वारसा घेट्टो के नाजी विरोधी विद्रोह के बीच वो मई दिवस
May 9, 2022एम असीम
नाजियों के आधिपत्य वाले क्षेत्रों में उनके खिलाफ होने वाली जनता की पहली बड़ी सशस्त्र बगावतों में से एक 75 वर्ष पहले यहूदी त्यौहार पासओवर की पूर्व संध्या पर 19 अप्रैल 1943 को वारसा (पोलैंड) के यहूदी घेट्टो या बाड़े में शुरू हुआ विद्रोह था। यहां मात्र कुछ सौ बहादुर नौजवान यहूदी योद्धाओं ने सिर्फ थोड़े से छोटे हथियारों के बल पर 29 दिन तक नाजियों के 5 हजार चुने हुए स्टॉर्मट्रूपर सैनिकों का अत्यंत वीरता से सामना किया था। इन वीर नौजवानों ने, इनमें से एक के शब्दों में, तय किया था कि ‘शस्त्रों सहित मृत्यु शस्त्र रहित मृत्यु से सुंदर है’ और उनका दृढ निश्चय था कि वे मरने से पहले अधिक से अधिक फासिस्टों को मार गिराएंगे। इसलिए यह विद्रोह तभी समाप्त हो पाया था जब नाजी फ़ौज ने पूरी बस्ती में विद्रोहियों के ठिकानों वाली इमारतों को ही जलाकर पूरी तरह राख कर दिया था। इस शानदार विद्रोह के उदात्त वीरोचित संघर्ष ने दुनिया भर के फासिस्ट विरोधी संग्राम में प्रेरणा की नई जान फूंकी थी, इस बात को आज सभी स्वीकार करते हैं। मगर जिस बात की चर्चा बहुत कम होती है, वह यह कि यह कोई स्वतः स्फूर्त बगावत नहीं थी। बल्कि इस विद्रोह की तैयारी और नेतृत्व का काम अत्यंत युवा नौजवान कम्युनिस्टों और अन्य वामपंथी समूहों के एक संयुक्त फासिस्ट विरोधी मोर्चे ने किया था।
पोलैंड पर कब्जे के कुछ सप्ताह में ही जर्मन नाजियों ने वारसा की 4 लाख यहूदी आबादी को शेष आबादी से अलग कर 10 फुट ऊंची दीवारों से घिरे एक छोटे से बाड़े में जाने को विवश कर दिया था। इसके बाद इसमें अन्य स्थानों से और 5 लाख यहूदी आबादी को भी भर दिया गया था। हालत ऐसे समझी जा सकती है कि वारसा की 30% आबादी उसके 2.6% स्थान में ठूंस दी गई थी। ढाई मील लम्बी इस बस्ती में इससे पहले सिर्फ डेढ़ लाख आबादी थी। कई-कई परिवार एक ही कमरे में रहने को मजबूर कर दिए गए थे, भोजन की बेहद कमी थी। लगभग एक लाख ऐसे थे जो दिन भर में मात्र एक कटोरा सूप पर जिंदा थे। सफाई का कोई इंतजाम नहीं था तथा गरीबी, भुखमरी, गंदगी व बीमारी चरम पर थी। 1942 आते-आते हालत यह थी कि हर महीने 5 हजार लोग सिर्फ बीमारी व कुपोषण से अपनी जान गंवा रहे थे।
लेकिन इस विकट स्थिति में भी फासीवाद के चरित्र की सही समझ के अभाव में पुराने पारंपरिक यहूदी सामुदायिक नेतृत्व (जुडेनराट या यहूदी परिषद) की आरम्भिक प्रतिक्रिया नाजियों के साथ सहयोग और जुल्म को बर्दाश्त करते हुए वक्त गुजारने की थी। वे कह रहे थे कि कुछ नहीं होगा, यहूदियों का तो इतिहास ही जुल्म सहन करने का है और समय गुजरने के साथ नाजियों की यह मुसीबत भी खत्म हो जाएगी। यहां तक कि बस्ती में गठित यहूदी परिषद नाजियों को यहूदी विरोधी नीतियों को लागू करने में सहयोग भी कर रही थी। इसका स्वाभाविक परिणाम वहां की आबादी में भारी नाउम्मीदी और अवसाद का माहौल था।
