ऑटोफिट फैक्ट्री (धारूहेड़ा) के मजदूरों का छटनी के खिलाफ संघर्ष
May 9, 2022सिद्धांत
ऑटोफिट प्राइवेट लिमिटेड भारत में 2-व्हीलर सीट की सबसे बड़ी उत्पादक कंपनी है। धारूहेड़ा (जिला रेवाड़ी, हरियाणा) के मालपुरा इलाके में स्थित यह प्लांट ऑटोफिट का पहला प्लांट था जो 1987 में हीरो मोटोकॉर्प के वेंडर कंपनी के रूप में शुरू हुआ। इसके अलावा आज मानेसर [2006 से], हरिद्वार (उत्तराखंड) [2008 से] और हलोल (गुजरात) [2017 से] में भी इसके प्लांट हैं। ऑटोफिट मुख्यतः ऑटो सीट व व्हील का उत्पादन करता है, और इसका वार्षिक रेवेन्यु औसतन 450 करोड़ है।
संघर्ष की शुरुआत
दिसंबर 2021 तक धारूहेड़ा प्लांट में 212 मजदूर कार्यरत थे जिसमें 97 स्थाई व 115 अस्थाई थे। 24 दिसंबर को प्रबंधन ने कम उत्पादन का हवाला देते हुए 25 दिसंबर से 5 जनवरी 2022 तक के लिए ले ऑफ नोटिस लगा दिया जिसके तहत 154 मजदूरों (81 स्थाई व 73 अस्थाई) को बैठा दिया गया। 5 जनवरी को ले ऑफ अवधि समाप्त होने के दिन ही बिना किसी पूर्व सूचना के सभी 154 मजदूरों के खाते में प्रबंधन-ठेकेदार की और से उनका हिसाब डाल दिया गया, यानी (अस्थाई) ले ऑफ को (स्थाई) टर्मिनेशन में तब्दील कर दिया गया। लॉकडाउन से प्रभावित होकर ऑटोफिट की पेरेंट कंपनी हीरो मोटोकॉर्प में बीच में शटडाउन पीरियड होने अर्थात उत्पादन ठप होने के कारण ले ऑफ अवधि में ऑटोफिट प्रबंधन ने प्लांट में 2-व्हीलर सीट व व्हील की उत्पादन लाइन बंद करने का निर्णय ले लिया था जिसके कारण ही 154 मजदूरों को बर्खास्त किया गया। इसके बाद से अब प्लांट में 2-व्हीलर का नहीं बल्कि ट्रैक्टर के व्हील, सीट का उत्पादन हो रहा है। प्लांट में फिलहाल केवल 16 स्थाई व 42 कैजुअल ही कार्यरत हैं।
ज्ञातव्य है कि ये मजदूर 15-25 वर्षों तक इस प्लांट में कार्यरत थे और स्थाई मजदूरों को औसतन वेतन प्रतिमाह 25 हजार एवं अस्थाई मजदूरों को 10-11 हजार मिलता था। इसके तहत हिसाब के तौर पर स्थाई मजदूरों को करीब 3 लाख से लेकर 14 लाख रुपए (ग्रैच्युटी, मुआवजा व विविध मद जोड़ कर) तथा अस्थाई मजदूरों को करीब 1।5 से 3 लाख रुपए (एकमुश्त राशि के रूप में) मिले। हालांकि हिसाब के जरिए जब मजदूरों को अचानक हुए इस टर्मिनेशन की सूचना मिली तो इस निर्णय के खिलाफ अगले ही दिन लगभग सभी मजदूर लिखित रूप में हिसाब अस्वीकार करने कंपनी पहुंचे और अपने लिखित आवेदन पर उन्होंने प्रबंधन से रिसीविंग भी लिया। हालांकि एक महीने तक मजदूर रेवाड़ी श्रम विभाग व कानूनी कार्रवाइयों तक ही सीमित रहे। नेता-मंत्रियों से लेकर मजदूर हरियाणा के उपमुख्यमंत्री तक से मिल चुके हैं लेकिन स्वाभाविक रूप से हर जगह से निराशा ही हाथ लगी है। प्रबंधन ने रेवाड़ी और मानेसर दोनों ही विभागों में कंपनी के निकट मजदूरों के धरना प्रदर्शन पर स्टे लगाने का आवेदन डाला हुआ है हालांकि विभाग ने स्टे देने से मना कर दिया। अंततः 18 फरवरी को मजदूरों ने कंपनी गेट पर धरना शुरू किया। तब से कंपनी मालिक धारूहेड़ा छोड़ कर मानेसर प्लांट में ही बैठ रहा है।
ऑटोफिट में संघर्षों का इतिहास
