एवरग्रैंड
October 17, 2021एम असीम
चीनी दरवाजे पर दस्तक दे रहा पूंजीवादी आर्थिक संकट
ठीक जिस वक्त पुराना ब्रिटिश साम्राज्यवादी मुखपत्र ‘द इकोनॉमिस्ट’ यह घोषणा करने की तैयारी में था कि उसके हिसाब से चीन ने दुनिया में सबसे अधिक प्रभुत्व वाली अर्थव्यवस्था के रूप में अमरीका का स्थान ले लिया है, ठीक उसी वक्त एवरग्रैंड ग्रुप, चीन का दूसरा सबसे बड़ा रियल एस्टेट डेवलपर, स्टॉक एक्सचेंज को यह सूचित करने की तैयारी में था कि उसके पास नकदी का भारी टोटा हो गया है और वह अपने निर्धारित ऋण चुकौती दायित्वों को पूरा नहीं कर सकता है अर्थात अगर बैंक व अन्य ऋणदाता पुनर्भुगतान की तारीख में राहत देने अर्थात उसे आगे बढ़ाने के लिए सहमत नहीं होते है वह निर्धारित वक्त पर ब्याज और मूलधन की किश्त का पुनर्भुगतान नहीं कर पायेगा।
एवरग्रैंड समूह के शेयरों में इस साल लगभग 80 फीसदी की गिरावट आई है और रेटिंग एजेंसियों द्वारा इसे पहले ही कई बार डाउनग्रेड का सामना करना पड़ रहा है। एवरग्रैंड ग्रुप 305 बिलियन डॉलर के बकाया, जिसमें बैंक ऋण, बांड, अल्पकालिक उधार और अन्य के बीच आपूर्तिकर्ता क्रेडिट शामिल हैं, के साथ दुनिया का सबसे बड़ा कर्जदार रियल एस्टेट डेवलपर है। यह राशि चीन के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 2% के बराबर है और शायद दुनिया में किसी कंपनी के सबसे बड़े कर्ज में से एक है। यह कभी चीन का सबसे अधिक बिक्री वाला डेवलपर था, लेकिन चीनी केंद्रीय बैंक द्वारा ऋण नियमों को थोड़ा सख्त करने से कर्ज में गले तक डूबी इस कंपनी का अस्तित्व तक बचना मुश्किल हो गया है। एवरग्रैंड की परिचालन आय 2018 के बाद से 75% से अधिक गिर गई है।
सभी प्रमुख वित्तीय संकटों की तरह, एवरग्रैंड समूह की वित्तीय समस्याएं एक दिन में इतनी बडी नहीं हुईं हैं, बल्कि वर्षों से चलती भारी व आक्रामक उधारी के कारण सामने आई हैं। कर्ज में इस लगातार वृद्धि ने एक समय कंपनी की अच्छी सेवा की थी, जिससे उसे अपने व्यापार साम्राज्य का विस्तार करने में खूब मदद मिली – इस हद तक कि वह चीन के सबसे लोकप्रिय फुटबॉल क्लब ग्वाङ्ग्झो एफसी का मालिक है। इन वर्षों में यह 280 शहरों में फैली 1,300 से अधिक परियोजनाओं के साथ चीन के शीर्ष रियल एस्टेट डेवलपर्स में से एक के रूप में उभरा। समूह ने धन प्रबंधन, इलेक्ट्रिक कार, थीम पार्क, बोतलबंद पानी, किराने का सामान और डेयरी उत्पादों जैसे भिन्न व्यवसायों में भी खूब विस्तार किया है। कंपनी ने 2000 के दशक के मध्य और 2009 के बाद के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान संपत्ति की बढ़ती कीमतों और उच्च मांग की लहर पर सवार होकर तेजी से विकास का आनंद लिया। किंतु अब चीन में संपत्ति की बिक्री काफी धीमी हो गई है – यह उस कंपनी के लिए एक बड़ा झटका है जिसका चीन की कुल अचल संपत्ति बिक्री में 4% हिस्सा था।
लेकिन कंपनी के संकट में आने का प्राथमिक कारण भारी कर्ज है जो कंपनी के तेजी से व्यापार विस्तार के लिए लिया गया था। एवरग्रैंड को अंतिम बड़ा झटका तब लगा जब चीन सरकार ने अचल संपत्ति डेवलपर्स को अधिक ऋण देने पर रोक लगा दी। चीनी प्रशासन ने रियल एस्टेट डेवलपर्स के अल्पकालिक ऋण को पुनर्वित्त/नवीकरण करने वाले वित्तीय संस्थानों और छाया उधारदाताओं (शेडो बैंकर्स अर्थात बैंकिंग क्षेत्र के नियमों से बाहर वाले कर्जदाता) के खातों व लेन-देन की प्रभावी जांच भी शुरू की है। प्रॉपर्टी डिवेलपर्स पर कर्ज लेने की ऊपरी लिमिट भी आयद कर दी गई, जिससे उनके लिए नई उधारी पर पैसा पाना मुश्किल हो गया।
इसने एवरग्रैंड जैसे उन रियल एस्टेट डेवलपर्स को अपंग बना दिया जो अक्सर बैंकिंग एवं शेडो बैंकिंग तंत्र का इस्तेमाल नई परियोजनाओं हेतु धन और राजस्व उत्पन्न करने के लिए करते थे। नतीजतन, कंपनी लगभग 800 अधूरी आवासीय परियोजनाओं के साथ-साथ अपने बिलों के भुगतान का इंतजार कर रहे आपूर्तिकर्ताओं, कंपनी के बॉन्ड व डिपॉज़िट योजनाओं में पैसा लगाने वाले छोटे-बड़े निवेशकों और लाखों घर ख़रीदारों के झुंड का सामना कर रही है जो कंपनी के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। एवरग्रैंड ने अंततः अपने कर्ज को कम करने के लिए व नकदी जुटाने के लिए बहुत कम मार्जिन पर अपनी संपत्तियों को बेचने की कोशिश तेज की है। हालाँकि, इसके प्रयास अभी तक अपर्याप्त रहे हैं और इसके मौजूदा ऋणों पर ब्याज तेजी से बढ़ रहा है। पर इस संकट के प्रभाव से संपत्ति की खरीद बहुत तेजी से गिरी है, और धन प्रबंधन (Money Management) उत्पादों में पैसा लगाने वाले खुदरा निवेशकों ने पहले ही कई शहरों में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए हैं। इस बीच, आपूर्तिकर्ता और ठेकेदार संभावित नुकसान से जूझ रहे हैं, और चूंकि उनमें से भी कई को अचल संपत्ति के रूप में ही भुगतान किया गया है, इसलिए वे अपनी नकदी की जरूरतों को पूरा करने के लिए इन परिसंपत्तियों को जल्द से जल्द बेचने की कोशिश कर सकते हैं। यह अचल संपत्ति बाजार को और भी अधिक प्रभावित व बाधित करेगा। इसके अलावा, एवरग्रांडे के 200,000 कर्मचारी, अन्य संपत्ति डेवलपर्स और प्रभावित अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम व्यवसायों में लगे हजारों कर्मचारियों भी बेचैनी महसूस करने लगे हैं। अतः वित्तीय नियमकों के सामने इस वित्तीय संकट के पूरी अर्थव्यवस्था में फैलने का जोखिम है।
