कर्मचारी राज्य बीमा कानून (ईएसआई)

June 20, 2022 0 By Yatharth

सामाजिक सुरक्षा के नाम पर मजदूरों से सरकारी धोखाधड़ी

एस वी सिंह

‘कर्मचारी राज्य बीमा कानून, 1948’ (ESI Act, 1948) भी द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बुलंदी पर आए विश्व मजदूर आंदोलन का ही एक परिणाम था। लाल झंडा, उस वक्त, दुनिया भर में शान से लहरा रहा था। औपनिवेशिक साम्राज्यवादी लुटेरे देश जान गए थे कि उनकी निर्मम लूट के विरुद्ध आक्रोश की ये सूनामी लहर पूंजीवादी-साम्राज्यवादी लूट के समूचे तंत्र को ही बहाकर ले जा सकती है, इसलिए जितनी जल्दी हो सके अपना बोरिया-बिस्तरा समेट कर निकल लेने में ही भलाई है। इसीलिए मजदूरों को क्रांतिकारी संघर्ष के रास्ते से दूर करने के लिए मालिकों में मजदूर-प्रेम दिनों-दिन जोरों से उमड़ता-घुमड़ता जा रहा था। शोषण की चक्की को बचाना उनकी पहली जरूरत थी। पूंजी साम्राज्यवादी रूप अख्तियार कर ही चुकी थी, पूंजी के निर्यात से ही बाजार की लूट मुमकिन थी इसलिए बंदूक लेकर दूसरे देशों की छाती पर बैठकर उन्हें गुलाम बनाकर लूटने का जोखिम लेने की जरूरत अब रह भी नहीं गयी थी। अंग्रेज शासकों ने जनवरी 1944 में ही तत्कालीन बड़े भारतीय पूंजीपतियों को खुद ये जिम्मा सौंपा कि वे पूंजी के विकास की आगे की राह तय कर लें। परिणामस्वरूप ‘बॉम्बे प्लान’ (टाटा-बिड़ला प्लान) वजूद में आई। पूंजीवादी चक्की मजदूरों के हाथ लगे बगैर एक इंच भी आगे नहीं खिसकती इसलिए उसके साथ ही प्रोफेसर बी पी अदरकर की अध्यक्षता में एक और समिति गठित हुई जिसे मजदूरों को अकाल और महामारी में जीवित रखने के उपाय सुझाने थे। पलड़ा जब मजदूरों का भारी होता है तब मालिकों के दिल में मजदूर-अनुराग बहुत उफान मारता है!! अदरकर रिपोर्ट ने सुझाया कि भारत में अकाल आते रहते हैं इसलिए कारखानों को चलाने के लिए मजदूरों को मौत से बचाना बेहद जरूरी है। यूरोप में उभरते मजदूर आंदोलन के बाद मजदूरों को जैसी स्वास्थ्य बीमा सम्बंधी सुविधाएं इंग्लैंड आदि में दी गई हैं वैसी ही सुविधाएं भारत के मजदूरों को भी मिलनी जरूरी हैं। सिफारिशें स्वीकार कर ली गईं , जिसके परिणाम स्वरूप ‘कर्मचारी राज्य बीमा कानून, 1948’ वजूद में आया। हालांकि, ईएसआई निगम (इसके पश्चात् निगम) की स्थापना की घोषणा प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने तत्कालीन केन्द्रीय श्रम मंत्री बाबू जगजीवन राम की उपस्थिति में, कानपुर में 24 फरवरी 1952 को 70,000 से भी अधिक श्रमिकों की सभा में पूरे बाजे-गाजे के साथ की और उसके अगले ही दिन 25 फरवरी 1952 को कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) की स्थापना हुई, जिसका मुख्यालय, कॉमरेड इन्द्रजीत गुप्ता मार्ग, नई दिल्ली में है । 24 फरवरी हर साल ‘ईएसआई दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। 

“कर्मचारियों के बीमार पड़ने, मातृत्व (maternity) के दौरान और काम करते वक्त होने वाली दुर्घटनाओं में इलाज की सुविधाएं उपलब्ध कराना और उससे सम्बंधित मामलों में मदद की व्यवस्था करना”, कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) का ये एक वाक्यीय लक्ष्य है। निगम का प्रशासन एक बोर्ड करता है जिसके अध्यक्ष केन्द्रीय श्रम मंत्री होते हैं और जिसमें केंद्र सरकार, सभी राज्यों के श्रम सचिव, उद्योगपतियों के प्रतिनिधि, प्रख्यात डॉक्टर तथा साथ ही केन्द्रीय मजदूर यूनियनों के 10 नेता भी शामिल होते हैं। बाकी सरकारी विभागों में फिलहाल जारी रस्मों-रिवाज के अनुरूप, मौजूदा बोर्ड में मजदूरों के दस प्रतिनिधि इस तरह हैं; आरएसएस की मजदूर यूनियन बीएमएस से 3, उसी तरह की यूनियनों ‘लघु उद्योग भारती’ से 1, अखिल भारतीय आयुर्वेद कांग्रेस से 1, वैद्य 1 तथा एआईटीयूसी 1, सीटू 1, एचएमएस 1 और टीयूसीसी से 1। 

