कॉर्पोरेट लूट विरोधी आंदोलनकारियों पर पुलिस दमन नहीं सहेंगे
January 16, 2022एस वी सिंह
बहुमूल्य खनिज सम्पदा, ख़ास तौर पर लोह खनिज से मालामाल ओडिशा के जगतसिंहपुर में धिनकिया गाँव व आसपास की जंगल ज़मीन को आदिवासियों को उजाड़कर अकूत मुनाफ़ा कूटने के लिए 2015 में मोदी सरकार ने दक्षिण कोरिया की दैत्याकार स्टील कंपनी पोकसो को सौंपी थी. जैसे ही कंपनी के अधिकारीयों ने पुलिस की मदद से आदिवासियों को उजाड़ना शुरू किया, आसपास के लोगों ने संगठित होकर उसका विरोध किया. कॉर्पोरेट की ताबेदार ओडिशा सरकार ने दिल्ली दरबार की शह पर दमन चक्र बढाया लेकिन उसके विरुद्ध जन विरोध और आक्रोश बढ़ता गया. आदिवासी ज़मीन बचाओ आन्दोलन के कार्यकर्ताओं की देशद्रोह क़ानून में भी गिरफ्तारियां हुईं लेकिन जैसे जैसे दमन बढ़ा वैसे वैसे प्रतिकार बढ़ा और आखिर में दमनकारियों को दुम दबाकर भागना पड़ा और 2017 में सरकार को पोकसो प्रोजेक्ट बंद करना पड़ा.
पिछले साल कॉर्पोरेट के सामने बिछ जाने वाली ओडिशा सरकार ने फिर वही हिमाक़त की और वो ज़मीन जिंदल स्टील प्लांट को दे दी. ‘जिंदल स्टील वहाँ आने वाले दास सालों में 1 लाख करोड़ से अधिक निवेश करने वाला है’ सरकार ये घोषणा इस अंदाज़ में कर रही है मानो वो गरीबों में इतनी खैरात बांटने वाला है. देसी हो या विदेशी, ज़मीन में मौजूद खनिज सम्पदा का दोहन कर निजी मुनाफ़ा कूटने की प्रक्रिया एक जैसी होती है. वहाँ किसी तरह अपनी गुजर बसर कर रहे सदियों से रहते आ रहे आदिवासियों को ज़बरदस्ती उजाड़कर भगाना और ज़मीन पर अपना क़ब्ज़ा करना इस ‘विकास’ का पहला क़दम होता है. शुक्रवार, 14 जनवरी को जिंदल स्टील कंपनी की सेवा में समर्पित ओडिशा पुलिस, धिनकिया गाँव के आदिवासियों को उजाड़ने के मकसद से बड़े दल-बल के साथ पहुंची और जब अपनी रोज़ी-रोटी छीने जाने पर पान-पत्ता मज़दूरों-किसानों ने उनका विरोध किया, तो पुलिस उन पर टूट पड़ी. आदिवासी किसानों-मज़दूरों को दौड़ा- दौड़ाकर मारा गया. कुल 40 से अधिक ग्रामीण बुरी तरह ज़ख़्मी हैं. आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे देवेन्द्र स्वेन, नरेंद्र मोहंती और 4 अन्य कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है जबकि वे पुलिस लाठीचार्ज में ज़ख़्मी थे. ज़िम्मेदारी से बचने के लिए ओडिशा पुलिस वही सुनी-सुनाई कहानी दोहरा रही है कि गाँव वालों ने उनपर हमला किया और 5 पुलिस वाले ज़ख़्मी हैं. हालाँकि घटना की तस्वीरें और विडियो चीख़ चीखकर हकीक़त बयान कर रहे हैं. आन्दोलनकारी निहत्थे हैं, और पुलिस लट्ठ लिए उनके पीछे दौड़ रही है, बेदम मार रही है. महिलाओं और बच्चों के साथ भी वही सलूक किया जा रहा है. 40 ज़ख़्मी लोगों में 8 बच्चे हैं जिनकी उम्र 11 वर्ष से कम है और 11 लोग 60 साल की उम्र से अधिक हैं. देवेन्द्र स्वेन का कहना है, गंभीर रूप से ज़ख़्मी लोगों को अस्पताल भी नहीं ले जाया गया, उन्हें वहीँ मरने के लिए छोड़ दिया गया. सातवीं कक्षा की छात्रा सुष्मिता सत्पथी ने बेहाल रोते हुए बताया कि पुलिस ने जिंदल से पैसे लेकर हम सब को बहुत बुरी तरह से मारा. सुष्मिता ने ये भी बताया कि उनका क़सूर सिर्फ़ ये है कि वे अपनी ज़मीन नहीं छोड़ रहे. बिलखते हुए उन्होंने आगे कहा कि उनके परिवार की एक बीमार महिला को भी बुरी तरह से मारा गया.
भुवनेश्वर से घटना स्थल जा रहे ‘भू-विस्थापन विरोधी’ कार्यकर्ताओं को भी ओडिशा पुलिस ने रोक दिया है. उल्लेखनीय है कि आन्दोलनकारी नेता देवेन्द्र स्वेन को शुक्रवार को हमला करने से पहले पुलिस ने दो बार गिरफ्तार करने की कोशिश की लेकिन सैकड़ों महिलाओं ने उन्हें घेरे में ले लिया और पुलिस उन्हें गिरफ्तार नहीं कर पाई. शुक्रवार का हमला ग्रामीणों के उसी ‘दुस्साहस’ का बदला लेने के लिए किया गया था. पुलिस अधिकारी ने पूरी बेशर्मी के साथ पुलिस ज़ुल्म को उचित ठहराने के लिए कोरोना महामारी का सहारा लिया, ‘500 ग्रामीणों ने रैली निकालकर पुलिस को घेर लिया और जब पुलिस ने कोविद लाइसेंस माँगा तो वे नहीं दे पाए, पुलिस को हल्का लाठीचार्ज करना पड़ा.’ शर्म उन्हें मगर नहीं आती!!
ग्रामीणों का ये भी कहना है कि उन्हें कोई नोटिस नहीं दिया गया, उनसे प्रशासन ने कोई बात नहीं की. वे अपनी ज़मीन किसी भी हालात में नहीं छोड़ने वाले. दमन बढेगा तो आन्दोलन बढेगा. जैसे पोकसो को भगाया, जिंदल को भी भगाएँगे.
‘यथार्थ’ शांतिपूर्ण आन्दोलनकारियों पर बर्बर पुलिस दमन का विरोध करता है. इसके लिए अकेले पुलिस ही नहीं प्रशासन भी ज़िम्मेदार है. दोषी पुलिस वालों पर कड़ी कार्यवाही और घायल आन्दोलनकारियों को उचित ईलाज और तत्काल मुआवज़े की मांग करता है. सभी गिरफ्तार ग्रामीणों को तुरंत रिहा किया जाए और उन पर लादे गए झूटे मुक़दमे तुरंत वापस लिए जाएँ. कोई भी ज़मीन वहाँ रह रहे लोगों से बलपूर्वक नहीं छीनी जा सकती.