मजदूर वर्ग | मुंडका अग्निकांड

June 20, 2022 0 By Yatharth

मुंडका अग्निकांड : प्रशासन एवं पूंजीपति वर्ग के घनिष्ट संबंधों का परिणाम

सड़ते हुए पूंजीवाद के नारकीय कारखानों में बर्बाद होती मेहनतकश जनता की कीमती जानें

वी प्रजापति

बीते 13 मई को, दोपहर के 3:30 बजे, देश की राजधानी में सबसे भयंकर पूंजीवाद निर्मित औद्योगिक आपदा घटित हुई जिसमें कम से कम 27 श्रमिकों की जानें चली गईं । यह घटना पश्चिमी दिल्ली के मुंडका औद्योगिक क्षेत्र में एक चार मंजिला फैक्टरी इमारत (कंपनी का नाम कोफे इम्पेक्स प्राइवेट लिमिटेड है) में शोर्ट सर्किट की वजह से आग लगने के कारण हुई। कई मजदूर अभी तक लापता हैं और कई घायल हैं। 27 मृत मजदूरों में से 21 महिला मजदूर थीं और जो 29 मजदूरों की लापता होने की खबरें आ रही हैं, उनमें से 24 महिलाएं हैं। ऐसा अनुमान है कि आग लगने के समय इमारत में 100 से अधिक मजदूर काम कर रहे थे और वे इस बात से बेखबर थे कि इमारत आग की चपेट में आना शुरू हो गयी है । जाहिर सी बात है कि अगर फैक्टरी में फायर अलार्म, बाहर निकलने के लिए विभिन्न दरवाजे एवं आग को बुझाने के लिए जरूरी यंत्र जैसे कार्बन डाइऑक्साइड सिलिंडर आदि रहते, तो कई मजदूरों की जानें बचाई जा सकती थीं। कोफे इम्पेक्स कम्पनी में कार्यरत श्रमिक बेहद कठिन परिस्थितियों में सीसीटीवी कैमरा एवं वाईफाई राउटर का उत्पादन किया करते थे। यह त्रासदी दरअसल अनौपचारिक तरह से चलाई जाने वाली फैक्टरियों की घातक काम करने की परिस्थितियों को दर्शाती है और भयावह भविष्य जिसमें असंख्य मजदूरों की जानों का जाना सुनिश्चित है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह घटना बिल्डिंग मालिक, कारखाना मालिक, दिल्ली नगर निगम, पुलिस, श्रम विभाग और राज्य एवं केंद्र सरकार की मिलीभगत और आपराधिक लापरवाही के परिणामस्वरूप पैदा हुई हुई थी। अगर दिल्ली नगर निगम या पुलिस द्वारा फैक्टरी के शुरूआती दिनों में ही निष्पक्षीय हस्तक्षेप, निरिक्षण या जांच हुई होती, तो शायद इस फैक्टरी को अवैध रूप से चालू नहीं रहने दिया जाता चुकी वह जिस इमारत में चलाई जा रही थी, उसका नक्शा फैक्टरी के लिए था ही नहीं बल्कि वह तो दुकानों के लिए बनाया गया था। श्रम कानूनों में यह साफ तौर पर लिखा है कि फैक्टरी खोलने से पहले श्रम विभाग एवं दिल्ली नगर निगम से नक्शा पास कराना होता है और रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट भी प्राप्त करना होता है। पर घूसखोरी, दलाली और बिकाऊ अफसरों के जमाने में यह कानूनों का कोई मतलब नहीं रह गया है। फैक्टरी लाइसेंस, अग्निशमन विभाग से प्रमाण पत्र जैसे महत्त्वपूर्ण दस्तावेज फैक्टरी मालिक के पास नहीं थे। यहां तक की अनिवार्य अग्नि सुरक्षा उपायों जैसे होज रील, पानी की टंकी, फायर डिटेक्टर और दुसरे निकास के अभाव के कारण (जो कि पूरी तरह से फैक्टरी अधिनियम की अवहेलना है) वह तीन मजिला फैक्टरी एक भट्टी में तब्दील हो गयी जिसमें मजदूरों के दुबले-चुसे हुए शरीर जल कर राख हो गए। अगर दिल्ली सरकार के कारखाना निरीक्षणालय ने ऊपर दिए बिन्दुओं को लेकर फैक्टरी में पहले ही छापा मारा होता और फैक्टरी मालिक को सजा दी होती तो ऐसी घटना से बचा जा सकता था। इमारत सभी तरफ से सजावटी कठोर कांच से ढकी हुई थी जिसमें एक भी खिड़की नहीं थी इसलिए आग लगते समय बहुत तकलीफ से उसे किसी तरह तोड़ा जा सका। यह दरअसल भवन उपनियमों का उल्लंघन है। इतनी सारी भारी गलतियों के ऊपर से जब आग से इमारत धधक-धधक के जल रही थी, तब नागरिक सुरक्षा दल एवं दमकल विभाग पूरे 70 मिनट बाद घटनास्थल पर पहुंचा और इस देरी के कारण पहले ही बहुत सी जानें जा चुकी थी। इसमें यातायात पुलिस को भी खराब प्रबंधन के लिए दोषी ठहराया जाना चाहिए। उपर्युक्त मानदंडों की अवहेलना के अलावा, कम्पनी पहले से बेधड़क रूप से बुनियादी श्रम कानूनों का उल्लंघन कई वर्षों से करती आ रही थी जैसे कि श्रमिकों से (जिसमें कि ज्यादातर महिला मजदूर थीं) सस्ते पगार पर काम लेना (6000-6500 प्रति माह) जो की दिल्ली की न्यूनतम मजदूरी से आधे से भी कम है, न कोई ओवरटाइम, प्रोविडेंट फण्ड और ईएसआई। यहां तक कि श्रमिकों का कभी भी अटेंडेंस रजिस्टर तक नहीं मेन्टेन किया गया। इसके इलावा, गैर कानूनी तरह से मजदूरों को फैक्टरी के प्रवेश द्वार पर ही फोन जमा करने के लिए अनुचित जबरदस्ती भी करी जाती। साथियों, अगर यही श्रमिकों के पास आग लगते समय फोन होता तो वह अपने दोस्तों और परिवार जनों को सूचित कर अपनी जान बचा सकते थे पर वह ऐसा कर पाने से वंचित रहे। यह बात को गांठ बांध कर समझ लेना चाहिए कि मालिक वर्ग श्रम कानूनों के अनुपालन एवं सुरक्षा उपायों की लागत को कभी नहीं उठाने वाला है चुकी यह उसके मुनाफे पर सीधा हमला है और उसका हित दरअसल श्रम कानूनों के उल्लंघन में ही निहित है। यही कारण है कि वह हर दुर्घटना में लगने वाली गंभीर धाराओं एवं सजा से बच निकलता है और फिर से कहीं दूसरी जगह एक नई फैक्टरी खोल कर शोषण का पहिया चलाने लग जाता है। अगर देश के राजनैतिक माहौल को भांपा जाए, तब नए चार मजदूर-विरोधी श्रम कोड जो मजदूरों द्वारा खूनी लड़ाइयों से जीते गए 44 श्रम कानूनों का सफाया करना चाहते हैं, उन्हें सरकार आने वाले समय में और तेजी से लागू करेगी जिससे कि सभी श्रमिकों का जीवन किसी पशु-जानवर से कम नहीं होगा। इसलिए वह समय दूर नहीं है जब मजदूरों को पूंजीपतियों एवं सरकार से आर या पार के युद्ध में उतरना पड़ेगा चुकी रोज़गार का सवाल जीवन और मरण के सवाल में तब्दील हो चुका होगा!