कर्मचारी राज्य बीमा निगम की शर्तों के अनुसार हर उद्योग या व्यावसायिक प्रतिष्ठान में, जहां 10 या उससे अधिक मजदूर काम करते हों और जिनका मासिक वेतन 21,000 रु (इक्कीस हजार मात्र) से अधिक ना हों, आवश्यक रूप से कर्मचारी राज्य बीमा निगम के सदस्य होंगे और उनके वेतन से हर महीने कुल वेतन का 3.25% (1 जुलाई 2019 से पहले 4.7% था) की कटौती की जाएगी। साथ ही मालिक उसमें 0.75% (1 जुलाई 2019 से पहले 1.75% था) का योगदान करेगा। इस तरह हर मजदूर को मिलने वाले कुल वेतन का 4% हर महीने कर्मचारी राज्य बीमा निगम (निगम) में जमा होता जाता है। इसके अतिरिक्त कुल खर्च का 1/8 हिस्सा सम्बंधित राज्य सरकार को वहन करना होता है। निगम की 31 मार्च 2021 की बैलेंस-शीट के ऑडिटेड अहम आंकड़े इस प्रकार हैं; पंजीकृत कर्मचारियों की कुल संख्या 2,26,72,150 है। निगम के कार्ड धारकों (IP) की कुल संख्या 3,39,19,370 है। चूंकि कार्ड धारक का पूरा परिवार निगम द्वारा स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने का अधिकारी होता है, अत: लाभार्थियों की कुल संख्या 13,16,07,156 है। इसी प्रकार निगम में कुल पंजीकृत मालिक (Employer) 12,82,125 हैं जबकि निगम में योगदान करने वाले मालिक मात्र 5,97,479 हैं। 31 मार्च 2021 को समाप्त वर्ष में निगम की कुल आय 21,091.12 करोड़ रु तथा कुल खर्च 13,746.53 करोड़ रु रहा। इस तरह एक वर्ष में निगम का कुल मुनाफा 7344.59 करोड़ रु हुआ। निगम का कुल जमा कोष जो 31 मार्च 2020 को 1,07,266.72 करोड़ रु था वो 31 मार्च 2021 को बढ़कर 1,16,253.32 करोड़ रु हो गया। 