घोर हताशा की इस स्थिति में कम्युनिस्ट पार्टी और अन्य कई वामपंथी समूहों ने प्रतिरोध की सामूहिक चेतना विकसित करने और घोर विपत्ति के इस वक्त को सार्थक राजनीतिक आंदोलन में बदलने हेतु बाड़े में छोटी सेल्स के रूप में सांगठनिक कार्यों की शुरुआत की। भूख व घोर हताशा के अंधकार पूर्ण दिनों में नौजवान संगठनों की इकाइयों ने बहुतों के लिए सामाजिक-मनोवैज्ञानिक सहारे का भी काम किया। इनके कार्यों में नाजी विरोधी साहित्य वितरण के साथ अत्यंत सीमित उपलब्ध भोजन के सामूहिक वितरण व उपभोग के मानवीय संवेदना पूर्ण सहायता के कार्य भी थे, जो अवसाद के माहौल में जोश को बनाये रखने का कार्य करते थे। एक नौजवान कम्युनिस्ट डोरा गोल्डकॉर्न ने बाद में लिखा था, ‘बाड़े के उस कठोर त्रासदी पूर्ण जीवन में जिस दिन मेरा अपने संगठन से संपर्क पुनः स्थापित हुआ, वह दिन मेरे लिए सबसे प्रसन्नता पूर्ण दिनों में से एक था।’
1942 आने तक विभिन्न नौजवान संगठन एक ‘फासीवाद विरोधी ब्लॉक’ गठित कर चुके थे। इसके घोषणापत्र में नाजी कब्जे के खिलाफ सामान्य मांगों और फासीवाद के सशस्त्र विरोध के आधार पर युद्ध पूर्व के पॉपुलर फ्रंट के विचार के अनुसार सभी प्रगतिशील शक्तियों के एकजुट राष्ट्रीय मोर्चे की अपील थी। फासीवाद विरोधी ब्लॉक ने अपने अख़बार ‘डेर रूफ’ के दो अंक भी प्रकाशित किये थे, जिनमें नाजियों के खिलाफ जारी सोवियत प्रतिरोध की प्रशंसा करते हुए घेट्टो वासियों से आगे बढ़ती आ रही सोवियत लाल सेना द्वारा आसन्न मुक्ति तक आशा बनाये रखने का आह्वान भी था। ब्लॉक ने सभी श्रमिक समूहों को मिलाकर अपनी लड़ाकू टुकड़ियां बनाई थीं। इस ब्लॉक के मुख्य राजनीतिक व सैनिक नेता स्पेन में फासिस्टों के खिलाफ इंटरनेशनल ब्रिगेड में लड़ चुके कम्युनिस्ट पिंकस कार्टिन थे। लेकिन जून 1942 में पिंकस कार्टिन की गिरफ्तारी व हत्या और नौजवान कम्युनिस्टों पर भारी दमन से यह ब्लॉक निष्क्रिय हो गया। इस दमन में बहुत से युवा कम्युनिस्ट गिरफ्तार व मारे गए तथा बहुतों को छिपने के लिए मजबूर होना पड़ा।
नाजियों द्वारा गिरफ्तार एक विद्रोही
इसके कुछ महीने बाद जब फिर से यहूदी लड़ाकू संगठन (जेडओबी) का निर्माण हुआ तो कम्युनिस्टों की संख्या बहुत कम थी मगर इसने पहले तय की गई कम्युनिस्ट दिशा को स्वीकार किया। जेडओबी का आधार यहूदी श्रमिक वर्ग था और इसका प्रचार साहित्य नस्लवाद विरोध, अंतर्राष्ट्रीयतावाद को प्रोत्साहित करने वैश्विक स्थिति तथा श्रमिक आंदोलन के संबंध में चर्चा करते हुए एक बौद्धिक दिशा भी प्रदान करता था। अपने युग के गहन अंधकार व अवसाद भरे वातावरण के बावजूद इसके सदस्य एक बेहतर दुनिया के निर्माण की राजनीतिक परंपरा से थे जो इस अपने संघर्षों के जरिए ऐसा समाज कायम करना चाहते थे। इसने विभिन्न प्रतिरोधी कार्रवाइयां शुरू कीं, जिसमें नाजियों के सहयोगी यहूदी पुलिसवालों पर हमले भी शामिल थे। इस वक्त तक बड़ी तादाद में बाड़े से यहूदियों को जनसंहार हेतु यातना केंद्रों में ले जाने का काम भी शुरू हो चुका था। इस काम में मदद करने वाले यहूदी पुलिसियों जैकब लेजकिन तथा अल्फ्रेड नोसिग की हत्या कर दी गई और घेट्टो पुलिस के पूर्व मुखिया जोजफ जेरिंसकी ने डर से आत्महत्या कर ली। 18 जनवरी 1943 को ऑस्चविट्ज़ के यातना केंद्र में ले जाये जाते कैदियों में शामिल होकर संगठन के योद्धाओं ने नाजी सैनिकों पर हमला बोल दिया जिसमें कई नाजी सैनिक मारे गए और कुछ कैदी भागने में भी सफल हुए। इन प्रतिरोधक कार्रवाइयों ने बहुतों को आकर्षित किया और यह स्थापित किया कि नाजी विरोधी प्रतिरोध व उनके यहूदी टट्टुओं को चुनौती देना न सिर्फ मुमकिन था बल्कि नैतिक जिम्मेदारी भी।
पिंकस कार्टिन
