स्तालिन को श्रद्धांजलि

April 4, 2022 0 By Yatharth

इल्या एहरेनबर्ग

इन कठिन दिनों में, स्तालिन अपनी पूर्णतम महानता के साथ हमारी आंखों के सामने उभरकर आये। हमने देखा उन्हें अखिल विश्व के मार्गों पर लम्बे डग भरते हुए, हमारे संकटपूर्ण जमाने की हिलोरों पर शिखर की भांति छाते हुए, अपनी जन्मभूमि गुर्जी के पहाड़ों को वह लांघते हैं, दोन और वोल्गा के बीच के युद्धक्षेत्र को वह पार करते हैं, निर्माणरत मॉस्को के चौड़े पथों से वह गुजरते हैं, जनरव से पूर्ण शंघाई के बाजारों में वह दिखायी देते हैं, फ्रांस  की पहाड़ियों को वह पार करते हैं, ब्राजील के जंगलों से गुजरते हैं, रोम के प्रांगण में पहुंचते हैं, भारत के गांवों को पार करते हैं – शिखरों को अपने चरणों से नापते हुए।

स्तालिन की अन्त्येष्टि का समय जब हो आया, तो पेरिस में एक बेरोजगार आदमी गुलाब के हारों से सजे उनके चित्र के पास पहुंचा और वायलेट के फूलों का एक छोटा सा गुलदस्ता उसने अपनी ओर से अर्पित किया – बजाय रोटी खरीदने के, मैंने उनके लिए फूल खरीदे। तूरिन में मशीनी औजारों का चलना बंद हो गया, सिसली के कृषि मजदूर खामोशी में निस्तब्ध खड़े हो गये, गेनोआ के घाट-मजदूरों ने काम बंद कर दिया। ये सब भी स्तालिन की अर्थी का साथ दे रहे थे। प्राचीन पीकिंग में युवक, बूढ़े लोग और अपने बच्चों को साथ लिए स्त्रियां, संकरे बाजारों को लांघती हुई मैदान की ओर तेजी से बढ़ रही थीं, जहां चीन अपने मित्र के प्रति शोक प्रकट कर रहा था। अर्जेन्तीना की चारागाहों में एक गड़रिये ने किसी राह चलते यात्रा को ‘शोक’! शब्द कहकर रोका और दोनों ने मिलकर स्तालिन के निधन पर शोक मनाया। कोरिया के खण्डहरों के बीच उन माताओं ने, जो मानव के दुर्भाग्य के लबालब प्याले चख चुकी हैं, अपनी आंखें झुका लीं और स्तालिन के निधन का शोक मनाया। पुलिस, मुखबिरों और दमनकारियों से घिरे हुए न्यूयॉर्क के ईमानदार लोगों ने शोक में भरकर कहा – शांति का मित्र जाता रहा। हमारे दुश्मनों ने सोचा था कि इस महान शोक में हमारा कोई साथी नहीं रहेगा। निस्संदेह, हमारा शोक ऐसा है कि उसे शब्दों में नहीं बताया जा सकता। कमीने लोग, जो हर चीज का मूल्य डॉलरों और सैंटो में आंकते हैं, कभी नहीं समझ सकते कि ऐसे आदमी को खोने के क्या अर्थ होता है। लेकिन इन कठिन दिनों में ही सम्भवतः पहली बार, हमने देखा कि हमारे मित्र कितने हैं, कि हमारा शोक मानव-जाति का शोक बन गया है।

               ब्राजील का खेत मजदूर, जो सपने में भी नहीं सोच सकता था कि मॉस्को के बाजारों की शक्ल कैसी है या गांवों में लोग किस प्रकार जीवन बिताते हैं, रूसियों से वह कभी नहीं मिला है, उसने कभी बर्फ नहीं देखी है, वह नहीं जानता कि छुट्टियों का विश्राम घर कैसा होता है। अनेक सदियों पहले की भांति, वह सुबह से सांझ तक हाड़ तोड़ता है और उसकी खुशी के दुर्लभ क्षण बहुत ही नगण्य होते हैं। लेकिन हर मेहनत करने वाले की भांति, उसका हृदय बड़ा है और उसके हृदय पर उस आदमी के बारे में शब्द अंकित हैं, जो दुनिया के दूसरे हिस्से में रहता है और जो सब लोगों के लिए खुशहाली चाहता है। दुबला-पतला, काले रंग का यह खेत मजदूर जानता है कि मॉस्को नाम का एक नगर है और मॉस्को में स्तालिन रहते थे। उससे उसे जीवित रहने में मदद मिली। उससे उसे अपने कंधों को सीधा करने में सहारा मिला।