1,16,253.32 करोड़ रुपये की ये विशाल रकम उन मेहनतकश मजदूरों की है जिनका मासिक वेतन 21,000 रु से कम है। न्यूनतम वेतन या उसके आस-पास वेतन पाने वाला ये मजदूर तबका जिसकी उनके परिवार सहित आधिकारिक तादाद 13.16 करोड़ है, स्वास्थ्य के मामले में समाज का अत्यंत आलोचनीय (vulnerable) तबका है। हर महामारी का सबसे पहला और सबसे बड़ा शिकार तो ये कमेरा वर्ग ही होता है, महामारी ना भी हो तो भी गंभीर बीमारी में उचित इलाज ना मिल पाने के कारण मौत की चपेट में ये लोग ही सबसे पहले आते हैं। कोरोना महामारी में मरे 48 लाख लोगों में सबसे बड़ी तादाद इन्हीं लोगों की है। महामारी में तो मरे ही हैं, महामारी जाहिर होने के बाद बिना किसी योजना या तैयारी के घोषित की गई अमानवीय लॉकडाउन के बाद अनंत पैदल यात्रा के दौरान भी जो 991 मजदूर शहीद हुए, और जिन दर्दनाक मौतों को मोदी सरकार ने बेशर्मी के साथ स्वीकार करने से ही मना कर दिया, जिससे उन्हें कोई मुआवजा ना देना पड़े, वे सब इसी वर्ग से थे। आर्थिक रूप से सतत गंभीर तंगी में रहने की वजह से स्वास्थ्य की चमचमाती, पंच-सितारा दुकानों में कदम रखने की भी हैसियत इस वर्ग की कैसे हो सकती है, अब तो ये निजी मेडिकल-उद्योग मध्य वर्ग की पहुंच से भी बाहर है। मंहगाई के पहाड़ तले कराहते इन मेहनतकश मजदूरों के खून-पसीने की कमाई से कटौती कर ही निगम की 1.16 लाख करोड़ रु की ये पहाड़ जैसी दौलत जमा हुई है। ये रकम बहुत बड़ी है और बेहद मूल्यवान है क्योंकि ये उस प्रक्रिया के तहत जमा नहीं हुई है जिसके तहत अडानी की दौलत 2021 में प्रति घंटा 75 करोड़ रु की दर से बढ़ती गई, बल्कि ये मजदूरों को मिलने वाली रोटी का हिस्सा काटकर जमा हुई है। ऐसे में कई बहुत गंभीर सवाल पैदा होते हैं। क्या ये रकम सुरक्षित है? क्या ये रकम इसी तरह हर महीने बढ़ती जानी चाहिए थी क्योंकि 13.16 करोड़ लोगों के स्वास्थ्य के पर्याप्त इन्तेजाम हो चुके हैं? मजदूरों के वेतन से ये कटौती इलाज के साथ-साथ उन्हें दूसरी आर्थिक मदद पहुंचाने के मकसद से भी की जाती है जैसे, महिलाओं के लिए मातृत्व के दौरान पौष्टिक भोजन की अतिरिक्त व्यवस्था करने के लिए, साथ ही मातृत्व के दौरान 6 महीने जब वे काम पर नहीं जा पातीं और जब मालिक उन्हें वेतन नहीं देता तब उस वक्त पूरे 6 महीने पूरे वेतन का भुगतान करना, मृत्यु हो जाने पर दाह-संस्कार के लिए आर्थिक मदद, कारखाने में दुर्घटना ग्रस्त हो जाने, अपंग हो जाने या गंभीर रूप से बीमार हो जाने पर डॉक्टर की सलाह पर जितने दिन आराम की जरूरत है उतने दिन का 75% से 100% तक मासिक वेतन देना। क्या सभी मजदूरों और उनके परिवारजनों को, जिनकी कुल तादाद 13.16 करोड़ है, ये सब सुविधाएं प्रदान करने के बाद भी ये पैसा जमा होता जा रहा है या फिर मजदूरों को कोई भी ऐसा-वैसा कारण बताकर और इन जीवनावश्यक सुविधाओं से महरूम कर ये दौलत जमा की जा रही है? क्या निगम, श्रम विभाग और सरकार की नीयत मजदूरों के खून-पसीने की कमाई से कटौती कर जमा की गई इस रकम से मजदूरों को उनके हक की स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने की है या कुछ और है? क्या इस जमा रकम का निवेश सुरक्षित और लाभप्रद तरीके से किया जा रहा है? आइये देखें।

1) कर्मचारियों के बहुमूल्य खजाने की रखवाली मुकेश अम्बानी की कंपनी कर रही है! 