चीनी सरकार द्वारा कंपनी को बचाने (बेलआउट) की किसी योजना के बिना एवरग्रैंड अपने मौजूदा पुनर्भुगतान में और भी चूक कर सकता है क्योंकि इसकी व्यावसायिक संभावनाएं कमजोर बनी हुई हैं, इसे नए उधार मिलने की कोई गुंजाइश नहीं है और इसका अधिकांश पैसा अधूरी बनी संपत्तियों में फंसा हुआ है और इतनी छोटी अवधि में उनका मुद्रीकरण करना मुश्किल होगा। हालांकि अधिकांश विश्लेषकों का मानना है कि चीनी अधिकारी स्थिति को किसी वैश्विक संकट में नहीं बदलने देंगे। उम्मीद है कि चीनी सरकार एवरग्रैंड को कम से कम कुछ पूंजी दिलाने में मदद करेगी। इसके लिए समूह को अपनी कुछ हिस्सेदारी किसी तीसरे पक्ष, जैसे कि सरकारी स्वामित्व वाला कोई उद्यम, को बेचने के लिए मजबूर किया जा सकता है। संभवतः सबसे पहले गैर-प्रमुख व्यवसायों को अलग किया जाएगा, जो आवासीय अचल संपत्ति से नहीं जुड़े हैं। उसके बाद उन संपत्तियों की बिक्री हो सकती है जो एवरग्रैंड के मूल व्यवसाय का अंग हैं। अभी तक ऐसी कोई आशंका नहीं है कि चीनी अधिकारी संकट को अनियंत्रित रूप से फैलने देंगे। उससे चीन की वित्तीय प्रणाली को गंभीर नुकसान होगा क्योंकि साल 2020 के अंत में चीनी बैंकिंग प्रणाली की लगभग 41% लेनदारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अचल संपत्ति क्षेत्र से जुड़ी हुई थी। इसलिए, अधिकांश विश्लेषक यह नहीं मानते हैं कि एवरग्रैंड संकट चीन के लिए लेहमान ब्रदर्स जैसा बन जाएगा क्योंकि संभावित है कि नीति निर्माता व्यवस्थित रूप से जोखिम को रोकेंगे।
लेकिन समझने वाली सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एवरग्रैंड के लेहमान ब्रदर्स न बनने का मुख्य कारण भिन्न है। जहां लेहमान संकट अमरीकी व वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में महामारी की तरह फैला था वहीं एवरग्रैंड के पतन के पीछे चीन सरकार और उसकी वित्तीय संस्थाओं के कुछ इरादतन फैसले हैं। इन फैसलों को जैक मा की अलीबाबा की सहयोगी कंपनी एंट के आईपीओ को रद्द करने, मेतुआन, टेन्सेंट, टैक्सी कंपनी डीडी (Didi), निजी स्कूल/ट्यूशन/कोचिंग व एड-टेक (Ed-tech) उद्योग, क्रिप्टोकरेंसी, विडियो गेमर्स, आदि पर चीनी नियामकों द्वारा लगाम कसने वाले फैसलों के संदर्भ में देखा जा सकता है जिसके चलते इन सभी कंपनियों को व्यवसायिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है और उनका बाजार मूल्य गिर गया है। एक तरह से कहें तो यह संकट का अचानक विस्फोट होने के बजाय चीनी नियामक तंत्र द्वारा किया जा रहा ‘नियंत्रित ध्वंस’ है जिसके जरिये वे ठीक उसी विस्फोट से बचने का प्रयास कर रहे हैं जैसे 2008 में लेहमान ब्रदर्स के पतन के कारण अमरीकी अर्थव्यवस्था में हुआ था।
पिछले 2 दशकों में चीनी अर्थव्यवस्था अपनी वित्तीय प्रणाली के साथ-साथ विदेशी पूंजी निवेश द्वारा प्रदान की गई पूंजी तरलता की बड़ी मात्रा द्वारा संचालित विशाल अचल संपत्ति व निर्माण गतिविधि के आधार पर अत्यंत तीव्र गति से बढ़ी है। इस पूंजी का उपयोग विशाल बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए किया गया है। इसमें एक परिवहन – राजमार्ग, हाई स्पीड रेलवे, जलमार्ग, हवाई अड्डे, आदि – औद्योगिक तटीय क्षेत्रों को विशाल भीतरी इलाकों से जोड़ने के लिए; और दूसरा, बलपूर्वक गति से शहरीकरण के जरिये कई बड़े शहरों और वुहान जैसे नए केंद्रों का निर्माण करने में किया गया। यहां बैंक और शैडो बैंकिंग क्रेडिट का उपयोग करके वाणिज्यिक और आवासीय दोनों तरह की अचल संपत्ति का भारी मात्रा में निर्माण किया गया है और बैंक ऋण के जरिये ही इन्हें बेचा भी गया है। स्थिति यह है कि अचल संपत्ति अब चीनी सकल घरेलू उत्पाद का 29% है।
