओं के झुण्ड नज़र आ जाएँगे। शराब की दुकानें रात भर, 24 घंटे खुली रहती हैं। लॉकडाउन हटने के वक़्त सबसे पहले शराब की दुकानें ही खुलीं थीं और खुलते ही लोग टूट पड़े थे। जीएसटी लागू होने के बाद तो अब राज्य सरकारों के पास शराब बेचने के आलावा कोई पर्याय बचा ही नहीं है। दिल्ली सरकार का एक मंत्री तो स्पष्ट बोल चुका है, शराब ना बेचें तो क्या करें, हमारे पास अब कुछ बचा ही नहीं। लोग शराब ना पिएँ तो हमें पगार भी नहीं मिल पाएगी, हम भूखे मर जाएँगे। सिर्फ़ ‘खाते-पीते’ लोग ही शराब के नशे के शिकार हो रहे हैं ऐसी बात नहीं है। आप किसी भी लेबर चौक पर चले जाईये, सुबह 8 बजे ही आपको बहुत सारे मज़दूर जो बा- मुश्किल दिहाड़ी काम पाते हैं, आधा पेट भूखे सोते हैं, नशे में टुन्न नज़र आएँगे क्योंकि ठेके उस वक़्त भी खुले रहते हैं। गांजा, अफीम, चरस हर जगह उपलब्ध हैं। पंजाब का लगभग एक तिहाई युवा नशे की लत से बर्बाद हो चुका है। सत्ता का डबल फ़ायदा है एक तो ये ज़बरदस्त कर वसूली का साधन है और उससे भी अहम, सरकारें जानती है कि नशा इन्सान से संघर्ष करने, दृढ़ता से लड़ने का ज़ज्बा छीन लेता है। नशा इन्सान को समाज से विमुख और डरपोक बनाता है। नशे का शिकार संघर्ष नहीं कर सकता, वो बस आत्म हत्या कर सकता है। 

हालात का एक सुखद परिणाम भी है। नशा विरोधी आन्दोलनों में लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। कैसा भी नशेड़ी हो, ये नहीं चाहता कि उसके बच्चे भी नशा करें। कहीं भी दारू ठेके का विरोध शुरू होते ही जन समर्थन ज़बरदस्त मिलता है। देश के शाहरुख़ खान भी समझ चुके हैं, भले समंदर किनारे ऊँची अटरिया हो, घर के डबल बेड भी नोटों से भरे हों लेकिन नशे का ख़ूनी पंजा उनके आर्यनों तक भी पहुँचने वाला है और ये भी कि असली ‘बादशाह’ वो नहीं हैं। उन जैसों को भी सामाजिक सरोकार रखना ज़रूरी है। उन्हें भी चुनना होगा कि वो इस बदबू मारती व्यवस्था के हामी हैं या इस ख़ूनी चक्की की जगह इंसानियत और इन्सान का सम्मान करने वाली समाजवादी व्यवस्था प्रस्थापित करने की ज़द्दोज़हद कर रहे मज़दूरों, मेहनतक़श किसानों के साथ?  महिलाएं, खासतौर पर मज़दूर महिलाएं नशा विरोधी आन्दोलनों में सबसे ज्यादा उत्साह से शामिल होती हैं क्योंकि इस ज़हरीली लत का असली दंश तो उन्हें ही झेलना होता है। आर्थिक परिस्थितियां ऐसी विकराल होती जा रही हैं कि अगर कोई व्यक्ति मार्क्सवाद-लेनिनवाद और ऐतिहासिक भौतिकवाद से बिलकुल अनभिज्ञ हो तो उसे हर तरफ अँधेरा ही नज़र आने वाला है। वो ये कभी नहीं समझ पाएगा कि वह तो सीढियों ऊपर चढ़ना चाहता है फिर नीचे कैसे खिसकता जा रहा है।  ऐसे  व्यक्ति को अवसादग्रस्त होने से कोई नहीं बचा सकता। नशे में काल्पनिक सुख-आनंद की तलाश में वह अपनी ज़िन्दगी नशेकी भट्टी में फूंक डालता है। सुधारवादी आन्दोलनों की अब कोई जगह नहीं बची क्योंकि ड्रग तस्कर-कॉर्पोरेट-सरकार-सरकारी तंत्र सब एक हो चुके हैं। नशा विरोधी आन्दोलनों को वृहत फासीवाद विरोधी आन्दोलन का हिस्सा बनाने की ज़रूरत है जिसकी एक प्रचंड लहर में इस सड़े तंत्र को हमेशा के लिए दफ़न किया जा सके।