      जैसे ही किसी सरकारी विभाग में बड़ी रकम इकट्ठी हो जाती है, तुरंत उसे सूंघकर उस विभाग से किसी ना किसी रूप में अडानी-अम्बानी की कंपनियां क्यों और कैसे जुड़ जाती हैं? ये परिघटना रहस्यपूर्ण और संदिग्ध है, मानो खतरे की घंटी है। अक्टूबर 2018 में निगम ने अपने पास मजदूरों के वेतन से कटौती कर जमा हुई विशाल रकम के प्रबंधन के लिए मुकेश अम्बानी की एक कंपनी ‘रिलायंस निप्पन लाइफ’ को निवेश प्रबंधक (Portfolio Investment Manager) के रूप में चुन लिया। अकेले निगम ही नहीं, अम्बानी की ये कंपनी ‘कर्मचारी भविष्य निधि कोष’ (EPFO), ‘कोयला खदान भविष्य निधि कोष’ (CMPFO) तथा ‘पेंशन कोष नियामक एवं विकास प्राधिकरण’ (PFRDA) समेत लगभग 4.10 लाख करोड़ रुपये की मजदूरों की जमा राशि का भी वित्तीय प्रबंधन कर रही है। 31 मार्च 2020 को निगम के पास कुल जमा कोष 1.07 लाख करोड़ था जिसके विशिष्ट ‘निवेश प्रबंधन’ से वर्ष 01.04.2020 – 31.03.2021 में कुल 5973.84 करोड़ रुपये की आय हुई, जो कुल रकम का मात्र 5.5% है। इससे ज्यादा आमदनी (1.07 लाख करोड़ की) तो इस रकम को किसी सरकारी बैंक में फिक्स्ड डिपोजिट में रखकर ही हो जाती, जहां कम से कम अभी तक तो जोखिम कुछ भी नहीं है। निगम और भारत सरकार मेहनतकश मजदूरों के वेतन से वसूली गई रकम की संरक्षक (custodian) हैं। क्या ‘रिलायंस कैपिटल’ और जापानी कंपनी ‘निप्पन लाइफ इन्शुरन्स’ के साझे से बनी ये कंपनी ‘रिलायंस निप्पन लाइफ’ मजदूरों के हितों के प्रति किसी तरह की वचनबद्धता या संवेदनशीलता रखती है? दुनियाभर में इस तरह की निवेश प्रबंधक कंपनियों (portfolio managers) ने कैसे राजकीय कोष को अपने निजी हित में शेयर मार्केट में निवेश किया और उसके क्या परिणाम हुए, क्या निगम और मोदी सरकार नहीं जानते? अगर ये पैसा शेयर मार्केट में हुए निवेश से डूब गया तो उसके क्या परिणाम होंगे और उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा? इस परिस्थिति का सम्पूर्ण मूल्यांकन और जवाबदेही तय करना बहुत जरूरी हो गया है। अडानी-अम्बानी बिरादरी ने बैंकों का कितना पैसा डकार लिया, क्या देश के लोग नहीं जानते? निवेश किस तरह और कहां-कहां किया गया है, ये ब्यौरा उपलब्ध नहीं है जिसका उल्ल्लेख हर साल प्रमुखता से होना बहुत जरूरी है। निगम के प्रशासनिक बोर्ड में अगर मोदी सरकार के श्रम मंत्रालय और आरएसएस की मजदूर यूनियन BMS को छोड़ भी दें तो भी AITUC से अमरजीत कौर, CITU से प्रशांत नंदी चौधरी, HMS से सी ए राजश्रीधर तथा TUCC से शिव प्रसाद तिवारी, तो इसीलिए वहां हर मीटिंग में बैठते हैं कि मजदूरों के हित सुरक्षित रहें और अगर ऐसा नहीं हो रहा है तो मजदूरों को सच्चाई बताएं और उन्हें संघर्ष के लिए संगठित करें, लेकिन ऐसा होते कहीं दिखा नहीं। तो क्या इससे ये समझा जाए कि मजदूरों की ये मूल्यवान रकम सुरक्षित है? निगम के बोर्ड में बैठे और उसके हर फैसले पर हस्ताक्षर करने वाले, केन्द्रीय ट्रेड यूनियंस के इन नेताओं को भी जवाब देना और इसकी पुष्टि करना बनता है। 

2)  स्वास्थ्य सुविधाएं देने के नाम पर मजदूरों से पैसा इकठ्ठा कर, बीमारी में उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जा रहा है! 

   31 मार्च 2021 को देश भर में निगम के 8 मेडिकल कॉलेज, 142 अस्पताल तथा 1502 डिस्पेंसरियां हैं। इनमें से अधिकतर को तो सम्बंधित राज्य सरकारें चलाती हैं और उनके प्रबंधन का क्या हाल है, सब जानते हैं। लेकिन जिन अस्पतालों को निगम स्वयं चलाता है वहां का भी हाल ये है कि अस्पतालों में कुल मिलाकर स्वीकृत बिस्तरों की संख्या 12,440 है जबकि वास्तव में कुल 8,835 बिस्तर ही मौजूद हैं। मौजूद बिस्तरों में भी औसतन 36% बिस्तर ही भरे (occupied) होते हैं। निगम में डॉक्टरों के कुल स्वीकृत पदों की संख्या 5591 है जबकि वास्तव में 3782 डॉक्टर ही मौजूद हैं। डॉक्टरों के कुल 1809 पद रिक्त हैं। देश में 5 सबसे ज्यादा कार्ड धारक राज्य इस तरह हैं; महाराष्ट्र-46.99 लाख, तमिलनाडु-39.70 लाख, कर्णाटक-34.86 लाख, यू पी-24.48 लाख तथा हरियाणा-24.06 लाख। इन पांच राज्यों में डॉक्टरों के रिक्त पड़े पदों का प्रतिशत इस प्रकार है; महाराष्ट्र 68%, तमिलनाडु 16%, कर्णाटक 29%, यू पी 33%, हरियाणा 27%। देश में महाराष्ट्र में कार्ड धारक सबसे ज्यादा हैं, देशभर का कुल 14%, लेकिन निगम के अंतर्गत मजदूरों की स्वास्थ्य सेवाओं की सबसे दयनीय हालत भी महाराष्ट्र में ही है। जहां डॉक्टरों के 68% पद रिक्त पड़े हों वहां क्या इलाज होता होगा, अंदाज लगाना मुश्किल नहीं!! इससे भी ज्यादा तकलीफदेह तथ्य ये है कि महाराष्ट्र में कुल कार्ड धारक संख्या 46,98,620 होने के बावजूद, उनके लिए अस्पतालों में मौजूद कुल बिस्तरों की संख्या मात्र 700 है!! महाराष्ट्र राज्य के तीनों प्रखंडों में बिस्तर भरे होने (bed occupancy rate) का प्रतिशत भी देश में सबसे कम, अंधेरी 31%, बिबवेवाडी 13% और कोल्हापुर में 17% मात्र है। मतलब महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा लेकिन देशभर में ही मजदूरों के वेतन से कटौती सतत की जा रही है और उसे उनके इलाज पर खर्च नहीं किया जा रहा बल्कि उससे संचयित कोष को बढाया जा रहा है जिसकी निगरानी मुकेश अम्बानी की कंपनी कर रही है!! देशभर में निगम द्वारा मजदूरों के इलाज में हो रही धोखाधड़ी में सबसे भयानक हालत बिहार राज्य के बिहटा प्रखंड में है, जहां उपलब्ध बिस्तरों में महज 3% ही भरे होते हैं। राजस्थान के बड़े, उभरते और धनपशुओं के सबसे पसंदीदा औद्योगिक केंद्र भिवाड़ी प्रखंड में मात्र 5% बिस्तर ही भरे होते हैं। दरअसल, निगम द्वारा दिए इन आंकड़ों की सत्यता पर ही भरोसा नहीं होता। निगम के पास पैसा, चूंकि, मजदूरों का है इसलिए निगम द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों का ऑडिट मजदूर यूनियनों की संयुक्त कमेटी द्वारा होना चाहिए। ये बिस्तर कहीं सिर्फ कागज पर ही तो नहीं हैं!!  

