दो गज़लें
May 9, 2022जय चक्रवर्ती
1.
फल का ठेला कहाँ लगाएँ सोच रहे सरताज मियां,
दो रोटी किस तरह कमाएँ सोच रहे सरताज मियां।
कल नेताजी जिधर गए थे देने जोशीला भाषण,
जाएँ या फिर उधर न जाएँ सोच रहे सरताज मियां।
माधव,जुम्मन,जॉन,सुरिंदर सब के तो मुँह फूले हैं,
किस घर जाएँ किसे बुलाएँ सोच रहे सरताज मियां।
ऐसे तो हम कभी न थे, हर पल हमको अब कौन यहाँ,
नफ़रत की दे रहा सदाएँ सोच रहे सरताज मियां।
सब कुछ जलता हुआ दिखाई देता आँखों के आगे,
किसको छोड़ें किसे बचाएँ सोच रहे सरताज मियां।
2.
खिलौने बेचकर रग्घू की विधवा घर चलाती है,
हुकूमत रोटियों पर उसकी बुलडोज़र चलाती है।
न जाने कौन-सी खिड़की से घुस आती है महँगाई,
हमारे दुधमुंहों के पेट पर खंजर चलाती है।
बड़ी शातिर सियासत है ये वोटों के लिए अक्सर,
कहीं गोली चलाती है, कहीं पत्थर चलाती है।
इधर अभिशप्त है सल्फ़ास खाने को युवा पीढ़ी,
उधर दिल्ली चुनावी हिकमतें दिन-भर चलाती है।
बिना संघर्ष के मंज़िल नहीं मिलती कभी यारो,
कि उड़ने के लिए हर वक़्त चिड़िया पर चलाती है।
यथार्थ