विकास में आगे कौन – पूंजीवाद या समाजवाद?

September 17, 2022 0 By Yatharth

एम असीम

आम तौर पर बहुत से लोग ये दावा करते मिलते हैं कि समाजवादी आर्थिक व्यवस्था असफल हो गई जबकि पूंजीवाद ने अपनी उच्च उत्पादकता व कार्यकुशलता की वजह से विकास की ऊंचाइयां छूने में कामयाबी पाई। उनके अनुसार इसी वजह से आम जनता के जीवन में पैदा तकलीफों से फैले असंतोष की वजह से अंततः समाजवादी देशों में वापस पूंजीवाद स्थापित हो गया। इसके पीछे किसी के पास कोई तथ्यात्मक आधार नहीं होता। पर पूंजीवादी व्यवस्था के कॉर्पोरेट पूंजी नियंत्रित खबरी व मनोरंजन मीडिया, शिक्षा व्यवस्था, विश्वविद्यालयों-थिंक टैंकों के अकादमिकों-विशेषज्ञों, नेताओं, वगैरह के द्वारा यह बात बिना प्रमाण के लगातार इतनी बार दोहराई जाती रही है कि यह स्वयं सिद्ध सत्य की तरह लगते हुए समाज के बहुत से व्यक्तियों के कॉमन सेंस का हिस्सा जैसा बन गई है।

पर इसमें सच कितना है?

आइए, अभी हम सामाजिक जीवन के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र स्वास्थ्य सेवाओं का उदाहरण लेते हैं और इसकी वास्तविकता क्या थी इसे समाजवादी देशों के प्रकाशनों के बजाय खुद पूंजीवादी दुनिया के ही कुछ गंभीर शोधों से इसका जवाब ढूंढने का प्रयास करते हैं। अमेरिकन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ द्वारा प्रकाशित एक उल्लेखनीय शोधपत्र में इस प्रश्न संबंधी तथ्य प्रस्तुत किए गए थे। (शर्ली सेरेसेटो व हॉवर्ड वेजकिन लिखित यह शोधपत्र ajph.aphapublications.org/doi/pdfplus/10.2105/AJPH.76.6.661 पर सुलभ है)। इसमें विश्व बैंक के आंकड़ों के आधार पर पूंजीवादी व समाजवादी देशों के बीच 30 सामाजिक सूचकों की तुलना की गई है और पाया गया कि विकास के हर स्तर पर इनमें से 28 पर समाजवादी देश पूंजीवादी देशों से बेहतर थे। समाजवादी देशों में नवजात शिशु व बचपन में मृत्यु की दर कम थी, औसत जीवन प्रत्याशा अधिक थी, साक्षरता व माध्यमिक शिक्षा दोनों की स्थिति बेहतर थी, भोजन की उपलब्धता अधिक थी, आबादी के अनुपात में डॉक्टर व नर्सें ज्यादा थे, और जीवन की भौतिक गुणवत्ता बेहतर थी।

किंतु विज्ञान के क्षेत्र में जैसा होता है इस शोध के निष्कर्षों पर बहुत सारे सवाल उठाए गए। तब एक और शोध में पहले शोध के नतीजों को और अधिक जटिल मॉडल व 50 से 84 देशों के आंकड़ों के सैम्पल के आधार पर जांचा-परखा गया और वे सही पाए गए। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ हेल्थ सर्विसेज में प्रकाशित  इस शोध पत्र के सार संक्षेप में ही कहा गया, “सामान्य तौर पर, उच्च स्तर का जनतंत्र व सशक्त वामपंथी सत्ता सकारात्मक स्वास्थ्य परिणामों के साथ संबंधित पाए गए।” ‘स्वास्थ्य परिणामों के राजनीतिक-आर्थिक निर्धारक – एक बहुराष्ट्रीय अध्ययन’ नामक यह शोधपत्र  https://pubmed.ncbi.nlm.nih.gov/8375956/ पर उपलब्ध है। इस अध्ययन के निष्कर्ष निम्न थे –

  1. “सेरेसेटो तथा वेजकिन के निष्कर्षों के अनुरूप पाया गया कि मजबूत दक्षिणपंथी सरकारों की तुलना में सशक्त वामपंथी सत्ताओं ने अपनी आबादी की स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में बहुत बेहतर काम किया।”
  2. “नव-क्लासिकी आर्थिक सिद्धांत की अपेक्षाओं के विपरीत, (स्वास्थ्य क्षेत्र में – लेखक) बहुराष्ट्रीय कॉर्पोरेट मौजूदगी का उच्च नवजात शिशु मृत्यु दरों व उच्च बाल्यकाल मृत्यु दरों से संबंध पाया गया।”  

