किसान महापंचायत – मेहनतक़शों का जन सैलाब

किसान महापंचायत – मेहनतक़शों का जन सैलाब

September 14, 2021 0 By Yatharth

मुज़फ्फ़रनगर, यू पी – 5 सितम्बर 2021 ; एक रिपोर्ट

एस वी सिंह


पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फ़रनगर शहर में प्रवेश करने वाला हर मार्ग रविवार दिनांक 4 सितम्बर की शाम से ही जन सैलाब की अटूट धाराओं जैसा नज़र आ रहा था। ये सभी धाराएं राजकीय इन्टर कॉलेज के विशाल मैदान के जन महासागर में मिलती जा रही थीं। 26-27 अगस्त को सिंघु बॉर्डर पर सम्पन्न हुए अखिल भारतीय किसान सम्मेलन के फैसले के मुताबिक़ उत्तरप्रदेश के आलावा पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश से किसान बसों से पूरी तैयारी के साथ शनिवार 4 सितम्बर की शाम से ही मुज़फ्फ़रनगर पहुँचने शुरू हो गए थे। इन राज्यों के अलावा बिहार, झारखण्ड, प बंगाल, असम, महाराष्ट्र, अरुणाचल, तमिलनाडू, केरल, कर्णाटक, तेलंगाना और आन्ध्र प्रदेश से भी किसान प्रतिनिधिमंडल रविवार 5 सितम्बर की इस रैली में भाग लेने पहुंचे। किसान आन्दोलन नेतृत्व द्वारा लिया गया कोई भी फैसला पूरी संजीदगी और गंभीरता के साथ सभी किसान किसी अनुशासित सेना की तरह पालन करते हैं, इस मामले में कोई शक़ अब किसी किसान को तो है ही नहीं, सरकार और प्रशासन को भी नहीं है। आन्दोलन-विरोधियों और फासिस्ट मोदी सरकार के वज़ीरों ने भी अब इस आन्दोलन को ‘पंजाबियों द्वारा गुमराह किए गए किसानों का जमावड़ा’ कहना बंद कर दिया है। किसान आन्दोलन भारत के किसानों का एक राष्ट्रिय आन्दोलन है, ये तथ्य प्रस्थापित करने की मंजिल ये आन्दोलन प्राप्त कर चुका है।

5 सितम्बर को अल सवेरे से तो हर रोड पर आन्दोलन के झंडों-बैनरों से सुसज्जित असंख्य ट्रेक्टर ट्रोलियाँ दनदनाते हुए मुज़फ्फ़रनगर की ओर एक अटूट श्रंखला के रूप में बढ़ती जा रही थीं। दिल्ली की दिशा से मोदीपुरम के बाद पड़ने वाले टोल प्लाजा के सभी काउंटर बन्द पड़े थे और रास्ते पूरी तरह खुले हुए थे और वहाँ यू पी पुलिस तैनात थी जो शायद ये सुनिश्चित करने के लिए थी कि रहजनी के जैसी टोल के नाम पर उगाही करने वालीं ये मुनाफ़ाखोर कंपनियां कहीं टोल वसूलने ना लग जाएँ और किसान कहीं भड़क ना जाएँ!! इसके साथ ही युवा किसान कार्यकर्ता टोल से मुज़फ्फ़रनगर की दिशा में जाने वाले हर वाहन पर फूलों की पंखुडियां बरसाते थे। ऐसे सम्मान का गौरव पाकर कौन भाव-विभोर ना हो जाए!!