चीन में असीमित कर्ज के सहारे अचल संपत्ति और भवन निर्माण आधारित तीव्र विकास की जड़ में 1990 के दशक के कुछ फैसले भी हैं। 1995 में सार्वजनिक वित्त को पुनर्गठित किया गया और स्थानीय सरकारों की उधार लेने की क्षमता को सीमित कर दिया गया। इसके बाद 1998 में एक भूमि प्रबंधन कानून द्वारा भूमि को निजी पार्टियों को बेचने की अनुमति दे दी गई। स्थानीय सरकारों ने पाया कि वह जमीन बेचकर या जमीन को रेहन रख ऑफ-बैलेंस शीट एसपीवी (विशेष कंपनी) के माध्यम से ऋण जुटाकर खुद को वित्तपोषित कर सकती हैं। अचल संपत्ति डेवलपर्स भूमि के विशाल जमाखोर बन गए, जिस पर घर बना उन लोगों को बेचा गया जिनके पास निवेश के अन्य लाभकारी तरीकों की कमी थी। इस तरह रियल एस्टेट डेवलपर्स के निहित स्वार्थ और स्थानीय सरकारों के हित आपस में जुड़ गए – दोनों ने ही अचल संपत्ति की कीमतों में बढ़ोतरी के लिए गठबंधन कर लिया क्योंकि वे भूमि बैंकों के मालिक थे। डेवलपर्स का हित भी सस्ती खरीदी गई जमीन के दाम बढ़ने में था और स्थानीय सरकारों के लिए दाम बढ़ना भविष्य में बिक्री व रेहन रखकर अधिक कर्ज दोनों तरह अधिक नकदी जुटाने का जरिया था। फिर खरीदने वाली जनता, हम जानते हैं, यही तो उनकी बचत का मुख्य साधन है। जाहिर है कि वे भी चाहते हैं कि उस बचत का मूल्य बढ़े। इसलिए, कीमतों में गिरावट में किसी की दिलचस्पी नहीं है, सिवाय उन लोगों के जिनके पास पहले से अचल संपत्ति नहीं है।
चुनांचे, चीन में घरों की कीमतें बहुत ऊंची पहुंच चुकी हैं। चीन के नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टेटिस्टिक्स के अनुसार 2002 से 2017 के बीच 4 बड़े शहरों में घरेलू संपत्ति के दाम 6-7 गुना बढ़े जबकि अन्य शहरों में ये 4-5 गुना बढ़ गए। नतीजा यह कि चीनी परिवारों पर घर का इंतजाम करने में कर्ज का बोझ अत्यधिक हो गया है और वे अन्य उपभोग को बढ़ा पाने में असमर्थ हैं। इसको समझने के लिए हम साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट द्वारा चीनी माइक्रोब्लॉगिंग साइट वीबो (Weibo) पर किए गए एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट देख सकते हैं जिसमें 284,000 व्यक्तियों ने भाग लिया। इनमें से 53% एक भी बच्चा नहीं चाहते जबकि 30% सिर्फ एक बच्चा चाहते हैं। अधिकांश ने इसका कारण घरों के ऊंचे दाम और बच्चों का खर्च उठा पाने में असमर्थता बताया। इस रिपोर्ट के अनुसार आय के मुक़ाबले कर्ज का ऊंचा अनुपात सर्वोत्तम गर्भ निरोधक है। इतने ऊंचे कर्ज चुकाने के लिए लंबे काम के घंटों वाली नौकरियों में बंधे रहने की मजबूरी चीनी युवाओं में भारी अलगाव व असंतोष पैदा कर रही है। युवाओं में बढ़ रही ‘लेट जाओ’ जैसी बढ़ती प्रवृत्तियां इसकी ही द्योतक हैं (‘लेट जाओ’ या ‘lie down’ के अनुसार दिन-रात काम करने से भी जीवन में कुछ हासिल नहीं होने वाला अतः सब छोड़-छाड़कर पड़े रहना ही बेहतर है)।
चीन अर्थव्यवस्था में अचल संपत्ति के महत्व को जानना हो तो अमरीका से तुलना करना बेहतर है। 2002 में चीन में अचल संपत्ति निवेश अमरीका का आठवाँ हिस्सा था, 2008 के वित्तीय संकट तक भी यह अमरीका से कम था, 2009 में अमरीका में यह गिरा, जबकि चीन में बढ़कर उससे अधिक हो गया। 2018 में चीनी अचल संपत्ति और निर्माण क्षेत्र अमेरिकी समकक्ष के आकार से कम से कम दोगुना और जीडीपी के प्रतिशत में तीन गुना अधिक है। चीनी अर्थव्यवस्था में इसका महत्व इतना अधिक है कि शहरों में रोजगार का 17% इसी एक क्षेत्र में है। स्थानीय सार्वजनिक राजस्व में इसका हिस्सा लगभग 1/3 है। चीनी परिवारों की कुल संपत्ति में घरेलू संपत्ति के दाम का हिस्सा 80% है जबकि अमरीका में यह लगभग 30% ही है।
किन्तु घरेलू उपभोग की सीमित मांग वाले चीन में निर्यात के अतिरिक्त कर्ज के बल पर अचल संपत्ति और भवन निर्माण ही वह इंजन था जो अर्थव्यवस्था में वृद्धि की रफ्तार तेज कर सकता था। 2010 में चीन में घरेलू उपभोग जीडीपी का मात्र 34% था जो अमरीकी स्तर का आधा ही था। 2020 में भी यह बढ़कर मात्र 39% तक ही पहुंच पाया था। अतः पूंजीवादी विकास के रास्ते चल चुकी चीनी सरकार के पास इससे बचने का कोई उपाय भी तो नहीं था।
इस वजह से चीन में अचल संपत्ति की कीमतों ने आसमान छू लिया है, यह दुनिया की सबसे महंगी अचल संपत्ति में से एक है। अतः अब बिक्री कठिन से कठिनतर होती जा रही है। इस बड़े पैमाने पर विस्तार के परिणामस्वरूप अब कर्ज में डूबे डेवलपर्स संकट में हैं क्योंकि उनके नकदी प्रवाह के सूखने के साथ वे खुद को परियोजनाओं को पूरा करने में असमर्थ पाते हैं। इमारती आपूर्ति इतनी अधिक है कि आठ साल अधूरे रहने के बाद पिछले महीने युन्नान की राजधानी कुनमिंग में 15 ऊंचे टावर वाले ब्लॉकों को गिराना पड़ा। स्थिति यह है कि चीनी शहरों में अभी लगभग 20% निर्मित भवन खाली पड़े हैं जिनमें करीब 9 करोड़ लोग रह सकते हैं।
पर तीव्र आर्थिक वृद्धि का यह रास्ता भी असीमित अंतहीन नहीं है। अब चीन की आबादी मुश्किल से ही बढ़ रही है। 2020 में, केवल 1 करोड़ 20 लाख बच्चे पैदा हुए, जो एक साल पहले 1 करोड़ 46 लाख थे पर 1.4 अरब के देश में ये भी कम थे। अगले दशक में यह प्रवृत्ति और अधिक स्पष्ट हो सकती है क्योंकि 22 से 35 के बीच प्रसव उम्र की महिलाओं की संख्या में 30% से अधिक की गिरावट होने वाली है। कुछ विशेषज्ञ भविष्यवाणी कर रहे हैं कि जन्म दर सालाना 1 करोड़ से भी कम हो सकती है, जिससे चीन की आबादी पूरी तरह से गिरने लग जाएगी और संपत्ति की मांग में भी कमी आएगी। “सिकुड़ते शहरों” की परिघटना पहले ही पैदा हो गई है। लगभग तीन दशकों के बाद जिस दौरान करोड़ों लोगों ने अपने गांवों को शहरों में बसने के लिए छोड़ दिया, मानव इतिहास का यह सबसे बड़ा प्रवास अब अत्यंत धीमा हो गया है। चीन के लगभग तीन चौथाई शहर जनसंख्या में गिरावट के दौर से गुजर रहे हैं।
