सुल्ली-बुल्ली एप्स – हिंदुत्व का आतंकी चेहरा
January 16, 2022एम असीम
मुंबई पुलिस असम से बुल्लीबाई मामले के एक संदिग्ध नीरज बिश्नोई को गिरफ्तार करने जा ही रही थी कि उसके एक घंटे पहले ही दिल्ली पुलिस ने पहुंचकर उसे अपनी हिरासत में ले लिया। दिल्ली पुलिस मुताबिक नीरज बिश्नोई उस बुल्लीबाई एप मामले का ‘मास्टर माइंड’ है जिसके जरिए 200 से अधिक मुस्लिम महिलाओं के फ़ोटो गिटहब नामक एप डेवलपर साइट पर डालकर उन्हें सेक्स ऑब्जेक्ट के रूप में अपमानित करने, यौन हिंसा का निशाना बनाने और उनकी बोली लगा नीलामी करने का आयोजन किया गया था। इन महिलाओं में प्रमुख पत्रकार, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता, वकील, बुद्धिजीवी, आदि शामिल थीं। ये सब मुस्लिम महिलायें मोदी सरकार और बीजेपी-संघ की फासिस्ट मुहिम के खिलाफ मुखर रही हैं एवं फासिस्ट गिरोहों द्वारा मुस्लिम अल्पसंख्यकों खास तौर पर मुस्लिम महिलाओं के फासिस्ट अन्यीकरण एवं उनके अधिकारों पर बढ़ते हमलों-अपराधों के खिलाफ दृढ़ता से आवाज उठाती रही हैं। इसके दो दिन बाद ही दिल्ली पुलिस ने इंदौर से ओंकारेश्वर ठाकुर नामक एक और व्यक्ति को गिरफ्तार किया जिसे उसने कई महीने पहले के ऐसे ही एक और मुस्लिम महिलाओं के प्रति नफरत और यौन हिंसा फैलाने वाले सुल्ली डील्स एप का मास्टरमाइंड बताया है। सवाल उठता है कि सुल्ली डील्स पर पीड़ित महिलाओं की शिकायत दर्ज कराने के बाद इतने महीनों से बिल्कुल निष्क्रिय बैठी दिल्ली पुलिस अचानक इतनी तेजी से सक्रिय क्यों और कैसे हो गई?
असल में 31 दिसंबर को बुल्लीबाई एप मामले की बात फैलने और उस पर व्यापक रोष व विरोध जताये जाने के बावजूद भी केंद्रीय बीजेपी सरकार एवं स्वयं अमित शाह के नियंत्रण में काम करने वाली दिल्ली पुलिस किसी कार्रवाई के लिए तैयार नहीं थी। किंतु 2 जनवरी को विपक्षी महा विकास अघाड़ी सरकार वाले महाराष्ट्र की मुंबई पुलिस ने इस बिना पर रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी कि इसमें निशाना बनीं कुछ महिलायें मुंबई की निवासी थीं और उन्होंने वहां शिकायत दर्ज कराई थी। मुंबई पुलिस ने दो दिन में ही जांच को आगे बढ़ाते हुए गिरफ्तारियां भी शुरू कर दीं। पहले विशाल झा की गिरफ्तारी हुई, फिर श्वेता सिंह व मयंक रावत को भी गिरफ्तार किया गया।
निश्चय ही इससे यह जोखिम पैदा हो गया कि मुंबई पुलिस इसमें शामिल अपराधियों को गिरफ्तार कर इसके लिए जिम्मेदार सभी साजिशकर्ताओं का पता लगा लेगी। इसलिए यह जरूरी हो गया कि दिल्ली पुलिस समानांतर जांच चलाकर इसमें शामिल ऐसे मुल्जिमों को गिरफ्तार कर ले जिनके मुंबई पुलिस की गिरफ्त में जाने से वे इसके राज जाहिर कर सकते हैं। वस्तुतः दिल्ली पुलिस ने इन गिरफ्तारियों के जरिए मुंबई पुलिस की जांच में अड़ंगा डाल दिया है जो इन अपराधियों को सजा से बचाने में मदद करेगा। इस बात की पुष्टि के लिए हम दो और बातों पर गौर कर सकते हैं। एक, जैसे ही ये गिरफ्तारियां शुरू हुईं, पुलिस अफसरों से लेकर संघ समर्थक पत्रकारों/बुद्धिजीवियों तक ने इन्हें