मजदूर वर्ग के क्रांतिकारी नेता कॉमरेड सुनील पाल – 12वीं शहादत वर्षगांठ
December 18, 2021पटना में 29-30 दिसंबर को शहीद रैली व केंद्रीय सम्मलेन में शामिल हों!

साथियो!
कॉमरेड सुनील पाल के शहादत दिवस 29 दिसंबर को हर साल हम अपनी पार्टी के तमाम शहीदों को याद करने के लिए रैली व सभा का आयोजन करते हैं। कॉमरेड सुनील पाल की कर्मभूमि रानीगंज-आसनसोल शिल्पांचल था जहां वे कॉलेज के दिनों से ही जुझारू मजदूर आंदोलन खड़ा करने में जुट गये थे। जल्द ही वे बंगाल के एक मशहूर लड़ाकू मजदूर नेता बन कर उभरे।
कॉलेज में पहुंचते ही वे पेशेवर क्रांतिकारी बनने का फैसला ले चुके थे। तब बंगाल में वामफ्रंट सरकार का श्वेत संत्रास कायम था जिसके निशाने पर अक्सर क्रांतिकारी होते थे। कॉमरेड सुनील पाल पर भी अनेकों बार जानलेवा हमले हुये। एक बार तो उन्हें मरा समझ कर कोयले की छाई की ढेर पर फेंक दिया गया। हमारे यूनियन कार्यालयों व साथियों पर बमों से हमले होते थे और इस क्रम में हमारे कई फ्रंटलाइन कार्यकर्ता (जैसे बालेश्वर भुइयां, गौर गड़ी और महादेव अंकुड़िया आदि) शहीद हो गये। अंतत: कॉमरेड सुनील पाल को भी मारने का उनका षडयंत्र 29 दिसंबर, 2009 के दिन सफल हो गया। आज से बारह वर्ष पूर्व इसी दिन बंगाल के बाहर से बुलाये गये आधे दर्जन भाड़े के गुंडों ने नवनिर्मित हरिपुर आईएफटीयू केंद्रीय ऑफिस में शाम के धुंधलके में (पूरे इलाके में ”ऊपर से” बिजली भी कटवा दी गई थी) घुसकर स्वचालित स्टेनगनों से उनके शरीर में कई दर्जनों गोलियां दाग दीं जिससे उनकी तत्काल मौत हो गयी। उनका इरादा हमारे संगठन को नेस्तनाबूद करने करने का था, लेकिन जैसा कि सभी जानते हैं, अगले ही चुनाव में स्वयं वामफ्रंट सरकार को ही जनता ने खत्म कर दिया, जबकि हमारी पाटी आज भी कायम और सक्रिय है। आज टीमएसी मजदूर वर्ग के अधिकारों पर हमलावर है। यह हमारे पार्टी लीडरों को पार्टी छोड़ने के लिए दबाव बनाती है तथा षडयंत्रमूलक हमले करवाती है। लेकिन हम आज भी, जबकि बंगाल का पूरा राजनीतिक स्पेस अर्धफासिस्ट टीएमसी और फासिस्ट भाजपा के बीच बंट गया है, क्रांतिकारी संघर्ष की परंपरा को कायम रखने में जुटे हैं।
साथियो! दस सालों तक कॉमरेड पाल का स्मृति दिवस हम उनके शहादत स्थल हरिपुर ( रानीगंज) में मनाते रहे। लेकिन 2020 में पार्टी की केंद्रीय कमिटी ने इसे नये फार्मेट के साथ अन्य राज्यों में शिफ्ट करने का निर्णय किया जिसके तहत हम पिछले साल से पटना में मनाते आ रहे हैं। पटना में आज यह दूसरा मौका है जब हम इस दिन रैली व सभा करने के साथ-साथ आज के सबसे ज्वलंत और राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर कन्वेंशन आयोजित करेंगे और प्रस्ताव या दस्तावेज पारित करेंगे। इस बार हमने कुछ और परिवर्तन करते हुए इसे दो दिवसीय बना दिया है, यानी पहले 29 दिसंबर को रैली और इसके ठीक अगले दिन यानी 30 दिसंबर को कन्वेंशन आयोजित किया जाएगा। पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष भी कन्वेंशन का विषय किसान आंदोलन से संबंधित है – ”कृषि कानूनों की वापसी, एमएसपी गारंटी कानून और किसानों की मुक्ति का सवाल”- जिस पर हम एक दस्तावेज पेश करेंगे और कन्वेंशन में आये सुझावों को शामिल करते हुए पारित करेंगे। पिछले वर्ष हमने ”किसानों की मुक्ति एवं मजदूर वर्ग” विषय पर कन्वेंशन आयोजित किया था और दस्तावेज भी पारित किया था।
साथियो! धुर कॉर्पोरेटपक्षीय कृषि कानूनों की वापसी हो चुकी है और इस मायने में ऐतिहासिक किसान आंदोलन ने फासिस्ट सरकार के ऊपर एक महान जीत दर्ज की है। इसने दिखा दिया कि संसद नहीं जनता सर्वोपरिे है, और किसी संस्था या कानून का तभी तक मायने है जब तब जनता उसे स्वीकार करती है। सच्चे जनवाद का यही तकाजा है जिसे किसान आंदोलन ने फिर से स्थापित किया है। हमने देखा कि जनता अगर विद्रोह कर दे तो उसके सामने कोई नहीं टिक सकता है – खुंखार से खुंखार तानाशाह भी नहीं। ”नहीं चली जब हिटलरशाही तो नहीं चलेगी मोदीशाही” के नारे को इसने सरजमीं पर साकार करते हुए पूरे देश में विश्वास और जोश का अभूतपूर्व संचार किया है। यह सच है, किसान आंदोलन फासिस्टों के खिलाफ एक सबसे बड़ा, सर्वाधिक शक्तिशाली और सबसे स्वीकार्य व सफल मोर्चा बन कर उभरा। इसने न सिर्फ मगरूर फासिस्ट सरकार को धूल चटाई, अपितु मोदी के झूठे शान व अहंकार को भी पूरी तरह मिट्टी में मिला दिया!