अंततः, इस विशाल मशीन पर लगाम लगाने का अभियान अक्टूबर 2017 में शुरू हुआ, जब शी ने 19वीं पार्टी कांग्रेस में इस प्रसिद्ध पंक्ति के साथ अपना भाषण दिया: “घर रहने के लिए बनाये जाते हैं, सट्टेबाजी के लिए नहीं”। नवंबर 2018 में पीबीओसी ने एवरग्रैंड जैसे निजी संपत्ति डेवलपर्स के भारी कर्ज को लाल झंडी दिखा दी। उस समय एवरग्रैंड ने जिस ब्याज दर पर उधार लिया था, वह बढ़कर 13% तक हो गई थी। अतः उच्च जोखिम वाले व्यवसाय के रूप में इसकी स्थिति के बारे में किसी को कोई संदेह नहीं हो सकता है। अगस्त 2020 में, चीनी नियामकों ने अपनी ‘तीन लाल रेखाओं’ की घोषणा की और अचल संपत्ति कंपनियों पर कठिन नई वित्तपोषण सीमाएं लगाईं। एवरग्रैंड तीनों लाल रेखाओं पर खरी नहीं उतरी और तब से ही किसी तरह वित्त का जुगाड़ कर रही थी जिसने अंततः एक साल में उसे नकदी के टोटे की हालत में पहुंचा ही दिया।
लेकिन एवरग्रैंड के इस घटनाक्रम को सिर्फ एक कंपनी या अर्थव्यवस्था के एक क्षेत्र के संदर्भ में ही समझना उपयुक्त नहीं होगा। इसे चीनी अर्थव्यवस्था के सम्पूर्ण संदर्भ में समझना होगा। इसके विवरण में जाने से पहले बेहतर होगा कि हम चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय कमिटी की सैद्धांतिक पत्रिका किउशी (Qiushi) में 8 जुलाई 2021 को प्रकाशित शी जिनपिंग के 11 जनवरी 2021 के एक अहम भाषण की ओर ध्यान दें जिसमें वह चीन के ‘विकास के नए चरण’ के संदर्भ में मौजूदा स्थिति, उसकी समस्याएं व चुनौतियों, तथा भविष्य के कार्यभारों की चर्चा करते हैं। सबसे पहले शी उपलब्धियों की बात करते हैं, “चीन अब दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, सबसे बड़ा औद्योगिक राष्ट्र, माल का सबसे बड़ा व्यापारी और विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा धारक है। चीन का सकल घरेलू उत्पाद 100 ट्रिलियन युआन से अधिक हो गया है और प्रति व्यक्ति $10,000 से अधिक है। स्थायी शहरी निवासियों की आबादी 60% से अधिक है, और मध्यम आय वर्ग 400 मिलियन से अधिक हो गया है।“
इसके बाद वे ‘समाजवादी आधुनिकीकरण’ की बात करते हुए ‘विकास के नये दर्शन’ के बारे में बताते हैं, “हमने इस सोच को बदल दिया है कि जीडीपी विकास दर ही सफलता का एकमात्र पैमाना है … हम वस्तुगत नियमों और शर्तों की परवाह किए बिना मात्र तेजी से विकास नहीं कर सकते। ….. स्थानीय सरकारों को स्थानीय आर्थिक विकास के लिए राष्ट्रीय नियामक लक्ष्यों को आधार रेखा के रूप में नहीं लेना चाहिए, और न ही उन्हें उच्च विकास दर के लिए एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए। हमें आर्थिक विकास की गुणवत्ता और प्रतिफल में सुधार, सतत और स्वस्थ आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और सकल घरेलू उत्पाद में फर्जी वृद्धि के बजाय वास्तविक वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। हमारी अर्थव्यवस्था अब धीमी वृद्धि के चरण, एक दर्दनाक संरचनात्मक समायोजन चरण और पिछली प्रोत्साहन नीतियों के प्रतिकूल प्रभावों को अवशोषित करने के चरण में है।… हमने आपूर्ति-पक्ष में संरचनात्मक सुधार शुरू किया है। …. आपूर्ति-पक्ष संरचनात्मक सुधार को बढ़ावा देने में पांच प्राथमिकताएं हैं, अधिक क्षमता में कटौती, अतिरिक्त इन्वेंट्री (उत्पादित माल का भंडार – लेखक) को कम करना, कर्ज निर्भरता घटाना, लागत कम करना और कमजोर क्षेत्रों को मजबूत करना।“
“सामान्य समृद्धि को साकार करना आर्थिक लक्ष्य से कहीं बड़ी बात है। यह एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा है जिस पर हमारी पार्टी के शासन की नींव टिकी है। हम अमीर और गरीब के बीच की खाई को बढ़ते रहने की अनुमति नहीं दे सकते हैं – ताकि गरीब और गरीब होते रहें जबकि अमीर और अमीर होते रहें। ….. हमें इलाकों के बीच, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच, और अमीर और गरीब लोगों के बीच की खाई को कम करने के लिए सक्रिय होना चाहिए। …. विशेष रूप से, हमें क्षेत्रीय विचलन और पुनर्गठन, क्षेत्रों के बीच त्वरित जनसंख्या प्रवास, और ग्रामीण निवासियों में शहरों में बसने की घटती इच्छा पर स्पष्ट दृष्टिकोण प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।“
“हमें वृहद अर्थव्यवस्था में बड़े उतार-चढ़ाव को रोकना चाहिए और पूंजी बाजार में विदेशी निवेश के बड़े प्रवाह और निकासी से बचना चाहिए। … हमें पूंजी के अव्यवस्थित विस्तार और अनियंत्रित वृद्धि को रोकने और पर्यावरण और कार्यस्थल की सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। हमें बड़े पैमाने पर बेरोजगारी के जोखिम से बचना चाहिए, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा को मजबूत करना चाहिए और सार्वजनिक गड़बड़ी को प्रभावी ढंग से रोकना और संभालना चाहिए।“
