मुफ्त राशन के शोर में दबाई जा रही बढ़ती भुखमरी की खबर
April 4, 2022महाभारत की कहानी में जिक्र आता है युधिष्ठिर की बात के पूरे सच को ढोल-नगाड़ों के शोर में गुम करा देने का। उसी तरह आजकल शासक वर्ग के भोंपुओं द्वारा मुफ्त राशन दिये जाने का जो इतना भारी प्रचार है उसके पीछे भी असली इरादा पूरे सच अर्थात मेहनतकश जनता के जीवन में विकराल होती भुखमरी की आफत को इस शोरगुल में गुम करा देने का ही है। दिसंबर ’21 – जनवरी ’22 के महीने में राइट टू फूड कैंपेन द्वारा कराए गए हंगर वाच – 2 सर्वे के 23 फरवरी को प्रकाशित नतीजे तो यही सोचने पर विवश करते हैं। इस सर्वे में 14 राज्यों के 6,697 व्यक्तियों से बात की गई जिनमें 72.8% देहात तथा 27.1% शहरी इलाकों के थे।
इनमें से 79% ने बताया कि उन्हें कोविड के दौरान भोजन असुरक्षा का सामना करना पड़ा, जबकि 25% ने भोजन की गंभीर कमी की बात बताई। एक तिहाई ने बताया कि उन्हें या उनके परिवार में किसी को सर्वे पूर्व एक महीने के अंदर भूखा सोना पड़ा था। सिर्फ 34% ही ऐसे थे जिन्होंने कहा कि उन्हें पिछले महीने पर्याप्त अनाज उपलब्ध था। अधिकांश परिवारों अनुसार उन्हें महीने में दो या तीन बार से अधिक पोषक आहार प्राप्त नहीं होता। मात्र 27% को ही सप्ताह में एक बार से अधिक अंडा, मांस, दूध, फल व हरी सब्जियां मिलती हैं।
यह स्थिति तब थी जबकि जिनके पास राशन कार्ड हैं उनमें से 90% ने माना कि उन्हें सार्वजनिक वितरण प्रणाली से राशन मिला था अर्थात उनकी आय इतनी गिरी हुई है कि इस राशन के बावजूद भी वह नियमित रूप से पर्याप्त मात्रा में भोजन का खर्च उठा पाने में असमर्थ हैं। एक चौथाई से अधिक ने बताया कि पात्र होने के बावजूद भी उन्हें मिड डे मील या बच्चों के लिए आईसीडीएस योजना का लाभ नहीं मिला। स्वाभाविक भी है क्योंकि पिछले सालों में लगातार इन योजनाओं का बजट काटा गया है। 2014-15 के मुकाबले 2022-23 में मुद्रास्फीति के साथ एडजस्ट करने पर मिड डे मील के बजट में 50% तथा आईसीडीएस में 38% की कटौती हुई है।
इसकी वजह भी साफ है क्योंकि सर्वे अनुसार 66% की आय कोविड पूर्व की तुलना में गिरी है जबकि 31% की आमदनी घटकर आधी से भी कम रह गई है। जिन परिवारों में कम से कम एक सदस्य के पास रोजगार है उनके 70% की मासिक आय भी 7,000 रु से कम है। लगभग 45% के सिर पर कर्ज का बोझ पाया गया जिनमें से 21% पर 50 हजार से ज्यादा कर्ज है।
आय में कमी के साथ ही इन्हें इलाज का अतिरिक्त बोझ भी उठाना पड़ा है। इनमें से 13% को 50 हजार व 35% को 10 हजार रुपये से अधिक इलाज पर खर्च करना पड़ा है। इसके अलावा 32% ने बताया कि उनके घर से एक सदस्य को मजदूरी पर काम मिलना बंद हो गया। इनमें से 3% परिवारों में कोरोना से मौत हुई मगर इनके 45% से भी कम को कोई मुआवजा राशि प्राप्त हुई है।