पूंजीवाद के स्वर्ग अमरीका में दर-दर की ठोकरें खाते बेघर मेहनतकश लोग

November 15, 2022 0 By Yatharth

सुखदेव

पूंजीवाद के ‘स्वर्ग’ अमेरिका में सब ठीक-ठाक नहीं है। साम्राज्यवादी पूंजी के बड़े चौधरी अमरीका में जहां एक तरफ पूंजी के अंबार लगे हुए हैं, दूसरी तरफ बेरोजगारी और भुखमरी की समस्या भी रोजाना बढ़ती जा रही है। रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य इंसान की बुनियादी जरूरतें है। मानव सभ्यता के विकास की इस ऊंची मंजिल में आशा की जाती है कि मनुष्य की बुनियादी जरूरतों की पूर्ति हो। जिसके साथ आदमी की मनुष्य होने की शान बरकरार रह सके। आधुनिक विश्व पूंजीवादी व्यवस्था आजादी, समानता और भाईचारे के नारे के साथ सामंतवादी व्यवस्था को चकनाचूर करके अस्तित्व में आई थी। इसमें कोई शक नहीं है कि हजारों साल का मध्ययुगीन गतिरोध टूट गया था। जहां तक उत्पादन शक्तियों का संबंध है, मानवता ने बड़ी तेजी से विकास की मंजिलें तय की हैं। पर विकास के फल मुट्ठीभर बड़े पूंजीपतियों के हिस्से आए हैं। मध्यकाल के भूमि गुलाम और दस्तकारों की बड़ी गिनती उजरती गुलाम बनकर रह गई है। विश्व पूंजीवादी विकास का इतिहास हमारा विषय नहीं है। पर उजरती गुलामी वाली पूंजीवादी व्यवस्था हमारे इतिहास की सबसे ज्यादा असमानता वाली व्यवस्था बनकर रह गया है। बेरोजगारी इसका अभिन्न अंग है। निम्न उजरतें और नाममात्र की आमदनी वाले रोजगार विश्व की व्यापक परिघटना बन गए हैं। परिणाम यह है कि लोगों को सिर ढकने के लिए जगह भी नसीब नहीं होती है। निम्न उजरतें और नाममात्र की आमदनी वाली आबादी में बेघरों की गिनती एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। यहां हम अमरीका में बेघर लोगों की हालत के बारे में बात करेंगे। बाकी की पूंजीवादी दुनिया की हालत का पाठक स्वयं अनुमान लगा सकते हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार अमरीका में 5 से 6 लाख तक लोग बेघर हैं। बेघर होने की तलवार तो लाखों लोगों के सिर पर लटकती रहती है। सन 2000 से लेकर 2010 तक के दशक में 36 लाख लोगों को घर खाली करने का नोटिस मिला था। कोरोना लॉकडाउन अमेरिका में बाकी की दुनिया की तरह गरीबों के लिए बेहद बड़ी मुसीबतें लेकर आया था। इस दौर में पहले के मुकाबले घरों के किराए 25 फीसदी बढ़ गए थे। जनगणना ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, अगले दो महीनों में 38 लाख लोगों को घर छोड़ने के आदेश मिल सकते हैं। जो 38 लाख लोग घर छोड़ने की प्रक्रिया में शामिल होंगे, उनमें थोड़े से कुछ समय के लिए अपने रिश्तेदारों और जानकारों के घर जा सकते हैं, पर एक बड़ी गिनती बेघर हो जाएगी।