कुछ समय बाद जब यह स्पष्ट हो चुका था कि नाजियों का इरादा सब यहूदियों का पूर्ण सफाया था तो बाड़े में अगली नाजी कार्रवाई के समय विद्रोह का फैसला किया गया। 19 अप्रैल को एसएस जनरल स्ट्रुप ने 5 हजार सैनिकों के साथ बाड़े के अंतिम सफाये के लिए जब वहां प्रवेश किया तो इस हथियारबद्ध प्रशिक्षित फ़ौज के खिलाफ सिर्फ कुछ सौ युवा विद्रोहियों ने मात्र पिस्तौलों और बोतलों में मोलोटोव कॉकटेल के साथ छतों, तहखानों, आदि से प्रति आक्रमण शुरू कर दिया जिसमें काफी नाजी सैनिक मारे गए। आक्रोश में नाजियों ने लड़ने के बजाय प्रतिरोध के केंद्रों को व्यवस्थित रूप से एक-एक कर आग के हवाले कर राख में तब्दील करना शुरू किया। एक विद्रोही के शब्दों में – हम फासिस्टों से नहीं, आग की लपटों से पराजित हुए। हालांकि अप्रैल के अंत तक सभी विद्रोही समूह अलग-थलग पड़ एक साथ काम करने का समन्वय खो चुके थे फिर भी नेतृत्वकारी समूह द्वारा चारों ओर से घिर जाने पर 8 मई को सामूहिक आत्महत्या कर लिए जाने तक व्यापक प्रतिरोध जारी रहा। 16 मई तक पूरा बाड़ा खंडहर बनाया जा चुका था और मात्र 40 विद्रोही ही वहां से जीवित निकल पाने में कामयाब हुए जिनमें से कई ने बाद में 1944 में पूरे वारसा शहर के आम नाजी विरोधी विद्रोह में भी भाग लिया और अपना बलिदान दिया।
वारसा विद्रोह की कुछ योद्धा
गौरतलब है कि इस भयानक संघर्ष के बीच भी ये नौजवान विद्रोही अपने समाजवादी विचारों-आदर्शों पर अडिग रहे। इस विद्रोह में शहीद हुए सबसे कम उम्र के लड़ाके तेरह साल के एक कार्यकर्ता थे। हालांकि एक लड़ाकू बल के रूप में स्पष्ट रूप से विद्रोह अनुभवहीन था, पर एक गुमनाम रूप से लिखित दस्तावेज, जो जून 1943 में लंदन पहुंचा, के मुताबिक युद्ध में वामपंथी समूहों के बीच “अनुकरणीय” राजनीतिक एकता और “भाईचारा” था। भीषण लड़ाई के बीच भी 1 मई 1943 को मई दिवस का आयोजन एक उल्लेखनीय घटना थी। इस मई दिवस आयोजन में भाग लेने वाले एक विद्रोही मारेक एडेलमान ने बाद में इसका वर्णन इन शब्दों में किया है –
‘हम जानते थे कि उस दिन पूरी दुनिया में मई दिवस मनाया जा रहा था और हर जगह सार्थक व सशक्त शब्द बोले जा रहे थे। लेकिन कभी भी ‘इंटरनेशनल’ इतनी भिन्न, इतनी त्रासद स्थितियों में नहीं गाया गया होगा जबकि एक पूरा राष्ट्र ही मृत्यु का शिकार हो रहा था। जले हुए खंडहरों में गीत के बोल गुंजायमान हो रहे थे और इंगित कर रहे थे कि बाड़े में मौजूद समाजवादी नौजवान अभी भी लड़ रहे थे, और मृत्यु का सामना करते हुए भी अपने आदर्शों को त्याग नहीं रहे थे।’
आज जब इजराइली जियनवादी खुद गाजा में फिलिस्तीनी जनता के साथ ठीक नाजियों जैसा ही बरताव कर रहे हैं तब वारसा के यहूदी बाड़े के इन फासीवाद विरोधी योद्धाओं की विरासत अत्यंत अहम है क्योंकि इन्होंने अपना संघर्ष एक सम्प्रदाय के रूप में नहीं बल्कि फासीवाद और पूंजीवाद के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीयतावादी विश्वव्यापी संघर्ष के अंग के रूप में संचालित किया था| एक अति शक्तिशाली आततायी के खिलाफ इन थोड़े से विद्रोहियों के इस शानदार संघर्ष ने नाजियों के खिलाफ लड़ रहे स्पेन के रिपब्लिकनों, फ्रेंच कम्युनिस्टों, उनके पोलिश देशवासियों, यातना केंद्रों में बंद यहूदियों से लेकर दुनिया भर के फासिस्ट विरोधियों को जोरदार प्रेरणा दी थी| उनकी कहानी होलोकॉस्ट की नृशंसता और नाउम्मीदी के बीच उस मानवीय वीरता का शानदार उदाहरण है जो बदतरीन स्थितियों में भी यह मानने को राजी नहीं होते कि आगे बढ़ने का पथ पूरी तरह समाप्त हो चुका है।