विरासत | ई वी रामासामी ‘पेरियार’
September 18, 2022पेरियार, एक अनवरत योद्धा जो हर तरह के भेदभाव के खिलाफ जीवन-पर्यन्त लड़ता रहा
उनके 143वे जन्मदिवस पर उनके बचपन से युवावस्था तक के सफर का एक अंति संक्षिप्त परिचय
अजय सिन्हा
शोषण और उत्पीड़न के विरुद्ध लड़ने वाले इस अनवरत योद्धा का पूरा नाम पेरियार ई.वी. रामासामी था और इनका जन्म तमिलनाडु के एरोड शहर में हुआ था। इनके पिता हिंदू धर्म के कट्टर अनुयायी थे और इसलिए इनके घर में तमिल वैष्णव गुरूओं का धर्म के ऊपर प्रवचन होता रहता था। ये जब कम उम्र के थे तभी तो हिंदू देवताओं की कहानियों में मौजूद विरोधाभास और भ्रम पर सवाल उठाने लगे थे। इस तरह तर्क और नास्तिकता दोनों इनके दिमाग में बहुत कम उम्र में ही जगह बनाने लगे थे। इसलिए इन्हें बचपन से ही अपने पिता की डांट पड़ने लगी थी और इसी कारण उन्होंने 1904 में ही घर छोड़ने का फैसला कर लिया था। वहां से वे पहले विजयवाड़ा गये और फिर हैदराबाद और कलकत्ता। जब वे बनारस में काशी गए तो वहां उन्हें काफी लज्जाजनक स्थिति का सामना करना पड़ा, यहां तक कि उन्हें खाना भी नसीब नहीं हुआ, क्योंकि जिस सराय में वे ठहरे थे वहां सिर्फ ब्राह्मणों को ही खाना मिल सकता था किसी गैर-ब्राह्मण हिंदू को नहीं, जबकि वह सराय द्रविड़ समुदाय के धनी व्यापारियों के दान से ही बनाया गया था। जब कई दिनों तक खाना नहीं मिला तो उन्होंने एक ब्राह्मण का भेष धारण करने की भी कोशिश की लेकिन असफल रहे और चौकीदार ने उन्हें भोजनालय में जाने से रोकने के लिए धक्के दे कर गिरा दिया। अंत में अपनी भूख मिटाने के लिए उन्हें फेंका हुआ खाना (जो बच जाने पर फेंक दिया जाता था) खाने के लिए गली के कुत्तों से भिड़ना पड़ा था। इनके दिमाग में यह बात और भी गहरी घर कर गई कि पुरानी धार्मिक मान्यताओं को चुनौती देना आवश्यक है। काशी में जो हुआ उनके हृदय में एक घाव बन गया। सबसे पवित्र शहर माने जाने वाले काशी में उन्होंने जो भी देखा, जिसमें वेश्यावृत्ति, चोरी, भिखमंगई, आदि से लेकर गंगा नदी की धारा में बहती लाशों के दृश्य ने उन्हें धार्मिक मान्यताओं से पूरी तरह दूर ही नहीं कर दिया, बल्कि वे इससे घृणा तक करने लगे थे। तब से उनकी जिंदगी की दिशा बिलकुल बदल गई और वे पूरे त्याग व निष्ठा से समाज सुधार के कामों में लग गए जो उन्होंने जीवन-पर्यन्त जारी रखा। उनके द्वारा किए गए कामों और लिखे गए लेखों की लिस्ट काफी लंबी है। वे स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए जेल भी गए। वे जब तक जीवित रहे, छुआछूत के खिलाफ संघर्ष करते रहे। वे सुधारवादी थे लेकिन एक भिन्न प्रकार के सुधारवादी थे जिनके विचारों में क्रांति के बीज मौजूद थे। ब्राह्मणवाद सहित सभी तरह के भेद भाव के खिलाफ उनकी लड़ाई को दुनिया हमेशा याद रखेगी।
स्रोत : कलेक्टेड वर्क्स ऑफ पेरियार, द पेरियार सेल्फ-रेस्पेक्ट प्रोपगंडा इंस्टीट्यूशन द्वारा प्रकाशित, तीसरा संस्करण, 2005