एक और पूंजीवादी देश स्पेन के एक सार्वजनिक स्वास्थ्य अकादमिक विसेंटे नवारो ने भी इस विषय पर शोध किया और उन्होंने भी अमरीकी शोध की पुष्टि की और निष्कर्ष निकाला, “वर्चस्वकारी विचारधारा के विपरीत, समाजवाद व समाजवादी शक्तियां अधिकांशतया स्वास्थ्य की बेहतरी में पूंजीवाद व पूंजीवादी शक्तियों से अधिक सक्षम रहे हैं।” उनका शोधपत्र इस लिंक – jstor.org/stable/40404638 पर उपलब्ध है। इस शोध के नतीजे बड़े स्पष्ट हैं – अगर आप समाज के लिए बेहतर परिणाम चाहते हैं, तो सभी के लिए समान रूप से सुलभ सार्वजनिक सेवाओं की व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

यह नहीं भूलना चाहिए कि समाजवादी देशों ने स्वास्थ्य क्षेत्र में जो अभूतपूर्व आ अतुलनीय उपलब्धियां हासिल कीं, वे भी विकसित पूंजीवादी-साम्राज्यवादी देशों की तरह अल्पविकसित देशों में पूंजी निर्यात से कमाए गए मुनाफ़ों और वहां के संसाधनों की दीर्घ लूट की बुनियाद पर कायम संपन्नता की चकाचौंध की बदौलत नहीं, बल्कि तब जबकि वे खुद पूंजीवादी खेमे की जंगी घेराबंदी में थे और उन्हें विश्व भर के बाजारों से अलग-थलग रखने हेतु साम्राज्यवादी देशों ने उन पर तमाम किस्म के आर्थिक, व्यापारिक, तकनीकी प्रतिबंध आयद किए हुए थे।

समाजवादी देशों की उपलब्धियां 

स्वास्थ्य क्षेत्र में क्यूबा की शानदार उपलब्धियों पर तो पिछले समय कोविड दौर में काफी चर्चा हुई है। पर अभी हम यहां इस क्षेत्र में सोवियत संघ की उपलब्धियों पर कुछ तथ्य पेश करेंगे क्योंकि सोवियत संघ की उपलब्धियों पर पर्दा डाल उसे एक अनुत्पादकम अकुशल व असफल अर्थव्यवस्था सिद्ध करने के लिए कई दशकों से भारी दुष्प्रचार चलाया गया है जिससे काफी लोगों में भ्रम भी फैला हुआ है।

सोवियत समाजवाद ने अपनी आबादी के स्वास्थ्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की थीं जिनमें इतिहास में सर्वाधिक तेजी से औसत जीवन प्रत्याशा का दो गुना हो जाना, नवजात शिशु मृत्यु दर में हुई भारी गिरावट, पोषण के लिए कैलोरी उपलब्धता में जबर्दस्त वृद्धि एवं आबादी के औसत कद में वृद्धि (जिसका बाल्यकाल में भोजन की कैलोरी उपलब्धता में वृद्धि से सीधा रिश्ता है), आदि शामिल हैं। यहां हम जो तथ्य पेश कर रहे हैं उनका स्रोत उपरोक्त दिए गए एवं कुछ अन्य सार्वजनिक रूप से उपलब्ध शोध हैं जिनके लिंक निम्न हैं:

https://jstor.org/stable/45131072

https://jstor.org/stable/25654070?seq=1

सोवियतों ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में जो गौरवपूर्ण उपलब्धियां हासिल कीं, उनका कारण सोवियत समाज द्वारा मानव जीवन के सुधार में प्राथमिकता के आधार पर किया गया अत्यंत भारी निवेश था। इसके अंतर्गत हजारों नए अस्पतालों का निर्माण किया गया तथा लाखों डॉक्टरों का प्रशिक्षित किया गया।  इनमें लाखों की तादाद में स्त्री चिकित्सक शामिल थीं। यह अपने आप में एक अनोखी बात थी क्योंकि तब तक अमरीका, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे विकसित देशों में भी स्त्रियों को सिर्फ निम्न माने जाने वाले नर्स के काम तक सीमित रखा जाता था और उनके चिकित्सक बनने की राह बहुत कठिन व अड़चनों से भरी थी और हर कदम पर उन्हें हतोत्साहित किया जाता था। साफ करें कि यह बात सामाजिक मानसिकता दर्शाने मात्र के लिए कही गई है और हम यहां नर्सों के काम के महत्व पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगा रहे हैं।  बल्कि अक्सर मरीजों की जान बचाने में नर्सों तथा अन्य स्वास्थ्यकर्मियों की भूमिका डॉक्टर से भी अधिक महत्वपूर्ण होती है। इसका अर्थ मात्र इतना बताना है कि सोवियत समाज में स्त्रियों को उनकी रुचि व निर्णयानुसार हर पेशे में जाने का पूर्ण अधिकार मिला। 

