पूंजीपति वर्ग के मुनाफे की हवस में मजदूरों की हो रही मौतें

April 1, 2022 0 By Yatharth

मजदूर वर्ग का जीवन और पूंजीवाद

संजय

परिचय

पूंजीवादी व्यवस्था में मजदूर जहां एक तरफ स्वयं  गरीब, बीमार और लाचार बना रहता है, वहीं वह अपने सामूहिक श्रम से पूंजीपति वर्ग को अकल्पनीय तौर पर अमीर बनाने के साथ साथ उनके ऐश्वर्य और सुख सुविधाओं के तमाम साधन मुहैया कराते हैं। इस देश और दुनिया में कोई ऐसा दिन नहीं गुजरता है जब किसी फैक्टरी या खदान में मेहनतकश मजदूरों की मौत न होती हो, लेकिन उनकी मौत तब तक कोई खबर नहीं बनती जब तक कि मजदूर सड़कों पर न उतर आएं या कोई प्लांट या फैक्टरी भीषण आग से स्वाहा न हो जाए। मुनाफे की हवस में पूंजीपति वर्ग द्वारा लाखों मजदूरों को प्रति वर्ष मौत के घाट उतार दिया जाता है, लेकिन उनके अपराधों पर तो कोई कार्रवाई होती है और न ही कोई सजा दी जाती है, उल्‍टे उन्हें कॉर्पोरेट जगत और राज्यसत्ता पुरस्‍कारों से नवाजती रहती है। 1984 के भोपाल गैस कांड को कोई कैसे भूल सकता है, जिसमें पंद्रह हजार से अधिक लोग मारे गए थे और लगभग छः लाख मजदूर क्षतिग्रस्‍त हुए थे। वास्तव में पूंजीवाद एक तरफ जीवन तो दूसरी ओर मौत पैदा करता है।

सूचना क्रांति और आधुनिकतम तकनीक से लैस सरकारें औद्योगिक दुर्घटनाओं में हुई मजदूरों की असामयिक मौतों पर कोई विस्तृत आंकड़े नहीं देती। मीडिया रिपोर्ट के आधार पर हाल में हुए कुछ औद्योगिक दुर्घटनाओं और उसमें मजदूरों की हुई मौत या शारीरिक अपंगता से हम यहां यह समझने की कोशिश की जाएगी कि किस तरह पूंजीवाद मजदूरों की बदस्तूर बलि ले रहा है और इस बात की शिनाख्त भी करेंगे कि इस त्रासदी से उबरने की क्‍या गुंजाइश है।

मजदूर-मेहनतकश वर्ग की आबादी

आज भारत में मजदूर वर्ग, मेहनतकश, अर्ध-सर्वहारा एवं छोटे और सीमांत किसानों की कुल आबादी नब्बे करोड़ से अधिक है। 2011-12 के एनएसएसओ के आंकड़ों के अनुसार भारत की कुल वर्क फोर्स 47.41 करोड़ है जिसमें से 33.69 करोड़ ग्रामीण मजदूर हैं जबकि 13.72 करोड़ शहरी मजदूर हैं। 23.18 करोड़ श्रमिक खेती और उससे जुड़े कामों में लगे हैं, जबकि 11.5 करोड़ श्रमिक औद्योगिक क्षेत्र में कार्यरत हैं। जहां तक महिला कामगारों की बात है तो एनएसएसओ के 2011-12 चक्र की गणना के हिसाब से देश के वर्क फोर्स में महिला श्रमिकों की सहभागिता दर मात्र 25.5% है। 12.2 करोड़ महिला श्रमिक ग्रामीण क्षेत्र में और 2.8 करोड़ महिला श्रमिक शहरी क्षेत्र में कार्यरत हैं। ग्रामीण क्षेत्र 35.3% श्रमिक कैजुअल (आकस्मिक) हैं वहीं शहरी क्षेत्र में यह संख्‍या 14.6% है जिनका बुर्जुआ वर्ग द्वारा सबसे ज्‍यादा दमन और शोषण होता है। सामाजिक संरचना के नजरिए से देखें तो दलित, आदिवासी और पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखने वाले ही बहुतायत में ग्रामीण और शहरी सर्वहारा और अर्धसर्वहारा वर्ग में शामिल हैं। कुछ अगड़ी जाति से ताल्लुक रखने वाले भी शहरी और ग्रामीण सर्वहारा, अर्धसर्वहारा या नि‍चले संस्‍तर वाले टुटपूंजिया वर्ग में आते हैं।

