सार्वजनिक क्षेत्र में बढ़ता ठेकाकरण
May 9, 2022एम असीम
श्रमिकों का शोषण तेज करने में स्थायी कर्मियों के बजाय अस्थाई व ठेका श्रमिकों से काम कराना भी एक मुख्य तरीका है। यह काम सिर्फ निजी पूंजीपति ही नहीं कर रहे बल्कि खुद को मजदूरों का हितैषी बताने वाली सरकार भी सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों में न सिर्फ कुल रोजगार में कटौती कर रही है बल्कि जितने रोजगार हैं भी उनमें भी कैजुअल व ठेका कर्मियों का अधिक प्रयोग कर रही है। नियमित कर्मियों के बजाय अस्थायी व ठेका मजदूर रखकर समान काम के लिए नियमित कामगारों के मुकाबले एक तिहाई या चौथाई मजदूरी पर काम कराया जाता है एवं अन्य कोई लाभ/सुविधाएं भी नहीं दिए जाते, ताकि मुनाफा बढ़ जाए।
साल 2013-14 से 2019-20 के 6 सालों के आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं। इन 6 सालों में इन उपक्रमों के न सिर्फ कुल कामगारों की तादाद 16.90 लाख से घटकर 14.74 लाख ही रह गई, बल्कि जहां नियमित कर्मी 13.51 लाख से घटकर 9.21 लाख ही रह गए, वहीं कैजुअल कामगारों की तादाद 30 हजार से बढ़कर 53 हजार हो गई व ठेका श्रमिकों की संख्या 3.08 लाख से बढ़कर 4.98 लाख हो गई।
साफ जाहिर है कि खुद सरकार भी मजदूरों का शोषण करने में निजी पूंजीपतियों से पीछे नहीं है। साथ ही यह भी सोचने की बात है कि मजदूरी में इतनी कटौती के बावजूद भी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को घाटा कैसे होता है जबकि उस घाटे की सारी जिम्मेदारी सरकारी नीतियों व अफसरशाही पर न डालकर मजदूरों पर डाली जाती है और खासतौर पर उच्च व मध्य वर्ग में श्रमिकों के खिलाफ इसके लिए बहुत नफरत भी फैलाई जाती है।