3) कर्मचारियों का पैसा कर्मचारियों के स्वास्थ्य पर खर्च करने की बजाए जमा कोष बढ़ाने पर जोर क्यों? 

     2 करोड़ 26 लाख 72 हजार 172 बीमाकृत मजदूरों और उनके परिवारजनों को मिलाकर कुल 13 करोड़ 16 लाख 7 हजार 156 लोगों के लिए जितने अस्पताल, मेडिकल कॉलेज, डिस्पेंसरियां और लगने वाला साजो-सामान चाहिए, उसका एक चौथाई भी उपलब्ध नहीं हैं। जो है, उनमें जितने डॉक्टर, नर्स, दूसरा स्टाफ चाहिए उसके आधे से अधिक पद रिक्त पड़े हैं। मेडिकल टेस्ट के लिए उपयुक्त लैब नहीं, ऑपरेशन थिएटर हैं लेकिन उनमें पर्याप्त उपकरण नहीं। दवाइयां तो हर वक्त नदारद होती हैं। ‘सामने वाले मेडिकल स्टोर से ले लो’ खिड़की से झांकता कर्मचारी बस ये बोलता जाता है! जितनी बिस्तर सुविधाएं मंजूर हैं, उतनी भी मौजूद नहीं और जितनी मौजूद हैं उनके दो तिहाई (64%) खाली पड़े हैं, मानो मजदूर बीमार होना बंद हो चुके हैं!! मरीजों को कोई ना कोई कारण बताकर निरंतर टरकाते जाने में निगम विशेष योग्यता रखता है। निगम भी मस्त है जितने मरीज टरकेंगे, उतना संचित कोष बढ़ेगा। कहीं देखा है ऐसा आपराधिक निकम्मापन? जहां इस आकाश चीरती मंहगाई में 80 करोड़ लोगों को दिन में दो जून रोटी का जुगाड़ ही नहीं हो पा रहा, ऐसे में पौष्टिक खाना कहते किसे हैं मजदूरों को कैसे पता होगा? 40 वर्ष की उम्र में 70 साल जैसी वृद्धावस्था घेर लेती है, अधिकतर 50-55 की उम्र होने तक सांसें छोड़ देते हैं। कोरोना महामारी में मारे 48 लाख में अधिकतर मेहनतकश मजदूर ही थे। फरीदाबाद मेडिकल कॉलेज को छोड़ निगम के किसी भी अस्पताल को कोरोना मेडिकल सुविधा में रूपांतरित नहीं किया गया। क्या निगम इसका कारण बताएगा? सबसे पीड़ादायक पहलू ये है कि जन स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने में पैसे की कमी को कारण बताया जाता है, यहां पैसा भरपूर उपलब्ध है; पूरे 1 लाख 16 हजार करोड़ से भी अधिक पिछले साल 31 मार्च तक। इस साल, 31.03.2022 को इसमें 10,000 करोड़ से अधिक और जुड़ गया होगा, ऑडिटेड बैलेंस शीट आने पर पता चलेगा। हर साल लगभग दस हजार करोड़ जुड़ता जा रहा है। ये पैसा मेहनतकश मजदूरों की मामूली सी, न्यूनतम के आस-पास मासिक मिल रही पगार से हर महीने काट-काट कर जमा किया जा रहा है, जिसकी रखवाली की जिम्मेदारी मुकेश अम्बानी को दे दी गई है। ऐसी स्थिति में जब मरीज घर-घर में बीमारियों से मर रहे हैं और उन्हें आवश्यक मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई जा रहीं, आवश्यक डॉक्टर और स्टाफ भर्ती नहीं किए जा रहे तो इस कृत्य को मजदूरों से सरकारी ठगी और धोखाधड़ी ना कहा जाए तो और क्या कहा जाए? बीमाकृत मजदूर अथवा उनके परिवार के किसी भी व्यक्ति की मृत्यु होने पर 10,000 रुपये देय है, वो भी साल में कितनों को दिया गया, निगम को ज्ञानवर्धन करना चाहिए। बर्बर कोरोना लॉकडाउन में सड़कों पर दिन-रात अनंत चलते-चलते कुल 991 मजदूर शहीद हो गए जिनका पूरा ब्यौरा मजदूर वर्ग से प्रतिबद्ध युवाओं ने ‘स्वान’ (Stranded Workers Action Network) नाम की संस्था बनाकर अपने अथक प्रयास से इकठ्ठा किया और केन्द्रीय श्रम मंत्री को वो डेटा प्रिंट और सॉफ्ट कॉपी दोनों तरह से सौंप दिया, फिर भी मंत्री को संसद में ये बोलते हुए शर्म महसूस नहीं हुई कि सरकार के पास इन मजदूरों के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं!! ये सारे आंकड़े यहां (https://thejeshgn.com/projects/covid19-india/non-virus-deaths/# Table) उपलब्ध हैं, सरकार जी। सरकार या निगम ने ये भी पता लगाने की भी जहमत नहीं उठाई कि उनमें कितने बीमाकृत हैं। शहीद हुए इन मजदूरों के परिवारों को आज भी मदद दी जा सकती है, दी जानी आवश्यक है। सरकार के पास पैसा नहीं, वो कंगाल है तो इस कोष से ही दे दी जाए। एक भी मजदूर को कोई भी आर्थिक मदद केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकारों द्वारा नहीं दी गई। कोरोना में मृत लोगों को जो 50,000 रु की मदद अदालत के आदेश के बाद दी जा रही है, जैसा कि अखबारों में छपता रहता है, वो भी उन मजदूरों को नहीं मिली। मजदूरों के पैसे से भी मजदूरों को मदद ना देना, ना सिर्फ मजदूरों के साथ शर्मनाक सरकारी धोखाधड़ी है बल्कि ये आपराधिक लापरवाही और निकम्मेपन की पराकाष्ठा है। सभी सम्बंधित अधिकारी और सत्तारूढ़ नेता मजदूरों के प्रति विश्वासघात के कसूरवार हैं।     