भारतीय बुर्जुआ वर्ग

एक सर्वे के अनुसार भारत में 2021 में मात्र 4.12 लाख परिवार करोड़पतियों की श्रेणी में आते हैं। उनमें अडानी, अंबानी, बिड़ला, मित्तल, टाटा, प्रेमजी आदि चंद बड़े पूंजीपति भी हैं, जो इस देश की राजनीति को परोक्ष या प्रत्‍यक्ष रूप से चलाते हैं। पूंजीवादी विकास ने बड़े पूंजीपति, मंझोले और छोटे पूंजीपतियों के साथ सटोरिए, ठेकेदार, कुलीन नौकरशाह और धनाढ्य मध्‍य वर्ग को पैदा किया है जो निहायत ही स्वार्थी, धनलोलुप, आत्‍ममुगध, जातिवादी, संकीर्णतावादी और अंतर्राष्‍ट्रीय साम्राज्यवाद का कनिष्ठ साझीदार बना हुआ है। मुट्ठी भर बुर्जुआ राजनीति करने वाले बड़े लोग इसी तबके आते हैं। यह एक सामान्य ज्ञान की बात है कि भारत में हर जाति में एक बुर्जुआ वर्ग और टुटपूंजिया वर्ग का निर्माण हुआ है जिनका हित लगभग एकसमान है। यह भी सच्चाई है की सवर्ण और खासकर वैश्य समुदाय से ताल्लुक रखने वाले अधिकांश लोग  बुर्जुआ वर्ग में या तो शामिल हैं या फिर बुर्जुआ वर्ग का समर्थक है जो मजदूरों और मेहनतकश तबके का भयानक दमन और शोषण करता है। सभी बुर्जुआ पार्टियों के बड़े नेताओं का बड़े पूंजीपतियों से घनिष्ठ संबंध है। उनमें से अधिकांशत: किसी न किसी कॉरपोरेट से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। मध्यम और छोटे स्तर के नेता स्थानीय स्तर पर  ठेकेदारी और मुनाफा देने वाले कई उद्योग-धंधो में शामिल रहते हैं या उनके मालिक होते हैं तथा बिना कोई श्रम किये ही खूब कमाई करते हैं। वे सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों से मिलकर सरकारी योजनाओं में गाढ़ी लूट करते हैं और इस प्रकार आम जनता का सभी तरीके से शोषण करते हैं। 

दक्षिण के राज्यों में दुर्घटना से मजदूरों की होने वाली मौतें

केरल के एरनाकुल्लम जिले में विगत 18 मार्च 2022 को एक निर्माण स्थल पर एक गुफा में कार्यरत दर्जनों मजदूरों के ऊपर अचानक जमीन धंसने से मौके पर चार मजदूरों की मौत हो गई और कई गंभीर रूप से घायल हुए, जिनमें एक की हालत ज्‍यादा खराब थी। मरने वाले सभी मजदूर पश्चिम बंगाल के थे। खबर है कि किसी मजदूर को कोई सरकारी राहत या मुआवजा नहीं मिला है जबकि‍ सभी जानते हैं कि केरल में ‘वामफ्रंट’ की सरकार है।

 तेलंगाना राज्य के करीमनगर जिले में 30 जनवरी 2022 को सड़क के किनारे अपने झोपड़ों में सो रही महिला मजदूरों को एक अमीरजादे ने तेज रफ्तार से चल रही अपनी कार से रौंद डाला, जिससे चार महिला मजदूरों की मौत हो गई और कई घायल हुए। हिंदुस्तान टाइम्‍स की खबर के अनुसार इस मामले में भी किसी को कोई सरकारी सहायता प्रदान नहीं की गई। हां, तेज रफ्तार से कार चला रहे लंपट अमीरजादे को गिरफ्तार कर लिया गया है।