               ऐसी पुस्तकें हैं जो हृदय को हिला देती हैं : इटली और फ्रांस के फांसी पाये हुए कम्युनिस्टों के पत्र। फासिज्म के खिलाफ संघर्ष के दिनों में जल्लादों के हाथों पड़ने वाले वीर, जिन्होंने साहस के साथ मौत को गले लगाया था, उनमें से कई अपने जीवन की आखिरी घड़ियों में अपनी पत्नियों, अपनी माताओं या अपने मित्रों के नाम कुछ शब्द भेजने में सफल हो गये थे। किन चीजों के बारे में उन्होंने लिखा था? उन्होंने लिखा था अपने प्रियजनों के बारे में, अपने बच्चों के बारे में और उस आदमी के बारे में, जिसने उन्हें उनकी मृत्यु से पहले की घड़ियों में सहारा दिया था – उन्होंने लिखा था स्तालिन के बारे में। फांसी पर चढ़ाये जाने से एक घण्टा पहले रेबेर, जो गेस्टापो की यन्त्रणाओं के कारण हिल तक नहीं सकता था, ने स्तालिन का नाम लिखा था। स्तालिन के नाम को अपने होंठों पर धारण किये, गैब्रील पेरी और दनियल केसानोवा ने बहादुरी के साथ अपनी मौत को गले लगाया था। स्तालिन का नाम था – चीन के उन वीरों की जबान पर जिन्होंने महान अभियान में हिस्सा लिया था, कैण्टन के उन शहीदों की जबान पर, जिन्होंने अपने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की बलि दी थी। स्तालिन का नाम लेकर ही, स्पेन के लोगों ने फासिज्म के खिलाफ संघर्ष में कूदने की शपथ ली थी। थेलमॉन को जब यंत्रणाएं दी जा रही थीं, तब स्तालिन के नाम ने ही उन्हें बल दिया था और स्तालिन ही थे जिन्होंने वियतनाम के हृदय में आशाओं को जगाये रखा था।

               उनकी बातों को केवल सुना ही नहीं जाता था, केवल दोहराया ही नहीं जाता था, उन्हें प्यार किया जाता था, एक महान मानवीय प्रेम के साथ प्यार किया जाता था क्योंकि वह जनता को प्यार करते थे, उनकी कमजोरियों और उनकी ताकत को पहचानते थे, क्योंकि वह उस मां के आंसुओं का मर्म समझते थे जो युद्ध में अपने बेटे को खो चुकी है, क्योंकि वह खान मजदूर और ईंट-साज के श्रम की कद्र करते थे। उनके शब्दों को सभी समझते थे – मॉस्को में और कैण्टन में, पेरिस में और रियो द जनेरो में। उनकी जड़ें हमारे इतिहास में, हमारी जन्मभूमि में गहरी जमी थीं, लेकिन वह वास करते थे हमारे देश की सीमाओं से परे, बहुत दूर-दूर के लोगों के हृदयों में।

               उन दिनों जब फासिज्म संस्कृति के अस्तित्व मात्रा को आतंकित कर रहा था, मानव की प्रतिष्ठा और जीवन के लिए खतरा बन गया था – स्तालिन ने मुक्ति-सेना को युद्ध में उतारा। उन्होंने यूरोप और एशिया के लोगों की रक्षा करने वाली सेनाओं का नेतृत्व किया। गुलाम देशों के वीरों को लीमूसीन, पिएमौन्त, पोलैंड और स्लोवाकिया के गुरिल्ला सैनिकों को प्राग और ओसलों की, एथेन्स और तिराना की बहादुर संतानों को – उन्होंने आगे बढ़ाया विजय के गौरव को लोगों ने पहचाना। इसका कारण यह था कि खुद स्तालिन ने युद्ध में उनकी अगुवाई की थी और, जब फासिस्टी कैदखानों और कंसंट्रेशन कैम्पों के दरवाजे खोले गये तो यूरोप के सभी देशों के पुरुषों और स्त्रियों ने खुशी के आंसू बहाते हुए, स्तालिन के नाम को दोहराया। योसेफ विस्सारियोनोविच के जन्म की सत्तरवीं वर्षगांठ के अवसर पर, उनके पास बहुमूल्य उपहार भेजे गये – युद्ध में काम आये सैनिकों की माताओं ने पारिवारिक स्मृति-चिन्ह भेजे : यंत्रणाएं देकर गेस्टापो द्वारा मारी गयी लड़की का हैट, लड़ाई में मारे गये बेटे को मिला युद्ध का पदक। फ्रांस के लोगों ने स्तालिन को एक कलश भेजा, जिसमें ब्लेरिएन के उस किले की मिट्टी रखी थी, जहां देशभक्तों को गोलियों से उड़ा दिया गया था और जहां वीरों ने अपने देश की जय के साथ, जीवन की जय के साथ, स्तालिन की जय के साथ अपनी मौत को गले लगाया था।

