अखिल भारतीय किसान सम्मेलन

अखिल भारतीय किसान सम्मेलन

September 14, 2021 0 By Yatharth

सिंघु बॉर्डर – 26-27 अगस्त 2021; एक रिपोर्ट

एस वी सिंह


जी टी करनाल रोड पर दिल्ली हरियाणा बॉर्डर, सिंघु गाँव के पास होने के कारण ‘सिंघु बॉर्डर’ कहलाता है। सिंघु बॉर्डर, दरअसल, 26 नवम्बर 2020 से लगातार ज़ारी ऐतिहासिक किसान आन्दोलन का हेड क्वार्टर है। आन्दोलन के 9 महीने पूरे होने पर पहले अखिल भारतीय किसान सम्मेलन का आयोजन यहाँ 26 एवं 27 अगस्त को संपन्न हुआ।

दिल्ली प्रशासन ने सिंघु बार्डर पर ऐसे किसी इन्तेजाम की कसर नहीं छोड़ी है जिससे वहाँ पहुंचना अधिकतम कठिन हो जाए। जी टी करनाल रोड 8 लेन का विशाल और सबसे व्यस्त हाई वे है लेकिन इस पूरे हाई वे को पूरी तरह कवर करते हुए जम्बो साइज़ बेरिकेड्स के कुल 10 सुरक्षा घेरे हैं और बीच में गहरी खाई। अनेक हथियार बंद टुकड़ियाँ तैनात रहती हैं। वहाँ पहुँचने पर कुछ ऐसा अहसास होता है मानो हम फिलिस्तीन की गाजा पट्टी पर पहुँच गए!! प्रशासन को अभी तक ये समझ नहीं आया कि जो किसान, दिसम्बर की लहू -जमाऊ ठण्ड में पानी की बौछारों से नहीं रुके, जी टी रोड पर हर शहर में हुए पुलिस लाठी चार्ज से नहीं झुके, रास्ते में विशालकाय कंटेनरों, बोल्डरों, ट्रकों को रास्ते से हटाते हुए जो बेख़ौफ़ आगे बढ़ते गए, सीमा पर लोहे के सरिये की लम्बी-लम्बी डरावनी कीलें जिन्हें नहीं रोक पाई, गाड़ने वालों को ही उन कीलों को उखाड़ना पड़ा, वे इन बेरिकेड से रुक जाएँगे!!! ये तो फैसला किसान आन्दोलन नेतृत्व का ही है कि वे अभी दिल्ली में शांति भंग नहीं करेंगे, वहीँ बैठकर इन्तेज़ार करेंगे कि शायद सरकार को सदबुद्धि आ जाए और वो इन तीनों काले कृषि कानूनों को वापस ले साथ ही सारे कृषि उत्पाद को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने का क़ानून लाए। वर्ना जिस दिन वे तय कर लेंगे कि दिल्ली जाना है तो बस पहुँच ही जाएँगे, ये किसान बेरिकेड से नहीं रुकने वाले। केंद्र सरकार द्वारा पैदा की गई इन रुकावटों का असर ये हुआ है कि वहाँ जाने वाले हजारों लोग या तो हाई वे के दाई ओर या बाई ओर गाँव में कई किलोमीटर चलकर पहुंचते हैं। इससे गाँव के लोगों का जीवन भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। 26 अगस्त को गाँव के इन तंग रास्तों में बरसात का पानी भरा हुआ था और इतनी तादाद में लोग पहुँच रहे थे कि वहाँ भगदड़ के हालात पैदा हो रहे थे, दम घुट रहा था।  भीड़ की स्थिति और विकराल होने पर कोई भयंकर हादसा भी हो सकता है। उसके लिए कौन ज़िम्मेदार होगा?  प्रशासन को चाहिए कि इस बाबत भी तुरंत किसान आन्दोलनकारियों से बात कर मुख्य हाई वे पर ही एक ओर से आने-जाने का रास्ता खोले।