गुजरात में मजदूरों की हो रही मौतें

हिंदुत्ववादी फासिस्टों की प्रयोगशाला गुजरात में आए दिन कल-कारखानों में मजदूरों की मौतें होती रहती हैं, लेकिन गोदी मीडिया अपने आका मोदी और अमित शाह की कलई न खुल जाए इसलिए वैसी खबरों को दबा देता है। हालांकि कभी-कभी  कुछ खबरें छनकर समाचार पत्रों में स्थान पा जाती हैं। गत 6 जनवरी 2022 को गुजरात के सूरत जिले के ‘सचिन औद्योगिक एरिया’ में गैरकानूनी तरीके से जहरीली गैस ले जा रहे एक टैंकर में रिसाव होने के कारण कम से कम छः फैक्टरी मजदूर मारे गए एवं 22 अन्य गम्भीर रूप से घायल हो गये। खबर के अनुसार दोषी मालिकों पर न तो कोई कार्रवाई हुई और न ही सरकार द्वारा मृतक के परिवार वालों को कोई उचित मुआवजा ही दिया गया। 24 दिसम्बर 2021 को गुजरात के वडोदरा औद्योगिक एरिया में एक रसायन फैक्टरी के बॉयलर में जबरदस्त विस्फोट होने से कम से कम चार मजदूरों की मौत हो गई एवं कई गम्भीर रूप से घायल हो गए। इस मामले में भी मजदूरों को कोई मुआवजा या राहत नहीं दी गई। कारखाना मालिक एवं स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत ने पूंजीवादी व्यवस्था की सड़ांध को उजागर कर दि‍या।

 16 दिसम्बर 2021 को गुजरात के पंचमहल जिले में रसायन बनाने वाले एक कारखाने में बॉयलर के फटने से सात मजदूरों की मौत हो गई और कई मजदूर गम्भीर रूप से घायल हो गए। 19 जनवरी 2021 को सूरत में पंद्रह मजदूरों की एक ट्रक द्वारा कुचल दिए जाने से मौत हो गई।

 16 मार्च 2021 के न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार पिछले दो सालों में गुजरात में फैक्टरी मालिकों की लापरवाही से घटित होने वाली औद्योगिक दुर्घटनाओं के कुल 322 मामले सामने आए, जिसमें 421 मजदूर मारे गए एवं कई घायल हुए। यह खबर गुजरात राज्य के श्रम एवं रोजगार मंत्री द्वारा सदन में दिए गए एक जवाब के आधार पर प्रकाशित किया गया। मंत्री द्वारा स्वीकार किया गया कि पिछले दो वर्षों (2019 एवं 2020) में कुल 322 औद्योगिक दुर्घटनाओं  में कुल 421 मजदूर मारे गए। भरुच जिले में हुए विस्फोट से 68 मजदूर, सूरत में 67, अहमदाबाद में 61, मोरबी में 55, वलसाड में 38, कच्‍छ में 29, वडोदरा में 18 और राजकोट में 18 मजदूर मारे गए। गुजरात के श्रम मंत्री द्वारा यह भी कहा गया कि इस बार 288 आपराधिक मुकदमे दर्ज किए गए हैं, लेकिन कुल गिरफ्तार मालिकों की संख्या मालूम नहीं है और मुकदमे के फैसले के बारे में भी कोई ठोस जानकारी नहीं है। बड़ी बेशर्मी से गुजरात सरकार द्वारा यह स्वीकार किया गया कि ऐसे मामलों में मारे गए मजदूरों के परिवार को कोई मुआवजा नहीं दिया जाता है। यह है गुजरात माडल जिसमें मजदूरों के खून और आंसुओं की कोई कीमत नहीं है! पाठकों को यह जानकर कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए कि गुजरात में सामान्यत: कोई मजदूर यूनियन प्रभावी रूप से काम नहीं करता। जो हैं भी वे भाजपा समर्थित ट्रेड यूनियन (बीएमएस) से ही हैं जो मजदूरों से ज्‍यादा फैक्टरी मालिकों की  सेवा करता रहता है।