मुज़फ्फ़रनगर शहर में प्रवेश करने वाली सड़क में डिवाईडर के दोनों ओर किसानों के ट्रेक्टर-ट्रोलियों, मोटर साइकिल, कारों के आलावा जोश से नारे लगाते  जुलूस की शक्ल में अनगिनत किसान-मज़दूर महापंचायत स्थल की ओर धीरे धीरे बढ़ रहे थे। शहर में एक किलोमीटर भी नहीं बढे थे कि सड़क के दोनों ओर युवा कार्यकर्ताओं की टोलियाँ सभी वाहनों के अन्दर और पैदल चलने वाले लोगों को दोनों हाथों से भरपूर मात्रा में बूंदी के लड्डू देते जा रहे थे। साथ ही अनेकों जगह आम लोग आगंतुकों को पानी, शरबत पिलाकर बहुत ख़ुशी महसूस कर रहे थे। मुज़फ्फ़रनगर में प्रवेश करने वाली हर रोड पर कई किलोमीटर दूर तक खाने और मिठाई तथा पानी-शरबत के लंगर लगे हुए थे। मुस्लिम समुदाय द्वारा लगाए लंगरों पर ज्यादा भीड़ नज़र आई। मानो मुज़फ्फ़रनगर शहर के सभी लोग आने वाले मेहमानों की मेज़बानी कर रहे हों। कुछ कार्यकर्ता और आम शहरी ट्रैफिक पुलिस की भूमिका में भी थे जो समझाते थे कि आपको महापंचायत में ऐसे पहुंचना है, फलां जगह रोड तंग है लेकिन उसके आगे कोई प्रॉब्लम नहीं होगी। पूरे शहर के सारे बाज़ार पूरी तरह बंद थे। अपने-अपने तरीक़े से सभी लोग महापंचायत के आयोजन और उसे क़ामयाब बनाने, यादगार बनाने के लिए होने वाले इन्तेज़ामों में अपनी भागीदारी चाहते थे। 

जन-आन्दोलनों की खूबसूरती अपने पूरे शबाब में नज़र आई।

हिन्दू-मुस्लिम एकता में आई दर्दनाक दरार को भर दिया

गन्ने और गुड़ की मिठास के लिए प्रख्यात मुज़फ्फ़रनगर वही जगह है जहाँ की महापंचायतें 2013 में, बदकिस्मती, से नफ़रत के ख़ूनी संघर्षों, अल्पसंख्यकों पर बर्बर हमलों की योजनाओं के लिए जानी जाती और सिहरन पैदा करती रही हैं। अस्सी के दशक में महेंद्रसिंह टिकैत की रहनुमाई में भारतीय किसान आन्दोलन की शुरुआत इसी ज़िले के गाँव सिसौली से हुई थी। उस किसान आन्दोलन की जो भी आलोचना की जाए लेकिन एक सच्चाई से कोई इंकार नहीं कर सकता कि उसने हिन्दू-मुस्लिमों के आपसी मतभेद पूरी तरह मिटा दिए थे। 2014 को होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले कॉर्पोरेट ये तय कर चुका था कि आर्थिक संकट उस स्तर को छू चुका है जब जनवाद का ढकोसला बरदाश्त नहीं किया जा सकता। अंध राष्ट्रवाद, कट्टर हिन्दूत्व और मुस्लिम घृणा के औज़ारों को इस्तेमाल करते हुए ‘संघ परिवार’ ने नफ़रत और उन्माद की ज़बरदस्त फासीवादी आंधी पैदा की जिसे पैदा करने और बढ़ाने के लिए कॉर्पोरेट ने अपना ख़जाना पूरी तरह खोल दिया। उसी फासिस्ट प्रोजेक्ट के तहत युवाओं में भयंकर बेरोज़गारी और हताशा को उस्तादी से इस्तेमाल करते हुए मुज़फ्फ़रनगर में भयानक दंगों को गढ़ा गया। हिन्दू-मुसलमानों का अटूट नज़र आने वाला बंधन चटक गया। दोनों एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए। अल्पसंख्यकों पर बे-इन्तेहा ज़ुल्म ढाए गए, गाँव-गाँव से मारकर खदेड़ा गया। नतीज़ा ये हुआ कि मज़हबी अफीम के उस नशे की आंधी उन्हीं फासिस्टों को सत्ता में ले आई जिन्हें दंगे गढ़ने की विशेष योग्यता हांसिल है। विदित हो कि मौजूदा ऐतिहासिक किसान आन्दोलन में तन-धन-मन से समर्पित इस पूरे किसान समुदाय ने झूमकर भाजपा को वोट दिए थे।  उसके बाद वही हुआ जिसके लिए फ़ासिस्ट जाने जाते हैं। आम ग़रीब, किसान-मज़दूर के लिए किए गए किसी भी वादे को पूरा करना तो दूर उसे पूरा करने का प्रयास तक नहीं किया गया। देश की सारी सम्पदा कांग्रेस से भी ज्यादा बेशर्मी के साथ उन्हीं कॉर्पोरेट को सौंप दी गई जिनके हवाई जहाज में बैठकर ‘देशभक्त’ मोदी उस चुनाव में तूफानी दौरे किया करते थे। कॉर्पोरेट की मुनाफ़े की हवश अंतहीन है। मोदी सरकार ने कॉर्पोरेट के सामने पूरी तरह बिछते हुए जब देश के सारे कृषि बाज़ार को ही अडानी-अम्बानी को अर्पित करने की ठानी और उस मामले पर कोई तर्क, कोई दलील सुनना भी उसे मंज़ूर नहीं हुआ तब इन किसानों की ऑंखें पूरी तरह खुल गईं। इन चौधरियों को ये समझने में बिलकुल देर नहीं लगी कि उनके प्रिय मोदी जी अब उन्हें कॉर्पोरेट के मुंशी बनाना चाहते हैं।  ऑंखें एक बार जो खुलीं तो बस खुलती ही चली गईं। तुरंत समझ आ गया कि ये मुसलमान जिनको आज वो देख नहीं सकते, वे तो उनके पूर्वजों द्वारा चलाए गए किसान आन्दोलन के अडिग स्तम्भ थे। उनके साथ उनके बैर की वज़ह क्या है? ये जो हिन्दुओं के स्वयं घोषित ठेकेदार हैं, जिन्होंने उन्हें पहले ‘समझाया’ की हिन्दू धर्म खतरे में है और 80% आबादी को ये खतरा 18% मुसलमानों से है, ये तो असलियत में

