दिल्ली में 95% मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी नहीं मिलती
August 3, 2022एम असीम
जनवरी-फरवरी 2022 में दिल्ली में ‘वर्किंग पीपुल कोलिशन’ द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार देश की राजधानी दिल्ली तक में श्रम कानूनों की वास्तविकता यह है कि 95% से अधिक मजदूरों को दिल्ली सरकार द्वारा तय की गई न्यूनतम मजदूरी का भुगतान नहीं किया जाता। उधर मात्र 8% मजदूर ऐसी जगह काम करते हैं जहां सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम किये जाते हैं।
हालांकि दिल्ली सरकार ने अकुशल श्रमिकों के लिए 16,506 रु मासिक, अर्ध-कुशल श्रमिकों के लिए 18,187 रु मासिक व कुशल श्रमिकों के लिए 20,019 रु मासिक न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की है पर वास्तविकता यह है कि 95% पुरुष व 98% स्त्री मजदूरों को यह न्यूनतम मजदूरी मिलती नहीं है। पर वास्तविक हालत यह है कि सिर्फ 5% मजदूर ही ऐसे हैं जो महीने में 16 हजार या उससे अधिक मजदूरी हासिल कर पाते हैं। 46% मजदूरों को महीने में 5,000 से 9,000 रु के बीच मजदूरी मिलती है तो 13% को 12 हजार से 15 हजार के बीच। इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि तीन चौथाई से अधिक मजदूर महीने में 500 रु मात्र भी नहीं बचा सकते और वे सरकारों द्वारा घोषित अत्यंत सीमित सामाजिक सुरक्षा योजनाओं जैसे एम्प्लोयी स्टेट इन्श्योरेन्स, आदि का लाभ उठाने में असमर्थ हैं। 90% श्रमिक ऐसे हैं जो किसी भी सरकारी सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम के लाभ से वंचित हैं।
स्पष्ट है कि अन्य श्रम कानूनों की तरह सरकार ने न्यूनतम मजदूरी भी मात्र तय कर छोड़ दी है और सरकार का श्रम विभाग इसे लागू कराने के लिए कुछ भी नहीं करता है। शायद ही आज तक किसी मालिक पूंजीपति के खिलाफ न्यूनतम मजदूरी न चुकाने के लिए कोई कार्रवाई की गई हो। वजह यह है कि पूंजीपतियों के मुनाफे का सीधा संबंध मजदूरी से होता है। मजदूरी जितनी कम दी जाती है मुनाफा उतना ही अधिक बढ़ जाता है। और यह भी तथ्य है कि एक तरफ जहां देश के मजदूर वर्ग की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है वहीं पूंजीपतियों के मुनाफे रिकार्ड तेजी से बढ़ रहे हैं।
जहां तक कार्य स्थल पर उपलब्ध सुविधाओं का सवाल है तो सिर्फ 52% स्थानों पर ही पीने का पानी जैसी मूलभूत सुविधा उपलब्ध पाई गई। शौचालय सिर्फ 32% जगह ही था, जबकि स्त्रियों के लिए शौचालय तो मात्र 13% जगहों पर ही था। सिर्फ 8% काम की जगह ऐसी थीं जहां सुरक्षा की व्यवस्था थी, फर्स्ट ऐड किट जैसी सुविधा भी मात्र 11% स्थलों पर ही मौजूद थी। साफ है कि श्रम कानूनों के बावजूद मालिकों के लिए श्रमिकों को दी जाने वाली सामान्य सुविधाएं तो छोड़ ही दें उनकी जान बचाने तक के इंतजाम तक करने की जरूरत महसूस नहीं की जाती क्योंकि उन्हें मालूम है कि केंद्र हो या राज्य कोई सरकार भी मजदूरों के लिए श्रम कानूनों में दिए गए अत्यंत सीमित अधिकारों को लागू कराने में दिलचस्पी नहीं रखती। जहां पहले ही ऐसी स्थिति थी वहां अब केंद्र सरकार पुराने श्रम कानूनों को समाप्त कर उनकी जगह चार लेबर कोड लेकर आई है जिनमें श्रम अधिकारों में और भी अधिक कटौती कर दी गई है और श्रम विभाग को इन कानूनों को लागू कराने की जिम्मेदारी से बिल्कुल मुक्त कर दिया गया है। अब पूंजीपति खुद ही अपने को सर्टिफिकेट दिया करेंगे की उन्होंने श्रम कानून लागू कर दिए हैं। बात यह है कि देश में पूंजीपतियों की सत्ता है जिसका सारा काम इस नीयत से होता है कि पूंजीपतियों का मुनाफा कैसे दिन दूना रात चौगुना बढ़े, सारी नीतियां व कानून इसी मकसद से बनाए जाते हैं। मजदूरों को इसके बजाय अपने हित के लिए नीतियां चाहिये तो उन्हें इसके स्थान पर अपनी सत्ता कायम करनी होगी।