पेट्रोलियम एवं नेचुरल गैस सेक्टर में मरते मजदूर

पेट्रोलियम एवं नेचुरल गैस से संबंधित 2018 की एक स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट के अनुसार 2014-2017 के बीच कुल 309 औद्योगिक दुर्घटनाएं हुई हैं जिसमें 81 मजदूरों की मौत हुई और 193 मजदूर घायल हुए। सबसे ज्‍यादा  HPCL में 149 दुर्घटनाओं में 20 मजदूर मारे गए और 61 घायल हुए। ओएनजीसी (ONGC) में कुल 85 दुर्घटनाएं हुईं जिनमें कुल 15 मजदूर मारे गए और 39 मजदूर घायल हुए। इंडियन ऑयल (IOCL) में कुल 40 दुर्घटनाएं हुईं जिनमें 18 मजदूर मारे गए और 36 मजदूर घायल हुए। गेल (GAIL) में भी इस दौरान 5 दुर्घटनाओं के मामले सामने आए जिनमें 25 मजदूर मारे गए एवं 22 घायल हुए। 7 मई 2020 को विशाखापत्तनम में जहरीली गैस के रिसाव से कम से कम 12 मजदूर मारे गए एवं 350 से अधिक लोग घायल हुए। वहीं 7 मई एवं 1 जुलाई 2020 को तमिलनाडु के नेवली में दो बॉयलर फटने से 13 मजदूर मारे गए एवं दर्जनों घायल हुए।

कोयला खदान में मजदूरों की मौतें

कोयला खदान के इलाकों में कई वीभत्‍स कर देने वाली दुर्घटनाएं हुईं हैं जिनमें हजारों कोयला मजदूर असमय काल के गाल में समा गए। 15 जनवरी 2016 को राजमहल के ललमटिया कोलियरी में हुई एक दुर्घटना को भुलाया नहीं जा सकता जिसमें 9 मजदूर जिंदा दफन हो गए और कई घायल हुए। कोल इंडिया ने विभागीय जांच के आदेश दिए लेकिन कोई नहीं जानता कि उसका क्या नतीजा हुआ। कोयला मंत्रालय भी ऐसे मामलों में ज्‍यादा दिलचस्पी नहीं लेता है। क्‍योंकि मारे गए सभी मजदूर ठेका मजदूर थे, इसलिए सीटू जैसे दलाल यूनियनों ने भी कुछ नहीं किया। 29 दिसम्बर 2016 को गोड्डा जिले के पहाड़िया कोलियरी में 11 मजदूर मारे गए थे। इसी प्रकार दिसम्बर 1975 में झरिया कोलियरी में हुई दुर्घटना में 372 कोयला मजदूर मारे गए थे, सितम्बर 1995 में कतरास कोलियरी में कोयला खान में बाढ़ का पानी घुस जाने से 60 मजदूर मारे गए थे। फरवरी 2001 में धनबाद में 20 कोयला मजदूर मारे गए थे।

लॉक डाउन में मजदूरों की मौतें

2 जून 2021 के इंडि‍यन एक्सप्रेस के अनुसार, 2020 के लॉक डाउन के समय लगभग 8700 मजदूर मेहनतकश लोग मरे जो कि वास्‍तव में हत्‍या थी। उस दौरान मजदूरों ने हजारों किलोमीटर की दूरी भूखे-प्‍यासे तथा पैदल चलते हुए पूरी की। मजदूरों के साथ उनके छोटे-छोटे बच्चे भी थे जिन्‍हें हम सभी लोगों ने देखा। लोग ट्रेन की पटरियों पर मरे, सड़कों पर मरे, तो कोई भूखा प्यासा मरा। लाखों मजदूरों के दुख, उनकी वेदना और रास्‍तों में हुई उनकी त्रासद मौत की तस्‍वीरें आज भी आंखों को नम कर देती हैं।   

