मज़दूर कार्यशाला : मज़दूरों पर हमले नहीं सहेंगे, जुझारू संघर्ष तेज करेंगे!

January 17, 2022 0 By Yatharth

मेहनतकश

मासा द्वारा आयोजित कार्यशाला में यह साफ हुआ कि चारो लेबर कोड मज़दूर अधिकारों को छीनकर और ज्यादा बंधुआ बनाने वाले हैं। मोदी सरकार की पूँजीपतियों से यारी स्पष्ट है।

बंगलुरु (कर्नाटका)। मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) द्वारा 17 व 18 दिसम्बर को आयोजित दो दिवसीय मजदूर कार्यशाला मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं की मुखालफत और निजीकरण/कारपोरेटीकरण के विरोध के साथ संपन्न हो गया।
बंगलुरु के आईएसआई सभागार में मासा की दो दिवसीय कार्यशाला की शुरुआत काकोरी के अमर शहीदों राजेंद्र लाहिड़ी (17 दिसंबर) और राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां व रोशन सिंह (19 दिसंबर) की याद में साझी सहादत-साझी विरासत का संकल्प लेने के साथ शुरू हुआ। साथ ही किसान आंदोलन, कोविड-19 और विभिन्न कारखानों-स्थानों पर मृतक मजदूर-मेहनतकशों व आम जनता को 2 मिनट मौन रखकर श्रद्धांजलि दिया गया।


मज़दूर विरोधी श्रम संहिताएँ

कार्यशाला के पहले दिन 44 श्रम कानूनों को खत्म करके बनाई गई चार श्रम संहिताओं (लेबर कोड) पर विस्तृत चर्चा हुई।


औद्योगिक श्रम संहिता

कॉमरेड अमरीश पटेल ने औद्योगिक श्रम संहिता के विविध पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि मजदूरों के महत्वपूर्ण कानूनों- स्थाई आदेश अधिनियम 1946, औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 और ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 में मजदूर पक्षीय जो भी प्रावधान थे, इस श्रम संहिता ने उसे खत्म कर दिया है।

इससे सबसे बड़ा प्रभाव मजदूरों की स्थाई नौकरी पर पड़ा है। इसमें कर्मकार की परिभाषा बदल दी गई है। मालिकों को ज्यादा अधिकार दिए गए हैं। फिक्स्ड इंप्लॉयमेंट के नाम पर मालिकों को मनमर्जी रखने और निकालने की खुली छूट दी गई है। छँटनी, बंदी, लेऑफ को मालिकों के लिए आसान कर दिया है। मजदूरों को औद्योगिक विवाद उठाने पर तरह तरह की पाबंदियां लगाई गई है।

उन्होंने बताया कि किस तरह से श्रम अधिकारियों और श्रम विभाग को कमजोर बनाया गया है और श्रम न्यायालय को खत्म करके एक ऐसे औद्योगिक न्यायाधिकरण को बनाने का प्रावधान किया गया है जो प्रशासन के अधीन होगा। सामूहिक विवाद उठाने पर कई तरीके की पाबंदियां लगाई गई हैं और एक व्यक्ति को भी समझौता करने की छूट दी गई है।

हड़ताल करने, ट्रेड यूनियन बनाने पर कई तरीके के रोक लगे हैं। किसी एक दिन 50 फीसदी से ज्यादा श्रमिकों की अनुपस्थिति को भी हड़ताल बताया गया है। मालिकों पर आपराधिक मामले खत्म किये गए हैं, लेकिन मजदूरों और मजदूर नेताओं पर अपराधिक मामले चलाने के कई तरीके इसमें डाले गए हैं। इसमें वेतन निर्धारण का तरीका तक बदल दिया गया है।


मज़दूरी श्रम संहिता

मज़दूरी श्रम संहिता पर कॉमरेड अरविंद ने विस्तृत बातें रखीं। उन्होंने वेतन निर्धारण के वैज्ञानिक आधार और पूर्व में बनी हुई कमेटियों का उल्लेख करते हुए उसके आधार को बताया और यह बताया कि किस प्रकार से नए क़ानून में मजदूरी निर्धारण में मालिकों को ज्यादा छूट दी गई है। न्यूनतम वेतन निर्धारण के लिए वेज बोर्ड का सुझाव गोलमाल तरीके से आया है। इसके विवाद मज़दूर किस फोरम पर उठाएंगे यह भी स्पष्ट नहीं है।

उन्होंने बताया कि किसी एक दिन मजदूरों की अनुपस्थिति पर 8 दिन तक की वेतन कटौती हो सकती है। इसमें राष्ट्रीय फ्लोर वेज का कोई मानदंड नहीं रखा गया है। ‘समान वेतन समान काम’ का आधार भी समाप्त कर दिया गया है। यह मज़दूरों के साथ धोखा है।