कॉर्पोरेट के हाथों बिकी सरकार के ताबेदार हैं। ये तो धूर्त और मक्कार लोग हैं। उनके साथ तो बहुत बड़ी ठगी हुई है। दुश्मन तो उनका वो है जो मुसलमानों को दुश्मन बता रहा है, जो उनकी ज़मीनों को अडानी-अम्बानी को सौंपकर उन्हें उनका दलाल या कारकून बनाना चाहता है, जिंदा रहने के लिए ज़रूरी अन्न जिसे वे अपना पसीना बहाकर उगाते हैं, कौड़ियों के दाम ख़रीदकर उसे चमकीली पॉलिथीन में लपेटकर 80% ग़रीब मेहनतक़श अवाम को सोने के दाम बेचना चाहता है, उन्हें भूखों मारकर अपनी तिजोरियां भरना चाहता है। और ये 56 इंची पहलवान तो उनका ताबेदार है। उसके बाद से किसान किसी मुगालते में नहीं रहे। महापंचायत की शानदार स्टेज के बीचोंबीच पूरे कार्यक्रम के दौरान भारतीय किसान आन्दोलन के राष्ट्रिय अध्यक्ष सुरेश टिकैत बैठे रहे और उनसे बिलकुल सटकर, पूरे कार्यक्रम के दौरान मुज़फ्फ़रनगर के प्रतिष्ठित मुस्लिम नेता गुलाम मोहम्मद जौला भी बैठे नज़र आते रहे और ये दृश्य सारे उपस्थित जन सैलाब को बहुत ही सुकून पहुँचाने वाला था। एक खुबसूरत नज़ारा जो 2013 से पहले मौजूद था। ठग जमात ने योजनाबद्ध तरीक़े से ज़हर फैलाकर जिसे ख़त्म कर डाला था फिर से पूरी रौनक ओ रवानगी के साथ लौट आया। ये तारीखी महापंचायत इस खोये हुए ज़माने को लौटाने के लिए भी हमेशा जानी जाएगी।  हिन्दू-मुस्लिम समाज की इस फौलादी एकता का नज़ारा नफ़रत व्यवसायियों को पसीना छुड़ाने वाला है। महापंचायत में कुल लगभग 60 लोगों के भाषण हुए और हर वक्ता ने संघियों द्वारा छीन ली गई इस खण्डित कड़ी को फिर से जोड़ने के किसान आन्दोलन और इस महापंचायत के योगदान को रेखांकित किया। 2013 के लिए मुसलमानों से स्पष्ट रूप से बे-शर्त माफ़ी मांगी जाती तो सम्बंधित नेताओं का बड़प्पन और बुलंद होता लेकिन जितना हुआ वो भी बहुत ही अहम है। हालाँकि वे ज़ख्म बहुत गहरे हैं और भरने में अभी और वक़्त लगेगा। सभा स्थल तक पहुँचाने की सडकों पर पड़ने वाली मुस्लिम बस्तियों में मुस्लिम समाज के थोडा दूर खड़े रहकर गंभीर मुद्राओं में नम आँखों से उन नज़ारों, जुलूस को निहारना बहुत कुछ बयाँ करता है मानो वे सब भी बिलकुल उसी उत्साह से मेहमानों की आव-भगत में जुट जाने के अरमान रखते हैं लेकिन उन्हें वो दर्द अभी तक साल रहा है। सब ज़ख्म लेकिन जल्द भर जाने वाले हैं।