नौजवान, बच्चे, अपरिपक्व, आदि बताते हुए यह प्रचार अभियान छेड़ दिया कि इस घटना में कोई वास्तविक हिंसा नहीं हुई है, यह तो सिर्फ एक साइबर अपराध है, सिर्फ मजाक करते इनसे नासमझी में गलती हो गई है और इनके वास्तविक अपराध की तुलना में अधिक कड़ी सजा देकर इनकी जिंदगी बरबाद करना ठीक नहीं। खास तौर पर मामले की जांच से कोई संबंध न रखने वाले उत्तराखंड पुलिस के एक वरिष्ठ अफसर ने श्वेता सिंह के पक्ष में इन बयानों से हमदर्दी जुटाने की कोशिश की कि वह बहुत गरीब परिवार से है और उसके माता-पिता दोनों ही कोविड़ के दौरान मर गए। दूसरे, दिल्ली पुलिस ने इनके बारे में रोज नई-नई बातें मीडिया में ‘लीक’ करनी शुरू कर दीं जिनमें बताया जाने लगा कि ये तो बस पॉर्न देखने के आदती यौन कुंठित हैं और उसी आदत की वजह से इन्होंने कुछ महिलाओं को निशाने पर लेकर ये एप बनाए जिससे ऐसा लगे कि इसके पीछे कोई बड़ा आपराधिक इरादा नहीं था। हालांकि यौन कुंठा से किन्हीं भी महिलाओं के साथ ऐसी घटिया हरकत करना भी कोई साधारण अपराध नहीं है, किंतु कोई भी समझ सकता है कि सिर्फ यौन कुंठा वाली ही बात होती तो इसका निशाना सिर्फ मुस्लिम महिलायें ही नहीं होतीं। अतः यह निश्चित ही खास तौर पर महिलाओं के माध्यम से पूरे मुस्लिम समुदाय को अपमानित करने, नीचा दिखाने की अधम मानसिकता से किया गया घृणित कृत्य है जिसके लिए फासिस्ट संघी गिरोह द्वारा चलाई जा रही प्रतिक्रियावादी मुहिम सीधी तौर पर जिम्मेदार है।
‘सिर्फ साइबर अपराध’ की बात तो इससे ही गलत सिद्ध हो जाती है कि बुल्ली बाई एप का प्रसार करने के लिए @sage0x11, @hmmaachaniceoki, @jatkhalsa7, @jatkhalsa, @sikhkhalsa11 and @wanabesigmaf आदि जो ट्विटर हैंडल बनाए गए थे उनमें ऐसा प्रयास किया गया था कि इनके पीछे कोई सिक्ख समुदाय का व्यक्ति है। बुल्लीबाई ट्विटर हैंडल को बनाने वाला ‘खालसा सिक्ख फोर्स’ का बताया गया था और उसका एक फालोअर ‘खालसा सुप्रिमेसिस्ट’ नामक था जिसका लोकेशन कनाडा दिखाया गया था। पर मुंबई पुलिस की जांच में पता चला कि ये सभी हैंडल/आईडी बैंगलुरू के इंजीनियरिंग छात्र विशाल झा ने ही बनाए थे। इससे ही स्पष्ट हो जाता है कि यह पूरी साजिश बड़ी सोची-समझी थी जिसके जरिए यह घृणित कोशिश भी की गई थी कि सिक्खों व मुस्लिमों में परस्पर नफरत और सांप्रदायिक रंजिश फैलाई जाए। इससे इतना तो जाहिर है कि चाहे यह साजिश सिर्फ इतने ही व्यक्तियों की थी या अधिक संभावित बात कि इसके पीछे और भी शक्तियां थीं, पर यह मात्र यौन कुंठा व पोर्न की आदत का मामला नहीं था।
दूसरी बात यह है कि मुंबई व दिल्ली पुलिस दोनों की जांच की जो रिपोर्टें मीडिया में आई हैं उनके अनुसार पकड़े गए सभी ‘ट्रैड’ बताए जा रहे हैं अर्थात ये ‘ट्रैडमहासभा’ नामक एक ग्रुप के सदस्य थे और इसी ग्रुप में बात कर ठाकुर, बिश्नोई, आदि ने सुल्ली डील्स नामक एप बनाया था। बाद में इसी एप का सोर्स कोड इस्तेमाल कर नया एप बनाया गया। ट्रैड शब्द अंग्रेजी के ट्रडिशनल शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है परंपरावादी। यह जैसा इंगित