सामाजिक सुरक्षा श्रम संहिता

मोदी सरकार और मीडिया सबसे ज्यादा सामाजिक सुरक्षा मिलने का शोर मचा रही है। कॉमरेड अमिताभ भट्टाचार्य ने ब5आया कि कैसे भ्रम बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस कोड में मजदूरों के पीएफ, ईएसआई, ग्रेच्युटी, मेटरनिटी आदि सुरक्षा के मानदंडों को ही बदल दिया गया है।

बताया कि अब 50 फीसदी से अधिक मजदूरों की सहमति बनाकर मालिक पीएफ जैसी बुनियादी सुविधा से भी मुक्त हो सकता है। 10 मजदूरों से कम संख्या वाली जगहों पर सामाजिक सुरक्षा का कोई मानदंड नहीं रखा जाएगा।

ग्रामीण मजदूरों, घरेलू कामगारों, गिग वर्कर, प्लेटफार्म वर्कर, आशा, आंगनवाड़ी जैसी स्कीम वर्कर की सामाजिक सुरक्षा का कोई प्रावधान स्पष्ट नहीं है।

उन्होंने बताया कि सामाजिक सुरक्षा के नाम पर मोदी सरकार जो बड़े-बड़े दावे कर रही है, दरअसल पुराने 9 कानूनों को खत्म करके केवल ढोल पीटने जैसा ही है।


व्यवसायगत सुरक्षा स्वास्थ्य और कार्य स्थितियों पर संहिता

कार्यशाला के चौथे सत्र में व्यवसायगत सुरक्षा स्वास्थ्य और कार्यस्थितियां संहिता पर बातचीत रखते हुए कॉमरेड अमिताभ ने बताया कि सुरक्षा के पुराने मानदंडों को इस में बदल दिया गया है। अब औद्योगिक क्षेत्र में 500 से कम मजदूरों पर सुरक्षा कमेटी बनाने की बाध्यता खत्म कर दी गई है। इसीतरह 250 से कम कंस्ट्रक्शन वर्कर और 100 से कम संख्या वाले कोल माइंस में कोई सेफ्टी कमिटी ना बनाने के प्रावधान हैं।

बताया कि वेलफेयर का सारा काम सरकार के ऊपर छोड़ दिया गया है। काम के घंटे साप्ताहिक 48 रखते हुए भी ऐसे प्रावधान किए गए हैं कि मालिक मनमर्जी काम करा सके। महिला मजदूरों के मामले में रात्रि पाली काम उसकी सहमति से करा सकता है, लेकिन महिलाओं की सुरक्षा के संबंध में कोई गारंटी नहीं है।

कार्यस्थल पर दुर्घटना होने पर मालिक को खुली राहत देकर जेल व मुआवजा कोर्ट पर छोड़ दिया गया है। अप्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के बारे में जो प्रावधान हैं, असल में वह लागू होना कठिन होगा। ठेका मजदूरों के मामले में नियोक्ता को पूरी तरीके से अलग कर दिया गया है और पूरी जिम्मेदारी ठेकेदार पर डाल दी गई है।

स्वास्थ्य, सुरक्षा, अवकाश जैसे तमाम विवादों पर मजदूर की सुनवाई के ज्यादातर प्रावधान हटा दिए गए हैं और सीधे हाई कोर्ट में ही वह चुनौती दे सकता है, जो कि किसी एक मजदूर के लिए असंभव प्राय है।

चारों श्रम संहिताओं पर मजदूरों के बीच में व्यापक चर्चा हुई और मजदूरों के सवालों का निवारण भी वक्ताओं ने किया।
देश बेचो अभियान यानी निजीकरण-कॉरपोरेटीकरण
कार्यशाला के दूसरे दिन निजीकरण और कॉरपोरेटीकरण पर कॉमरेड एस वेंकटेश्वर राव ने अपनी बात रखी और बताया कि किस तरीके से मोदी सरकार का देश बेचो अभियान चल रहा है। उन्होंने उन परिस्थितियों का जिक्र किया जब बैंकों का राष्ट्रीयकरण हुआ था और आज जिस तरीके से बैंक, बीमा से लेकर रेलवे, एयरपोर्ट, खदानें यहाँ तक कि आयुध कारखानों को बेचा जा रहा है। सरकारी संपत्तियों, सार्वजनिक उद्यमों को मोदी सरकार पूँजीपति यारों को सौप रही है।

उन्होंने बताया कि यह खेल 1991 में राव मनमोहन की सरकार के दौर में ही शुरू हो चुका था जिसे मोदी सरकार ने बेलगाम बना दिया है।

