Yatharth

फासीवाद और मजदूर वर्ग का दायित्व

(मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (MASA), दिल्ली द्वारा 12 अक्टूबर 2025 को ‘बढ़ता फासीवादी खतरा और मजदूर वर्ग‘ विषय पर अम्बेडकर भवन, दिल्ली में आयोजित कन्वेंशन में आईएफटीयू–सर्वहारा का वक्तव्य) I   मजदूर अक्सर पूछते हैं, फासीवाद क्या है? फासीवाद के बारे में सबसे पहली बात तो यही है कि यह पूंजीपति वर्ग की तानाशाही का…

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अक्‍टूबर क्रांति और इस रास्‍ते पर चलने की जरूरत के बारे में चंद बातें

संपादकीय, सर्वहारा, 30 अक्टूबर 2025 अक्‍टूबर क्रांति – मजदूर-मेहनतकश वर्ग की समाजवादी क्रांति – 25 अक्‍टूबर 1917 को शुरू हुई और अगले दिन यानी 26 अक्‍टूबर की शाम तक संपन्‍न भी हो गई थी। मजदूर-मेहनतकश वर्ग ने पूंजीपति वर्ग की सत्ता उलट दी थी और लेनिन द्वारा निर्मित बोल्‍शेविक पार्टी के नेतृत्‍व में सत्ता अपने…

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फासीवादी दौर में महिलाओं पर बढ़ता उत्पीड़न और महिला मुक्ति का प्रश्न

30 दिसंबर 2024 को आसनसोल बार एसोसिएशन हॉल, पश्चिम बर्धमान, पश्चिम बंगाल में कॉमरेड सुनील पाल की 15वीं शहादत वर्षगांठ के अवसर पर पीआरसी, सीपीआई (एमएल) तथा इफ्टू (सर्वहारा) द्वारा उपर्युक्त विषय पर आयोजित केंद्रीय कन्वेंशन में पेश आधार पत्र।  मूल दस्तावेज़ अंग्रेजी में है जिसका यह हिंदी में अनुवादित संस्करण है। भूमिका हाल के…

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संविधान बदलाव की कोशिश – अधमरे बुर्जुआ जनवाद को फासीवादी ताबूत में दफनाने की तैयारी

मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था, संसद, सुप्रीम कोर्ट, आदि की रक्षा का सीमित नारा भारत में फासीवाद से लड़ने का आधार न तो बन पा रहा है, न ही बन सकता है, क्योंकि पूंजीपति वर्ग शासन के संचालन हेतु बनी व्यवस्था उसके आर्थिक संकट से घिर जाने पर सड़कर आने वाले फासीवाद का औजार बननी स्वाभाविक व निश्चित है। फासीवाद के वास्तविक विरोध के लिए शोषणमुक्त व हर किस्म के उत्पीड़न व भेदभाव से रहित, असली समानता आधारित समाज का एक नया खाका प्रस्तुत करना ही होगा।

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बड़ी पूंजी (कॉरपोरेटों) के हक में आनन-फानन में किये जा रहे बिहार भूमि सर्वेक्षण पर रोक लगाओ!

भूमिहीनों, गरीबों को उजाड़ना बंद करो; भूमि पर उनका दावा बहाल करो! (बिहार में जारी वर्तमान भूमि सर्वेक्षण पर जन अभियान, बिहार द्वारा गांधी संग्रहालय, पटना में 9 जनवरी 2025 को आयोजित कन्वेंशन में पेश प्रपत्र।)  जन अभियान, बिहार बिहार में चल रहे (बढ़ी हुई समय अवधि के साथ) भूमि सर्वे में अफरातफरी की स्थिति…

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सड़ता बीमार पूंजीवाद बोलने की जरा भी आजादी को सहन करने को कतई तैयार नहीं

 मुकेश असीम | सर्वहारा #71-73 (1 मार्च – 15 अप्रैल 2025) पूंजीवादी व्यवस्था का दावा रहा है कि उसने जनतंत्र कायम किया और सभी को अभिव्यक्ति का जनतांत्रिक अधिकार दिया है, हालांकि सच्चाई यह है कि पूंजीवाद में हर अधिकार वास्तव में सम्पत्तिशालियों के लिए ही होता है। संपत्तिहीन मजदूर मेहनतकश इन अधिकारों का प्रयोग…

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खस्ताहाल मध्य वर्ग और उसकी गिरती आय की स्वीकारोक्ति

 संपादकीय | सर्वहारा #71-73 (1 मार्च – 15 अप्रैल 2025) इस संबंध में देश के प्रतिष्ठित अखबारों (जैसे कि इकोनॉमिक टाइम्स और फाइनेंशियल टाइम्स) में छपी पूंजीवादी थिंक-टैंक के एक सदस्य सौरभ मुखर्जी (मार्सेलस इनवेस्टमेंट मैनेजर्स के संस्थापक और मुख्य निवेश अधिकारी) की रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत के मध्य वर्ग1 की आर्थिक स्थिति…

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नई आर्थिक नीतियों के बारे में एक बार फिर से

 अजय सिन्हा | ‘यथार्थ’ पत्रिका (जनवरी-मार्च 2025) आम तौर पर 1991 में नरसिम्हा राव की सरकार के दौर की आर्थिक नीतियों पर चर्चा होती है, तो प्राय: तत्कालीन भारतीय अर्थव्यवस्था के वास्तविक कार्यचालन (actual working) को उजागर करने पर हमारा ध्यान न के बराबर होता है। ध्यान महज नीतियों के अच्छे या बुरे होने पर…

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‘फ्रीबीज-रेवड़ियां’ सिर्फ पूंजीपतियों को ही, गरीब इससे मुफ्तखोर बनते हैं! 

 संपादकीय | ‘यथार्थ’ पत्रिका (जनवरी-मार्च 2025) बजट व अन्य आर्थिक नीतियां – ‘फ्रीबीज-रेवड़ियां’ सिर्फ पूंजीपतियों-अमीरों को ही, गरीब इससे मुफ्तखोर बनते हैं! – फासीवादी दौर का ‘वेलफेयर’ मॉडल सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर चुनावों के पहले मुफ्त चीजें या फ्रीबीज देने के राजनीतिक दलों के वादे पर नाराजगी जताई और कहा कि लोग काम…

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