“घरेलू मांग का विस्तार करने और घरेलू बाजार को बढ़ावा देने के लिए काम करते हुए, कुछ लोगों ने निवेश और अत्यधिक उत्तेजक खपत के लिए ऋण देना शुरू कर दिया है …. कुछ आपूर्ति-पक्ष संरचनात्मक सुधार की कीमत पर मांग-पक्ष प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जिससे एक उच्च-स्तरीय, गतिशील संतुलन प्राप्त करना असंभव है जिस पर आपूर्ति मांग को बढ़ाती है।“
“जब रुकावटें और टूट-फूट सामने आती हैं, तो आर्थिक प्रवाह बाधित होता है। वृहद आर्थिक दृष्टिकोण से, आर्थिक विकास दर गिरती है, बेरोजगारी बढ़ती है, जोखिम बढ़ता है और भुगतान संतुलन असंतुलित हो जाता है। सूक्ष्म आर्थिक स्तर पर, अधिक क्षमता, उद्यम के प्रतिफल में गिरावट और व्यक्तिगत आय में गिरावट जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।“
“चीन के विकास के वर्तमान चरण में, सुचारू आर्थिक प्रवाह को बढ़ावा देने में सबसे महत्वपूर्ण कार्य आपूर्ति पक्ष पर प्रभावी और सुचारू संचालन बनाए रखना है। यदि हमारे पास प्रभावी आपूर्ति प्रदान करने की एक मजबूत क्षमता है, तो हम आर्थिक प्रवाह में बाधाओं और बाधाओं को दूर कर सकते हैं, जिससे हम रोजगार पैदा कर सकते हैं और आय प्रदान कर सकते हैं। इससे हमारे देश की मांग पैदा करने की क्षमता को और बढ़ावा मिलेगा। इस प्रकार, हमें अपने मुख्य कार्य के रूप में आपूर्ति-पक्ष संरचनात्मक सुधार को आगे बढ़ाना चाहिए, और अतिरिक्त क्षमता को कम करने, अतिरिक्त इन्वेंट्री को कम करने, कर्ज निर्भरता घटाने, लागत कम करने और कमजोर क्षेत्रों को मजबूत करने के प्राथमिकता वाले कार्यों को जारी रखना चाहिए।“
“हमारे आर्थिक विकास का वातावरण बदल रहा है, विशेष रूप से उत्पादन कारकों में हमारे तुलनात्मक लाभों के संबंध में, क्योंकि श्रम लागत बढ़ रही है और हमारे संसाधनों और पर्यावरण की वहन क्षमता अपनी सीमा तक पहुंच गई है, अतीत का उत्पादन कार्य सूत्र अब टिकाऊ नहीं है, और विज्ञान और प्रौद्योगिकी सभी मोर्चों पर अधिक से अधिक महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं।“
“घरेलू मांग का विस्तार वित्तीय जोखिमों और बाहरी झटकों से निपटने के लिए एक अस्थायी नीति नहीं है, न ही इसका अर्थ अधिक प्रोत्साहन नीतियां या सरकारी निवेश को बढ़ाना है। बल्कि, यह चीन के वास्तविक आर्थिक विकास के आधार पर घरेलू मांग को बढ़ावा देने के लिए एक प्रभावी प्रणाली स्थापित करने, मांग की क्षमता का दोहन करने, एक पूर्ण मांग प्रणाली बनाने के लिए तेजी से काम करने, मांग-पक्ष प्रबंधन को मजबूत करना है।“
हमें उन समस्याओं को हल करने के लिए जल्द से जल्द कार्य करना चाहिए जो सार्वजनिक गड़बड़ी का कारण बन सकती हैं जैसे कि निर्माण परियोजनाओं का बकाया भुगतान और ग्रामीण प्रवासी कामगारों के बकाया वेतन का समय पर भुगतान।“
इसके संदर्भ में जायें तो अक्तूबर 2020 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 19वीं केंद्रीय कमिटी का 5वां प्लेनरी अधिवेशन हुआ जिसमें 2035 तक के अगले 15 वर्ष के लिए ‘विकास का नया दर्शन’ तय किया गया क्योंकि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अनुसार अब चीन ‘विकास के एक नए चरण’ अर्थात ‘समाजवाद के आधुनिकीकरण’ के दौर में पहुंच गया है। इसी बैठक में अगली अर्थात 14वीं पंचवर्षीय योजना (2020-2025) की प्राथमिकताएं भी तय की गईं। शी का उपरोक्त उद्धृत भाषण इसके क्रियान्वयन के लिए आयोजित मंत्रालय एवं प्रांतीय स्तर के नेतृत्व के लिए एक विशेष संगोष्ठी में दिया गया था। इसलिए हम यह मान सकते हैं कि यह चीन की मौजूदा आर्थिक स्थिति एवं भविष्य की दिशा का चीनी शासक वर्ग का आधिकारिक आकलन है। हम यही मानकर इसकी चर्चा कर रहे हैं।
पर ध्यान दें कि हालांकि शी यहां समाजवादी आर्थिक विकास के अगले चरण की बात कर रहे हैं पर वह जिन समस्याओं और प्राथमिकताओं की बात कर रहे हैं वह वही हैं जो सभी पूंजीवादी देशों के बुर्जुआ नेता और आर्थिक विशेषज्ञ करते हैं – अति-उत्पादन, मांग की समस्या, अतार्किक प्रोत्साहनों व होड़ की वजह से उत्पादन में अराजकता, देशी-विदेशी पूंजी के अचानक अनियंत्रित प्रवाह से पैदा वित्तीय जोखिम, कर्ज की अतिशय मात्रा, जीडीपी में फर्जी वृद्धि, विकास की दर का धीमा होना, तकलीफ़देह समायोजन, उत्पादन बेरोजगारी, अमीरी-गरीबी की बढ़ती असमानता, असमतल विकास, छोटे व्यवसायियों के भुगतान का सवाल, श्रम की बढ़ती लागत, मजदूरी का बकाया होना, प्रवासी श्रमिकों की समस्या, सार्वजनिक गड़बड़ी का खतरा, वगैरह वगैरह! आश्चर्य? कोई कारण नहीं। यद्यपि ‘चीनी विशेषताओं वाला समाजवाद’ का खेमा ऐसा ‘तर्क’ देता आया है कि चीन में पूंजीवादी बाजार वाली आर्थिक नीतियाँ लागू होने से भी उस पर पूंजीवादी संकट के आर्थिक