26 अगस्त 2021; प्रथम सत्र – किसान विरोधी काले क़ानून

इस ऐतिहासिक सम्मेलन में देश भर से कुल 22 राज्यों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। 300 से भी अधिक किसान व खेत मज़दूर संगठन, 18 अखिल भारतीय मज़दूर ट्रेड यूनियन, 9 महिला संगठन, 17 छात्र एवं युवा संगठनों और कई शिक्षक यूनियनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया अथवा उनकी तरफ से समर्थन सन्देश प्राप्त हुए। दो दिवसीय सम्मेलन में कुल 2500 से अधिक

प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। सम्मेलन का उद्घाटन लोकप्रिय किसान नेता राकेश टिकैत ने अपने अत्यंत संक्षिप्त भाषण से किया क्योंकि उन्हें 5 सितम्बर को मुज़फ्फरनगर में होने वाली किसान महा पंचायत में भाग लेने की तैयारियों के मद्देनज़र चंडीगढ़ में होने वाली सभाओं में भाग लेना था। अब तक इस अभूतपूर्व आन्दोलन में कुल 560 से भी ज्यादा किसान अपनी जान कुर्बान कर चुके हैं। उन शहीदों की याद में 2 मिनट का मौन रखा गया एवं शोक प्रस्ताव पारित हुआ। सम्मेलन की आयोजन समिति के संयोजक डॉ आशीष मित्तल ने प्रतिनिधियों के सामने 3 कृषि बिल रद्द होने तथा एम एस पी की कानूनी गारंटी पारित होने तक किसान आन्दोलन को नई बुलंदियों तक ले जाने का प्रस्ताव रखा जिससे घोर जन विरोधी, किसान विरोधी फासिस्ट मोदी सरकार को इसके लिए मज़बूर किया जा सके। सभी प्रतिनिधियों ने तालियों और नारों की जोरदार गर्ज़ना से प्रस्ताव का स्वागत किया। साथ ही दूसरा प्रस्ताव पारित हुआ कि तीनों काले कृषि रद्द होने तथा एम एस पी की कानूनी गारंटी वाला बिल पास होने तक भाजपा नेताओं का शांतिपूर्ण विरोध ज़ारी रहेगा। सभा को बलबीर सिंह राजेवाल, गुरनाम सिंह चडूनी, डॉ दर्शन पाल, हन्नन मौल्ला, जगजीत सिंह डल्लेवाल, जोगिन्दर सिंह उग्राहां, सत्यवान, शिवकुमार शर्मा (कक्का जी), युद्धवीर सिंह एवं योगेन्द्र यादव ने संबोधित किया। इन सभी किसान नेताओं से और इनके भाषणों से अब सारे देश के लोग और बहुत से विदेशों में रहने वाले भारतीय और कितने ही जन आन्दोलनों से सरोकार रखने वाले विदेशी भी परिचित हो चुके हैं। जो बातें इस आन्दोलनकारी नेताओं के 9 महीने के संघर्ष के अनुभवों के आधार पर आज अलग नज़र आती हैं वे हैं; जुबान में संजीदगी और दर्द जो इन लोगों की मोदी सरकार से लगी उम्मीदों के टूटकर बिखर जाने से आई है, लम्बे संघर्ष की तैयारी जो ये जानकर आई है कि 22 जनवरी के बाद मोदी या सरकार के किसी मंत्री ने उन्हें बातचीत के लिए बुलाया तक नहीं है, साथ ही सबसे अहम, उन्हें इस बात का अहसास हो चुका है कि भले वे सालों साल इसी तरह बैठे रहें जब तक उनके साथ मज़दूर, युवा और समाज का बाक़ी शोषित-पीड़ित वर्ग नहीं जुड़ेगा उन्हें क़ामयाबी नहीं मिलने वाली। इस बात को उदहारण से समझना है तो नोट कीजिए, राकेश टिकैत का सबसे पहला भाषण, ‘सरकार हमें मज़दूर समझती है और 26 तारीख का भाषण जिसमें उन्होंने कुल 6 वाक्य बोले जिनमें एक वाक्य था, ‘ये सरकार पूंजीपतियों के हाथों बिक चुकी है, इब लड़ाई पूंजीपतियों के ख़िलाफ़ मोड़नी पडैगी’। इस बदलाव का बहुत अहम राजनीतिक महत्त्व है।