               वह महान सेनापति थे, जो युद्ध से घृणा करते थे। वह उस शोक से अच्छी तरह परिचित थे, जो युद्ध में आम लोगों के सिर पर फूटता है। वह सेनापति थे एक ऐसी सेना के, जो युद्ध के वर्षों में शांति के लिए लड़ी, जिसने स्तालिनग्राद के खंडहरों में शपथ ली कि भयानक कत्लेआम की आग लगाने वालों का अंत करके ही वह दम लेगी। सभी जानते हैं कि वह कौन था, जिसने लोगों की विजय को कलंकित किया, वह कौन था जिसने फिर से युद्ध का हल्ला शुरू किया।

               उस छाया को हम कभी नहीं भूलेंगे, जो स्तालिन के चेहरे पर उस समय पड़ गयी थी, जबकि समुद्र के उस पार से नये रक्तपात के पहले आह्वान हम तक पहुंचे थे। स्तालिन ने कहा कि लोग, सभी देशों के साधारण पुरुष और स्त्रियां, युद्ध को रोक सकते हैं और इसके जवाब में शांति की एक अभूतपूर्व सेना का उदय हो गया। एक मामूली-सी स्त्री फौजी गाड़ी को रोकने के लिए रेल की पटरी पर लेट गयी। एक अन्य स्त्री दौड़कर परेड के मैदान में पहुंची और उसने सैनिकों का आह्वान किया कि वे अपने भाइयों के खिलाफ हाथ न उठायें। घाट मजदूरों ने अपनी बांहों को समेट लिया और हमलावरों के हथियारों को लादने या उतारने से इंकार कर दिया। अपने खेतों को विदेशी हवाई अड्डों के रूप में परिवर्तित करने के खिलाफ, किसान अपने खेतों के लिए लड़े। शांति की मांग करते हुए लोग बाजारों में निकल आये। विराट कांग्रेस का आह्वान किया गया, जिनमें सभी देशों के प्रतिनिधि पुरुषों और स्त्रियों ने, सभी विचारों और सभी धर्मों के लोगों ने शांति के झंडे को ऊंचा उठाने की शपथ ली। करोड़ों लोगों ने अपीलों पर अपने हस्ताक्षर किये। ये अपीलें नहीं, बल्कि वचन-पत्र थे। इतिहास में पहले कभी लोगों की चेतना इतनी जागृत नहीं हुई थी, पहले कभी इतनी आशा का संचार नहीं हुआ था।

               आज, इन दुःखपूर्ण दिनों में, शांति के सारे समर्थकों ने – वे चाहे जिस देश के भी रहने वाले हों, वे चाहे जैसे भी विचार रखते हों – देखा है कि वे स्तालिन के कितने ऋणी हैं। वही है जिसने लोगों को एक दूसरे युद्ध को रोकने में मदद की, वही है जिसने करोड़ों बच्चों और हजारों नगरों की रक्षा की। लोगों से इस छोर से उस छोर तक भरे, रोम के प्रांगण में टार्चों के प्रकाश से आलोकित स्तालिन का चित्र लगाया गया। और, देर तक जोरों से ये शब्द गूंजते रहे : स्तालिन ही शांति हैं। मिसीसीपी राज्य के एक छोटे से कस्बे में एक नीग्रो मजदूर ने मुझे बताया – वे हमें कत्ल करने के लिए ले जाना चाहते हैं, लेकिन स्तालिन यह नहीं होने देंगे। डेनमार्क में एक सीधी-सादी, पांच बच्चों की मां ने कहा – मुझे अपने बच्चों के लिए डर नहीं है। स्तालिन उनकी रक्षा करेंगे। चीन के गांवों में मैंने स्तालिन के चित्रों को देखा और इन चित्रों की ओर इशारा करते हुए, चीन के पुरुषों और स्त्रियों ने कहा – वह हमारे घर की रक्षा कर रहे हैं। पेरिस में घरों की दीवारों पर दो शब्द अंकित थे, जो लोगों के मस्तिष्क में एक-दूसरे से मिलकर एक हो गये हैं : ‘स्तालिन और शांति’।