लेकिन साथियों, बात यहीं पर खत्म नहीं हो जाती है। इतिहास यहां रूक नहीं जाएगा। इसकी यह आखिरी अदालत नहीं है। कृषि कानूनों की वापसी के बाद कई अन्य मुख्य मांगों व सवालों (जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है एमएसपी पर कानूनी गारंटी की मांग) पर संयुंक्त किसान मोर्चा ने अपने कदम अगर पीछे नहीं किये हैं तो रोक अवश्य लिये हैं। इसके ठोस कारणों व वजहों पर चर्चा करनी होगी। हम इस कन्वेंशन में गंभीरता से इस पर बहस व चर्चा करेंगे। हमारे द्वारा पेश प्रपत्र में भी यह शामिल होगा, लेकिन हम सुझावों के प्रति खुले दिमाग से विचार करेंगे और उन्हें शामिल करेंगे।
साथियो! हम इस सम्मेलन में इस पर भी गंभीरता से विचार करेंगे कि एमएसपी की कानूनी गारंटी का महत्व क्या है, या क्या नहीं है। इसी तरह हम कृषि-कानूनों पर हुई जीत के ऐतिहासिक महत्व व सीमा पर भी गंभीरता से विचार करेंगे, खासकर कॉर्पोरेट यानी बड़ी पूंजी की सतत बढ़ती इजारेदारी के संदर्भ में। स्वयं किसान संगठनों को भी सरकार व राज्य पर भरोसा नहीं है और कह रहे हैं कि हम फिर मोर्चा खोलने आयेंगे। संक्षेप में कहें, तो किसानों की नजर में भी आंदोलन अभी खत्म नहीं हुआ है। मतलब साफ है कि भावी किसान आंदोलन के एक बार फिर से फूट पड़ने की प्रबल संभावना है। तो फिर इसकी भावी रूपरेखा पर चर्चा, बहस व विमर्श आदि स्वाभाविक रूप से मौजूं बन जाते हैं। आगामी 15 जनवरी, 2022 को संयुक्त किसान मोर्चा इस बीच उभरी नयी परिस्थितियों का जायजा लेने और आगे की स्ट्रेटजी बनाने के लिए बैठक करने जा रहा है। यह भी भावी स्थिति की ही एक तस्वीर है, यानी किसान आंदोलन देश में एक मुख्य राजनीतिक विषय रहने जा रहा है।
साथियों, आज सवाल है : यह सच है कि किसान आंदोलन ने मजदूर वर्ग को भी हिम्मत दी है तथा बहुत कुछ सिखाया है, लेकिन क्या मजदूर वर्ग भी किसान आंदोलन को कुछ सिखा सकता है? आइये,बहस में भाग लें और देश में एक मजबूत क्रांतिकारी मजदूर-किसान संश्रय कायम करने हेतु एकबार फिर से गर्मजोशी के साथ राजनीतिक-वैचारिक बहस तेज करें।
क्रांतिकारी अभिनंदन के साथ
पीआरसी, सीपीआई (एमएल)
आईएफटीयू (सर्वहारा)
(संपर्क : 9434577334, 9199748982, 9582265711)केंद्रीय कमिटी सदस्य कॉमरेड कान्हाई बर्णवाल, हरिपुर (रानीगंज, वर्धमान) आईएफटीयू केंद्रीय कार्यालय, द्वारा संयुक्त रूप से जारी