‘हम ना डरते हैं और ना ब्लैकमेल होते हैं’

सम्मेलन के पहले ही सत्र में जब तीसरे वक्ता बोल रहे थे तब ही मुख्य स्टेज के साइड में लगभग 20-25 लोगों का जत्था जो हाथ में पीले झंडे लिए हुए था और एक झंडे में भिन्डरानवाले की तस्वीर साफ नज़र आ रही थी, जोर जोर से नारे लगाते हुए बहुत आक्रामक मुद्रा में आगे बढे। उनकी मांगें क्या हैं समझ नहीं आ रहा था लेकिन एक बात स्पष्ट है कि उनकी मंशा प्रोग्राम में विघ्न डालने की थी। प्रतिनिधि सभा में सन्नाटा छ गया और वक्ता जगजीत सिंह दल्लेवाल ने बोलना बंद कर दिया। वह अतिवादी ग्रुप स्टेज पर पहुंचना चाहता था। किसानों की ओर से आक्रामक रवैया अपनाने से उन लोगों का मंसूबा पूरा हो सकता था। प्रबंध देख रहे स्वयं सेवक उनके सामने दीवार बनकर खड़े हो गए लेकिन उनकी तरह हमलावर रवैया नहीं अख्तियार किया। स्टेज से भी बिलकुल संयमित, विनम्र लेकिन दृढ भाषा में बोला जा रहा था कि उनकी जो भी मांगें हैं लिखकर दें। उन पर विचार किया जाएगा और मानने लायक हैं तो ही माना जाएगा, वर्ना नहीं। आप लोग इस किसान आन्दोलन का हिस्सा नहीं हैं। आपके मंसूबे क्या हैं वो खुद ज़ाहिर हो रहा है। हम वैसी आक्रामक भूमिका नहीं ले सकते लेकिन एक बात अच्छी तरह समझ लीजिए कि हम अपने एजेंडे पर ही चलते हैं उससे ज़रा सा भी विचलित नहीं होते। हम ना किसी से डरते हैं और ना ब्लैक मेल होते हैं। किसान नेताओं और उपस्थित प्रतिनिधियों के इस विनम्र लेकिन दृढ रवैये से वे लोग हताश होकर पीछे लौट गए। भाषण श्रंखला फिर से शुरू हो गई। प्रतिरोध से निबटने का और विघटनकारी तत्वों से निबटने के इस परिपक्व तरीक़े से सभी प्रभावित हुए और सभागार तालियों से गूंज उठा। सरकार  का कहना है, किसानों को भड़काया, बहकाया जा रहा है!! ये वो किसान नहीं हैं जिन्हें पटवारी से लेकर पुलिस का सिपाही या सामंत का लठैत सब ठगते आए हैं, कोरे कागजों पर अंगूठा लगवाकर लूटते आए हैं। ये पूंजीवाद की भट्टी में तपे राजनीतिक रूप से सचेत और जागरुक किसान नेता हैं जो अच्छी तरह जानते हैं कि उन्हें कौन बहकाना चाहता है, कौन उन्हें लाठियों-गोलियों से डराकर खदेड़ना चाहता है। ना इन्हें बहकाया जा सकता है और ना इन्हें पटाया जा सकता है। कोई किसी मुगालते में ना रहे, ये लोग अपना हक लिए

बगैर, अपनी मांगें मनवाए बगैर कहीं नहीं जाने वाले!