4) ‘व्यापार की सुगमता’ काल में कारखाने- दारों को कर्मचारी स्वास्थ्य कोष में अपना हिस्सा देने की क्या जरूरत?

      निगम में 31 मार्च 2021 को पंजीकृत उद्योग-व्यवसाय मालिकों की कुल तादाद 14,82,125 थी जबकि निगम कोष में अंशदाता मालिक (contributory employer) मात्र 5,97,479 ही हैं। मतलब, कुल 8,84,646 व्यवसाय मालिक, जो कुल पंजीकृत मालिकों का 59.69% है, निगम कोष में प्रति माह अनिवार्य रूप से देय अपने हिस्से का भुगतान नहीं कर रहे हैं। इनमें कितने व्यवसाय बंद हो चुके हैं और कितने व्यवसाय बंद नहीं हुए हैं फिर भी कोई भुगतान नहीं कर रहे, ये जानकारी निगम को अपने वार्षिक प्रकाशित विस्तृत रिपोर्ट में देने की जरूरत महसूस नहीं हुई। ये दिया जाना अति आवश्यक है। दोनों ही आंकड़े महत्वपूर्ण हैं क्योंकि या तो 59.69% व्यवसाय मालिक अपना हिस्सा ना देकर एक अपराध कर रहे हैं जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार कर उनके विरुद्ध कड़ी कानूनी कार्यवाही तुरंत शुरू की जाए और उनसे ब्याज व दण्ड समेत सम्पूर्ण राशि की वसूली तत्काल की जाए। या फिर, अगर आधे से भी अधिक व्यवसाय-उद्योग बंद हो चुके हैं तो देश एक गंभीर आर्थिक संकट में फंसा हुआ है। इस तथ्य को स्वीकार करते हुए सरकार देश को बताए कि ‘अमृत काल’ और ‘विश्वगुरु’ बनने वाली बातें एक निर्लज्ज लफ्फाजी है, देश को गुमराह करने के उद्देश्य से की जा रही कोरी बकवास है। श्रीलंका की तरह हमारा जहाज भी डूब रहा है।  