नियम लागू नहीं होते पर समस्या यह है कि सभी वस्तुगत नियम हमारी इच्छा-अनिच्छा से स्वतंत्र अपना काम करते हैं, नहीं तो वे वस्तुगत नियम होते ही नहीं। राजनीतिक अर्थशास्त्र के नियम, पूंजीवादी उत्पादन संबंधों के नियम, भी ऐसे ही वस्तुगत नियम हैं जो हमारी इच्छा-अनिच्छा से स्वतंत्र अपनी गति से काम करते रहते हैं और हर वैज्ञानिक नियम की तरह ही उनके अनुसार कुछ नतीजों का अनुमान लगाया जा सकता है और उसकी पुष्टि भी की जा सकती है।
हालांकि हम यहाँ चीनी अर्थव्यवस्था के विस्तृत विश्लेषण में नहीं जाएंगे फिर भी शी की बातों की पुष्टि के लिए चीनी आर्थिक संस्थाओं के हवाले से कुछ संक्षिप्त तथ्यों का जिक्र कर देना बेहतर होगा। शी ने अपने भाषण में बेरोजगारी के बढ़ने के जोखिम का जिक्र किया है। यह कोई काल्पनिक जोखिम नहीं वास्तविकता है। अक्टूबर 2020 में जारी 14वीं पंचवर्षीय योजना (2020-2025) की रूपरेखा के दस्तावेज़ के अनुसार 2020 में चीन की बेरोजगारी दर 5.2% थी। योजना की रूपरेखा इसे घटाने का लक्ष्य तक रखने का दिखावा नहीं करती, बल्कि माना गया है कि यह बढ़ने ही वाली है। योजना की रूपरेखा में इसे 2025 में 5.5% से अधिक न होने देने का लक्ष्य ही निर्धारित किया गया है। शी ने अपने भाषण में धीमी विकास दर के कारण होने वाले जरूरी तकलीफ़देह समायोजन का भी जिक्र किया है। यह भी पहले ही वास्तविकता बन चुका है। सुप्रीम पीपुल्स कोर्ट ऑफ चाइना के आंकड़ों के अनुसार 2014 तक सालाना 2 हजार से भी कम दिवालिया होने के मुकदमे अदालतों में आते थे। किन्तु यह तादाद 2015 से तेजी से बढ्ने लगी और 2018 में ऐसे 18 हजार से अधिक मामले अदालतों में दायर किए गए। साथ ही हम यह भी पाते हैं कि 2013 के शिखर के बाद से मात्र राजकीय ही नहीं निजी कॉर्पोरेट की लाभप्रदता भी तेजी से घटी है और कुल संपत्ति पर प्रतिफल की दर लगभग 14.5% से आधी होकर 2020 में लगभग 7% ही रह गई है।
चीन सरकार और पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना (PBOC) द्वारा प्रदान किए गए भारी नकदी प्रोत्साहन के माध्यम से चीन 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट जैसे पहले के आर्थिक संकटों से निपटने में सक्षम रहा है। लेकिन इसने चीन को दुनिया की सबसे अधिक कर्ज में डूबी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार कर दिया है। 2002 में जहां चीन के निजी-सरकारी कॉर्पोरेट, सरकार व घरेलू क्षेत्र पर उसकी जीडीपी के लगभग 120% कर्ज था वहीं 2019 में यह बढ़कर जीडीपी का लगभग 245% हो गया जबकि इस बीच में जीडीपी ही कई गुना बढ़ गई। इस कर्ज के बल पर हुई वृद्धि ने चीन में बड़ी संख्या में अरबपति पैदा किए – इस संख्या में चीन अब अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है। 20वीं सदी के उदय के वक्त के अमरीका समान इसे चीनी गिल्डेड (सोने का मुलम्मा चढ़ी) एज कहा जा रहा है, और ठीक उसी तरह राजनीतिक रूप से निर्देशित पूंजी संचय के जरिये बहुत से अत्यधिक धनी लुटेरे बैरन (नवाब) उभरे हैं।
किन्तु एक ओर ये लुटेरे बैरन और दूसरी ओर लंबे घंटे काम कर कम मजदूरी पाने वाले श्रमिकों के बीच बढ़ती असमानता सत्तारूढ़ ‘कम्युनिस्ट’ पार्टी के सामने नई शिकायतें और राजनीतिक समस्याएं पैदा कर रही है। पार्टी ने शी जिनपिंग के नेतृत्व में एक तरफ कुछ कल्याणकारी और गरीबी कम करने के उपायों द्वारा इसे संबोधित करने की कोशिश की है, और दूसरी ओर, इनमें से कुछ लुटेरे बैरन जैसे कि तकनीकी दिग्गज जैक और अलीबाबा के पोनी मा एवं अन्य (ऊपर पहले बताये गए) पर नियामक कार्रवाई की है। यह फिर से उसी तर्ज पर है जैसा कि अमेरिका ने 20 वीं शताब्दी में एकाधिकार और ट्रस्ट को तोड़ने के बार-बार प्रयास करके अमरीकी लुटेरे बैरन पर कार्रवाई करने की कोशिश की गई थी, उदाहरण के लिए, रॉकफेलर के स्टैंडर्ड ऑयल, एटीएंडटी, आदि को तोड़ना और 1933 का ग्लास-स्टीगल अधिनियम पारित करना जिसके तहत जेपी मॉर्गन जैसे बैंकों को वाणिज्यिक और निवेश बैंकिंग को जबरदस्ती अलग करने के लिए मजबूर कर तोड़ दिया गया था। जैसा पहले जिक्र किया गया एवरग्रैंड के जु जिया यिंग जैसे लुटेरे बैरन रियल एस्टेट डेवलपर्स पर भी इसी तरह की बाधाएं लगाई गईं हैं। लेकिन यह खुद अपनी तरह की समस्याएं पैदा कर रहा है, एवरग्रैंड जिसका उदाहरण है।