इफ्टू सर्वहारा (दिल्ली) के विभिन्न मजदूर साथियों ने मुंडका अग्निकांड और मेहनतकश जनता के नारकीय जीवन पर प्रकाश डालते हुए मुंडका व मायापुरी औद्योगिक क्षेत्र की मजदूर बस्तियों में और यहां तक कि दिल्ली सचिवालय के समक्ष रोष प्रदर्शन, सभा एवं बैठकें की और मजदूर भाइयों और बहनों से एकबद्ध होने का आह्वान किया ताकि वर्ग संघर्ष के मैदान में मालिक वर्ग को चुनौती देते हुए उन्हें हमेशा के लिए बाहर फेंका जा सके। घटना के लगभग दुसरे-तीसरे दिन ही साथियों ने घटनास्थल का मुआयना किया और पीड़ित एवं मृतक मजदूरों के परिवारों से बातचीत की जिससे कि जरूरी जानकारी प्राप्त हुई। इसके साथ ही इफ्टू सर्वहारा ने दिल्ली के अन्य मजदूर संगठनों के साथ सम्मिलित रूप से फैक्टरी व भवन मालिकों एवं लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई जिसमें उन्हें जेल भेजने, मृतक के परिवारों को 50 लाख का मुआवजा देने एवं घायल श्रमिकों को 5 लाख राशि एवं मुफ्त इलाज देने, मृतक- घायल-लापता और बचाए गए श्रमिकों के सही आंकड़ों का खुलासा करने के लिए एक जिम्मेदार जांच समिति का गठन, आग्निकांड की निष्पक्षीय और व्यापक जांच जिसमें कि श्रमिकों और तमाम ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए एक तथ्य-खोज समिति का तुरंत गठन, कोफे इम्पेक्स कंपनी के मजदूरों का अप्रैल-मई के महीनों के बकाया वेतन को फ़ौरन ज़ारी करने एवं चार श्रम संहिताओं को निरस्त करते हुए सभी श्रम कानूनों को सुनिश्चित करने का आह्वान किया।

मुंडका अग्निकांड और ऐसी कई लाखों घटनाएं जिसमें मजदूर आये दिन जलते, गिरते, कटते व दबते हैं, आने वाले चुनौतीपूर्ण समय की ओर संकेत कर रही हैं जहां मजदूर वर्ग के पास इस सड़ते हुए शोषणयुक्त एवं गैर बराबरी पर आधारित समाज (जो कि एक फासीवादी निजाम के मुट्ठियों में है) को पलट कर एक नवीन, शोषण-विहीन एवं सौहार्दपूर्ण समाज बनाने के अलावा और कोई उपाय नहीं रहेगा। सामाजिक उत्पादन संबंधों का अगला पड़ाव यही है कि क्रांतिकारी चेतना से लैस मजदूर वर्ग समस्त उत्पादन के साधनों को अपने कब्जे में करते हुए इन चंद रक्तपिपासु पूंजीपतियों को उखाड़ फेक समाजवाद की स्थापना करे! यह समाजवाद की दुनिया ऐसी होगी जहां मानव द्वारा मानव के शोषण की कोई जगह नहीं होगी, सभी के लिए जरूरत अनुसार जीवन चलाने के लिए अहम साधनों की पर्याप्त आपूर्ति होगी और एक दुसरे के प्रति प्रेम व भाईचारे के अलावा और कुछ न होगा। यही है मजदूर वर्ग का ऐतिहासिक मिशन!

मायापुरी में इफ्टू(स) व एस.एस.के. का रोष प्रदर्शन; 22 मई

दिल्ली सचिवालय पर मजदूर संगठनों का संयुक्त विरोध प्रदर्शन; 17 मई

मुंडका अग्निकांड में पूरी तरह खाक हुई फैक्ट्री  |  मृत मजदूर मधु के बच्चे और सास