यादें | चे ग्वेरा

June 20, 2022 0 By Yatharth

महान क्रांतिकारी चे ग्वेरा का अंतिम पत्र

9 अक्टुबर, 1967 को बोलिविया में अर्नेस्टो चे ग्वेरा की हत्या कर दी गई। इस काम को अमेरिकी ग्रीन बेरेट से प्रशिक्षण हासिल करने वाले बोलिविया के सैनिक और सीआईए एजेंटों ने अंजाम दिया। चे के सम्मान में हम चे की ओर से फिदेल कास्त्रो को लिखे मशहूर फेयरवेल लेटर को पब्लिश कर रहे हैं। इस पत्र को 3 अक्टुबर, 1965 को फिदेल कास्त्रो ने चे की पत्नी और बच्चों की उपस्थिति में टेलीविजन पर पढ़ा था।

फिदेल,

इस वक्त मुझे कई लम्हे याद आ रहे हैं। मारिया एंटोनिया के घर पर आपसे मिलना और फिर मुझे क्यूबा आने का आपका निमंत्रण.. उसके बाद तैयारियों से जुड़े तनाव के क्षण, आज वो सब मेरे स्मृति पटल पर नांच रहे हैं।

एक दिन पूछा गया था कि हमें मृत्यु के लिए किसे जिम्मेदार मानना चाहिए। इस सवाल के जवाब में जब हम तथ्यों के तह में गए तो वास्तविकता ने हम सबको प्रभावित किया। हमने अच्छी तरह समझा कि सच्चा क्रांतिकारी वही है जो मृत्यु को गले लगाता है, और क्रान्ति में वही जीतता है या मृत्यु को प्राप्त होता है, यदि वह वास्तविक है। कई साथी विजय-मार्ग पर वीर-गति को प्राप्त हुए।

आज प्रत्येक वस्तु कम नाटकीय लगती है क्योंकि अब हम पहले से ज्यादा परिपक्व हैं। लेकिन तथ्य दोहराए जा रहे हैं। मैं अनुभव करता हूं कि मैं अपने कर्तव्य के उस हिस्से को पूरा कर चुका हूं, जिसने मुझे क्यूबाई क्रांति से उसी के क्षेत्र में बांध रखा था और अब मैं आपसे, अपने साथियों से, अपने लोगों से जो कि मेरे भी अपने सगे हैं, सभी से विदा लेता हूं।

मैं पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व में अपनी स्थिति, मंत्री और मेजर का पद और अपनी क्यूबाई नागरिकता को त्यागने की घोषणा करता हूं। अब कोई विधि नियम मुझे क्यूबा से नहीं बांधता। अब केवल वे ही बंधन हैं जो दूसरी प्रकृति के हैं और जो तोड़े नहीं जा सकते है बाकी पदों को तो तोड़ा और छोडा जा सकता है।

अपने अतीत को याद करते हुए मेरा विश्वास है कि मैने जहां तक संभव हुआ गौरव और निष्ठा के साथ क्रांतिकारी विजयों को संगठति करने में भरपूर योगदान किया है। मेरी गंभीर असफलता यही थी कि सारी माइस्त्रा की शुरुआती मुलाकात में मैने आप पर विश्वास नहीं किया था। मै नेता तथा क्रांतिकारी के रुप में आपके गुणों को तत्काल नहीं समझ पाया।

मैंने एक शानदार जीवन बिताया है । आपके साथ उस गौरव का अनुभव किया है जो कैरीबियन संकट के समय हमारी जनता के उन शानदार लेकिन तनावपूर्ण दिनों से जुड़ी है। आप जैसे तेज बुद्धि वाले राजनीतिज्ञ बहुत कम हैं। मुझे इस बात पर नाज है कि मैं बेहिचक आपके पदचिन्हों पर चला। आपकी चिंतनपद्धति को अपनाया और खतरों तथा सिद्धान्तों के विषय में आपके दृष्टिकोण को वास्तविक रुप में समझा।

संसार के अन्य राष्ट्र भी मुझसे ऐसे ही नम्र प्रयत्नों की मांग कर रहे हैं । मैं उस कार्य को करना चाहता हूं,जो क्यूबा के प्रधान होने के उत्तरदायित्व के कारण आपके लिए निषिद्ध हैं। और अब समय आ गया है जब हमें एक दूसरे से विदा ले लेनी चाहिए।

मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मैं यह सब प्रसन्नता और दुख के मिलेजुले भावों के साथ कर रहा हूं। मैं यहां अपने सृजक की पवित्रतम आशाओं और प्रियजनों को छोड़ रहा हूं। मैं उस जनता को छोड़ रहा हूं, जिसने अपने पुत्र की तरह मेरा स्वागत किया । इस बात से मुझे गहरी पीडा हो रही है। मैं संघर्ष के अग्रिम स्थलों में उस विश्वास को ले जा रहा हूं, जो मैनें आपसे सीखा। जहां कहीं भी हो—मैं साम्राज्यवाद के विरुद्ध लडने के लिए अपनी जनता के अदम्य क्रांतिकारी उत्साह और पवित्र कर्तव्य भावना को अपने साथ ले जा रहा हूं। यह सोचकर मुझे प्रसन्न्ता होती है और विछोह की गहरी पीड़ा को झेलने का साहस भी मिलता है।

मैं एक बार फिर से घोषित करता हूं कि मैने क्यूबा को अपने उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया है। केवल एक बात को छोड़कर जो उसके उदाहरण से ही पैदा होती है। यदि मेरा अंतिम क्षण मुझे किसी और आकाश के नीचे पाता है तो अंतिम विचार इस जनता और खास तौर पर आपके संबंध में होगा। मैं आपकी शिक्षा और आपके उदाहरण के लिए कृतज्ञ हूं और अपने कार्यों के अंतिम परिणामों को लेकर विश्वासपात्र बनने का प्रयास करता रहूंगा।

मैं क्रातिं के लिए विदेशी नीति से जुड़ा माना जाता हूं। और मैं उसे जारी रखूंगा। मैं जहां भी रहूंगा एक क्यूबाई क्रांतिकारी के उत्तरदायित्व को अनुभव करता रहूंगा और उसी के मुताबिक व्यवहार करुंगा। मुझे इस बात का कोई मलाल नहीं है कि मैं अपने बच्चों और पत्नी के लिए कोई संपति नहीं छोड रहा हूं। मुझे खुशी है कि ऐसा हुआ। मैं उनके लिए कोई मांग नहीं करता, क्योंकि मैं जानता हूं कि उनके जरूरी खर्च और शिक्षा की व्यवस्था राज्य करेगा।

मैं आपसे और अपनी जनता से बहुत कुछ कहना चाहूंगा। लेकिन मुझे लगता है कि यह सब अनावश्यक है। मैं जो कुछ कहना चाहता हूं, शब्द उसे अभिव्यक्त करने में असमर्थ हैं और मैं नहीं सोचता कि बेकार की मुहावरेबाजी का कोई मूल्य है।

सदा विजय के मार्ग पर ! या तो देश या मौत!

पूरे क्रांतिकारी भावना के साथ मैं आपको गले लगाता हूं

-चे

अप्रैल, 1965

(‘पढ़ते लिखते’ ब्लॉग से साभार; लेख का लिंक https://likhtepadhte.blogspot.com/2017/12/blog-post.html)