पूंजीवादी सभ्यता के सबसे बड़े रोल मॉडल अमरीका में लोगों को किस तरह बेघर किया जाता है, उसका एक उदाहरण पेश कर रहे हैं। 15  दिसंबर 2021 के अखबार ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ में एलीसासलोव का घर खाली करवाने के लिए जिम्मेदार एक पुलिस कर्मचारी लेनी के बारे में लिखा गया है कि वह रोजाना कंधे पर बंदूक रखकर किराया ना भर सकने वाले घरों में जाता था। पुलिस अधिकारी ने बताया कि उसने अकेले ही दो दशकों में 20,000 से ज्यादा घर खाली करवाए, 11 हजार वार्षिक, रोजाना के लगभग 3 घर बनते हैं। उसे आदेश दिया गया था कि एक फ्लैट 10 मिनट में खाली करवाए। उसने बताया कि वह बिना किसी आगामी सूचना के घर का दरवाजा खटखटाता था और 10 मिनट में घर खाली करने का आदेश सुना देता था। छोटे बच्चों वाले परिवार के लिए भी कोई छूट नहीं थी। घर खाली करवाने वाला वह अकेला अधिकारी नहीं था। अमरीका में घर खाली करवाने का औसत लगभग 10,000 रोजाना है। जो 1 घंटे का 420 बनता है और 1 मिनट का 7 बनता है। अस्थाई बेघर लोग भी अमरीका में काफी बड़ी गिनती में मिल जाते हैं। जब तक किसी घर का प्रबंध नहीं होता लोग किसी शेल्टर या कार में रहने के लिए मजबूर होते हैं।  घर खाली करने से पहले भी बकाया देनदारी की समस्या भी काफी गंभीर होती है। उलटा किराए में देरी करने पर जुर्माना भी वसूल किया जाता है। एक बार जिससे घर खाली करवाया जाता है, उसे आगे नया घर लेते समय बहुत मुश्किल आती है। क्योंकि उसके रिकॉर्ड में लिखा जाता है कि, ‘उससे घर खाली करवाया गया है’। इससे नया मकान मिलना मुश्किल हो जाता है। मकान मालिक के मुकाबले किराएदार की कानून तक पहुंच भी कम होती है। आमतौर पर गरीब किराएदार नोटिस मिलने पर एकदम पैसों का प्रबंध कर सकने की हालत में नहीं होते हैं। घरों की समस्या में वर्गीय और नस्लीय कारक भी काम करते हैं। वर्गीय कारक तो सीधे-सीधे अर्थव्यवस्था से संबंधित हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, कम आमदनी वाले लोग और नस्लीय अल्पसंख्यक के एक तिहाई लोग किराए के घरों में रहते हैं।

वैसे अमरीका में मकानों की कोई कमी नहीं है। कुल घरों के 10 फीसदी मकान खाली पड़े रहते हैं। पर गरीबों की पहुंच के अनुसार घरों की बहुत कमी है। कैलिफोर्निया में 100 किराएदारों के पीछे सिर्फ 23 घर ऐसे हैं, जिनका किराया भर पाना उनकी पहुंच में होता है। इस समय राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह की पहुंच वाले 70 लाख मकानों की कमी है। वर्तमान समय में 10000 अमरीकी लोगों के पीछे 17 लोग बेघर हैं। अमेरिका के बेघरों की कुल आबादी के 40% अफ्रीकी मूल के अमरीकी हैं। अमरीकी बेघरों में 20% बच्चे हैं। बेघर लोगों के मान-सम्मान को तो ठेस पहुंचती ही है, बल्कि नए रोजगार ढूंढ़ने में भी समस्या आती है। औरतों और बच्चों को ज्यादा कष्ट झेलने पड़ते हैं। बेघर लोगों की समस्याओं पर बनी फिल्म का जिक्र करते हुए एलीसासलोव एक घटना का विवरण लिखते हैं, जिसमें अचानक घर खाली करते समय 1 साल का बच्चा अपनी मां की टांगों से लिपट जाता है। इस भावुक दृश्य को देखकर दर्शकों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इस अन्यायपूर्ण हालत की तरफ सरकार का रवैया बहुत बेरुखी वाला है। कम आमदनी वाले लोगों के लिए घर की योजना का अमरीकी पूंजीपति डटकर विरोध करते हैं। उनका तर्क है कि इससे उनकी जायदाद की कीमत और उसका स्तर गिरता है। इसी दबाव के कारण अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन घरों की समस्या संबंधी अपने चुनावी वायदों से पीछे हट गया है।