करता है यह समूह उन लोगों का है जो सनातन हिंदू धर्म की परंपरावादी वर्ण-जाति व्यवस्था के कट्टर समर्थक हैं। यह भी स्पष्ट है कि वर्ण-जाति व्यवस्था के कट्टर समर्थक दलित पिछड़े नहीं सवर्णवाद/ब्राह्मणवाद के कट्टर समर्थक ही हो सकते हैं। ये सभी ब्राह्मणवाद की श्रेष्ठता व प्रभुत्व कायम रखना चाहते हैं और इस नाते व्यापक हिंदुत्व समूह का हिस्सा होते भी ये उसका एक चरम उग्रपंथी हिस्सा है जो नरेंद्र मोदी, आरएसएस व अन्य दक्षिणपंथियों (जिन्हें ये अंग्रेजी के राइटिस्ट शब्द को बिगाड़कर ‘रायता’ कहते हैं) की ‘नरमी’ के कटु आलोचक हैं क्योंकि वे अपनी राजनीतिक जरूरतों से सवर्ण प्रभुत्व के सवाल पर समझौता करते हैं।
ट्रैड सभी सोशल मीडिया चैनलों पर अत्यंत घिनौनी अश्लील सामग्री फैलाते हैं, ‘इस्लामिस्ट’, ‘वामियों’, दलितों, आदि को दीमक, मेंढक, काक्रोच, आदि कहते हैं, इनके खिलाफ मीम व मॉर्फ की गई तस्वीरें शेयर करते हैं, सती जैसी घोर प्रतिगामी प्रथाओं के पक्ष में बोलते हैं, स्त्री अधिकारों व अंतर्जातीय विवाहों का विरोध करते हैं, दलितों, मुस्लिमों व अन्य अल्पसंख्यकों को कुचलने व उनके जनसंहार की बातें करते हैं, स्त्रियों-दलितों को मिले अधिकारों को छीनना चाहते हैं, आदि। जाहिर है कि ये हिंदुत्व व सवर्णवाद का एक चरम उग्रवादी समूह हैं जो मौजूदा संविधानिक व्यवस्था के बजाय मनुस्मृति कानूनों के जरिए वर्ण व्यवस्था को सख्ती से लागू कराना चाहते हैं और दलितों के साथ होने वाली हिंसा की खबरों पर प्रशंसा व खुशी का इजहार करते हैं।
कह सकते हैं कि ये अमरीका-यूरोप में पाए जाने वाले नव-नाजियों तथा श्वेत एंग्लो-सैक्सन प्रभुत्ववादी आल्ट-राइट चरमपंथियों से प्रेरित व उन जैसे ही हैं। इन आल्ट-राइट चरमपंथियों द्वारा निरंतर चलाए जा रहे ऑनलाइन व ऑफलाइन मिथ्या, अतिवादी, नफरती व हिंसक प्रचार-प्रसार ने श्वेत आबादी में बहुतेरे ऐसे आतंकियों को जन्म दिया है जो अकेले-दुकेले काम करते हैं और इन्होंने अमरीका-यूरोप से न्यूजीलैंड व नॉर्वे तक में कई आतंकी हमले किये हैं जिनमें सैंकड़ों निर्दोष व्यक्ति मारे जा चुके हैं। ऑनलाइन प्रचार के जरिए इनमें से ही कुछ पिछले वर्ष ट्रम्प समर्थकों द्वारा अमरीकी संसद पर किये गए हिंसक हमले में भी आ जुटे थे, ऐसा वहां चल रही पुलिस जांच में भी सामने या चुका है।
जब भारत में हिंदुत्ववादी फासिस्ट गिरोह खुलेआम अल्पसंख्यकों के जनसंहार की बातें कर रहे हों, इसे लेकर ‘धर्म संसदें’ आयोजित करने में जुटे हों और राज्य तंत्र उन्हें संरक्षण दे रहा हो; खुद बीजेपी की आईटी सेल टेकफॉग (इस पर संक्षिप्त टिप्पणी अलग से देखें) जैसे एप के जरिए अपने खिलाफ मुखर आवाज बनी महिला पत्रकारों को लाखों की तादाद में ऑटोमेटिड ट्वीट, कमेंट, मेसेज, आदि के जरिए भयंकर गालियां व अपशब्द कह रही हो; उनके और उनके बच्चों तक के साथ हत्या और बलात्कार की धमकियाँ ही नहीं, इसके घिनौने विकृत चित्रण-विडिओ उन्हें भयभीत करने हेतु भेज रही हो; उनके नाम-फ़ोटो डाल, नीलामी में बोलियाँ लगा, एक तरह से उनको आतंकियों के निशाने पर ला रही हो; तब इन ट्रैड जैसे अतिवादी गिरोहों और इनके जरिए मानसिक तौर पर तैयार किये जा रहे सिरफिरे युवाओं वाले माहौल का नतीजा कितना खतरनाक हो सकता है यह समझना कतई मुश्किल नहीं है।