दूसरा सत्र – औद्योगिक श्रमिक

किसान अगर मज़दूर वर्ग की तरफ़ चार क़दम बढे हैं तो मज़दूर खेमा किसानों की तरफ़ दस क़दम बढ़ चुका है। दूसरे सत्र का शुरू से आखिर तक ये ही सन्देश था। आर एस एस से सम्बद्ध बी एम एस या किसी एक नगण्य वामपंथी समूह से सम्बद्ध ट्रेड यूनियन के आलावा देश की सभी ट्रेड यूनियनों के नेता इस सत्र में पूरे जोशो ख़रोश से मौजूद थे। इतनी सारी मज़दूर यूनियनों को, एक दूसरे की टांग खींचने, खुद को दूसरे से ज्यादा क्रांतिकारी साबित करने का कोई प्रयास किए बगैर फौलादी एकजुटता प्रदर्शित करते हुए पहले कब देखा गया था ये भी ठीक से याद नहीं। एटक, सीटू और इंटक के नेताओं के श्रीमुख से तो क्रांति की बातें, अडानी-अम्बानी ही नहीं इस पूंजीवादी निज़ाम को ही उखाड़कर फेंकना पड़ेगा, ऐसी मधुर बातें जो इस सत्र में सुनाई पड़ीं, इन्हें सुने तो एक ज़माना बीत गया। दरअसल, सदियों के संघर्षों-कुर्बानियों से हांसिल 44 श्रम कानूनों को एक झटके में रद्द कर मज़दूरों के हाथ में 4 लेवर कोड का झुनझुना थमा देने से मज़दूरों और उनकी ट्रेड यूनियन नेताओं को दीवार पर लिखा एक दम साफ नज़र आने लगा है। ट्रेड यूनियन ‘नेताओं’ को खुद अपने बेरोज़गार होने का डर सभाविक रूप से सताने लगा है। उनका दर्द ये भी है कि लेबर कोड वाले इतने खुले और नंगे सरकारी हमले का कोई खास विरोध मज़दूर वर्ग अकेले करने में सफल नहीं रहा। अब किसानों का भारी भरकम साथ उन्हें मिला है तब दबा गुस्सा फूट पड़ा है। सीटू नेता कॉमरेड जगमती सांगवान के भाषण में में कई बार सभा स्थल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजा। तब भी जब उन्होंने कहा कि किसानों को जल्दी ही समझ आ गया कि फासिस्ट मोदी का समर्थन करना कितनी बड़ी भूल थी। कॉमरेड सत्यवान ने अपने दमदार भाषण से ‘किसानों-मज़दूरों की हत्यारी फासिस्ट मोदी सरकार’ पर तीखा हमला बोला। सभी ट्रेड यूनियन नेताओं के उद्गारों का निचोड़ इस तरह रखा जा सकता है; चंद कॉर्पोरेट द्वारा लूट की छूट पर सिर्फ़ उनका विरोध करना काफ़ी नहीं मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था को ही निशाने पर लेना होगा, कितना भी लड़ें किसान और मज़दूर अकेले अपने हक़ों को नहीं हांसिल नहीं कर सकते, इकट्ठे हो जाएँ तो उनका मुक़ाबला कोई भी सरकार नहीं कर सकती, बगैर निर्णायक लड़ाई के, ना कृषि कानून वापस होने वाले हैं और ना मज़दूरों के अधिकार वापस मिलने वाले हैं,  पूंजीवाद को ना इस जगह रोककर रखा जा सकता है और ना उसे वापस पलटा जा सकता है, उससे छुटकारा तो उसे ख़त्म कर उसकी जगह समाजवादी समाज क़ायम कर के ही पाया जा सकता है। 5 सितम्बर को मुज़फ्फरनगर किसान महा पंचायत और 25 (अब 27) सितम्बर को भारत बंद को सफल बनाने के लिए किसानों और मज़दूरों को अपनी फ़ौलादी एकता से क़ामयाब बनाने का संकल्प भी लिया गया।

