“इस ओजस्वी आत्मा के महाप्रयाण से जो अभाव पैदा हो गया है, लोग शीघ्र ही उसे अनुभव करेंगे”

April 4, 2022 0 By Yatharth

– फ्रेडरिक एंगेल्स

“जैसे कि जैव प्रकृति में डार्विन ने विकास के नियम का पता लगाया था, वैसे ही मानव-इतिहास में मार्क्स ने विकास के नियम का पता लगाया था। उन्होंने इस सीधी-सादी सच्‍चाई का पता लगाया – जो अब तक विचारधारा की अतिवृद्धि से ढंकी हुई थी – कि राजनीति, विज्ञान, कला, धर्म आदि में लगने के पूर्व मनुष्य जाति को खाना-पीना, पहनना-ओढ़ना और सिर के ऊपर साया चाहिए। इसलिए जीविका के तात्कालिक भौतिक साधनों का उत्पादन और फलत: किसी युग में अथवा किसी जाति द्वारा उपलब्ध आर्थिक विकास की मात्रा ही वह आधार है जिस पर राजकीय संस्थाएं, कानूनी धारणाएं, कला और यहां तक कि धर्म संबंधी धारणाएं भी विकसित होती हैं। इसलिए इस आधार के ही प्रकाश में इन सब की व्याख्या की जा सकती है, न कि इससे उल्टा, जैसा कि अब तक होता रहा है।

परंतु इतना ही नहीं, मार्क्स ने गति के उस विशेष नियम का पता लगाया जिससे उत्पादन की वर्तमान पूंजीवादी प्रणाली और इस प्रणाली से उत्पन्न पूंजीवादी समाज दोनों ही नियंत्रित हैं। अतिरिक्त मूल्य के आविष्कार से एकबारगी उस समस्या पर प्रकाश पड़ा, जिसे हल करने की कोशिश में किया गया अब तक सारा अन्वेषण – चाहे वह पूंजीवादी अर्थशास्त्रियों ने किया हो या समाजवादी आलोचकों ने, अंध-अन्वेषण ही था।

ऐसे दो आविष्कार एक जीवन के लिए काफी हैं। वह मनुष्य भाग्यशाली है, जिसे इस तरह का एक भी आविष्कार करने का सौभाग्य प्राप्त होता है । परंतु जिस भी क्षेत्र में मार्क्स ने खोज की – और उन्होंने बहुत से क्षेत्रों में खोज की और एक में भी सतही छानबीन करके ही नहीं रह गए – उसमें यहां तक कि गणित में भी उन्होंने स्वतंत्र खोजें कीं। ऐसे वैज्ञानिक थे वह। परंतु वैज्ञानिक का उनका रूप उनके समग्र व्यक्तित्व का अर्धांश भी न था। मार्क्स के लिए विज्ञान ऐतिहासिक रूप से एक गतिशील, क्रांतिकारी शक्ति था। वैज्ञानिक सिद्धांतों में किसी नई खोज से, जिसके व्यावहारिक प्रयोग का अनुमान लगाना अभी सर्वथा असंभव हो, उन्हें कितनी भी प्रसन्नता क्यों न हो, जब उनकी खोज से उद्योग – धंधों और सामान्यतः ऐतिहासिक विकास में कोई तात्कालिक क्रांतिकारी परिवर्तन होते दिखाई देते थे, तब उन्हें बिल्कुल ही दूसरे ढंग की प्रसन्नता का अनुभव होता था।उदाहरण के लिए बिजली के क्षेत्र में हुए आविष्कारों के विकास – क्रम का और मरसैल देप्रे के हाल के आविष्कारों का मार्क्स बड़े गौर से अध्ययन कर रहे थे। मार्क्स सर्वोपरि क्रांतिकारी थे। जीवन में उनका असली उद्देश्य किसी न किसी तरह पूंजीवादी समाज और उससे पैदा होने वाली राजकीय संस्थाओं के ध्वंस में योगदान करना था, आधुनिक सर्वहारा वर्ग को आजाद करने में योग देना था, जिसे सबसे पहले उन्होंने ही अपनी स्थिति और आवश्यकताओं के प्रति सचेत किया और बताया कि किन परिस्थितियों में उसका उद्धार हो सकता है। संघर्ष करना उनका सहज गुण था। और उन्होंने ऐसे जोश, ऐसी लगन और ऐसी सफलता के साथ संघर्ष किया जिसका मुकाबला नहीं है। … इनके अलावा अनेक जोशीली पुस्तिकाओं की रचना, पेरिस, ब्रसेल्स और लंदन के संगठनों में काम और अंततः उनकी चरम उपलब्धि महान अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ की स्थापना – यह इतनी बड़ी उपलब्धि थी कि इस संगठन का संस्थापक, यदि उसने कुछ भी और न किया होता, उस पर उचित ही गर्व कर सकता था।

इस सब के फलस्वरुप मार्क्स अपने युग के सबसे अधिक विद्वेष तथा लांछना के शिकार बने। निरंकुशतावादी और जनतंत्रवादी, दोनों ही तरह की सरकारों ने उन्हें अपने राज्यों से निकाला। पूंजीपति, चाहे वे रूढ़िवादी हों चाहे घोर जनवादी, मार्क्स को बदनाम करने में एक दूसरे से होड़ करते थे। मार्क्स इस सबको यूं झटक कर अलग कर देते थे जैसे वह मकड़ी का जाला हो, उसकी ओर ध्यान न देते थे, आवश्यकता से बाध्य होकर ही उत्तर देते थे। और अब वह इस संसार में नहीं हैं। साइबेरिया की खानों से लेकर कैलिफोर्निया तक, यूरोप और अमेरिका के सभी भागों में उनके लाखों क्रांतिकारी मजदूर साथी जो उन्हें प्यार करते थे, उनके प्रति श्रद्धा रखते थे, आज उनके निधन पर आंसू बहा रहे हैं। मैं यहां तक कह सकता हूं कि चाहे उनके विरोधी बहुत-से रहे हों, परंतु उनका कोई व्यक्तिगत शत्रु शायद ही रहा हो। उनका नाम युगों – युगों तक अमर रहेगा, वैसे ही उनका काम भी अमर रहेगा!” (हाइगेट कब्रिस्तान, लंदन में 17 मार्च 1883 को फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा दिये गये भाषण का अंश)