कुछ लोग ऐसा ‘तर्क’ भी दे रहे हैं कि भारत यौन कुंठा से ग्रसित समाज है और यहां स्कूल-कॉलेजों से दफ्तरों या अन्य स्थानों तक में भयंकर स्त्री विरोधी मानसिकता से उन्हें अपमानित करने हेतु इस प्रकार की घटनाएं आम हैं और इंटरनेट पर सभी सोशल मीडिया व फोरम्स में ऐसी स्त्री विरोधी विकृत अश्लील बातों/टिप्पणियों/फ़ोटो/विडिओ आदि की भरमार देखी जा सकती है। हमारे समाज में गहराई तक उतर चुके सांप्रदायिक जहर के कारण न सिर्फ नफरती हिंदु तत्वों द्वारा मुस्लिम महिलाओं के बारे में ऐसा किया जाता रहा है बल्कि मुस्लिम पुरुषों द्वारा हिंदू महिलाओं के बारे में ऐसी ठीक ऐसी ही विकृत अश्लील घृणा भारी फंतासियों की भी कोई कमी नहीं है। फिर इसमें नया क्या है? निश्चय ही उपरोक्त बातें सही हैं। आम तौर पर हिंदू-मुस्लिम दोनों में ही ऐसी सांप्रदायिक नफरती बातों और और दूसरे समुदाय की स्त्रियों के जरिए एक दूसरे को अपमानित करने वाली बातों से इंटरनेट के रेडिट जैसे फोरम भरे पड़े हैं। पर गौर करने की बात यह है कि अब तक ये फोरम/समूह अनाम व्यक्तियों के थे, अपवाद घटनाओं को छोड़कर अनाम काल्पनिक हिंदू/मुस्लिम महिलाओं को निशान बनाते थे और पकड़े जाने पर ऐसे अपराधियों को राज्यतंत्र और राजनीतिक समूहों का संरक्षण प्राप्त नहीं होता था। परंतु ऊपर ही हम बता चुके हैं कि कैसे चुन-चुनकर विशिष्ट मुखर महिलाओं को निशाना बनाया गया है और अपराधियों के बचाव में राजनीतिक समूह व राज्यतंत्र का एक हिस्सा सक्रिय हो गया है। खुद नीरज बिश्नोई को खुद को कुछ न होने का इतना भरोसा था कि जब तक उसके बजाय दूसरों की गिरफ़्तारी हो रही थी तो वह खुद को गिरफ्तार करने के लिए मुंबई पुलिस को चिढ़ाने वाले ट्वीट कर रहा था।
चुनांचे, मौजूदा परिप्रेक्ष्य में ये घटनाएं हिंदुत्व समूहों के अंदर से ही कुछ नए आतंकी समूहों का उभार दिखा रही हैं जो अपने ऑनलाइन-ऑफलाइन दुष्प्रचार से बहुत से युवाओं को आतंकी मानसिकता की ओर धकेल रहे हैं। बल्कि इन घटनाओं को आतंकी हमलों के प्रथम चरण के तौर पर ही देखा जाना चाहिए क्योंकि ये नाम-फ़ोटो सहित कुछ व्यक्तियों को दुश्मन के रूप में इंगित-चिन्हित कर उन्हें भविष्य में किसी ऐसे हमले की धमकी देने का काम कर रही हैं और इनके दुष्प्रचार से प्रभावित कोई सिरफिरा भविष्य में ऐसी दुस्साहसी कार्रवाई को अंजाम भी दे सकता है। फिर इन महिलाओं को अपमानित कर, धमकी देकर, चुप कराने के प्रयास के माध्यम से अंततः यह पूरे अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को अपमानित करने, उसे भयभीत होकर दूसरे नीचे दर्जे के नागरिक (इंसानों से कुछ नीचे दर्जे) की अपनी स्थिति को स्वीकार कर लेने या उसके किसी व्यक्ति द्वारा रोष में कुछ प्रतिक्रिया करने पर सबक सिखाने की स्थिति पैदा करने का प्रयास भी है। इस नाते इन घटनाओं को एक प्रकार की आतंकी घटना ही कहना चाहिए।