1966 में ही मार्क फील्ड द्वारा लिखित एक अन्य शोध लेख (ajph.aphapublications.org/doi/pdfplus/10.2105/AJPH..56.11.1904) मुताबिक उस वक्त सोवियत संघ सालाना अमरीका से 3 गुने चिकित्सक प्रशिक्षित करता था जबकि उसकी आबादी अमरीका से मात्र 15% ज्यादा थी। उस वक्त दुनिया का हर 5वां डॉक्टर सोवियत था। (हालांकि इस लेख में पूंजीवादी सामाजिक व्यवस्था का चरित्र बताने वाली इस विशिष्ट बात का जिक्र नहीं था कि अमरीका में कम डॉक्टर होने की वजह अमरीकी मेडिकल असोसिएशन द्वारा इरादतन मेडिकल स्कूल की संख्या को सीमित रखना था ताकि उनकी कमी होने से उन्हें अधिक वेतन मिले!) इसका परिणाम था कि जहां सोवियत संघ में समाजवादी क्रांति पूर्व 1913 में दस हजार आबादी पर मात्र 1.5 चिकित्सक थे वहीं यह संख्या बढ़कर 1950 में 14.6 व 1963 में 20.5 हो गई। 1965 में सोवियत संघ में कुल 4,65,000 डॉक्टर थे। साथ ही अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की भी संख्या बहुत बड़ी थी। इसे ऐसे समझ सकते हैं – 1 जनवरी 1964 को 22.62 करोड़ की जनसंख्या में से 39.33 लाख (1.77%) नागरिक स्वास्थ्य कर्मी थे (सैन्य स्वास्थ्य कर्मी इसके अतिरक्त)। इसे दूसरी तरह देखें तो कुल 7.05 करोड़ वेतनभोगी कामगारों में से 5.77% सिर्फ नागरिक स्वास्थ्य कर्मी ही थे।

इतने चिकित्सा कर्मियों को प्रशिक्षित करना और उनके काम के लिए मेडिकल स्कूल, अस्पताल, प्रयोगशाला, आदि का विशाल स्वास्थ्य ढांचा निर्मित करना बहुत महंगा काम है। इससे न सिर्फ यह पता चलता है कि सोवियत समाज में जनता के स्वास्थ्य एवं जीवन की गुणवत्ता पर कितना जोर था बल्कि यह भी कि उसकी आर्थिक बुनियाद कितनी मजबूत थी कि वह इतना बड़ा खर्च करने में सक्षम था। पर यह भी जोड़ना होगा कि यह मात्र एक ऐसे समाज में मुमकिन हुआ जिसमें आर्थिक क्रियाकलाप का मकसद कुछ पूंजीपतियों का मुनाफा नहीं बल्कि सामूहिक सामाजिक आवश्यकताओं की योजनाबद्ध पूर्ति करना था।