ऑटोफिट धारूहेड़ा में मजदूर संघर्ष की शुरुआत 2005 में होती है जब प्लांट में 500 से अधिक मजदूर कार्यरत थे लेकिन उसमें केवल 30-35 ही स्थाई थे। तब अपनी तमाम आर्थिक मांगों पर सभी कैजुअल मजदूर हड़ताल पर चले गए। हड़ताल अर्धसफल रही। कई मांगें मानी गई और 70-80 मजदूरों को स्थाई किया गया, हालांकि यूनियन बनाने का प्रयास सफल नहीं हो सका। इसके बाद 2013 में जब कुल मजदूरों की संख्या करीब 470 थी व स्थाई मजदूर 118 थे, तब दुबारा यूनियन बनाने का संघर्ष शुरू हुआ और इस बार मजदूर सफल हुए। ‘ऑटोफिट वर्कर्स यूनियन’ का गठन हुआ जो हिंद मजदूर सभा (HMS) से संबद्ध हुआ। हालांकि नवगठित यूनियन की ओर से जब वेतन समझौते की पहली पहल ही ली गई थी, तभी प्रबंधन ने प्लांट के सारे मजदूरों को बाहर निकाल दिया। इसके खिलाफ मजदूरों ने कंपनी गेट के बाहर ही धरना प्रदर्शन शुरू किया जो कि लगातार दिन-रात जारी रहा था। साथ ही, मजदूरों ने गुड़गांव-मानेसर से लेकर धारूहेड़ा तक अपने संघर्ष का प्रचार अभियान चलाया जिसकी बदौलत इस पूरे क्षेत्र के हजारों मजदूर संघर्षरत ऑटोफिट मजदूरों के समर्थन में धरनास्थल पहुंच गए थे। मजदूर एकता व संघर्ष की इस शानदार मिसाल ने अंततः प्रबंधन को झुकने पर मजबूर किया और सभी मजदूरों को वापस अंदर लिया गया।
वर्तमान संघर्ष के समक्ष चुनौतियां
18 फरवरी 2022 से जारी धरने में अब मुख्यतः स्थाई मजदूर ही 15-20 की संख्या में कंपनी गेट पर मौजूद रहते हैं। सभी अस्थाई मजदूर अन्य जगह काम खोज रहे हैं या खोज चुके हैं। हालांकि मौजूद अगुआ मजदूरों का कहना है कि 20-25 ही ऐसे मजदूर हैं जो हिसाब से संतुष्ट होकर अब संघर्ष में नहीं हैं, बाकी सभी मजदूर भले ही धरनास्थल पर हर वक्त मौजूद न रह पाएं लेकिन सभी संपर्क में हैं और जरूरत होने पर उपस्थित भी हो जाएंगे। सभी बर्खास्त मजदूर कंपनी से 10-15 किमी की दूरी पर ही हैं और अधिकतर मालपुरा व धारूहेड़ा में ही रहते हैं। मजदूर मुख्यतः धरनास्थल पर बैठने और नारे लगाने तक सीमित हैं, तथा रैली/जुलूस, प्रचार अभियान आदि नहीं करते हैं। लेबर विभाग की और से कार्रवाई पूरी हो चुकी है और कानूनी प्रक्रिया में अब लेबर कोर्ट का रास्ता ही बचा है। इसके अलावा मजदूरों के बीच मानेसर प्लांट के समक्ष प्रदर्शन करने की बात भी चल रही है। गौरतलब है कि मानेसर प्लांट में महज 5-7 मजदूर-कर्मचारी ही स्थाई हैं, तथा पूरा कार्यबल कैजुअल है।
संघर्षरत मजदूरों में ऑटोफिट वर्कर्स यूनियन की बॉडी के 7 में से 6 सदस्य हैं। एक बॉडी सदस्य, जो कि यूनियन प्रधान हैं, टर्मिनेशन का शिकार नहीं हुए और अंदर कार्यरत हैं। संघर्षरत मजदूरों का कहना है कि प्लांट में फिलहाल कार्यरत मजदूर पूरी तरह से संघर्ष के समर्थन में हैं और यूनियन के कहने पर हड़ताल भी कर देंगे, लेकिन यूनियन बॉडी ने अभी हड़ताल करने से मना कर रखा है। इसके अतिरिक्त, यूनियन भले ही HMS से संबद्ध है लेकिन संघर्षरत मजदूर HMS से नाखुश हैं। HMS के इस इलाके के मुख्य नेता केवल एक बार ही धरनास्थल पर आए हैं वो भी मजदूरों के बुलावा देने के बाद। इसके अतिरिक्त धारूहेड़ा व अन्य इलाकों में HMS की कोई यूनियन समर्थन में नहीं आई है।