उन्होंने कोयला खदानों में अपने अनुभव का उल्लेख करते हुए बताया कि किस तरीके से कोल क्षेत्र में एक तरफ मजदूरों की संख्या आधे से भी कम कर दी गई है, जबकि इसी दरमियान खदानें और उसमें उत्पादन काफी ज्यादा बढ़ गया है। और अब उन्हें बेचने का पूरा दौर चल रहा है। ऐसे में जुझारू और मुकम्मल लड़ाई ही रास्ता बचता है। पूँजीपरस्त इस अभियान के खिलाफ सभी मेहनतश जनता को एकजुट होना होगा।


कृषि क़ानूनों की वापसी और खेतिहर मज़दूरों के हालात

इसके पश्चात कृषि कानूनों की वापसी और किसानों के जुझारू लंबे संघर्ष से मिली जीत पर कॉमरेड श्यामवीर ने अपनी बातें रखी। उन्होंने बताया कि किसान आंदोलन ने सत्ताधारी भाजपा-संघ को आईना दिखाया है। लोग नहीं थके, लगातार आंदोलन आगे बढ़ता रहा। इसने सारे कुत्सा प्रचारों जा, गोदी मीडिया का मुंहतोड़ जवाब दिया और जीत का जश्न मनाया।

यह लड़ाई कृषि के कॉरपोरेटीकरण के खिलाफ थी। लेकिन उन्होंने आगाह किया कि मोदी सरकार अब इसके लिए नए-नए रास्ते अपनाएगी।

इसी के साथ कि कॉमरेड संतोष ने पंजाब में 9 खेतिहर व ग्रामीण मजदूर यूनियनों द्वारा अपना मोर्चा बनाया गया है और आंदोलन की समाप्ति के बाद अपनी जायज माँगों के साथ वे संघर्ष को आगे बढ़ा रहे हैं। पटियाला में सम्मेलन किया और उसे वह एक बड़े आंदोलन की दिशा में मुख्यतः पंजाब में आंदोलन जारी रखा हुआ है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्र में मनरेगा मजदूरों के मुद्दे पर भी उन्होंने चर्चा की।


मज़दूरों के बीच हुई खुली चर्चा

कार्यशाला का अंतिम सत्र खुला सत्र था, जिसमें अलग-अलग क्षेत्र से आए हुए मजदूरों ने अपने अनुभव को साझा किया। जिसमें मज़दूर विरोधी श्रम संहिताओं आदि के साथ मारुति मजदूरों के संघर्ष से लेकर, बंगलुरु में 2016 में पीएफ के खिलाफ हुए जुझारू आंदोलन, आईटी से लेकर भगवती माइक्रोमैक्स, डाइकिन, लिंगराज-पारले आदि के हालात और संघर्षों पर चर्चा हुई। इसी के साथ कोयला खदान मजदूरों, चाय बागान मजदूरों ने अपनी बात रखीं।

इसके अलावा असंगठित क्षेत्र के विशेष रूप से घरेलू कामगार, निर्माण कार्य मज़दूर, मनरेगा मज़दूर, खेतिहर मजदूरों, महिला कामगारों, रेहड़ी पटरी कामगारों, बीड़ी मजदूरों, ठेका मजदूरों, प्रवासी मजदूरों की विभिन्न समस्याओं और मांगों पर व्यापक चर्चा हुई और कई तरीके के सुझाव भी आए।

कार्यशाला के दौरान यह स्पष्ट तौर पर उभर कर सामने आया कि जहां एक तरफ केंद्र से लेकर राज्य सरकारें मजदूरों के अधिकारों पर लगातार हमला कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर केंद्रीय ट्रेड यूनियन विरोध के नाम पर महज कुछ रस्म अदायगी, कुछ सालाना हड़तालों तक अपने आप को सीमित की हुई है। ऐसे में एक जुझारू, निरंतरता में आगे बढ़ने वाले और निर्णायक संघर्ष की दिशा में आगे बढ़ना होगा। वक्ताओं ने कहा कि मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) इसी लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहा है। मासा ने इस दिशा में शीघ्र नए कार्यक्रमों को घोषित करने का ऐलान किया।

कार्यशाला में 16 राज्यों से आए हुए मजदूरों ने प्रतिभाग किया। इसमें मासा के घटक व सहयोगी कर्नाटका श्रमिक शक्ति, टीयूसीआई, आईएफटीयू , इंकलाबी मजदूर केंद्र, मजदूर सहयोग केंद्र, आईएफटीयू (सर्वहारा), एसडब्ल्यूसीसी, ग्रामीण मजदूर यूनियन बिहार, जन संघर्ष मंच हरियाणा, सोशलिस्ट वर्कर र्सेंटर, मजदूर सहायता समिति और कारखाना मजदूर यूनियन पंजाब ने अपनी पूरी भागीदारी निभाई।
[यह रिपोर्ट मूलतः mehnatkash.in पर प्रकाशित हुई है।]