अमेरिका में मालवाहक रेल रोड हड़ताल फिलहाल टली,
September 18, 2022लेकिन इसकी घोषणा मात्र से अमेरिकी शासक वर्ग में मचा हाहाकार
त्वरित संपादकीय टिप्पणी, अगस्त-सितंबर 2022 संयुक्तांक
यह हड़ताल 16 सितंबर से होनी थी। होगी या नहीं, अभी तक संशय बना हुआ है। खबर यह भी आ रही है कि राष्ट्रपति और अमेरिकी कांग्रेस के चौतरफा हस्तक्षेप से कुछ और हफ्तों के लिए इसे टालने में सफलता मिल गई है। वैसे 60 दिनों की पिछली मियाद 16 सितंबर को ही खत्म होने वाली थी। लेकिन सरकार संभवत: इसे कुछ और हफ्तों के लिए या लंबे समय तक टालने में कामयाब हो गई है। कुछ भी निश्चत तौर पर कहा नहीं जा सकता है। श्रम सचिव द्वारा प्रबंधन और यूनियनों के बीच एक तात्कालिक समझौता करवा दिया गया है जिसके तहत कर्मचारियों 14% वेतन बढ़ोतरी की जाएगी और सिक लिव (बीमार होने पर छुट्टी मांगने), जो वैसे तो उनका अधिकार है, पर दंड देने का प्रावधान हटा दिया जाएगा। यह हड़ताल कितनी गंभीर स्थितियों को जन्म देने वाली थी यह इसी से पता चलता है कि इस बार भी हड़ताल को टालने के लिए सीधे राष्ट्रपति बाइडेन को हस्तक्षेप करना पड़ा और अमेरिकी कांग्रेस द्वारा पुराने हड़ताल रोकने वाले कानून को अमल में लाने और सेना तक को उतार दमन की घोषणा करनी पड़ी।
लेकिन इसमें क्या शक है कि इसने अमेरिकी समाज में, जिसके बारे में वहां के आम लोगों के भी उन्नत और गरिमामय जीवन के बारे में कई तरह की किंवदंतिया मशहूर हैं मानो वह धरती का स्वर्ग हो, मजदूर वर्ग की अत्यंत विकट जीवन-स्थिति की पोल खोलकर रख दी है। यह जानकर आश्चर्य होगा कि मालवाहक रेलरोड कर्मचारियों के ऊपर वर्क लोड इतना अधिक और उसकी तुलना में महंगाई आदि को देखते हुए वेतन आदि इतना कम है कि वे नौकरी तक का परित्याग करने को तैयार हैं, जबकि यह सच्चाई है, जिसके बारे में सारे तथ्य अखबारों में आ रहे हैं, कि रेल रोड कंपनियां (इसमें भी मुख्यत: तीन कंपनियों का बोलबाला है) और उसके ठेकेदार कर्मचारियों और मजदूरों की पीठ पर सवारी करते हुए अकूत मुनाफा कमा रहे हैं। उनकी मांगें क्या हैं? यही कि वर्क लोड की तुलना में वेतन और काम के बोझ को कम करने की मांग ताकि वे भी कुछ वक्त अपने परिवार के साथ बिता सकें और अगर बीमार हों तो आराम कर सकें। इंजिनियरों एवं कंडक्टरों की हालत यह है कि वे चौबिसों घंटे ऑन कॉल ड्यूटी पर रहते हैं, जब वे छुट्टियों पर रहते हैं तब भी। इसका मुख्य कारण स्टाफ की संख्या में कमी है जिसकी पूर्ति मौजूदा कर्मचारियों से बहुत ज्यादा और तेजी गति से काम करा के की जाती है। खासकर इंजिनियरों और कंडक्टरों के यूनियन के सदस्य यह मानते हैं कि महंगाई और वर्क लोड के अनुसार अभी उनकी मजदूरी या वेतन में बढ़ोतरी नहीं की जा रही है। अगर यूनियनें मान भी जाएंगी तो कर्मचारी मान जाएंगे इसमें शक है और ऐसे में यूनियनों को भी सफाया हो जा सकता है। इसका मतलब यह है कि यूनियनें अगर हड़ताल वापस लेने के हालात में नहीं है जब तक कि इनके सदस्य न मान जाएं। यह गौरतलब है कि इंजिनियरों और कंडक्टरों के बिना मालवाहक रेल रोड पूरी तरह ठप्प हो जाएगा। अंतिम कांट्रैक्ट 2017 में किया गया था, तब से जो भी बड़े रेलरोड कंपनियां हैं उनमें पहले से ही 20 से 25 प्रतिशत कर्मचारी कम कर दिए गए हैं। यूनियन के नेता सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि उनके कर्मचारी अब और अधिक बोझ सहने की सीमा के पार (are now at a breaking point) जा चुके हैं। इनके यूनियन के अध्यक्ष ने यहां तक कहा कि ”यह उसकी अपनी पसंद या नापसंद का सवाल नहीं है; हमारे सदस्यों ने यह साफ और ऊंची आवाज में बता दिया है कि जो वर्तमान समझौता पत्र है उसे वे पारित नहीं करेंगे। ऐसे में जिस समझौते की बात हो रही है उसका क्या होगा कहना मुश्किल है। इसने फिर भी एक बात साफ कर दी है कि अमेरिकी समाज में विद्रोह पल रहा है।
ऐसी राष्ट्रीय स्तर की हड़ताल अगर होगी तो पिछले तीस सालों के बाद होगी। अमेरिकी सरकार, व्यापारी, रेल रोड कंपनियां, और उसके भाड़े के अर्थशास्त्री इस बात से चिंतित हो उठे हैं कि अर्थव्यवस्था जो पहले से रसातल थी और भी गहरे रसातल में चली जाएगी। लेकिन जरा सोचिए, यह एक सेक्टर की बात है। अगर देश के सारे सेक्टर के मजदूर हड़ताल पर चले जाएं तो क्या होगा इसकी सहज कल्पना की जा सकती है। यानी देश मजदूरों कर्मचारियों के बल पर चल रहा है। लेकिन इन्हीं मजदूरों-कर्मचारियों पर हमला किया जाता है। अखबार लिख रहे हैं कि अगर हड़ताल एक सप्ताह के लिए भी खींच जाती है तो गैस का उत्पादन की बड़े पैमाने पर क्षति होगी, फसलें बरबाद हो जाएंगी, नये कारों की सप्लाई रूक जाएगी, छुट्टियों में दुकानों की दराजें खाली पड़ी रहेंगी, और पता नहीं क्या-क्या हो जाएगा। तो फिर मजदूरों-कर्मचारियों की मांगें क्यों नहीं मान लेते हैं! उल्टे वे लगे हाथ यह भी कहते हैं कि इस हड़ताल से दूसरे फैक्टरी मजदूरों को भी ले ऑफ करने की नौबत आ सकती है, क्योंकि इनवेंटरी खाली हो जाएंगी और उत्पादन बंद हो जाएगा। यही तो बात है जोहर वर्ग सचेत मजदूर कर्मचारी को समझना जरूरी है। सच्चाई यह है कि तमाम अन्य फैक्टरियों के मजदूर भी इनकी ही तरह पूरी दुनिया के देशों में भयंकर शोषण के शिकार हैं। अगर वे चाहते हैं कि वे अपने शोषण में कुछ भी कमी हो तो उन्हें रेल रोड हड़ताल का खुलकर समर्थन करना चाहिए ताकि पूंजीपति वर्ग का हमला रूक सके। एकमात्र इसी तर्ज पर समूचे मजदूर वर्ग पर पूंजीपति वर्ग द्वारा किये जा रहे हमलों को रोका जा सकता है।
अमेरिकी ट्रक एसोसिएशन के सीईओ क्रिस स्पीयर का कहना है कि अगर 7000 मालवाहक रेलगाड़ियां, जो प्रतिदिन लंबी दूरी का सफर तय करके सैंकड़ों तरह के सामान पहुंचाती हैं, अपना सफर रोक देती हैं तो इसकी पूर्ति लंबे मालवाहक ट्रक भी नहीं कर सकते, क्योंकि इसके लिए 460,000 ऐसे ट्रक प्रतिदिन चाहिए जो कि असंभव है। यानी, इनके हड़ताल से पूरे देश में हाहाकर मच जा सकता है, जबकि यह मात्र एक सेक्टर के एक हिस्से की हड़ताल होती। लेकिन सरकार या कंपनियां फिर भी इनकी मांगें क्यों नहीं मानती हैं, मजदूर वर्ग को इस प्रश्न का उत्तर जानना होगा। पूंजीवाद में सरकारें पूंजीपति वर्ग की प्रबंधन कमिटी होती हैं, न कि आम जनों के भले की कोई संस्था। जनतंत्र तो बस पर्दा है और वह भी पूरी तरह फट चुका है। जिस दिन मजदूर वर्ग इसे समझ लेगा और चाह लेगा, तो वह इन्हें झुका सकता है और निस्संदेह उखाड़ फेंक भी सकता है।
(जून 2022 से जारी यूनाइटेड किंगडम रेल हड़ताल, जो 30 वर्षों में वहां की सबसे बड़ी औद्योगिक हड़ताल है, के बारे में विस्तृत लेख यथार्थ के अगले अंक प्रकाशित किया जाएगा)