मार्च 2021 को केंद्रीय श्रम मंत्री ने संसद को बताया कि पिछले पांच वर्षों के दौरान कम से कम 6500 मजदूर औद्योगिक दुर्घटना में मारे गए हैं। हालांकि संख्या स्वतंत्र तरीके से एकत्र किए गए आंकड़े से मेल नहीं खाती है। 10 जुलाई 2020 के द हिंदू की एक रिपोर्ट में मजदूरों के एक ग्लोबल यूनियन के हवाले से कहा गया कि 2014 से 2017 के बीच देश में कुल 8004 औद्योगिक दुर्घटनाएं हुईं, जिसमें कुल 6368 मजदूर और कर्मचारी मारे गए। सबसे ज्‍यादा घटनाएं दिल्ली, महाराष्ट्र और राजस्थान में हुई हैं। उक्त रिपोर्ट के अनुसार औद्योगिक दुर्घटनाएं इस प्रकार हुईं –

1. जब मशीनरी को ऑपरेट किया जा रहा था :

    घटना – 4222, मृत्यु -2759

2. सामान्य औद्योगिक दुर्घटना :

     घटना – 1363, मृत्यु- 1017

3. पटाखे या माचिस बनाने वाली फैक्टरी में विस्फोट :

    घटना – 882, मृत्यु -956

4. माइंस या खदान में आग लगने से दुर्घटना :

    घटना – 83, मृत्यु- 84

5. बॉयलर या सिलिंडर फटने से :

    घटना- 167, मृत्यु- 274

6. माइनिंग डिजास्टर :

    घटना- 549, मृत्यु -736

उपरोक्त आंकड़े यह दिखाते हैं कि पूंजीवादी विकास मजदूरों की मौत और उनके शोषण के बिना नहीं हो सकता। दिल्ली, हरियाणा, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे अपेक्षाकृत विकसित राज्यों में मजदूरों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। इन औद्योगिक इलाकों में सबसे ज्‍यादा मजदूर मारे जा रहे हैं। दिल्ली और एनसीआर के औद्योगिक इलाकों में आए दिन मजदूरों की मजदूरी, छंटनी, हड़ताल आदि के सवाल पर मालिकों से टकराव होते रहते हैं, जो यह दिखाता है कि पूंजी और श्रम के बीच का द्वंद्व और विरोधाभास कितना तीखा है।

बिहार में ग्रामीण और निर्माण मजदूरों की हालत

जहां तक बिहार का संबंध है, बिहार में उद्योग कम होने के कारण औद्योगिक दुर्घटना के कम ही मामले सामने आते हैं। लेकिन हम सभी इस तथ्य से वाकिफ होंगे कि बिहार में सत्तर और नब्बे के दशक में तथाकथित अगड़ी जातियों की सामंती ताकतों द्वारा दर्जनों नरसंहार किया गया जिसमें सैंकड़ों खेतिहर मजदूर और गरीब किसान मारे गये थे। जहां तक औद्योगिक दुर्घटना में मारे गए मजदूरों की बात है तो इस इस संबंध में एक खबर प्रकाशित हुई थी कि विगत 27 दिसंबर 2021 को बिहार के मुजफ्फरपुर के एक कारखाने में बॉयलर फटने से सात मजदूरों की मौत हो गई। यही नहीं, बिहार में आए दिन निर्माण मजदूरों की मौत की खबरें आती रहती हैं। 3 दिसंबर 2021 को भोला राम नामक निर्माण मजदूर की मौत पटना के राम कृष्ण नगर इलाके में एक निर्माणाधीन इमारत से गिरने से मौत हो गई। पटना में 7 अक्टूबर 2021 को राजेश ठाकुर नामक निर्माण मजदूर के सर पर पुलिस द्वारा चलाए गए पत्‍थर से चोट लगने से अस्‍पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई। पटना के भोगीपुर इलाके में 18 सितंबर 2021 को रामधनी यादव नामक निर्माण मजदूर की निर्माणाधीन बिल्डिंग से गिरने से मौत हो गई। पटना के ही हनुमान नगर इलाके में 10 नवंबर 2020 को निर्माण मजदूर महादेव साव की मौत हो गई। 2 अक्टूबर 2021 को दीपक पासवान नामक युवक, जो एक भारी ट्रक पर सहायक के तौर पर काम करता था, ट्रक के दुर्घटनाग्रस्‍त होने से बुरी तरह जख्‍मी हो गया, जिसके इलाज के क्रम में एक पैर काटना पड़ा। प्रसंगवश यहां यह जोड़ना शायद गलत नहीं होगा कि पटना में निर्माण मजदूरों के हक और अधिकार की होने वाली अनेकानेक लड़ाइयों में आईएफटीयू (सर्वहारा) ने संघर्ष के बदौलत दुर्घटना में मारे गए मजदूरों के आश्रित परिवारों के लिए मालिकों से लाखों रुपए मुआवजे के रूप में दिलवाए हैं। इस क्रम में निर्माण मजदूरों को संगठित करने में भी आईएफटीयू (सर्वहारा) एक उल्लेखनीय भूमिका निभा रहा है।