5) मजदूरो, अपने अधिकारों के प्रति जागरुक बनो और उन्हें हासिल करने के लिए लड़ना सीखो  

    मौजूदा सम्पूर्ण शासन तंत्र, सम्पूर्ण रूप से पूंजी के मालिकों के पक्ष में और मजदूरों के हितों के विरुद्ध काम करता है। इसीलिए इसे पूंजीवाद कहा जाता है। मजदूर जो कुछ भी हासिल करते हैं या कर सकते हैं, वह उनकी फौलादी एकता और लड़ने के जज्बे पर निर्भर करता है। लट्ठ अंधेरे में चलता है तो अपनों का सिर ही फूटता है इसलिए अपने अधिकारों के लिए लड़ने से पहले उनकी जानकारी होना बेहद जरूरी है। कर्मचारी राज्य बीमा निगम के सम्बन्ध में मजदूरों के अधिकार (https://www.esic.nic.in/attachments/files/faq.pdf) इस प्रकार हैं:

अगर किसी मजदूर का दैनिक वेतन 137 रु से भी कम है तो उन्हें अपने वेतन से निगम में कोई अंशदान नहीं करना है जबकि मालिक को अपने हिस्से का भुगतान करना है। वेतन से बिना किसी कटौती कराए ही, वे निगम के बीमाकृत कार्ड धारक बन जाते हैं और सारी सुविधाएं पाने के हकदार हैं।

कार्ड धारक और उनका परिवार: कार्ड धारक मजदूर के साथ ही उनका पूरा परिवार; पति/पत्नी, मां-बाप और 25 वर्ष की उम्र तक के बच्चे, सभी स्वास्थ्य सुविधाएं पाने के हकदार हैं। जरूरत होने पर कृत्रिम शारीरिक अंग लगवाने के लिए भी पूरा परिवार पात्र है। कार्ड धारक का यदि रोजगार चला गया है लेकिन उसे कोई बेरोजगारी भत्ता मिल रहा है तब भी सभी अधिकार यथावत लागू हैं। ड्यूटी के दौरान मृत्यु हो जाने पर कार्ड धारक का परिवार ‘आश्रितों के लाभ’ के लिए पात्र है। कार्ड धारक की मृत्यु होने पर परिवार को उनके दाह संस्कार के लिए 10,000 रु की मदद मिलेगी। कार्ड धारक का परिवार अगर मजदूर के साथ नहीं रह रहा तो ‘परिवार पहचान बीमा कार्ड’ जारी किया जाएगा और जहां भी परिवार रह रहा है, उसी राज्य में नजदीक उपलब्ध निगम डिस्पेंसरी, अस्पताल अथवा मेडिकल कॉलेज से वह सभी सुविधाएं प्राप्त करने के अधिकारी हैं। परिवार तात्कालिक रूप से यदि किसी अन्य जगह गया हुआ है तो उन्हें फॉर्म 105 भरकर अपने साथ ले जाना होगा जिससे वे उसी जगह इलाज की सभी सुविधाएं प्राप्त कर सकें। कार्ड धारक की मृत्यु हो जाने पर भी परिवार, मजदूर की पात्रता के 90% तक इलाज का खर्च पाने का अधिकारी है जिसका विवरण इस तरह है- विधवा अथवा विधुर को उनकी मृत्यु अथवा पुनर्विवाह होने तक पूरे पात्र भुगतान का 3/5, विधवा मां को उनकी मृत्यु तक कुल का 2/5, हर एक बच्चे को 25 साल की आयु तक कुल का 2/5, अविवाहित पुत्री को जब तक भी वह अविवाहित है कुल का 2/5, पुत्र यदि अपाहिज है तो उसे सारी उम्र कुल का 2/5। एक ही शर्त है कि मजदूर की मृत्यु के उपरांत परिवार के इलाज पर हुआ खर्च उसकी पात्रता के 100% से अधिक नहीं होना चाहिए।   

बीमार होने पर मिलने वाली सुविधाएं: बीमार हो जाने की स्थिति में कार्ड धारक मजदूर को डॉक्टर की सलाह पर 91 दिन तक घर पर रह कर स्वास्थ्य लाभ लेने का अधिकार है जिसे 91 दिन तक दो बार और बढ़ाया जा सकता है। कुल अवधि एक साल तक हो सकती है। निगम की ओर से उन्हें कुल वेतन के 70% का भुगतान किया जाएगा। गंभीर रोग हो जाने की स्थिति में घर पर रहकर आराम करने की अवधि 730 दिन तक बढ़ाई जा सकती है जिसमें उन्हें 80% वेतन का भुगतान निगम की ओर से किया जाएगा। नसबंदी कराने पर पुरुष मजदूर को 7 दिन और महिला मजदूर को 14 दिन का पूर्ण वेतन भुगतान अवकाश लेने का अधिकार है। 

