ऑटो निर्माताओं के मुनाफे वास्ते हाथ और जान गंवाते मजदूर

March 23, 2022 0 By Yatharth

पूंजी की चमचमाती दुनिया और मजदूर का जीवन

एम असीम

बहुत से लोग सड़क पर कारों के नए ‘फास्ट एंड फ्यूरियस’ मॉडलों के प्रशंसक हैं। लेकिन क्या हम इस खूनी हकीकत को जानते हैं कि इन कारों का निर्माण कैसे किया जाता है? सेफ इन इंडिया (SII) फाउंडेशन की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच वर्षों में घायल हुए ऑटो सेक्टर के लगभग 2,500 में से तीन-चौथाई श्रमिकों ने हाथ कुचल जाने से औसतन दो अंगुलियां गवाईं हैं। ये सिर्फ फरीदाबाद-गुरुग्राम-नीमराना ऑटो बेल्ट के कारखानों से आई गैर-घातक चोटों की रिपोर्ट है।

“क्रश्ड 2021” के शीर्षक वाली यह रिपोर्ट भारत में ऑटो सेक्टर श्रमिकों की सुरक्षा की स्थिति पर रिपार्टों की श्रृंखला में तीसरी है। इसके अनुसार SII को रिपोर्ट की गई 50% से अधिक चोटें पावर प्रेस मशीनों पर हुईं, जिसमें मजदूरों को औसतन 2 उंगलियां गंवानी पड़ीं। कई मजदूरों के पूरे हाथ ही चले गए हैं। “पावर प्रेस में घायल हुए अधिकांश श्रमिक अपर्याप्त रूप से प्रशिक्षित हैं और उनकी शिक्षा का स्तर कम है। पावर प्रेस पर युवा और बूढ़े समान रूप से उंगलियां खोते हैं। कुचले जाने की अधिकांश चोटें पावर प्रेस पर थीं जिनमें सुरक्षा सेंसर होने चाहिए थे, लेकिन नहीं थे। अधिकांश कारखाने कई मौजूदा नियमों का उल्लंघन करते हैं, जो अपराध है।” 25 जनवरी को दो घंटे के ऑनलाइन कार्यक्रम के दौरान जारी रिपोर्ट में कहा गया है।

गुरुग्राम और फरीदाबाद के 11 स्थानों से घायल हुए 100 से अधिक ऑटो कर्मचारी भी अपने अनुभव साझा करने के लिए इस कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्होंने दावा किया कि उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए कंपनियों द्वारा सुरक्षा उपायों को दरकिनार कर दिया गया था और उन्हें ऑडिट निरीक्षण के वक्त के अलावा, इयर प्लग और हेलमेट जैसे कोई सुरक्षा उपकरण प्रदान नहीं किए गए थे। उनमें से अधिकांश ने कहा कि उन्हें मशीनों को चलाने का कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं दिया गया था और उन्होंने इसे बस अपने सीनियरों से सीखा था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि गंभीर चोटों – शरीर के अंगों की हानि और हड्डी के फ्रैक्चर – वाले श्रमिकों का अनुपात पिछले पांच वर्षों में कम नहीं हुआ है, जो लगातार काम करने की खतरनाक स्थितियों का संकेत देता है। रिपोर्ट का हवाला देते हुए SII के सह-संस्थापक और सीईओ संदीप सचदेवा ने कहा कि श्रमिकों की मजदूरी और शिक्षा जितनी कम होती है, चोटों की स्थिति उतनी ही खराब होती है। श्री सचदेवा ने कहा कि घायलों में से 92% प्रवासी श्रमिक थे, 81% केवल 10 वीं कक्षा तक शिक्षित और 71% 10,000 रुपये से कम कमाने वाले हैं और 12 घंटे की शिफ्ट करने के बावजूद भी बहुतों को कोई ओवरटाइम नहीं मिलता।

ईएसआईसी विनियमों के अनुसार, घायल श्रमिकों को उनकी नौकरी में शामिल होने के दिन उनका ईएसआईसी ई-पहचान कार्ड नहीं मिला था। इन सभी घायल श्रमिकों को दुर्घटना के कुछ दिनों बाद अपना कार्ड मिला। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी आंकड़ों में फैक्ट्री की चोटों की रिपोर्ट बहुत कम थी, निरीक्षण में बहुत सी कमियां थीं और नई श्रम संहिताएं (लेबर कोड) व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थितियों को और खराब कर सकती है।

लेकिन यह रिपोर्ट इस सबसे महत्वपूर्ण बात का उल्लेख करने में विफल रहती है कि न केवल श्रमिकों को प्रशिक्षण की कमी और सुरक्षा उपायों की अनुपस्थिति, बल्कि उत्पादन प्रणाली का पूरा डिजाइन और प्रबंधन द्वारा श्रमिकों पर काम को अत्यधिक तेज गति से कराने का दबाव इन ‘दुर्घटनाओं’ का मुख्य कारण है। पूंजीपति चाहते हैं कि श्रमिक एक ही कार्य दिवस में अधिक उत्पादन करें क्योंकि इससे श्रमिकों के शोषण की दर बढ़ जाती है और अधिक अधिशेष मूल्य प्राप्त होता है जो पूंजीपति वर्ग के सभी लाभों और संचित धन का स्रोत है। इसलिए इस सूची में सभी बड़ी और लाभदायक कंपनियों को देखा जा सकता है जहां पूंजीवादी मुनाफे की ‘पवित्र वेदी’ पर मजदूरों की उंगलियों, हाथों और जीवन की बलि दी जा रही है। मालिक श्रमिकों की चिंता नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें विश्वास है कि पूंजीवाद ने पहले ही बेरोजगार श्रमिकों की एक इतनी बड़ी आरक्षित सेना तैयार कर ली है, जो इन ‘दुर्घटनाओं’ में कुछ मजदूरों के अक्षम होते ही जानलेवा असेंबली लाइन में उनकी जगह लेने के लिए कतार में इंतजार कर रहे हैं।

इसलिए ये वास्तव में दुर्घटनाएं नहीं हैं बल्कि पूंजीपति मालिकों द्वारा किए गए अपराध हैं। इसके अलावा, ये ‘बड़े और प्रतिष्ठित’ बहुराष्ट्रीय और घरेलू ब्रांड इन अपराधों को आपूर्ति श्रृंखलाओं के मुखौटे के पीछे छिपाते हैं जो वास्तव में उनकी आवश्यकताओं और मानकों के अनुसार डिजाइन और संचालित होते हैं। लेकिन उनके द्वारा नियंत्रित ये बड़े कॉर्पोरेट और मीडिया ऐसे प्रचार करते हैं जैसे ये अपराध केवल छोटे पूंजीपति ही करते हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि मुख्य जिम्मेदारी सबसे बड़े इजारेदार पूंजीपतियों की होती है, जिन्हें इन अपराधों से होने वाले मुनाफे का मुख्य हिस्सा भी मिलता है।