मार्क फील्ड आगे लिखते हैं, “सोवियत चिकित्सा में स्त्रियों की अत्यंत अहम भूमिका को देखते हुए स्वास्थ्य कर्मियों की तादाद में लैंगिक विभाजन का तुलनात्मक अध्ययन समान रूप से महत्वपूर्ण है। बल्कि यह कहना सही होगा कि औद्योगीकरण को दी गई उच्च प्राथमिकता व उससे प्रत्यक्ष संबंधित प्रक्रियाओं को देखें तो चिकित्सा समूह के आकार में हुई शानदार वृद्धि बिना महिलाओं को बड़े पैमाने पर रोजगार दिए संभव ही नहीं थी।” पर स्त्री समानता को जुबानी जमा खर्च से पूरा कर देने वाले समाज में यह कैसे होता? इसके लिए तो नारी मुक्ति व समानता के लिए सोवियत समाज जैसा दृढ़ निश्चय जरूरी था। नतीजा था कि सोवियत चिकित्सकों में स्त्री चिकिसक भारी बहुमत में थी।  जहां 1913 में कुल डॉक्टरों की 10% या 2,300 ही स्त्रियां थीं, 1963 में यह संख्या बढ़कर 74% या 340,700 हो गई। पूरे स्वास्थ्य क्षेत्र को देखें तो यह 86% थी, हालांकि पूरी अर्थव्यवस्था में यह अनुपात 48% का ही था। उसी समय सर्वाधिक विकसित ‘लिबरल बुर्जुआ डेमोक्रेसी’ अमरीका में स्त्री डॉक्टर कुल संख्या का 6% ही थीं। और भी महत्वपूर्ण बात यह है कि स्त्री डॉक्टर 1928 तक ही कुल सोवियत डॉक्टर संख्या का 45% और 1940 तक 60% हो चुकी थीं। जबकि उस दौर में सोवियत संघ ने गृह युद्ध का विनाश देखा था और कृषि सामूहिकीकरण व बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण आरंभ भी नहीं हुआ था। और 1940 तक सोवियत संघ फासिस्ट विरोधी युद्ध में अप्रत्यक्ष तौर पर शामिल हो चुका था और प्रत्यक्ष जंग की तैयारी जारी थी। साथ ही यह स्टालिन के नेतृत्व का वह दौर था जिसे बहुत सारे तथाकथित वामपंथी भी सोवियत शासन की समस्त प्रगतिशीलता की समाप्ति व खूनी तानाशाही का दौर बताते हैं।

इसके अतिरिक्त भी बहुत सी बातों का जिक्र किया जा सकता है जैसे संक्रामक रोगों की रोकथाम कैसे की गई या कैसे 1927 में सोवियत संघ (अब उक्रेन) के खेरसोन में विश्व का पहला गुर्दा प्रत्यारोपण हुआ, आदि। ऐसी तमाम उपलब्धियों का जिक्र किया जा सकता है। परंतु हम इनकी सूची के द्वारा लेख को लंबा नहीं करेंगे। 

खैर, इसके बाद भी बहुत से बुर्जुआ आलोचक बताएंगे कि शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन, खेलकूद, आदि जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने वाली व्यवस्थाएं बेहतर भी थीं तो इससे क्या होता है? वहां की अर्थव्यवस्था में श्रमिकों की उत्पादकता व कार्यकुशलता तो कम थी। पर इस बात का मतलब सिर्फ इतना ही होता है कि उनकी नजर में आम मेहनतकश जनता के जीवन की दशा व गुणवत्ता में सुधार उत्पादकता व कार्यकुशलता का अंग है ही नहीं। उनके लिए उत्पादकता व कार्यकुशलता का एक ही अर्थ है कि कम से कम श्रमिकों द्वारा कम से कम मजदूरी दर पर अधिक से अधिक उत्पादन किया जाए ताकि उनके द्वारा अधिक अधिशेष मूल्य या सरप्लस वैल्यू पैदा की जाए क्योंकि वही तो पूंजीपति वर्ग के मुनाफे व पूंजी संचय का एकमात्र स्रोत है। उनके लिए पूंजीवादी उत्पादन व्यवस्था में उत्पादकता का एकमात्र अर्थ सरप्लस वैल्यू या मुनाफा ही है। इसके बजाय समाजवादी उत्पादन व्यवस्था उत्पादन के साधनों पर सामूहिक मालिकाने में सामूहिक रूप से श्रम द्वारा सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु योजना बनाकर काम करने की व्यवस्था है। उसमें उत्पादकता व कार्यकुशलता का का एकमात्र अर्थ यह है कि सामाजिक अवश्यकताएं किस हद तक पूरी होती हैं, न कि पूंजीपतियों का मुनाफा। पूंजीवादी व्यवस्था में जहां विकास का अर्थ मेहनतकश जनता की कंगाली की कीमत पर पूंजीपतियों की दौलत के अंबार लगाना होता है वहीं समाजवादी व्यवस्था में विकास का अर्थ मजदूरों से कम मजदूरी पर अधिक से अधिक घंटे और अधिक से अधिक तेजी से कमरतोड़ काम कराकर उनके शारीरिक,  मानसिक, पारिवारिक व सामाजिक स्वास्थय व जीवन को बरबाद करना नहीं, उनके जीवन को उन्नत से उन्नत बनाना होता है।