अपंग हो जाने की स्थिति में: अपनी ड्यूटी करते वक्त होने वाली दुर्घटनाओं में अगर मजदूर को शारीरिक क्षति हो जाती है, जिसके परिणाम स्वरूप या तो वे अपनी कार्य करने की क्षमता आंशिक रूप से खो देते हैं, जिसे आंशिक अपंगता कहते हैं, या फिर अपनी कार्य करने की क्षमता को पूर्ण रूप से खो देते हैं, इस स्थिति को सम्पूर्ण अपंगता कहते हैं। निगम द्वारा नियुक्त मेडिकल बोर्ड अपंगता की तीव्रता तय करता है। आंशिक अपंगता होने की स्थिति में वह 90% वेतन पाने का हकदार है और सम्पूर्ण अपंगता की स्थिति में पूरा वेतन जिसमें समय-समय पर होने वाली वेतन वृद्धि भी शामिल है, उन्हें सेवानिवृत्त होने की अवधि तक मिलेगा। कार्य क्षेत्र में दुर्घटना में मृत्यु हो जाने पर आश्रितों को मजदूर को मिलने वाले पेंशन का भुगतान करना निगम की जिम्मेदारी है। 

मातृत्व सुविधाएं: मातृत्व के दौरान महिला मजदूर को 6 माह तक पूर्ण वेतन का भुगतान सुनिश्चित किया जाएगा। डिलीवरी के वक्त समुचित बेड, टेस्ट, दवाइयां और ऑपरेशन की परिस्थिति होने पर सिजेरियन डिलीवरी का पूरा खर्च निगम की जिम्मेदारी है। साथ ही 21.01.2017 के बाद से, गर्भपात, किराए की कोख (surrogacy) अथवा बच्चा गोद लेने की स्थिति में भी निर्धारित भुगतान प्राप्त करने का अधिकार हर महिला मजदूर को है। गर्भ धारण के 26 सप्ताह के बाद किसी कारण से समय-पूर्व बच्चा (जीवित या मृत) पैदा होने की परिस्थिति में 12 सप्ताह तक सवैतनिक अवकाश पाने का हर महिला मजदूर को हक है। किराए की कोख (surrogacy) की परिस्थिति में, स्वयं गर्भ ग्रहण करने अथवा गर्भ दूसरी महिला को किराए पर प्रदान करने, दोनों परिस्थितियों में कार्ड धारक महिला मजदूर 12 सप्ताह की सवैतनिक अवकाश की हकदार है। गर्भपात कराने की स्थिति में महिला मजदूर को 6 सप्ताह तक पूर्ण वेतन के साथ आराम करना है। मातृत्व के दौरान कमजोरी पैदा हो जाने की स्थिति में एक माह का अतिरिक्त अवकाश मिलेगा। जहां ईएसआई सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं वहां गर्भपात कराने की स्थिति पैदा होने पर 5000 रु का भुगतान निगम की ओर से किया जाएगा। इस राशि में 01.10.2013 के बाद कोई वृद्धि नहीं हुई है जबकि मंहगाई कई गुना बढ़ चुकी है। 

मेडिकल सुविधाओं की क्या परिभाषा है: बीमाकृत और उनके सम्पूर्ण परिवार के निगम द्वारा मुफ्त इलाज का अर्थ है- कार्ड धारक और उसके परिवार के इलाज में होने वाला सम्पूर्ण खर्च जैसे एम्बुलेंस, सारे शारीरिक परीक्षण, दवाइयां और गंभीर रोग की परिस्थिति में डॉक्टर की सलाह के अनुसार देश में कहीं भी, निजी अस्पताल में भी जहां उक्त रोग के इलाज व सर्जरी की सुविधा मौजूद हैं, वहां इलाज और स्वास्थ्य लाभ में होने वाले सम्पूर्ण खर्च का भुगतान।   

सेवानिवृत्त हो जाने पर मिलने वाली मेडिकल सुविधाएं: कोई भी मजदूर न्यूनतम 5 साल की सेवा के उपरांत सेवानिवृत्त हो जाने अथवा स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति होने पर मात्र 120 रु वार्षिक का भुगतान करने पर वह स्वयं अथवा परिवार के लिए सारी उम्र सारी मेडिकल सुविधाएं लेने का/की हकदार है।                  

     अगले अंक में जारी…