आखिर अमरीकी मजदूरों की पहुंच में रहने लायक घर क्यों नहीं हैं? अमरीका में न्यूनतम वेतन का स्तर इतना नहीं है कि कम वेतन वाले मजदूर मकान का किराया दे सकें। एक रिपोर्ट के अनुसार, अमरीका में न्यूनतम वेतन 7.25 डॉलर प्रति घंटा है। कई राज्यों में न्यूनतम वेतन इससे थोड़ा ज्यादा है। कई राज्य अगले वर्षों में न्यूनतम वेतन 15 डॉलर प्रति घंटा करने पर विचार कर रहे हैं। पर 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, एक किराएदार को घर हासिल करने के लिए दिन का पूरा समय 20.40 डॉलर प्रति घंटा कमाने की जरूरत है, वह भी सिर्फ एक बेडरूम वाले रहने लायक घर के लिए। वैसे दो बेडरूम वाला घर लेने के लिए 24.90 डॉलर प्रति घंटा की कमाई जरूरी है। कम आमदनी वाले परिवारों के राष्ट्रीय गठबंधन की पहुंच से बाहर – रिपोर्ट के अनुसार, अमरीका के 93% जिलों के कम वेतन वाले मजदूर, एक बेडरूम वाला घर लेने के सक्षम नहीं हैं। पूरा समय काम करने वाले मजदूर की आमदनी का 30% घरों के किराए में चला जाता है। 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार औसतन मजदूर इस समय 18.70 डॉलर भी प्रति घंटा कमाते हैं, जो न्यूनतम जरूरत से भी 6 डॉलर प्रति घंटा कम है। एक मजदूर को घर हासिल करने के लिए हफ्ते में 97 घंटे काम करने की जरूरत है। अमरीका में यह समय मजदूरों के पूरा समय काम करने से दोगुना बनता है। रिपोर्ट से साफ है कि मजदूरों का कम वेतन घरों की समस्या का मुख्य कारण है। हल क्या है? इस समय हम संकटग्रस्त पूंजीवादी व्यवस्था में रह रहे हैं। ऐतिहासिक तौर पर एक समय अंतराल के बाद आर्थिक संकट का शिकार होने वाली विश्व पूंजीवादी व्यवस्था 21वीं सदी में ढांचागत आर्थिक संकट के दौर में दाखिल हो गई है। अपने वजूद से जुड़े कारणों के चलते, पूंजीवादी व्यवस्था की सेहत मृत्यु के किनारे पड़े उस मरीज जैसी हो गई है, जिसकी बीमारी का कोई इलाज नहीं है। ‘मुनाफे की दर गिरने के रुझान के नियम’ के कारण, हर बार संकट से निकलने के लिए, व्यवस्था ज्यादा से ज्यादा पूंजी की मांग करती है। पूंजीवाद का एकमात्र स्रोत मजदूर का अधिशेष मूल्य है। पूंजीवाद ने मेहनत की लूट के साथ-साथ धरती के प्राकृतिक खजाने की बेशुमार लूट के कारण ब्रह्मांड के अस्तित्व के लिए भी खतरा पैदा कर दिया गया है। हम एक ऐसी व्यवस्था में रह रहे हैं, जहां पूंजीपति और मजदूर वर्ग आमने-सामने हैं। मजदूर के अधिशेष मूल्य की ज्यादा से ज्यादा लूट, मृत्युशैय्या पर पड़े पूंजीवाद की सांस चलते रखना जरूरी शर्त बन गई हैं। इस समय विश्वस्तर पर बढ़ रही महंगाई और सरकार की जनविरोधी नीतियों के कारण मजदूरों के असल वेतन कम हो रहे हैं। अमेरिका में बेघर लोगों की समस्या का मूल भी मजदूरों का कम हो रहा वेतन है। ठीक-ठीक कहा जाए तो इस समस्या का मूल कारण मजदूरों की लूट पर आधारित यह पूंजीवादी व्यवस्था है। व्यवस्था की सीमाओं के अंदर कोई भी सुधार इस समस्या को हल नहीं कर सकता। सिर्फ और सिर्फ इस व्यवस्था का अंत करके ही मजदूर और आम मेहनतकश लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का रास्ता खुल सकता है। मजदूर वर्ग के नेतृत्व में मेहनतकश किसान, दबे-कुचले लोग और लोगों के साथ खड़े बुद्धिजीवियों को साथ लेकर समाजवादी इंकलाब से ही मनुष्य की मनुष्य के हाथों हो रही लूट रहित समाज का निर्माण संभव है। हालात साफ-साफ संकेत दे रहे हैं कि 21वीं सदी समाजवादी इंकलाबों के अगले दौर की सदी है।

(मुक्ति संग्राम से साभार)