तीसरा सत्र – ग्रामीण मज़दूर, ग़रीब एवं आदिवासी

अखिल भारतीय किसान सम्मेलन में समाज के सबसे तलहटी पर जीवन जीने वाले इस सर्वहारा वर्ग पर एक सत्र आयोजित होना ही अपने आप में एक बहुत उल्लेखनीय उपलब्धि है जो साबित करता ही कि ये सम्मेलन असली मंजिल की ओर कितना बढ़ चुका है। मौजूदा किसान आन्दोलन जिसका नेतृत्व मुख्यत: धनी किसानों के हाथ में है, के शुरूआती दौर में ऐसे सत्र की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। सर्वहारा वर्ग को हर रोज़ अपनी जिंदा रहने की लड़ाई लड़नी होती है इसलिए इस वर्ग का शत्रु, उत्पादन के समस्त साधनों को अपने कब्ज़े में कर चुका पूंजीपति वर्ग है, ये बात समझानी नहीं पड़ती। समाज के इस सबसे अगुवा क्रांतिकारी वर्ग के कई खेत मज़दूर नेताओं ने बहुत प्रखर अंदाज़ में अपने विचार रखे। मध्यप्रदेश के बड़वानी आदिवासी क्षेत्र से आईं एक आदिवासी महिला की भाषा कोई नहीं समझ पा रहा था लेकिन उनके भाव तथा बॉडी लैंग्वेज से उनका आशय सब समझ पा रहे थे। उनके प्रोत्साहन एवं सम्मान में हाल में मौजूद प्रतिनिधियों ने सबसे ज्यादा तालियाँ बजाईं। इसी सत्र में कॉमरेड रजनीश भारती ने अपने ओजस्वी भाषण में शोषण-उत्पीडन की मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के लिए सारे शोषित वर्ग को संगठित होने का

आह्वान किया।

27 अगस्त; चौथा सत्र – छात्र, युवा एवं महिलाएं

छात्र नेताओं ने नई शिक्षा नीति 2020 की तीखी आलोचना करते हुए बताया कि ये नीति शिक्षा का व्यवसायीकरण एवं निजीकरण करने और शिक्षा को बाज़ार में तब्दील कर कॉर्पोरेट को इसे लूटने के लिए अर्पित करने का एक उपक्रम है। बेरोज़गारी अभूतपूर्व है जो लगातार बढ़ती ही जा रही है और ये एक विस्फोटक रूप अख्तियार कर चुकी है। महिलाओं ने उनके ख़िलाफ़ लगातार बढ़ते जा रहे और अत्यंत बर्बर होते जा रहे हमलों की ओर उपस्थित प्रतिनिधियों का ध्यान आकृष्ट किया। सत्ताधारी दल और उसके लगुए-भगुए संगठनों द्वारा महिलाओं के प्रति अन्यायकारक, पितृ सत्तात्मक और ग़ैर-बराबरी के विचार प्रसारित किए जा रहे हैं। कई बार तो बलात्कारियों को बचाने के लिए भी सत्ताधारी दल द्वारा मोर्चे निकाले जाते हैं। बेतहाशा बढ़ती मंहगाई खास तौर पर रसोई गैस की हर महीने, कभी कभी महीने में दो बार बढ़ती जा रही कीमतें और खाद्य तेलों की क़ीमतों के नाम पर ज़ारी खुली लूट महिलाओं पर कहर ढा रही हैं। ‘बेटी पढाओ-बेटी बचाओ’ का नारा इतना खोखला निकला। ये तो मानो आज आम जन को चुनौती जैसा लगता है, मानो कहा जा रहा हो कि हिम्मत है तो बेटियों को पढ़ाकर और उन्हें बचाकर दिखाओ!!   

पांचवां एवं अन्तिम सत्र – मिश्रित प्रतिनिधि प्रतिक्रियाएं

जिन लोगों को पहले के सत्रों में अपनी बात रखने का अवसर नहीं मिल पाया था उन्हें इस सत्र में बोलने का मौक़ा दिया गया। अंत में अधिवेशन संगठन समिति के संयोजक डॉ आशीष मित्तल ने समापन वक्तव्य रखा। दो दिवसीय सम्मेलन में कृषि बिलों, एम एस पी की कानूनी गारंटी, श्रमिकों, आदिवासियों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों से सम्बंधित प्रस्तावों को नारों की गर्ज़नाओं के बीच पास घोषित किया गया।