अभी नहीं तो कभी नहीं

सभा में पहले दो घंटों में अनेक वक्ताओं को पहले एक-एक मिनट और बाद में 20 सेकंड में अपनी बात रखने को कहा गया। किसी भी व्यक्ति द्वारा ऐसा क़रतब करना मुमकिन नहीं इसकी बजाय कुछ लोगों को बुलवाकर बाक़ी लोगों के नाम पढ़कर ये कहना कि इन लोगों को बोलने का अवसर नहीं दिया जा सका, बेहतर विकल्प होता। हालाँकि बाद में प्रमुख नेताओं को पर्याप्त वक़्त दिया गया जिसमें सुरेश टिकैत, राकेश टिकैत, बलबीर सिंह राजेवाल, गुरनाम सिंह चडूनी, डॉ दर्शन पाल, हन्नन मौल्ला, जगजीत सिंह डल्लेवाल, जोगिन्दर सिंह उग्राहां, सत्यवान, शिवकुमार शर्मा (कक्का जी), युद्धवीर सिंह एवं योगेन्द्र यादव, जगमती सांगवान, मेधा पाटकर, बिहार से आए कई किसान नेताओं और पंजाब से आईं कई महिलाओं ने बहुत रोषपूर्ण अंदाज़ में अपनी बात रखीं और उपस्थित जन महासागर ने जोरदार गर्ज़ना से उनका समर्थन किया। सबसे जोरदार तालियाँ और दाद तमिलनाडु से आए किसान नेता के भाषण को मिलीं। इतनी दूर-दूर तक उनकी हांक पहुँच रही है और 2273 किमी दूर से उनके कॉमरेड उनकी सभा में शामिल होने आए हैं ये जानकर सभा में और सभा से कई किमी दूर तक शहर भर में फैले लगभग 10 लाख जन सैलाब ने आकाश गर्ज़ना कर स्वागत किया। भाषणों का निचोड़ इस तरह रखा जा सकता है। दिल्ली और लखनऊ दोनों जगह  भाजपा सरकार ने सत्ता हांसिल करने के बाद से मेहनतक़श किसानों और मज़दूरों के साथ सिर्फ़ गद्दारी ही की है, उन्हें धोखा ही दिया है। यू पी और दिल्ली की केंद्र सरकार घोर जन विरोधी, मानव द्रोही हैं। क़र्ज़ माफ़ी के नाम पर कुल 18% किसानों का ही क़र्ज़ माफ़ हुआ, किसानों की आय 2022 तक डबल करने वाली सरकार ने किसानों का 8772 करोड़ रुपये का गन्ने का भुगतान अभी तक नहीं किया है, फसल बीमा योजना से बीमा कंपनियों की तिजोरियां भरी गईं और उसे पूरी बेशर्मी से किसानों के लिए सरकार की सौगात बताया गया, सरसों की सरकारी खरीद कुल उपज का मात्र 1% और चने की सरकारी ख़रीद बिलकुल भी नहीं हुई। किसी भी फसल को एम एस पी का रेट नहीं नसीब हुआ। हाँ झूठ बोलने में योगी-मोदी का मुक़ाबला कोई नहीं कर पाएगा। 28 जनवरी को गाज़ीपुर बॉर्डर पर यू पी की सरकार ने पुलिस की मदद से आन्दोलन को तोड़ने की भयानक साजिश रची जिससे सरकार के असली मंसूबे पता चले। इस भयानक ख़ूनी षडयंत्र को राकेश टिकैत की समझदारी और बहादुरी ने नाकाम कर दिया। इस घटना ने उ प्र सरकार की असलियत किसानों के सामने उजागर कर दी। 5 सितम्बर को मुज़फ्फ़रनगर में बहुत ही कचोटने वाली गर्मी थी। सभा स्थल शहर के बीचोंबीच और तीन तरफ से बिल्डिंग से घिरा होने के कारण और ऊपर बहुत हलका शामियाना होने के कारण गर्मी बहुत ही पीड़ादायक थी। लाउड स्पीकर्स और सी सी टी वी का बहुत अच्छा इन्तेजाम था जो ग्राउंड से बहुत दूर तक फैला हुआ था लेकिन सभा स्थल में पंखे ना होने के कारण लोग बेचैन हो रहे थे जिससे चाहकर भी अनेक लोग सभा में बैठ नहीं पा रहे थे। इससे कई लोगों को लगा कि नेताओं और जन समुदाय में दूरी निर्माण