कुछ वामपंथी विश्लेषकों का मानना है कि इन सभी अरबपतियों पर लगाम लगाने के पीछे शी का चीन की अर्थव्यवस्था को निजी पूंजी के अबाध विस्तार से समाजवाद की ओर वापस ले जाने का विचार है। उनकी नजर में शी अधिक निष्ठावान मार्क्सवादी हैं, इसलिए कम्युनिस्ट पार्टी और उद्योगों पर राजकीय नियंत्रण बढ़ा रहे हैं। किंतु तथ्यों को देखें तो यह सच्चाई नहीं है। प्रारंभ में शी 1980 के दशक में देंग शियाओपिंग के तहत चीन में शुरू हुए बाजार सुधारों की नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए खूब उत्सुक थे। 2013 के अंत में शी के नेतृत्व ने बाजार की ताकतों को “निर्णायक भूमिका” देने का ऐलान किया था। उन्होंने बाजार हिमायती नियामकों को बढ़ावा दिया जो शेयर बाजार में अधिक निवेश के पक्षधर थे और चीन की मुद्रा पर सरकारी नियंत्रण में ढील दी। उनके प्रशासन ने राज्य की कंपनियों के संचालन में पार्टी के नेताओं के बजाय पेशेवर प्रबंधकों को रखने के प्रस्ताव पर भी विचार किया। पर एक के बाद एक उन सुधार योजनाओं ने अव्यवस्थाओं को जन्म दिया। 2015 की गर्मियों में शेयर बाजार में बड़ी बिकवाली ने बाजारों को हिला दिया। चीनी युआन को नियंत्रण मुक्त करने के लिए केंद्रीय बैंक के कदमों ने भी इन कदमों से 1980 व 1990 के दशकों में हुई बेहद महंगाई की समस्या की याद ताजा कर जनता को और भी अधिक बेचैन कर दिया। उसके बाद ही उन्होंने अपनी नीतियों को पलटा।
शी जिन पिंग के भाषण से जो विस्तृत उद्धरण हमने दिये हैं वे बताते हैं कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का नेतृत्व जानता है कि पिछले दो दशकों की तीव्र आर्थिक वृद्धि को बनाए रखने का आधार अब मौजूद नहीं रह गया है और इस आधार के बगैर यह तेज वृद्धि जिस स्तर की मुद्रास्फीति, वित्तीय संकट, उद्योगों के दिवालिया होने, छंटनी व बेरोजगारी को जन्म देगी उसका नतीजा जनता में विक्षोभ व शी के ही शब्दों में ‘सार्वजनिक गड़बड़ी’ होगा। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी जानती है कि पहले 1982 फिर 1987-88 की महंगाई व जीवन स्तर में गिरावट का परिणाम ही थ्येन आन मन चौक का घटनाक्रम था। तब भी पार्टी ने आर्थिक संकट के बाद स्थिरता के लिए जल्दी ही कदम वापस खींचे थे, अब भी वही नीतियों को बदलने के पीछे वैसे ही ही स्थिरता की ओर कदम पीछे हटाने का प्रयास शी के नेतृत्व की नई नीतियां हैं। 1980 के दशक से ही चीन के पूंजीवादी विकास में यह पैटर्न – कगार से पीछे हटकर संकट से बचना – कई बार दोहराया जाता रहा है।
उधर बहुत से बुर्जुआ विश्लेषकों व अर्थशास्त्रियों ने लंबे समय से बीजिंग से चीन के बाजार तंत्र में सुधार करने का आह्वान किया है, और उन्होंने पिछले एक दशक में निजी क्षेत्र की भागीदारी के कम किए जाने की निंदा की है, उसे स्वतंत्र पूंजीवाद के विकास को बाधित कर राजकीय नियंत्रण वाले पूंजीवाद की वापसी का पीछे ले जाने वाला कदम बताया है। किंतु यह विश्लेषण आर्थिक वास्तविकता की बुनियाद पर कम और लिबरल विचारधारा पर अधिक आधारित है। शी जिन पिंग के भाषण पर ध्यान दें तो सीमित उपभोग मांग व अति-उत्पादन से जूझती अर्थव्यवस्था में इस वक्त अधिक से अधिक सरकारी नियंत्रण की प्रवृत्ति का कोई विकल्प नहीं है। एक मजबूत निजी क्षेत्र और अधिक बाजार-उन्मुख अर्थव्यवस्था से निकट और मध्यम अवधि में चीन की मंदी के वास्तविक कारणों या कर्ज पर उसकी बढ़ती निर्भरता के वास्तविक कारणों को संबोधित करने के लिए लगभग कुछ नहीं करेगा। न ही यह कोविड-19 के आर्थिक प्रभावों को कम करेगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि चीन में आपूर्ति पक्ष की कोई समस्या ही नहीं है। समस्या तो मांग पक्ष की है, जिसे कोरोनावायरस महामारी ने और भी बदतर बना दिया है। चुनांचे हाल के वर्षों में निजी क्षेत्र का पीछे हटना चीन की अंतर्निहित मांग-पक्ष समस्या का कारण नहीं बल्कि परिणाम है। यदि दमित घरेलू खपत वाली अर्थव्यवस्था में उच्च विकास दर का लक्ष्य रखना हो तो केवल राज्य द्वारा संचालित निवेश और बुनियादी ढांचे के निर्माण से आने वाली मांग के हिस्से को लगातार बढ़ाकर ही उस विकास को प्राप्त किया जा सकता है। यही शी के शब्दों में ‘विकास का नया चरण’ है।
और ठीक इसीलिए बहुत से आम लिबरलों के विपरीत पुराना लिबरल साम्राज्यवादी भोंपू ‘द इकोनोमिस्ट’ इस ‘स्फूर्तिभरे राजकीय पूंजीवाद’ की शी जिनपिंग की नीति की वाह-वाह में जुटा है।
“श्री शी केवल निजी क्षेत्र की कीमत पर राज्य को नहीं बढ़ा रहे हैं। इसके बजाय, वह अपनी देखरेख में जो प्रक्रिया चला रहे हैं उससे उनकी उम्मीद है कि राजकीय पूंजीवाद के अधिक बलवान रूप का निर्माण होगा। राज्य और निजी क्षेत्रों के बीच अंतर करना कठिन होता जा रहा है। कॉर्पोरेट और राष्ट्रीय हितों के बीच अंतर करना कठिन होता जा रहा है। और इसकी सभी अक्षमताओं, अंतर्विरोधों और अधिनायकवाद के बावजूद, पवित्र व्यक्ति पूजा को प्रोत्साहन के बावजूद, यह दावा करना कठिन हो रहा है कि राज्य पूंजीवाद चीन द्वारा ऐसी कंपनियों और अति-उन्नत प्रौद्योगिकियों के सृजन के प्रयासों को बाधित करेगा जो इसे विश्व अर्थव्यवस्था में अग्रणी बनाती हैं।
यह मिल्टन फ्रीडमैन (नवउदारवादी बुर्जुआ अर्थशास्त्री – लेखक) नहीं है, लेकिन निरंकुशता, प्रौद्योगिकी और गतिशीलता का यह क्रूर मिश्रण वर्षों तक आर्थिक वृद्धि को आगे बढ़ा सकता है।… चीन की 14 ट्रिलियन डॉलर की राज्य-पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की ताकत कामना से परे नहीं किया जा सकता। उस भ्रम को दूर करने का समय आ गया है।”
