विश्व बैंक प्रोजेक्ट के नाम पर स्कूली शिक्षा का अनिवार्य निजीकरण

विश्व बैंक प्रोजेक्ट के नाम पर स्कूली शिक्षा का अनिवार्य निजीकरण

September 13, 2021 0 By Yatharth

  एम. असीम

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और विश्व बैंक मिलकर राज्यों को स्कूली शिक्षा सुधार के लिए वित्त पोषण का प्रोजेक्ट लेकर आए हैं जिसमें मुख्य शर्त स्कूली शिक्षा का अनिवार्य निजीकरण है। STARS नामक इस प्रोजेक्ट को परिणाम आधारित वित्तपोषण बताया जा रहा है जिसके अंतर्गत हर वर्ष कोष उपलब्ध कराने के लिए 5 बिन्दुओं पर काम के नतीजे बताने होंगे। पर इनमें से अनिवार्य बिन्दु सिर्फ एक है – सेवा प्रदान करने की क्षमता जिसके अंतर्गत ये राज्य अपनी स्कूली शिक्षा में ‘गैर-राज्य अभिकर्ताओं’ (non state actors) अर्थात निजी समूहों को शामिल करेंगे।

कुल मिलाकर कहा जाए तो सार्वजनिक स्कूली शिक्षा का बजट भी चोर दरवाजे से निजी क्षेत्र के हाथ में सौंप दिया जाएगा। इसमें दो तरीके अपनाए जाएंगे – एक, सार्वजनिक स्कूलों में बहुत से कार्यों को ठेके पर निजी क्षेत्र को देना, एवं, दो, सरकार द्वारा माता-पिता को वाउचर जिससे वे अपने बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ाने की फीस चुका सकें। नतीजा यह होगा कि राज्यों के स्कूली बजट का एक बड़ा हिस्सा निजी स्कूलों/कारोबारियों के हाथ पहुंच जाएगा और सार्वजनिक स्कूल धनाभाव का शिकार होकर पतन की ओर बढ़ेंगे। कुछ वर्षों बाद इस पतन के बहाने पूरी स्कूली शिक्षा के निजीकरण के पक्ष में सामाजिक समर्थन हासिल किया जा सकेगा। यह योजना 6 राज्यों – केरल, महाराष्ट्र, हिमाचल, राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं ओड़ीशा में लागू की जानी है। इसके अंतर्गत इन राज्यों को सालाना 1.7 करोड़ डॉलर या लगभग 120 करोड़ रु मिलने की योजना थी। पर इस साल के बजट में तो कुल प्रावधान ही 485 करोड़ रु है अर्थात प्रति राज्य 80 करोड़ रु। पर इन राज्यों का स्कूली शिक्षा का बजट तो पहले ही कई हजार करोड़ रु है। अतः किसी भी तार्किक आधार पर यह समझना मुश्किल है कि इस 80 करोड़ रु की मामूली रकम के लिए ये अपनी स्कूली शिक्षा पर केंद्र व विश्व बैंक का नियंत्रण क्यों कायम कर रहे हैं जबकि इनमें से विपक्ष शासित राज्य पहले ही जीएसटी के मामले पर वित्तीय व्यवस्था को केंद्र को सौंप देने के नतीजे देख चुके हैं। इस स्थिति में तो यही मानना होगा कि केरल की वाम मोर्चा सरकार सहित ये सभी राज्य स्कूली शिक्षा के निजीकरण की नवउदारवादी नीति पर कटिबद्ध हैं और शिक्षा में ‘सुधार’ की यह योजना इस जनविरोधी कदम के लिए मात्र एक बहाना है।