               स्वभावतः शांति की सेना में अनेक, बहुत-से कम्युनिस्ट हैं। ठीक वैसे ही जैसे कि फासिज्म से मानव जाति को मुक्त करने वाली सेना में कितने ही बहुत से कम्युनिस्ट थे, लेकिन अकेले कम्युनिस्ट ही शांति को ऊंचा नहीं उठा रहे हैं। सभाओं में, सम्मेलनों और कांग्रेसों में कितने की विश्वासों के लोगों ने – कैण्टबरी के डीन ह्यूलेट जॉनसन, एबैट बौलियर, रीख के भूतपूर्व चांसलर बर्थ और इटली के उदारदिली नेता नित्ति ने – स्तालिन की बुद्धिमत्ता और शांति-प्रेम का जिक्र किया है। शांति के महान रखवारे की अन्त्येष्टि में भारत की राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य डाक्टर किचलू ने हिस्सा लिया, फ्रांस के प्रगतिशील नेताओं – येव पफार्ज और पिथरे कोत ने हिस्सा लिया। मानव-जाति के दुश्मन शांति के अन्य समर्थकों से कम्युनिस्टों को अलग करने के लिए व्यर्थ ही जोड़-तोड़ लगा रहे हैं। व्यर्थ ही वे सोवियत संघ, चीन और जनता के जनतंत्रों को शांति के लक्ष्य की रक्षा करने वाली पश्चिमी यूरोप, अमरीका और एशिया की जनप्रिय ताकतों से अलग करने की सोचते हैं। स्तालिन के ये शब्द कि भिन्न व्यवस्थाएं, भिन्न दुनियाएं एक साथ रह सकती हैं और शांतिपूर्ण प्रतियोगिता कर सकती हैं, मानव जाति की चेतना में समा गये हैं। इन शब्दों ने लोगों को संयुक्त बनाया है, उन्होंने एक ऐसी ताकत को जन्म दिया है, जिसे कुत्सित युद्ध-प्रेमी कुचल नहीं सकते।

स्तालिन ने एक से अधिक बार राष्ट्र के आजादी के अधिकार के पक्ष में आवाज उठायी है। अब राष्ट्र समझ गये हैं कि अगर आजादी नहीं, तो सुरक्षा भी नहीं। गुप्त या खुले आधिपत्य के खिलाफ, विदेशी, अड्डों के खिलाफ और नये हमलावर कृत्यों के लिए सभी प्रकार के ‘विदेशी सैनिक दलों’ के खिलाफ संघर्ष में स्तालिन के शब्द उन्हें प्रेरणा देते हैं।

दिसम्बर के अंत में, एक अमरीकी पत्रकार को स्तालिन ने जवाब देते हुए कहा था कि संयुक्त राज्य अमरीका और सोवियत संघ के बीच युद्ध को अनिवार्य नहीं माना जा सकता और यह कि दोनों देश आगे भी शांति के साथ रह सकते हैं। ये स्तालिन के आखिरी शब्द थे, जो समूचे भूमण्डल में व्याप्त हुए थे। ये दुनिया में सबसे ज्यादा मजबूत और सबसे ज्यादा शांतिप्रिय राज्य के अध्यक्ष के शब्द थे। सारी दुनिया के आम लोगों की रक्षा के लिए, रक्तपात के खिलाफ, स्तालिन ने शांति के पक्ष में आवाज उठायी थी।

शांति के महान रखवारे के निधन का समाचार सुनकर, हर जगह के लोगों पर छा जाने वाला शोक कितना स्वाभाविक है, लेकिन, हर कोई जानता है कि स्तालिन मर नहीं सकते। वह केवल अपनी कृतियों में ही जीवित नहीं हैं, केवल सोवियत राज्य की शक्ति और बढ़ती में ही जीवित नहीं हैं, बल्कि वह करोड़ों लोगों के मस्तिष्क में जीवित हैं – रूसियों और चीनियों के पोलों, और जर्मनों के, फ्रांसीसियों और विएतनामियों के, इटालियनों और ब्राजीलियनों के, कोरियनों और अमरीकियों के। जब स्तालिन का हृदय धड़कना बन्द हुआ, तो मानव जाति का संतप्त हृदय और भी ज्यादा जोरों से धड़कने लगा। साधारण पुरुषों और स्त्रियों ने अनुभव किया कि स्तालिन की स्मृति ने, स्तालिन के आदेशों ने, शांति और मानव जाति की खुशहाली के लिए संघर्ष ने, उन्हें और भी ज्यादा घनिष्ठ सूत्र में बांध दिया है।

स्तालिन की अर्थी पर, ये शब्द गूंजकर चारों ओर फैल गये : हम जनता के सच्चे सेवक हैं और जनता शांति चाहती है, युद्ध से घृणा करती है। करोड़ों के रक्त की होली को रोकने और खुशहाल जीवन के निर्माण की गारंटी करने की लोगों की इच्छा, हम सबकी पवित्र इच्छा हो! ये शब्द साथी स्तालिन के विचारों, चिंताओं और उनके इरादों के मूर्त रूप थे और इन शब्दों को उनके सहकर्मी, सोवियत सरकार के अध्यक्ष ने उच्चारित किया था। ये शब्द हर कहीं और हर जगह सर्वसाधारण पुरुषों और स्त्रियों के पास पहुंचेंगे और हमारे साथ मिलकर, वे कहेंगे – स्तालिन जीवित हैं!

[स्रोत : राहुल सांकृत्यायन लिखित स्तालिन की जीवनी से]