धरना जारी रखने के बावजूद बिना वर्तमान ऑटोफिट संघर्ष में वह तेवर नहीं दिखता जो इसी यूनियन ने अपने पहले के संघर्षों में दिखाया है। इसका एक पहलु यह भी है कि यूनियन का नेतृत्व अपने सेवा-निवृत्ति के सालों के पास आ चुका है जिस कारण से वह वापस नौकरी पाने के साथ बेहतर हिसाब पाने को भी एक विकल्प के रूप में देखने लगा है। हालांकि इसका दूसरा बड़ा पहलु वर्तमान दौर में मजदूर आंदोलन की अवस्थिति व कमजोरियों से जुड़ा है। डेढ़ सौ से अधिक मजदूरों की अचानक बर्खास्तगी के बाद धरना चलने के बावजूद कोई यूनियन संघर्ष के समर्थन में नहीं पहुंचा। इसका एक कारण यह भी है कि मालपुरा इलाके में पिछले दस सालों में पूंजीवादी आर्थिक संकट के दौर में कई कंपनियां बंद हुई हैं जिसके कारण हजारों मजदूरों, जिसमें संघर्ष का अनुभव रखने वाले मजदूर भी हैं, का यहां से पलायन हुआ है। हालांकि जो यूनियन मालपुरा/धारूहेड़ा इलाके में हैं (जो CTUs से संबद्ध हैं) वह भी एक बार भी समर्थन में सामने नहीं आए हैं। यह दिखाता है कि कैसे CTUs अवसरवादी तरीके से महज आर्थिक मुद्दों पर मजदूरों को सीमित रखते हैं तथा उनकी वर्गीय चेतना का विकास व राजनीतिकरण करने में कोई रुचि नहीं रखते। और यह साथ भी केवल यूनियन गठन तक का बनता जा रहा है जहां मजदूरों के दैनिक संघर्षों में CTUs नदारद रहने लगे हैं। इसी कारण से मजदूरों की वर्गीय एकता कायम नहीं हो पाती और इधर-उधर कंपनी-केंद्रित संघर्ष फूट पड़ने के बावजूद परिस्थितियों में कोई सार्थक बदलाव नहीं आ पता, यहां तक कि संघर्षों में जीत भी हासिल नहीं हो पाती जिसके कारण से मजदूरों के बीच और भी निराशा का संचार होता है।
आगे का रास्ता क्या हो?
अलग-अलग कंपनियों में अलग-अलग संघर्षों की एकता कायम कर के ही इस क्षेत्र में एक व्यापक मजदूर आंदोलन खड़ा किया जा सकता है तथा मजदूरों में नए जोश व उर्जा का संचार किया जा सकता है। निश्चित ही ऐसा होने के लिए सबसे पहले इन संघर्षों का नेतृत्व संघर्षशील मजदूरों के हाथ में ही होना चाहिए। हालांकि कंपनी-केंद्रित मजदूर एकता स्थापित करने के साथ उसके ऊपर उठ कर मजदूरों की वर्गीय एकता स्थापित करना इसके लिए एक अपरिहार्य है। मजदूर-वर्ग की सचमुच में हितैषी ताकतों को इसके लिए मजदूरों के बीच एक व्यापक और सघन निरंतर क्रांतिकारी अभियान व प्रचार जारी रखना बेहद जरूरी है जिसका ओरिएंटेशन वर्गीय एकता, संघर्षों की एकता एवं वर्गीय चेतना के विकास पर केंद्रित हो।
CTUs के नेतृत्व में तथा अधिकतर क्षेत्रों में नेतृत्वहीन मजदूर आंदोलन की उपरोक्त तमाम कमजोरियों के कारण ही संघर्ष के एक बेहतरीन इतिहास के साक्षी रहे मालपुरा में ही आज लगभग सभी कंपनियों में फिक्स्ड-टर्म एम्प्लॉयमेंट (FTE, यानी पहले से ही कुछ महीनों तक के तय कार्यकाल के लिए ही भर्ती लेना) लागू है। और यह हालत सभी जगहों के हैं, जो कि 4 लेबर कोड के लागू होते ही और भी गंभीर हो जाएंगे, जिनके तहत FTE, हायर-फायर, यूनियन-हड़ताल पर रोक, ठेका प्रथा आदि को वैध बना दिया जाएगा। आज फौरी जरूरत है क्रांतिकारी व लड़ाकू मजदूर संगठनों व यूनियनों के बीच एकता के सार्थक व ठोस प्रयासों को तेज करने की तथा CTUs के रस्मअदायगी व समझौतापरस्ती वाले केंद्र से हटकर मजदूर आन्दोलन के एक क्रांतिकारी व संघर्षशील केंद्र को स्थापित करने की जो निरंतर व निर्णायक संघर्ष लड़ने व उनका नेतृत्व करने की हिम्मत और ताकत रखे।