अमरीकी पूंजीवाद – चकाचौंध के पीछे का विकृत चेहरा

December 15, 2021 0 By Yatharth

एम असीम

दुनिया के सबसे अमीर देश अमरीका के इलीनॉय में सबसे धनी पूंजीपति जेफ बेजोस की कंपनी अमेजन – शुक्रवार के तूफान के ठीक निशाने वाले उसके एक गोदाम में कामगार घर जाने की अनुमति मांग रहे थे, क्योंकि तूफान के मद्देनजर प्रशासन सबको घरों के अंदर रहने की चेतावनी जारी कर रहा था। पर मैनेजरों ने श्रमिकों से साफ कह दिया कि जो भी शिफ्ट बीच में छोड़कर जायेगा, उसकी नौकरी से खल्लास। भारी बेरोजगारी के मौजूदा दौर में नौकरी की असुरक्षा बहुत बड़ी समस्या है अतः काफी कामगार गोदाम में ही रह गए। लेकिन तूफान में गोदाम की इमारत जमींदोज हो गई जिसमें मजदूर दाब गए। अभी तक 7 के मरने की हो चुकी है, कुछ अस्पताल में हैं, 45 को निकाला जा चुका है। लैरी विरडेन नामक एक श्रमिक की अपनी पार्टनर के साथ चैट का संलग्न स्क्रीन शॉट देखिये। उन्होने बताया कि अमेजन उन्हें जाने नहीं दे रहा। कुछ देर बाद ही 4 बच्चों के पिता विरडेन वहीं जान गंवा बैठे। उनकी पार्टनर का ‘आई लव यू’ भी उनके पास नहीं पहुंच पाया। उधर एक और श्रमिक क्लेटन कोप की मां इससे ही मन समझा रही है कि वह अपने बेटे को ‘आई लव यू’ तो बोल पाई!

अमेजन अपने श्रमिकों के अति-शोषण के लिए कुख्यात है। पिछले दिनों इसके कामगारों के हवाले से यह खबरें आईं थीं कि उनके ऊपर काम की गति का इतना अधिक दबाव होता है कि वे शौचालय भी नहीं जा पाते और मूत्र विसर्जन के लिए अक्सर अपने पास बोतल रखते हैं। जो गोदाम ढह गया उसमें ही काम करने वाले 190 में से सिर्फ 7 ही स्थायी नौकरी वाले थे, शेष सब बहुत कम मजदूरी वाले अस्थायी श्रमिक थे। अमेजन अपने श्रमिकों को यूनियन बनाने से रोकने के लिए भी कुख्यात है। कुछ ही दिन पहले अमरीकी कानून के मुताबिक एक गोदाम में यूनियन बनाने के लिए हुई वोटिंग में मजदूरों पर दबाव और धांधली की खबरें आईं थीं। पिछले 6 महीने में यह तीसरी घटना सामने आई है जब अमेजन के किसी गोदाम में खतरनाक स्थितियों में मजदूरों को काम करने के लिए मजबूर किया गया। कुछ दिन पहले ही न्यूयॉर्क में बाढ़ की स्थिति के बावजूद मजदूरों को काम करने के लिये मजबूर किया गया था।

ठीक ऐसे ही केंटुकी में मेंफील्ड कंजूमर प्रोडक्टस के एक सुगंधित मोमबत्ती बनाने वाले कारखाने में हुआ जहां सार्वजनिक चेतावनी के बीच 15 मजदूर जाने की अनुमति मांगते रहे पर उन्हें नौकरी से निकाल देने की धमकी दी गई। नौकरी खोने के डर से काम छोड कर न जा पाये श्रमिकों में से 8 के मरने की अब तक पुष्टि हुई है। यह इमारत भी तूफान में पूरी तरह जमींदोज हो गईं। पर ये दो सिर्फ वे बडी खबरें हैं जो मीडिया/सोशल मीडिया की वजह से व्यापक जानकारी में आई हैं। ऐसी और छोटी भी होंगी ही।

भारत में तो इन घटनाओं के पीछे की ऐसी बातें मीडिया में बिल्कुल ही नहीं आती, सोशल मीडिया में भी ये घटनाएं मध्यवर्गीय लोगों के लिए अहम चर्चा नहीं बनतीं। पर हमारे इस ‘महान’ देश में सेफ़्टी कौंसिल की रिपोर्ट के अनुसार सालाना लगभग 50 हजार श्रमिक ऐसे कार्यस्थल के ‘हादसों’ में मारे जाते हैं, न जाने कितने अपंग हो जिंदगी भर के लिए लाचार हो जाते हैं। पर असल में ये हादसे नहीं होते, बल्कि अधिकांश मालिकों द्वारा मुनाफे के लियए सुरक्षा उपायों व साजो-सामान में की गई कटौती के कारण हुई हत्याएं होती हैं। कारखानों, खदानों, इमारतों, दुकानों, सीवरों, सडकों, पुलों, खेतों, बंगलों-कोठियों – हर जगह जहां मजदूर काम करते हैं, वहां अधिकतर ऐसा ही होता है। यहां तक कि कुछ छोटे कारखानों में तो मालिक व प्रबंधक बाहर से ताला जड़ घर चले जाते हैं, मजदूर देर रात तक काम कर वहीं सोते हैं। इमारत के ढहने या आग लगने पर बाहर न निकल पाने से वे वहीं दब-जल जान गंवा देते हैं। छोटे कस्बों में नहीं, दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर में दमकते मॉल्स के पीछे की घनी आबादी और दमघोंटू गलियों वाली औद्योगिक बस्तियों में भी ऐसी घटनाएं बहुत बार हो चुकी हैं। पर ऐसे अपराधी पूंजीपतियों को सजा के बजाय नए लेबर कोड में उन्हें ऐसे सुरक्षा उपायों से ही बहुत हद तक छूट दे दी गई है।
जो लोग कहते हैं कि पूंजीपति कडी मेहनत से अमीर बनते हैं, सही ही कहते होंगे, क्योंकि मजदूरों के खून की आखिरी बूंद तक चूस लेने में ‘बेचारे’ पूंजीपतियों को सचमुच ही बडी सख्त मेहनत करनी पड़ती होगी!