16-17 दिसंबर बैंक हड़ताल – बड़ी देर कर दी हुज़ूर आते-आते…

December 18, 2021 0 By Yatharth

एस वी सिंह

यू एफ बी यू (यूनाइटेड फोरम ऑफ़ बैंक यूनियंस) ने इस बार सरकारी बैंकों का कचरा बना देने के सरकार के मंसूबों के ख़िलाफ़ लगातार दो दिन की हड़ताल करने की हिम्मत जुटाई है। साथ ही कल ये भी बताया कि मार्च 2021 को कॉर्पोरेट के 13 एन पी ए खतों में कुल ₹4,86,680 करोड़ बक़ाया थे जो आज घटकर ₹1,61,820 करोड़ रह गए हैं। मतलब इसी साल इन धन पशुओं का ₹2,84,980 करोड़ क़र्ज़ माफ़ कर दिया गया है, साथ ही ये भी जानकारी दी कि सरकारी बैंकों को बार-बार बड़े इजारेदार कॉर्पोरेट की मरती जा रही कंपनियों और निजी बैंकों जैसे यस बैंक, आर्थिक घोटालों का बड़ा गटर IL&FS और ग्लोबल ट्रस्ट बैंक आदि को डूबने से बचाने के लिए औजार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है जिससे सरकारी बैंक डूबने के कगार पर हैं जिसका दोष कर्मचारियों पर मंढा जाएगा और आखिर में इसका खामियाजा उन्हीं को भुगतना होगा। साथ ही उन्होंने ये भी बताया है कि सरकार ये सब जान पूछकर योजनाबद्ध तरीक़े से कर रही है जिससे इन बैंकों को भी इन्हीं कॉर्पोरेट मगरमच्छों को अर्पित किया जा सके। इस सारे खेल के बहुत गंभीर परिणाम देश के लोगों पर पड़ेंगे और उनकी जमा पूंजी ख़तरे में पड़ने जा रही है।

बैंक कर्मचारियों-अधिकारीयों के इस संघर्ष का देश के जन मानस द्वारा पुरज़ोर समर्थन किया जाना चाहिए, साथ ही उनसे ये प्रश्न भी पूछे जाने चाहिएं;

  1. देश में इजारेदार पूंजीपतियों की नंगी लूट ज़ारी है और मोदी सरकार कॉर्पोरेट को देश के सारे संसाधन अर्पित करते हुए उनके सम्मुख बिछती  जा रही है। इस हकीक़त को देश की जनता के सामने लाने के लिए बैंक कर्मचारी सबसे ज्यादा उपयुक्त स्थिति में थे क्योंकि आर्थिक और वित्तीय हकीक़त उनसे बेहतर कोई नहीं जानता। फिर उन्होंने ये सामाजिक ज़िम्मेदारी क्यों नहीं निभाई। कॉर्पोरेट को लोगों के गुस्से के निशाने पर लेने का जो महती काम देश के किसानों ने इतने शानदार तरीक़े से अंजाम दिया वो बैंक कर्मचारियों ने क्यों नहीं किया?
  2. कर्मचारियों का कोई भी विभाग अपनी लड़ाई मज़दूर वर्ग से अलग अकेले नहीं लड़ सकता। क्या बैंक कर्मचारियों को मज़दूर वर्ग के संघर्षों से नहीं जुड़ जाना चाहिए? मोदी सरकार द्वारा मज़दूरों द्वारा सदियों की कुर्बानियों से हांसिल अधिकारों को बलात छीनकर उन्हें 4 लेबर कोड का झुनझुना थमा दिया गया है। इस अन्याय के विरुद्ध ज़ारी मज़दूर आन्दोलन के साथ बैंक कर्मचारी क्यों नहीं जुड़ रहे? बैंक कर्मचारियों ने मौजूदा शानदार ऐतिहासिक किसान आन्दोलन का समर्थन, सहयोग क्यों नहीं किया??
  3. बैंक कर्मचारी-अधिकारी का डायरेक्टर बनकर बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स के साथ पांच सितारा होटल में हीन भवनाग्रस्त होकर बैठना और फिर पारित प्रस्तावों पर हस्ताक्षर कर लड़ने के अपने अधिकार को ही गिरवीं रख देना, क्या ये नीति मौजूदा पतन की शुरुआत नहीं थी? क्या मालिकों और मज़दूरों का कोई साझा बोर्ड संभव है?
  4. बैंक कर्मचारी-अधिकारी कृपया बताएं कि उन्होंने कभी भी देश के शोषित-पीड़ित जन मानस द्वारा अपनी दुर्दशा के विरुद्ध सतत ज़ारी संघर्षों का समर्थन क्यों नहीं किया? वे कब मज़दूरों पर हो रहे ज़ुल्मों के विरुद्ध जीवन-मरण के उनके संघर्षों से जुड़े हैं?
  5. क्या बैंक वाले अपनी लड़ाई अकेले लड़कर जीत सकते हैं? क्या सफ़ेद कॉलर वाले कर्मचारी दबे-कुचले, अधनंगे, अधपेट मज़दूरों की लड़ाई में शामिल हुए बगैर अपने कॉलर की सफ़ेदी बचा सकते हैं? क्या इस पूंजीवादी नव उदारवादी हमले को अब पीछे धकेलना या इसे यहीं इसी स्थान पर रोके रखना संभव है? क्या बैंक कर्मचारियों को देश में ज़ारी पूंजीवाद-साम्राज्यवाद-फ़ासीवाद विरोधी वृहत जन आन्दोलनों से नहीं जुड़ जाना चाहिए?