हो गया है। ये सत्य नहीं है बल्कि ये सोच दुर्भावनापूर्ण है।

अब ये मात्र किसानों का आन्दोलन नहीं रहा

इस ऐतिहासिक आन्दोलन के कई बहुत महत्वपूर्ण आवाम हैं, बेहद अहम पहलू हैं। अब ये सिर्फ़ किसानों का आन्दोलन नहीं है और ना ही इसमें सिर्फ़ किसानों के मुद्दे हैं। समाज के हर क्षेत्र के विक्षोभ की आवाज़ बनता जा रहा है ये आन्दोलन। बेरोज़गारी अभूतपूर्व है जो लगातार विकराल होती जा रही है। सरकार के पास इस समस्या के समाधान की कोई योजना नहीं है। मंहगाई आकाश फाड़ रही है। लोगों को तोड़े दे रही है। रसोई गैस सिलिंडर की क़ीमत 1000 और खाने के तेल की क़ीमत 200 रुपये से भी आगे निकल गई है और सरकार को बस इतना ही मालूम है कि जब तक लोग विद्रोह नहीं कर रहे तो इसका मतलब अभी भी उनमें बढ़ी क़ीमतों को झेलने की कूबत बची हुई है और जितना मुमकिन है उन्हें निचोड़ती जा रही है। फासिस्ट लोगों के सोचने का यही तरीका होता है। इनसे निबटने का भी वही फार्मूला सरकार जानती है; ये सब स्वीकार ही मत करो, लव जिहाद और जनसंख्या कानून बनाकर अल्पसंख्यकों को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराओ और उन्हें आपस में बांटते जाओ। लोगों को  कोई भी विपक्षी दल लोगों के जीवन-मरण के इन मुद्दों पर गंभीर आन्दोलन छेड़ने को तैयार नहीं। उनमें अधिकतर बिकाऊ माल है, प्रतिष्ठा-भरोसा शून्य है। इन किसान नेताओं ने इस एक साल के आन्दोलन में अभी तक कोई भी कमजोरी नहीं दिखाई है। सरकारी लालच में आने से दृढ़ता से इंकार किया है, अलग अलग दल होने के बावजूद एकता अटूट है, सरकार के डराने, धमकाने, देश द्रोह क़ानून में फंसाने के हर हथकंडे को फेल किया है। क्या कोई दूसरा नेता ये कहने का सहस कर सकता है जो राकेश टिकैत ने दहाड़ते हुए कहा। “भाईयो पूरे 9 महीने बाद अपने ज़िले मुज़फ्फ़रनगर में आया हूँ लेकिन अपने घर नहीं जाऊंगा, महापंचायत के बाद यहीं से गाज़ीपुर लौट जाऊँगा क्योंकि मैंने किसानों से वादा किया है कि क़ानून वापसी नहीं तो घर वापसी नहीं। अगर ये काले कृषि क़ानून रद्द नहीं हुए तो मेरी लाश ही मेरे घर पहुंचेगी।” क्या कोई सोच सकता है कि राकेश टिकैत सफाई मज़दूरों की समस्याओं के बारे में बोलेंगे? बलबीर सिंह राजेवाल का 15 मिनट का भाषण इस देश में विपक्ष की राजनीति करने वाले हर नेता की तो छोडिये, क्रांतिकारी राजनीति के दावे कर रहे नेताओं को भी सुनना चाहिए। अभूतपूर्व बेरोज़गारी और मंहगाई पूरे समाज को उद्वेलित कर रही है।  इन सब वज़हों से इन किसान नेताओं पर किसान ही नहीं बल्कि मज़दूरों और दूसरे सभी शोषित-पीड़ित लोगों का भरोसा बढ़ता जा रहा है। इसीलिए सारा समाज इनके किसी भी प्रोग्राम में टूटकर हिस्सा ले रहा है और धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से ये आन्दोलन इस देश में दूसरा आज़ादी आन्दोलन बनता जा रहा है। आगे क्या दिशा होगी आज कहना जल्दबाजी होगी लेकिन इस आन्दोलन में क्रांतिकारी संभावनाएं मौजूद है। ये आन्दोलन शहीद-ए-आज़म भगतसिंह के सपनों वाली आज़ादी आन्दोलन की असली तहरीक़ बन जाने की उम्मीदें लिए हुए है।