सम्मेलन के अंत में प्रेस कांफ्रेंस

संयुक्त किसान मोर्चा प्रेस विज्ञप्ति के मुख्य बिन्दू : 274वां दिन, 27 अगस्त 2021

  1. 25 सितम्बर, 2021 को ‘भारत बंद’ का आयोजन किया जाएगा। [नोट : 5 सितंबर 2021 की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार तारीख 25 से बदलकर 27 सितंबर कर दी गई है]
  2. 5 सितम्बर, 2021 को मुज़फ्फरनगर में विशाल किसान महा पंचायत का आयोजन किया जाएगा जिसमें आन्दोलन की आगे की रणनीति की रुपरेखा प्रस्तुत की जाएगी साथ ही किसान आन्दोलन को देश के कोने-कोने तक ले जाने और गाँव समितियां बनाने के मुद्दे पर कार्य योजना प्रस्तुत की जाएगी। ‘मिशन उत्तराखंड एवं मिशन यू पी’ के तहत भाजपा की हार सुनिश्चित करने की ठोस कार्य योजनाओं को प्रस्तुत किया जाएगा।

4 श्रम कोड के माध्यम से औद्योगिक श्रमिकों के मूल अधिकारों पर जो हमला किया जा रहा है उसका प्रखर विरोध किया जाएगा जिससे सरकार को श्रमिकों के अधिकार बहाल करने पर विवश किया जा सके।

  • तीनों कृषि कानूनों के रद्द होने, सी 2+50 प्रतिशत के एम एस पी पर सारी कृषि उपज की खरीद की कानूनी गारंटी, नए बिजली बिल को निरस्त होने, एन सी आर में वायु गुणवत्ता के नाम पर किसानों पर मुक़दमा चलाने व जुर्माना लगाने पर प्रतिबन्ध लगने तक ये आन्दोलन ज़ारी रहेगा।
  • बार बार अल्पसंख्यकों पर हो रहे सांप्रदायिक हमलों तथा देश की प्राकृतिक संपत्ति और सार्वजनिक क्षेत्र को कॉर्पोरेट व बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बेचने का किसान आन्दोलन विरोध करता है।
  • पूरा किसा समुदाय कृषि, खाद्य भण्डारण और कृषि बाज़ार के सभी पहलुओं पर कॉर्पोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों से लड़ने के लिए मज़बूर है। सरकार द्वारा किए जा रहे इन्हीं परिवर्तनों से किसान ऋण, आत्म हत्या और भूमि से विस्थापन में व्यापक वृद्धि होगी। इन नीतियों को सरकार तुरंत रोके।
  • देश की संपत्ति जो अपने लोगों को रोज़गार और सुरक्षा प्रदान करने के लिए होती है जैसे रेलवे, पॉवर ट्रांसमिशन लाइन, प्राकृतिक गैस संसाधन, दूर संचार परियोजनाएं, खाद्य भण्डारण, बीमा, बैंक आदि को बेचा जा रहा है। किसान आन्दोलन इसका पुरजोर विरोध करता है।
  • गरीबों के लिए कल्याण और सेवा क्षेत्र, विशेष रूप से सब्सिडी और राशन पर निशाना साधा जा रहा है । आवश्यक वस्तुओं, विशेष कर इंधन-गैस की कीमतों में भारी वृद्धि की जा रही है। सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा क्षेत्र का निजीकरण किया जा रहा है और इन क्षेत्रो के विकास में कॉर्पोरेट का वर्चस्व है । अर्थ व्यवस्था के विकास के नाम पर, हिंदुत्व की आड़ में, जो लोगों की चेतना को सुन्न करने का काम करती है और लोगों की स्वतंत्रता पर फासीवादी हमलों के मध्यम से, आम लोगों को आतंकित कर के, कॉर्पोरेट की लूट में मदद की जा रही है जिसके लिए मानव जीवन के हर पहलू का मुद्रीकरण किया जा रहा है। ये ऐतिहासिक आन्दोलन इन सभी नीतियों का विरोध करता है।

किसान आन्दोलन टोल वसूली का भी विरोध करता है।