और इकोनोमिस्ट का यह निष्कर्ष ही हमें चीन में एक ‘कम्युनिस्ट’ पार्टी के अधिनायकवादी शासन और पूंजीवाद के विकास की अंतर्विरोधी लगने वाली परिघटना की बुनियादी राजनीतिक समझ तक ले जाता है क्योंकि लिबरलवाद के छद्म प्रचार ने ऐसा भ्रम पैदा किया हुआ है कि पूंजीवादी आर्थिक नीतियों को अपनाने के साथ लिबरल राजनीतिक सुधार भी अनिवार्य हैं जो अंततः किसी पूर्व-समाजवादी देश को बुर्जुआ जनतंत्र का रूप अपनाने के लिए भी विवश करेंगे। परंतु चीन में पूंजीवादी आर्थिक सुधार आरंभ करने वाले देंग श्याओ पिंग की समझ अलग थी। पूर्वी यूरोप, खास तौर पर युगोस्लाविया व पोलैंड, में ऐसे प्रयोगों की सीखों से उनका मानना था कि वास्तव में ये आर्थिक ‘सुधार’ तभी सफल हो सकते हैं जब इसके पहले बुर्जुआ लिबरल राजनीतिक सुधार न किए जायें। सोवियत संघ में जब गोर्बाचोव ने ग्लासनोस्त व पेरेस्त्रोइका की शुरुआत की तब भी देंग ने इसके विरुद्ध चेतावनी दी कि इससे सोवियत संघ का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। बल्कि देंग के समकालीन कई लेखकों ने अपने संस्मरणों में बताया है कि देंग की नजर में गोर्बाचोव ‘बुद्धू’ था। देंग का मानना था कि आर्थिक सुधारों के पहले बुर्जुआ लिबरल राजनीतिक सुधार करने से जो अंतर्विरोध व गुटबाजी सामने आएगी उसे संभालने लायक ‘सांस्कृतिक परिपक्वता’ पिछड़े चीनी समाज में नहीं है और वह टुकड़े होकर बिखर जाएगा। इसलिए देंग ने कम्युनिस्ट पार्टी के शासन और केंद्रीकृत नियंत्रण में आलोचना व अभिव्यक्ति के सीमित अधिकार को इन आर्थिक सुधारों के लिए जरूरी माना और अपने समस्त पश्चिमी प्रशंसकों को नाराज करते हुए भी थ्येन आन मन चौक में फौजी कार्रवाई में हिचक नहीं दिखाई।
वास्तविकता यह है कि जिसे बुर्जुआ संसदीय जनतंत्र कहा जाता है वह समस्त पूंजीवाद का स्वाभाविक राजनीतिक रूप नहीं, मात्र मुक्त होड़ के दौर में विकसित पूंजीवाद का ही राजनीतिक रूप है। जिस पूंजीवादी बाजार में कुछ पूंजीपति बाजार को फैसलाकुन ढंग से प्रभावित करने की कूव्वत नहीं रखते थे, सभी पूंजीपति होड़ कर सकते थे, उसी पूंजीवाद में समस्त मालिकों के लिए संसदीय राजनीति की मुक्त राजनीतिक होड़ की भी गुंजाइश थी। जैसे ही पूंजीवाद इजारेदारी की अवस्था में पहुंच गया, यह संसदीय जनतंत्र उसके लिए अवरोध बन गया। ठीक इसीलिए इजारेदारी के युग के बाद के पूंजीवादी विकास ने स्थिर संसदीय राजनीति का रूप नहीं लिया। 20वीं सदी में आजाद होने वालों में से सिर्फ भारतीय पूंजीवाद ही सबसे लंबे वक्त तक संसदीय जनतंत्र को चला पाया, वह भी इसे अंदर से पूरी तरह खोखला देने के बाद ही। अतः पूर्व समाजवादी समाज के पूंजीवादी रूपांतरण का आधार भी संसदीय जनतंत्र नहीं हो सकता, किसी देश में हो भी नहीं सका, सबने किसी न किसी रूप में अधिनायकवाद या फासीवाद की ओर बढ़ने का विकल्प ही चुना है। चीन ने देंग के नेतृत्व में बुर्जुआ जनतंत्र में रूपांतरण का यह भ्रम पाला ही नहीं, चुनांचे पूंजीवादी का सर्वाधिक विकास भी उसी ने किया।
आज इजारेदारी के युग में संसदीय जनतंत्रों में भी सत्ता सबसे बड़े इजारेदार पूंजीपतियों के नियंत्रण में ही है, उनके हित में ही काम करती है। निजी और राजकीय मालिकाने के बीच, राष्ट्र और कॉर्पोरेट के हित के बीच भेद करना अभी नामुमकिन हो गया है। अतः संसदीय जनतंत्र का अभाव, एक पार्टी के निरंकुश शासन वाला राजकीय पूंजीवाद निजी पूंजीपति और कॉर्पोरेट पूंजी के हित के लिए कोई बाधा नहीं, बल्कि उपयुक्त है। बल्कि नवउदारवादी आर्थिक नीतियों के युग में हर पूंजीवादी देश कमोबेश, धीमे या तेज, फासीवादी चरित्र ही अख़्तियार कर रहा है। सबसे पुराने और परिपक्व ब्रिटिश पूंजीवाद का भोंपू द इकोनोमिस्ट इस सच्चाई को अभिव्यक्त करते हुए ही राजकीय मालिकाने वाले पूंजीवाद का खुले दिल से स्वागत करते हुए इसे इस तीव्र आर्थिक वृद्धि के लिए हितकर बता रहा है।
परंतु सच्चाई यह भी है कि पूंजीवादी विकास का रास्ता पकड़ लेने के बाद किसी के भी द्वारा उसके नियमों की अनदेखी नहीं की जा सकती है और वे किसी की भी इच्छा-अनिच्छा से स्वतंत्र अथक रूप से काम करते रहते हैं। अमरीका में निजी पूँजीपतियों के एकाधिकार को उभरने से रोकने या तोड़ने के समस्त प्रयास ऐसा करने में सफल नहीं हो सके और न ही चीन में सफल होंगे। इसी तरह, अमरीका और यूरोपीय पूंजीवादी देश मौद्रिक सुलभता और कम ब्याज दरों जैसे उपायों से वित्तीय संकट को नहीं रोक सके, और चीन भी नहीं रोक सकेगा। पूंजीवादी विकास का मार्ग आर्थिक और वित्तीय संकट पैदा करने और सभी प्रकार के वित्तीय व ऋण संकट, व्यापार ढहने, बंद होने, दिवालिया होने, ठप होने, आदि के साथ श्रमिकों के लिए छंटनी, बेरोजगारी और कंगाली की मंजिल पर पहुंचने के लिए अनिवार्य रूप से बाध्य है। बाकी सब विशुद्ध रूप से काल्पनिक सोच है।