महत्वपूर्ण घोषणाएँ

  • करनाल में किसानों के सर फाड़ने का हुक्म देने वाले अधिकारी जिसमें एक किसान आन्दोलनकारी किसान शहीद हुआ, की गिरफ़्तारी 6 सितम्बर तक नहीं हुई तो 7 सितम्बर से करनाल लघु सचिवालय का अनिश्चित कालीन घेराव किया जाएगा। 
  • 9 और 10 सितम्बर को लखनऊ में संयुक्त किसान मोर्चे की मीटिंग होगी जिसमें यू पी के हर ज़िले में ‘ज़िला किसान समन्वय समिति’ गठित की जाएगी जिससे 2022 में यू पी में

भाजपा की हार सुनिश्चित की जा सके और आन्दोलन को सशक्त बनाया जा सके।

  • 15 सितम्बर को जयपुर में किसान संसद का आयोजन किया जाएगा। 
  • देश भर से लोगों द्वारा प्राप्त सुझावों को मद्देनज़र रखते हुए शनिवार 25 सितम्बर को प्रस्तावित भारत बन्द अब सोमवार 27 सितम्बर को होगा।
  • यू पी और उत्तराखण्ड में अनेक जगहों पर किसान महापंचायतें आयोजित की जाएंगी।

छपते-छपते; उपरोक्त दो घोषणाओं पर नई जानकारी

हरियाणा सरकार द्वारा करनाल घटना पर कोई कार्रवाई नहीं होने पर 7 सितंबर से किसानों ने करनाल में हज़ारों किसानों की एक महापंचायत की जिसके बाद वहां से रैली कर लघु सचिवालय घेराव शुरू हुआ। दमन के बावजूद 3 दिन टिके रहने के बाद 10 सितंबर को सरकार ने सारी मांगों मानने का आश्वासन दिया जिसके बाद किसानों ने घेराव वापस लिया। आश्वासन में शामिल है : एसडीएम के सिर फोड़ने वाले आर्डर की पूर्व हाई कोर्ट जज द्वारा जांच, आंदोलन में चोटिल किसानों को 2 लाख मुआवज़ा व तोड़ी गई गाड़ियों का पूरा मुआवज़ा, आंदोलन में शहीद सुशिल काजल के परिवार को 2 नौकरियां व 25 लाख मुआवज़ा।

इसके साथ 9-10 सितंबर को एसकेएम, उत्तर प्रदेश की बैठक हुई जिसमें 85 किसान संगठन भागीदार रहे और 3-सदस्यीय समन्वय समिति बनाई गई। अन्य निर्णय हैं कि : भारत बंद को सफल बनाने के लिए 17 तारीख को राज्य के सभी जिलों में किसान संगठनों की साझा बैठकें होंगी। इसी श्रृंखला में पूर्वी उत्तर प्रदेश में आन्दोलन के विस्तार के लिए आगामी 7 अक्टूबर को वाराणसी में किसान संगठनों की बैठक का निर्णय लिया।