निष्कर्ष

हम सभी जानते हैं कि भारतीय संविधान और दर्जनों श्रम कानूनों में मजदूरों के हितों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्रावधान किए गए हैं और उनके अधिकारों के लिए एक पूरा कानूनी (न्‍यायिक) और प्रशासनिक तंत्र खड़ा किया गया है, फिर भी आए दिन मजदूरों के अधिकारों पर पूंजीपति डाका डालते रहते हैं और  सरकारी महकमा कुछ अपवाद अवसरों को छोड़कर मालिकों के साथ खड़ा दिखाई देता है। स्थापित ट्रेड यूनियन भी रस्‍मी विरोध करते हैं, जबकि क्रांतिकारी यूनियनों की मजदूरों तक पहुंच कम है और संगठन का दायरा भी छोटा है, इसलिए इसका फायदा कम ही मजदूर उठा पाते हैं।  

               एक बात और स्पष्ट करना आवश्यक है कि पूंजीवाद मुनाफे पर आधारित व्‍यवस्‍था है इसलिए मजदूरों की सुरक्षा इसकी प्राथमिकता नहीं है और इसलिए दुर्घटनाओं को पूंजीवादी व्‍यवस्‍था में रोकना और इनसे होने वाली मौतों से मुक्ति पूंजीवाद में संभव ही नहीं है। फिर भी मजदूर चाहें तो यूनियन और संघर्ष के बल पर उन्‍हें कम करने के लिए मालिकों पर दबाव डाल सकते हैं। इतिहास मजदूरों की ऐसी लड़ाइयों से भरा हुआ है। इसके अतिरिक्‍त, मजदूर वर्ग के कंधे पर इतिहास द्वारा प्रदत्‍त एक और दायित्‍व भी है। वह यह कि उन्हें इस मानवद्रोही व्यवस्था को उखाड़ फेंकने का काम भी करना है। यही मजदूरों द्वारा लड़े जा रहे फैसलाकुन संघर्षों का निर्णायक और अंतिम मुकाम है जिसके बाद समाजवाद आएगा और तब न सिर्फ मजदूर वर्ग को, बल्कि संपूर्ण मानवजाति को भी पूंजीवाद और खास कर वित्तीय पूंजी के मकड़जाल से हमेशा के लिए मुक्ति मिलेगी। मजदूर वर्ग के महान शिक्षक कार्ल मार्क्स ने कहा है कि मजदूरों को खोने के लिए उनकी बेड़ियों के अलावा कुछ नहीं है जबकि पाने के लिए पूरी दुनिया है। लेनिन और स्‍तालिन के नेतृत्व में बने सोवियत समाजवादी रूस ने दुनिया को यह दिखा दिया कि मजदूर वर्ग केवल माल उत्पादन करना नहीं जानते हैं अपि‍तु वे शासन भी चला सकते हैं। वे ही सभ्यता और संस्कृति के असली निर्माता हैं और इसके मालिक भी ।