पाठकों की कलम से
June 20, 2022कैलाश मनहर / साहित्य विजय की कविताएं
तुम बुलाते हो
- साहित्य विजय
तुम बुलाते हो
नदियों को पेड़ों को,
झरने और पहाड़ों को
तुम बुलाते हो
चिड़िया शेर भालू
लंबी गर्दन वाले जिराफ भी
तुम बुलाते हो
मछलियां तितलियां झींगुर
मैं पूछता हूं
कहां गए हैं सब
कहीं तो नहीं
क्या वो गए हैं
तुम से मुझसे नाराज होकर
या की वो अपनी मर्जी से गए हैं
नहीं
उन्हें उजाड़ा गया है
मारा गया है
हमारी तुम्हारी भोगविलास
सेभरी जिंदगी ने
पैसों के लालच ने
पूंजीपतियों की लूट ने
प्रशासन की छूट ने
नेताओं के झूठ ने
और तुम्हारे महंगे बूट ने
लिक्खो अब
- कैलाश मनहर
जान जोखिम में डाल लिक्खो अब,
हां सुलगते सवाल लिक्खो अब।
पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाते,
शासकों को दलाल लिक्खो अब।
भेड़िये बैठे हुये सत्ता में,
पहन इन्सानी खाल लिक्खो अब।
मुल्क में फैल रहा चारों तरफ,
हिटलरी विकट जाल लिक्खो अब।
बन रहीं हैं अदालतें भी तो,
ध्रुवीकरण की ढाल लिक्खो अब।
बने जो अंधभक्त सरकारी,
उड़ा रहे हैं माल लिक्खो अब।
नाम पे मन की बात के साहब,
बजा रहे हैं गाल लिक्खो अब।
मीडिया सल्तनत का पिठ्ठू है,
आप यह सारा हाल लिक्खो अब।
विधर्मियों से इनको नफरत है,
दे के सारी मिसाल लिक्खो अब।
नाम अच्छे दिनों का ले कर ये,
ले आये क्रूर-काल लिक्खो अब।